Sunday, 5 June 2022

 👌 *याद जब कब तुम्हे आयेंगी यारों....!*

        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

          मो. न. ९३७०९८४१३८


हे बुध्द कि याद‌ जब कब तुम्हे आयेंगी यारों

सम्यक पथ छोडने पर ये वक्त निकलते हुये..


ये श्रम - बुध्दी से सिंचा था वह आशियाना

प्यार का सिंचन करना हमें आया ही नहीं

क्या करे हमारे अपने ही नालायक निकले

दोष उसे क्यौं दे जो हमारे लिये पराये हुये...


जो अधिकार से मिला वो तुम छोडकर चले

जीवन का ये सत्य जब तुम समज जाओंगे

बस ये कर्म भी गजब की चींज है मेरे दोस्तों

बस रास्तें पर कब आओंगे पल गुजरते हुये..


ये फुलों की महक मे ना तो है कस्तुरी सत्य

हरनी दौडती चली है उस मधु गंध पिछे भी

हमारी दौड भी रही ये मायावी मृगजाल कि

बस तुम केवल फसकर रहोंगे ना बचते हुये..


* * * * * * * * * * * * * * * *

(नागपुर, दिनांक ७ जुन २०२२)

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