✍️ *महानायक बाबासाहेब आंबेडकर इनके वंशजों से समाज कि दिशाहिनता !*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
मो.न.९३७०९८४१३८/ ९२२५२२६९२२
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
*डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर*, इनके बारे में जितना भी संबोधन कहा जाएं, *"विश्व का शब्दकोष"* के वर्णित सभी शब्द भी कम ही होंगे. बाबासाहेब का चरित्र / व्यक्तित्व / कृतित्व बहुत बडा है. बाबासाहेब का कार्य ना केवल शोषित / पिडित / वंचित समुदाय के प्रति कृतिशील / सकारात्मक रहा था, बल्कि राष्ट्र विकास में और सशक्त जडन - घडन में भी, हमें दिखाई देता है. इस विशेष कारणवश *प. पु. डॉ. आंबेडकर साहेब के समस्त परिवार के प्रति हमारा सन्मान / मंगलमय भावना* हमेशा रहेगी. और रहना भी चाहिये...! क्यौं कि *"आंबेडकर"* इस नाम का वलय, बहुत कुछ बयान कर जाता है. इसका मतलब यह बिलकुल ही नही / या कदापी भी नही है कि, समस्त आंबेडकरी समुदाय ने *"बाबासाहेब का परिवार कुछ गलत निर्णय करे / या निर्णय लें तो, हम उस परिवार के पिछे पिछे, आंख बंद करते हुये साथ चले."* उनको फालो करे. विरोध ना करे. बाबासाहेब के परिवार का *"सन्मान करना / कुशल - मंगल भावना रखना"* और *"फालो करना / आंखे बंद कर पिछे जाना"* यह दो अलग विषय है. भिन्न विषय है. अत: हमे इन दोनो ही गंभिर विषयों पर, *"मन चिंतन / विचार चिंतन"* करना यह बहुत जरूरी है.
बाबासाहेब की सामाजिक संघटन की पहिली बुनियाद १९२४ को *"बहिष्कृत हितकारीणी सभा"* के बाद, सन १९२७ को *"समता सैनिक दल"* इस मिलटरी बेस्ड सामाजिक संघटन का निर्माण होना, यह हमे समझना बहुत जरुरी है. सन १९२६ को बाळासाहेब देवरस द्वारा *"रॉयल सिक्रेट सर्व्हिस"* (RSS) इस लाल झेंडे के प्रभाव से / हिटलर के कट्टरवादी विचारों पर इस *"मिलिटंट बेस्ड"* संघटन का भारत में जन्म होना, यह कोई स्वाभाविक भाव नही था. और *"गुलाम भारत"* में उस बामनी संघटन का वह नाम ही बहुत कुछ बयाण कर देता है. बाद में वह संघटन *"राष्ट्रिय स्वयंसेविक संघ"* (RSS) इस नाम में परिवर्तीत होकर अब हमे परिचित है. भारत की सत्तानीति / राजनीति / कुटनीति और अन्य सभी नीति का केंद्रबिंदु आज संघवाद है. *"संघवाद का और समतावाद का कालखंड एक ही है."* संघवाद की व्यापकता और समतावाद की बिखरता इन दो परस्पर विरोधी विचारों का मुल्यमापन करना, आज के संदर्भ में बहुत आवश्यक है.
बाबासाहेब का सामाजिक आंदोलन के १२ साल बाद, सन १९३६ में *"स्वतंत्र मजुर पक्ष"* (Independent Labour Party) इस नाम से राजनीतिक दल का गठण होना, यह भी हमे समझना होगा. फिर सन १९४२ में, *"स्वतंत्र मजुर पक्ष"* इस राजनीतिक दल का अस्तित्व खत्म करना और *"शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन"* (SCF) इस नये नाम से राजनीतिक दल का निर्माण की औचित्यता क्यौ करनी पडी ? यह भी हमे समझना है. फिर बाबासाहेब सन १९५६ को शोषित / पिडित / वंचित इस समुदाय को *"आजाद भारत"* में, *"RPI - रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया"* इस राजनीतिक दल की बुनियाद रखी है. अर्थात *"प्रजावादी भारत"* का राजनीतिक विचार देते है. ये *"गुलाम भारत"* का १५ अगस्त १९४७ को आजाद होना / और २६ जनवरी १९५० को *"भारत प्रजातंत्र राष्ट्र"* होना / अर्थात *"संविधानिक भारत"* यह बुनियाद राजनीति कोई सहज विषय नही है...!
बाबासाहेब का राजनीतिक आंदोलन कालखंड / गुलाम भारत से आजाद भारत का कालखंड / और बाबासाहेब आंबेडकर का *"धार्मिक कालखंड"* का परिपेक्ष, यह परस्पर जुडा हुआ हमें दिखाई देता है. सन १९५१ में *"भारतीय बौध्द जनसंघ"* इस धार्मिक संघटन का गठण / फिर सन १९५४ में *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया "* (TBSI - भारतीय बौध्द महासभा) इस नये नाम से धार्मिक संघटन की बुनियाद रखना / और सन १९५५ में उस संघटन का पंजीकृत करना, और १४ अक्तूबर १९५६ को हमे *"बुध्द की दीक्षा"* देना, यह मिश्रीत कालखंड है. उसी कालखंड में *दि पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी"* इस की बुनियाद डालकर *"मिलिन्द कॉलेज"* औरंगाबाद / *"सिध्दार्थ कॉलेज"* मुंबई मे निव रखना / उन्होने अपने घर का नामकरण *"राजगृह"* रखना, यह सभी के सभी नामावली हमे *"बुध्द संस्कृती"* का बोध कराती है. गुलाम भारत कालखंड मेंं बाबासाहेब के मार्गदर्शन में प्रकाशित पत्रिका, *"बहिष्कृत भारत / मुकनायक / जनता / प्रबुध्द भारत"* भी बुध्द संस्कृती का बोध कराती है. सन १९५६ मे लिखा हुआ धर्मग्रंथ *"दि बुध्दा एंड हिज धम्मा"* यह The gospel of Buddha की याद दिलाता है.
बाबासाहेब आंबेडकर साहेब का यह *"धावक कर्तृत्व आलेख"* लिखने का कारण यह कि, ६ दिसंबर १९५६ को वे हमे छोड देने के बाद, बाबासाहब जी का सामाजिक विचार *"समता सैनिक दल"* / राजनीतिक विचार *"दि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया"* / धार्मिक विचार *" दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* इन सभी विचारों का बिखरता भाव या उसे मज़धार में जाना कहें, जो भी शब्द लिखा जाएं वह कम है. और यह सभी करने के दोषी हमारे अपने ही *"रक्त के वारिस तथा विचारों के वारिस"* भी थे / है. *"विचारों के वारिसों"* ने सन १९५६ के बाद बाबासाहेब की राजनीतिक दृष्टी को अर्थात *"दि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया"* को जन्म तो दिया, परंतु वे वारिस - *एन. शिवराज / दादासाहेब गायकवाड / बँरी. राजाभाऊ खोब्रागडे / बी. सी. कांबले / दादासाहेब रुपवते / आर. डी. भंडारे / बी. पी. मौर्य* आदी नेताओं की विचार संघता कभी एकसाथ बनी ही नहीं...! और सशक्त रिपब्लिकन राजनीतिकरण भाव कभी बना भी नहीं...! यह कहने में कोई अतिशयोक्ती भी नही होगी. वही दु;खद विषय सामाजिक विचार *"समता सैनिक दल"* का रहा है. इस संदर्भ में चर्चा फिर बाद में करेंगे.
बाबासाहेब का हमे छोड जाना एवं धम्म शक्ति का अर्थात *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (TBSI) का दिशाहिनता की ओर जाना, कमजोर हो जाना, या बिखराव होना भी, हम कह सकते है. सन १९५५ में सदर संस्था यह *"सोसायटी एक्ट अंतर्गत"* पंजीकृत संघटन के बाबासाहब अध्यक्ष बने. बाबासाहेब ने संघटन में *"हर तिन साल में चुनाव प्रक्रिया"* करने का प्रावधान किया था. सन १९६० - ६३ का वह कालखंड, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर इनके एकमेव पुत्र *भैय्यासाहेब उर्फ यशवंतराव आंबेडकर* इनका एकछत्री प्रभाव का केंद्रबिंदु बना रहा. और उनके कार्यकाल में ही *"TBSI का सोसायटी एक्ट पंजीकरण निरस्त कर / चुनाव प्रक्रिया को रद्द करते हुये,"* TBSI यह *"दि पब्लिक ट्रस्ट एक्ट"* अंतर्गत दुसरा पंजीकरण करते हुये, *"वे सभी ट्रस्टी मरते दम तक सोसायटी के मालक बन गये."* और यह यशंवत आंबेडकर की वह बडी गलती ही, आज के TBSI के न्याय विवाद का कारण बनी है. सशक्त धम्म शक्ति का विघटन बना है. उनके बाद संस्था के *डॉ. स. वि. रामटेके* भी अध्यक्ष बने. *एच. एम. मजगौरी* (मेरे मम्मी के पुफा के लडका - अर्थात भाई) सदर संस्था के ट्रस्टी बने. वे महिने मे एक दो बार *"मेरे घर"* आकर, *"मेरे स्टडी रुम मे ही TBSI की चर्चा"* करते थे. वह मेरा मेडिकल स्टुडंट काल था. और *TBSI की नयी सुधारीत स्कीम एच. एम. मजगौरी साहेब* ने ही लिखी थी. इसलिये TBSI का मेरा जितना प्रत्यक्ष संबध आया, उतना ना तो *मीराताई आंबेडकर / प्रकाश यशवंत आंबेडकर / अशोक मुकुंदराव आंबेडकर / भीमराव यं. आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर* आदी महानुभावों का आया है, ना ही वे स्वयंघोषित पदाधिकारी *चंद्रबोधी पाटील* और अन्य किसी लोगों का. आज भी धर्मादाय आयुक्त, मुंबई इस कार्यालय मे *"TBSI का निर्णय"* मेरे द्वारा दाखल केस पर निर्भर है...!
*"चंद्रबोधी उर्फ चंदु पाटील / भीमराव आंबेडकर / राजरत्न अशोक आंबेडकर / मीराताई आंबेडकर "* यह सभी के सभी महानुभाव वे स्वयंघोषित ट्रस्टी बने है. वे संविधानिक ट्रस्टी नही है. ना ही *"शेड्युल वन"* पर, उन महानुभावों का नाम दर्ज है. और *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर / अशोक आंबेडकर* इन संविधानिक ट्रस्टी की मृत्यु होने के कारण, कानुनन उनके द्वारा सादर चेंज रिपोर्ट को, आज मंजुरी नही दि सकती है. धर्मादाय आयुक्त मुंबई में मैने केस दायर की है. और उसमे भारत के २५ नामांकित मान्यवरों के नाम की सुची देकर, उनमे से किसी *"७ ट्रस्टीओं की नियुक्ती"* धर्मादाय आयुक्त द्वारा करने की वहा बात कहीं है. इसी के साथ बाबासाहब के कालखंड में सादर *"मुल घटना का रिस्टोरेशन"* की केस भी मैने दायर की है. जो भविष्य में TBSI का निर्णय तय करनेवाली है. महत्व का विषय यह कि, संस्था के इन सभी के सभी स्वयंघोषित ट्रस्टीओं ने *"सन २००९ से TBSI का सालाना हिशोब यह धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में जमा नही किया है."* इस कारणवश संस्था का पंजीकरण रद्द होने की संभावना है. परंतु मैने उन सभी के सभी स्वयंघोषित ट्रस्टीओं से, *"वार्षिक ऑडिट हिसाब"* मांगने की अर्जी भी दी है. अर्थात वे स्वयंघोषित ट्रस्टी, समाज से धोकादारी कर रहे है. संस्था के नाम लाखों रूपयों की हेराफेरी भी, उन्होने की है. अब उनका मुख्य लक्ष यह न्यायालय के अधिन *"कोषागार में जमा १२ करोड राशी"* पर है. उन्हे TBSI के *"उज्वल भवितव्य"* से उनका कोई लेना देना ही नही है...!
बाबासाहेब के *"भावना ओं / विचारों के वारिस तथा रक्त के वारिस"* साथियों की कहानी, बहुत कुछ बयाण कर देती है. डॉ बाबासाहेब जी के रक्त वारिस *मीराताई आंबेडकर / प्रकाश आंबेडकर / भिमराव आंबेडकर* इन्होने धार्मिक संस्था *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया "* इसका मराठी / हिंदी का अर्थ - *"भारतीय बौध्द महासभा"* इस नाम से, दुसरा पंजीकरण करना यह सबसे बडी भुल थी. आगे जाकर धर्मादाय आयुक्त ने, *"मीराताई आंबेडकर द्वारा पंजीकृत उस संस्था का पंजीकरण रद्द कर दिया. परंतु रक्त वारिस के नाम वह गलत इतिहास दर्ज रहेगा."* दुसरी बडी गलती *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* में सदर धार्मिक संस्था की केस हारने के बाद भी, सदर धार्मिक संस्था का नाम लेकर *"स्वयं घोषित पदाधिकारी बने रहना"* और समाज से चंदा जमा करते हुये, उस नाम से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना. *क्या रक्तवारिस यह कृत्य संविधान विरोधी नही था ?* संविधान निर्माता ओं कें वारिसों का यह अवैध कृत्य, ना ही तो भुला नही जा सकता है, ना ही इसका समर्थन किया जा सकता है...!
बाबासाहेब ने हमे राजकिय धरातल *" दि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया"* विरासत में दी है. और उस विरासत का जतन करना, हम सबका दायित्व है. परंतु रक्त वारिस *एड. प्रकाश आंबेडकर* ने रिपब्लिकन विचार - नाद को खत्म कर, स्वयं निर्मित *"बहुजन महासंघ से लेकर वंचित आघाडी"* यह राजनीति प्रवास हमे आंबेडकर द्रोह की याद दिलाता है. *"रिपब्लिकन"* यह प्रजातंत्र विचारधारा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दुरदर्शिता थी. जातीगत / धर्मगत राजनीति को वह छेद थी. *"विचारों के वारिस"* इन नेताओं के लिए क्या कहे ? *"कोई पंजावाद के शरण गया, तो कोई नेता लालवाद / केशरीवाद के शरण...!"* निलावाद का अस्तित्व पुर्णत: मिट गया. अब *"गुलामवाद की भाषा"* हर शोषित नेता बोल रहा है...! परंतु हमारे *"रक्त वारिस का गुलामवाद / स्वैरतावाद"* यह राजनीतिक अपक्वता का बोध करा देता है.
मुंबई के *"आंबेडकर भवन"* संदर्भ में *रत्नाकर गायकवाड* (Retd. IAS) इनकी सक्रियता से, एक विशाल वास्तु का निर्माण हो सकता था. परंतु *एड. प्रकाश आंबेडकर* का जगह मालकी विषय में तिव्र भावनात्मक विरोध होना तथा माजी सनदी अधिकारी *रत्नाकर गायकवाड* को प्रकाश आंबेडकर के कार्यकर्ता द्वारा मारपिट करना / कालित पोतना यह घटना *"बाबासाहब के नैतिक आंदोलन"* को, कालित पोतन के समान घटना थी. अगर रत्नाकर गायकवाड / एड. प्रकाश आंबेडकर यह दोनो भी आपस में बैठकर, कोई समझौता करते तो, वह वास्तु भविष्य के आंबेडकरी आंदोलन का केंद्र बन सकता था. परंतु उस दु'खद घटना के बाद, *आयु. रत्नाकर गायकवाड* (Retd. IAS) ने सामाजिक विचारधारा से अपनी पुरी कर डाली. क्या आज वह *"आंबेडकर भवन"* वास्तु दोबारा खडी करने के संदर्भ में, पहल की जा सकती है ?
मुंबई के दादर स्थित इंदु मिल के जगह पर, *"डॉ. आंबेडकर स्मारक"* खडा करने के पिछे, मुंबई के पोष्ट खातें में कार्यरत एक साधारण व्यक्ती *आयु. चंद्रकांत भंडारे* इनकी कडी मेहनत / दृष्टी कहनी होगी. और भंडारे के कडी मेहनत का फल है कि, वह वास्तु सन २०२४ तक तयार हो जाएगी. शोषित नेता एड. प्रकाश आंबेडकर इन्होने चंद्रकांत भंडारे जी को अपने घर बुलाकर, वह सभी दस्तावेज़ देखा और दो - तिन दिन के बाद, *आनंदराज आंबेडकर* इनके नाम के पोष्टर पुरे मुंबई में लगाकर, वह आंदोलन अपने नाम करने का, असफल प्रयत्न किया गया. कहते है नां, *"दस्तावेज़ कभी झुट नही बोलते...!"* अगर प्रकाश आंबेडकर इन्होने चंद्रकांत भंडारे इन्हे साथ लेकर, वह आंदोलन किया होता तो, उनकी इमेज को और चार चांद लग जाते. परंतु स्व-स्वार्थ में आदमी अंधा हो जाता है.
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका निवास मुंबई के *"राजगृह"* को, अंदर से देखने की चाहत, हर कोई व्यक्ति के मन में रही है...! *"हमारे बाबासाहेब का बेडरुम, स्टडी रुम, लायब्ररी, ड्राइंग रुम कैसा है ?"* यह भावना हर किसी के मन में भरी है. अर्थात *"राजगृह"* यह स्मारक में परिवर्तीत होता तो, देश - विदेश के पर्यटक वे देखने आते. आज भारत में *"गांधी स्मारक / नेहरू स्मारक और ऐसे कितने सारे नेताओं के निवास,"* स्मारक बन चुके है. परंतु बाबासाहब जी का निवास *"राजगृह"* यह स्मारक ना बनना, यह एड. प्रकाशराव आंबेडकर एवं परिवार की, बाबासाहब जी के प्रति द्वेषता थी / है, या उदासिनता / स्वार्थ यह एक प्रश्न है ? ऐसा भी नही है कि, *"शासन द्वारा आंबेडकर परिवार को पर्यायी जगह की व्यवस्था ना हो...?"* यहां सवाल ईच्छाशक्ति का भी है. इस संदर्भ में *आंबेडकर परिवार ने सन १९५६ के बाद से,* कितनी प्रामाणिक पहल की है ? यह उत्तर आंबेडकरी समाज चुनना चाहता है. क्या यह जन ईच्छा, *आज भी पुरी की जा सकती है ?* एक साधा प्रश्न है.
*"कोरोना संक्रमण काल"* में देश के *"सभी मंदिर यह बंद"* थे. कोरोना सक्रंमण हो या, उस संदर्भ में सरकार का लिया गया निर्णय हो, वह विवाद का विषय छोड दिया जाए तो, *"मंदिर खुलने"* के संदर्भ में, *"एड. प्रकाश आंबेडकर इनके पंढरपुर मंदिर आंदोलन"* का, क्या कोई समर्थन किया जा सकता है ? यह गंभिर प्रश्न है. बाबासाहेब आंबेडकर जी का *"नासिक के कालाराम मंदिर सत्याग्रह"* यह न्याय हक्क प्राप्ति का आंदोलन था. समता प्रस्थापित करने का आंदोलन था. बल्की *"मंदिर प्रवेश"* यह बाबासाहब के मिशन का अंतिम ध्येय नही था. और वह कालखंड भी अलग था. *क्या एड. प्रकाश आंबेडकर का पंढरपुर मंदिर आंदोलन* अधिकार प्राप्ति / समता व्यवस्था का आंदोलन था ? *प्रकाश आंबेडकर का मंदिर आंदोलन यह "पंडागिरी व्यवस्था" का आंदोलन था.* अर्थात बाबासाहब के *"मिशन विरोधी आंदोलन "* था. प्रश्न अब यह है कि, प्रकाश आंबेडकर ये आंबेडकरी समाज को, क्या दिशा देने जा रहे है...?
बाबासाहब के जन्म दिन - *"१४ अप्रेल को राजगृह पर काले झंडे फडकाना"* इस प्रकाश आंबेडकर एवं आंबेडकर परिवार के *कृति का समर्थन,* क्या किया जा सकता है ? यह गंभिर प्रश्न है. प्रकाश आंबेडकर के बहन दामाद *डॉ. आनंद तेलतुमडे* इन पर, पोलिस व्यवस्था द्वारा किसी प्रकरण में गुन्हा दाखल होने के कारण, पोलिस हिरासत में जाने का आदेश न्यायालय ने दिया था. अब सवाल था कि, *आनंद तेलतुमडे / प्रकाश आंबेडकर* ने पोलिस हिरासत में जाने के लिए, *१४ अप्रेल यह दिन* ही क्यौ चुना ? अन्य दिन क्यौ नहीं ? दुसरा अहम विषय यह भी है कि, *डॉ. आनंद तेलतुमडे यह कोई आंबेडकरी आंदोलन* के नेता नही है. *वे लालशाही के कट्टर प्रवाहक रहे है.* उन परिवार का *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वेष"* यह सर्व विदित है. अर्थात राजगृह पर काले झंडे फडकाना, *"डॉ. बाबासाहेब का जन्म दिन यह काला दिन मनाया जाना,"* समान का एक प्रतिक था. जो कि, वह बडा निंदनीय कृत्य कहना होगा.
एड. प्रकाश आंबेडकर या परिवार की ओर से, बाबासाहब जी के *"रिपब्लिकन राजनीति को दरकिनार करना / भारतीय बौध्द महासभा का सोसायटी एक्ट पंजीकरण मिटाना या एकाधिकारी में रखने का प्रयास / राजगृह का स्मारक में परिवर्तीत ना करना या उस पर काले झंडे लगाना / आंबेडकर भवन वास्तु को ना बनने देना / पंढरपुर पंडागिरी आंदोलन आदी आंबेडकरी विरोधी भावों को हम किस संदर्भ मे समझे ?"* बाबासाहब से द्वेष / बदला और अन्य ? यशवंत आंबेडकर - मीराताई के विवाह को बाबासाहब जी का कडा विरोध एवं शादी में शरिफ ना होना / प्रकाश आंबेडकर द्वारा एक वयोवृध्द संबंधी व्यक्ति से चर्चा में, *"बाबासाहब, इस खेड्डे ने हमारे लिए क्या किया है ?"* जो यह बातें, उस वयोवृद्ध व्यक्तिने मुंबई में मुझे व्यक्तिशः (डॉ. जीवने) मिलकर, मुझ से वे बातें शेअर की. प्रकाश आंबेडकर का आजा को खेड्डा कहना, यह नाती का पर्सनल विषय है. इस संदर्भ में हम कोई चर्चा नही करेंगे. परंतु *डॉ. बाबासाहब आंबेडकर विचार विरोधी* इस कृतीभाव को, हम ने क्या बहुत सहज लेना चाहिये ? और वह भी *रक्त वारिस* से...! *भावना ओं के वारिसों* की आंबेडकरी गद्दारीपण को भी भुलाया नही जा सकता ? अत: भविष्य में इस तरह की गलती हम से ना हो..! क्या इस लिए हमे कटीबध्द होना चाहिये या नहीं, इस पर विचार मंथन होने की आवश्यकता है.
*राजरत्न आंबेडकर* इनके बारे में क्या कहें ? उस का पुरा काम धोकादारी का है. एक तो वह बाबासाहब जी के परिवार का सदस्य नही है. वो *मुकुंदराव आंबेडकर* के परिवार से जुडा है. ठिक है कि, आंबेडकर सरनेम से उसको अपना भी माने. परंतु उसकी झुटगिरी की कोई सीमा नही है. बुलढाना में एक बौध्द परिषद में *अशोक आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर* तथा मेरे सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की राष्ट्रिय सचिव *दिपाली शंभरकर* और मैं स्वयं *(डॉ. मिलिन्द जीवने)* दिनभर साथ साथ थे. वहां के गेस्ट हाऊस में अशोक आंबेडकर के उपस्थिति में, मैने राजरत्न आंबेडकर को कहा कि, अगर तुम्हे *"भारतीय बौध्द महासभा"* (TBSI) काम करना है तो, मै राजरत्न से कुछ बातें कही. जो बातें अशोक आंबेडकर को भी बहुत उचित लगी. और नागपुर में अगली बैठक करने का निर्णय लिया गया. राजरत्न आंबेडकर ये नागपुर तो आया, परंतु बैठक को दरकिनार कर पार्टी में मशगुल था. और TBSI एकीकरण नही हो पाया. TBSI के ट्रस्टी *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर* से मेरी फोन पर बातें होते रहती थी. तथा *डॉ. ज्योतिकर* जी और समता सैनिक दल के *एड. भगवानदास* जी नागपुर मेरे घर भी आये है. मै भी दिल्ली में भगवानदास जी को मिलने जाया करता था. आज वे दोनो मान्यवर इस दुनिया में नही है.
यह वास्तव लेख भावना पढकर, इस लेख मे जिस नाम का उल्लेख है, वे मान्यवर कुछ नही बोलेंगे, परंतु अंधे भक्तों के तीर निकलेंगे. उन तीर चलानेवालो कों पहले ही एक बात बताना चाहता हुं कि, *एड. प्रकाश आंबेडकर को सामाजिक जीवन में सब से पहले* नागपुर में परिचित किया गया. और धनवटे रंगमंदिर में *डॉ. आनन्द जीवने* इनकी अध्यक्षता में, सार्वजनिक सत्कार किया गया. *जहां मै स्वयं था.* दुसरी घटना नागपुर के रवी भवन की है. वह घटना भी बताना चाहुंगा. समता सैनिक दल के राष्ट्रिय संघटक *विमलसुर्य चिमणकर* / मोरे साऊंड सव्हिस के *आयु. मोरे* जी / मै स्वयं *(डॉ. जीवने)* दस साल पहले एड. प्रकाश आंबेडकर जी इनके निमंत्रण पर, मेरे कार से ही उनको मिलने गये. बातें बहुत चली. परंतु उस चर्चा में मुझे दम नही लगा. तब मैने प्रकाश आंबेडकर जी को एक साधा प्रश्न पुछा. वह प्रश्न था - *"आंबेडकरी राजनीति में बहुत सारे नेता है. परंतु उनमे कुशल टीम मैनेजर के गुण दिखाई नही देतें. वे प्रमुख गुण है - Good Commanding / Good Orator / Good Planner / Good Decision Making. आप में यह सारे गुण है. उपर से आंबेडकर नामका वलय है. फिर भी रिपब्लिकन राजनीति में एड. प्रकाश आंबेडकर यह फेल क्यौ है ?"* मेरे इस प्रश्न पर रवि भवन उपस्थित ३० - ४० कार्यकर्ता में खामोशी फैल गयी. पाच मिनिट तक प्रकाश आंबेडकर जी भी कुछ नही बोल पाये. तब मैने ही प्रकाश आंबेडकर जी को कहा, क्या मै इसका उत्तर दे सकता हुं. प्रकाश जी बोले, दो. मैने कहां - *"आप की यह जो चौकडी है. आप इनसे बाहर पडो. समाज के अंदर जाओ. अपना इगो छोडो. आप सफल नेता बनोंगे...!"* यह मेरी बातें सुनकर वहा सन्नाटा छा गया. और प्रकाश आंबेडकर जी दस पंधरा मिनिट के बाद मुंबई चल पडे. इस घटना के गवाह *प्रा. रणजीत मेश्राम / एल. एन. नाईक / राजु लोखंडे / डॉ. मिलिन्द माने* और बहुत सारे कार्यकर्ता है.
एड. प्रकाश आंबेडकर मुंबई पहुचने के बाद / दो दिन के उपरांत *प्रा. रणजीत मेश्राम* इनका मुझे फोन आया. वे मुझे कहने लगे - *"धम्म मित्र, बाळासाहेब पर आप ने क्या जादु किया. वे आप के बारे में पुछ रहे थे."* मैने कहा, फिर कभी इस पर चर्चा करेंगे. एक बात हमे स्विकारनी होगी कि, *"रिपब्लिकन राजनीति के लिए एड. प्रकाश आंबेडकर के बिना पर्याय नही है."* इस संदर्भ में और जादा बोलना / जादा वक्तव्य करना उचित नही होगा. *"बंद दरवाजा चर्चा "* यह विषय है. वही बात सामाजिक / धार्मिक आंदोलन को भी लागु होती है. हमारा मिशन *" एकसंघ भारत / बौध्दमय भारत"* है. इस हमारे मिशन में, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की राष्ट्रिय महासचिव और मेरी विश्वासु *डॉ. किरण मेश्राम* यह भविष्य में, आंबेडकरी आंदोलन की राष्ट्रिय नेता बन सकती है. इतना ही नही वो सफल उद्योजक / व्यावसाईक भी बन सकती है. केवल सिंचन कि / कडी मेहनत की / लगन की / हिम्मत की / ईच्छाशक्ति की जरूरत है. इसके साथ ही *प्रा. वंदना जीवने / सुर्यभान शेंडे / प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / इंजी. माधवी जांभुलकर / निवास कोडाप / डॉ. राजेश नंदेश्वर* और बहुत सारे मेरे हाथ कार्यरत है. बस, हम ण दिशा में हमारा कारवां बढा रहे है. अंत में, हमारे आंबेडकरी मिशन संदर्भ में मेरे कविता की चार पंक्तिया लिखकर, इस मेरी भावनाओं को विराम देता हुं...! जो शायद बाबासाहब के अंतर्मन की भी भावना हो -
ये श्रम - बुध्दी से सिंचा था यह आशियाना
प्यार का सिंचन करना हमें आया ही नहीं
क्या करे हमारे अपने ही नालायक निकले
दोष उसे क्यौ दे, जो हमारे लिए पराये हुयें...
* * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
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