Friday, 1 December 2023

 👌 *बुध्द धम्म दीक्षा समारोह से लेकर जागतिक बौध्द परिषद तक...!!!*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     समस्त भारतीय शोषित वर्ग की महान प्रेरक शक्ति, भारतीय संविधान के रचयिता - शिल्पी, बोधिसत्व प.पा. *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इनका धम्म प्रवास को समझना, इतना सहज भी नही है. बाबासाहेब जी का *बुध्द धम्म दीक्षा समारोह* (नागपुर, १४ अक्तुबर १९५६) की ओर, जाने के पहले के संदर्भ भी, हमे समझने होंगे. बाबासाहेब की कृतिशीलता *सामाजिक* कार्यों सें (बहिष्कृत हितकारिणी सभा, २० मार्च १९२४ / समता सैनिक दल, १३ मार्च १९२७) से *राजनीति* कार्यां - (इंडिपेंडेट लेबर पार्टी (ILP), १५ अगस्त १९३६ / ऑल इंडिया शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन (SCF), १८ - १९ जुलै १९४२) की ओर बढती है. *इंडिपेंडेट लेबर पार्टी* (स्वतंत्र मजुर पक्ष) को क्यौं बरखास्त करना पडा है ? और ऑल इंडिया शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना क्यौं करनी पडी, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे. फिर बाबासाहेब *"धार्मिक"* कार्यों की ओर बढते है. जुलै १९५१ में, बाबासाहेब ने *"भारतीय बौध्द जनसंघ"* की स्थापना की थी.‌ बाद में बाबासाहेब ने *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (भारतीय बौध्द महासभा) की स्थापना ४ अक्तुबर १९५४ में की, और उसका पंजीकरण ४ मई १९५५ मे हुआ है. और बाबासाहेब आंबेडकर जी ने बुध्द का दामन १४ अक्तुबर १९५६ में थामा. परंतु इस कालखंड के बिच की भी, कुछ घटनाओं को समझना बहुत जरूरी है.

      हम सबसे पहले डाॅ. आंबेडकर साहेब की पत्रकारीता की ओर चलेंगे. *मुकनायक* (१९२० -२३) / *बहिष्कृत भारत* (१९२७ - २९) / *जनता* - दि पिपल (१९३०) / फिर जनता का नामकरण *प्रबुध्द भारत* (१९५६) हमे पत्रिका का प्रकाशन समय तथा नामों पर गौर करना जरुरी है. *"अर्थात मुकनायक > बहिष्कृत भारत रहा था > जनता को > प्रबुध्द भारत की ओर ले जा रहे है."* बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित संस्था *"दि पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी"* अंतर्गत मुंबई शहर में स्थापित कॉलेज का नाम - *सिध्दार्थ कॉलेज* (२० जुन १९४६) रखा गया. और वही पिछडा क्षेत्र मराठवाडा के औरंगाबाद में स्थापित कॉलेज का नाम - *मिलिन्द कॉलेज* (२० मई १९५१) रखा गया. उस काल में हमारे लिए *"शिक्षा के दरवाजे"* खोलते समय, हमें बुध्द संस्कृति का अहसास करा रहे है. वही दादर मुंबई के हिंदु कोलोनी में (१९३१ - ३३) स्वयं के, खडे किये घर का नामकरण भी *"राजगृह"* रखते है. समाजकारण से राजनीतिकारण और फिर धर्मकारण करते समय, वे हमे *"रिपब्लिकन"* (प्रजातंत्र) का संदेश देते है. क्या बाबासाहेब के यह विचार, हमे विचार करने के लिए तथा संशोधन करने की सिख नही है ?

      बाबासाहेब आंबेडकर का प्रवास यह *'समाजनीति से राजनीति, और राजनीति से धर्मनिती की ओर"* जाते हुये, हमे वो दिखाई देता है. और बाबासाहेब भारतीय आवाम को, *"बुध्द का दामन"* थामने की एक सिख देते है. *"बुध्दमय भारत"* की वे आशा करते है. प्राचिन काल में *"अखंड विशाल भारत'* (चक्रवर्ती सम्राट अशोक काल में) यह *"बुध्दमय भारत"* ही तो था. बाबासाहेब जी का १४ अक्तुबर १९५६ को *"बुध्द धम्म दीक्षा समारोह"* का सफल आयोजन, यह बुध्दमय भारत की सच्ची नीव थी. डॉ आंबेडकर भारत में, *"जाती संघर्ष / धर्म संघर्ष / वर्ण संघर्ष"* टालना चाहते थे. *"आदर्श व्यक्ति - आदर्श समाज - आदर्श राष्ट्र निर्माण"* की वह एक सच्ची आगाज थी. यहां अहं प्रश्न है कि, बाबासाहेब के धम्मनीति पर, कितने मान्यवरों ने *"सच्चा संशोधन"* किया है ? वही मोहनदास गांधी का प्रवास *"धर्मनीति से राजनीति, और राजनीति से समाजनीति"* की ओर, उलटा जाते हुये, हमे दिखाई देता है. मोहनदास करमचंद गांधी *"भारत आझादी"* के सच्चे सेनानी - *"अहिंसा पुजारी"* होना ही, विवाद का / संशोधन का बडा विषय रहा है. केवल *"कांग्रेसी राजनीति - सत्ता नीति"* का वह दोहरा अन्यायी मापदंड रहा है. और भारत आझादी के बाद, यह *'कांग्रेस की नीति कहे या, गांधी नीति,"* भारत के अविकास वाद - धर्मांध वाद - जातिवाद - वर्ण वाद - भाषा वाद आदी विवाद का सही कारण है.

    अब हम *सिलोन (श्रीलंका)* - कैंडी मे, २५ मई से ६ जुन १९५० के *"जागतिक बौध्द परिषद"* की ओर बढते है. बाबासाहेब ने वहां पारित हुयें ठराव (Resolution) पर असमाधान जताते हुये कहा कि, (१) भारत में बुध्द धर्म के आचार - विचार का अभाव है. वह हमे कैसे मिले, इस पर प्रयास हो. (२) बुध्द धर्म के मुल तत्व का हमे अभाव दिखाई देता है. उस विषय पर प्रयास हो. (३) सिलोन यह बुध्द धर्मीय देश है. यहां बुध्द धर्म किस तरह जिंदा है, इस पर संशोधन हो. और मैं यही आशा लेकर, इस परिषद में सम्मिलित हुआ हुं. और हमे यह समझना होगा कि, *डा आंबेडकर सन १९५० में, बुध्द धम्म में दिक्षीत नही हुये थे.* फिर भी बुध्द धर्म की प्रति उनकी यह बडी ही वेदना, हमें बहुत कुछ बयान कर देती है. कैंडी शहर में आयोजित *"तिसरी जागतिक बौध्द परिषद"* के अलावा, डॉ. बाबासाहेब सिलोन (श्रीलंका) के कोलोंबो शहर में आयोजित, *"जागतिक बौध्द भातृत्व सम्मेलन"* तथा *"यंग मेन बुध्दीस्ट असोशिएशन"* द्वारा आयोजित, कार्यक्रम मे भी शरिख हुये थे. *बर्मा (म्यानमार)* - के रंगुन शहर में हुयी, ४ दिसंबर १९५४ की वह *"जागतिक बौध्द परिषद"* बहुत ही महत्वपुर्ण है. क्यौं कि, उस परिषद में डाॅ. बाबासाहेब का दिया गया भाषण, बुध्द धर्म प्रसार - प्रचार का मुख्य *"Blue Print Action Plan"* है. उन्होने "गॉस्फेल ऑफ बुध्दा" इस ग्रंथ की पुर्ती - *"दि बुध्दा एंड हिज धम्मा"* (१९५६) को हमे देकर की है. और बुध्द धर्म प्रचार - प्रसार संदर्भ कें, बहुत कुछ बातें हमे यहीं से मिलती हैं.

      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब जी ने १४ अक्तुबर १९५६ को, *"बुध्द धम्म"* की दीक्षा लेने के बाद, *नेपाल* देश में हुयी *"४ थी जागतिक बौध्द परिषद"* (१५ नवंबर १९५६ से २० नवंबर १९५६) में वे सहभागी हुये थे. परंतु प्रकृति कारणवश, वे पुरे सत्र मे सहभागी ना होने पर, उन्होने अपनी दिलगीरी व्यक्त भी की थी. वही आयोजकों द्वारा डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर कों, *"बौध्द धर्म में अहिंसा"* यह विषय दिया गया था. परंतु जादातर मान्यवरों ने बाबासाहेब को, *"बुध्दीझम और साम्यवाद"* इस विषय पर बोलने का आग्रह होने से, बाबासाहेब ने लोगों का आग्रह मान्य किया. उस परिषद में बोलते हुयें बाबासाहेब ने कहा कि, नेपाल में (तत्कालिन भारत) बुध्द का जन्म हुआ. परंतु २५०० साल के बाद ही, नेपाल देश से बुध्द धम्म का -हास हुआ है. परंतु बुध्द धम्म का वृक्ष अब भी जिंदा है. *मैने बुध्द धर्म क्यौं स्वीकारा है ? क्यौं कि बुध्द धर्म में समता, बंधुता एवं स्वातंत्र (आजादी) है. अन्य धर्म में देव, आत्मा के अलावा कुछ भी नही है.* मानव मात्रा के उन्नती के लिए, बुध्द धर्म मे जो तिन बातें बतायी है, इसका उल्लेख अन्य धर्म में नही है. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर इनका नागपुर में, १४ अक्तुबर १९५६ को बुध्द धम्म दीक्षा लेना, तथा अपने शोषित समाज के *"पाच लाख लोगों को, सामुहिक रुप में बुध्द धर्म में दीक्षीत करना,"* यह साधारण सी घटना नही है...!वह तो विश्व का एक बडा रिकार्ड है. भारत के सामाजिक क्रांती की बुनियाद है. *"वही शोषित समाज ने, बुध्द धर्म में दीक्षीत होने के बाद, केवल इन सत्तर सालों में, शोषक समकक्ष उड़ान लेना"* यह विश्व का एक अनोखा इतिहास है.

      बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर साहाब के, १४ अक्तुबर १९५६ की *"धम्म क्रांती की ज्योत,"* बाबासाहेब ने हमे छोड देने के बाद (६ दिसंबर १९५६), थमसी गयी थी. वही *हमारी युवा टीम* ने *"पीडीएम"* की माध्यम से, *"धम्म दीक्षा समारोह"* का आयोजन, ४ अक्तुबर १९९२ को शुरु किया. उस हमारे धम्म दीक्षा समारोह में, संस्कृत प्राध्यापिका *डाॅ. रुपाताई कुलकर्णी* ने *"बौध्द धर्म"* की दीक्षा ली. यही नही ३०० के आसपास, हिंदु धर्मीय लोगों ने भी बुध्द धर्म की दीक्षा ली थी. हमारी दीक्षा समारोह के प्रभाव से, महाराष्ट्र के नामवंत कवि सुरेश भट  इन्होने भी, भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई जी के हाथो, बुध्द धम्म की दीक्षा ली.‌ उसके बाद हमने, *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद १९९३"* का आयोजन किया. उस परिषद में ओबीसी नेता *प्रा. प्रभाकर पावडे* ने भी, बुध्द धर्म की दीक्षा ली. उस समय मेरे (डाॅ. जीवने) पास *"राजदुत मोटरसाइकल"* हुआ करती थी. और हमारी युवा टीम, मेरे ही मोटरसाइकल से शहर - देहात में घुमकर, धम्म दीक्षित करने का मिशन चलाते थे. इस मिशन में मुझे उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, गुजरात इन राज्यों में जाने का सु-अवसर मिला. कर्नाटक (बंगलोर) के ओबीसी नेता / दलित व्हाईस इस पत्रिका के संपादक *व्ही. टी. राजशेखर* इन्हे भी, *मैने बुध्द धम्म मे दीक्षित* होने का पत्र भेजा था. उन्होने फिर बिहार जाकर बुध्द धम्म को अपना लिया. बिहार के आय. जी. (पोलिस) *मैकुराम* जी ने भी, बुध्द धर्म की दीक्षा ली थी. बिहार के उस धम्म दीक्षा कार्यक्रम में, मुझे व्यक्तिश: मंच पर उपस्थित होने का सन्मान मिला था. हमारी युवा टीम द्वारा तिन चार साल, वह धम्म दीक्षा कार्यक्रम सफलता से चला. फिर हमारे टीम में दरारे आ गयी थी. कुछ साथी अलग भी हो गये. और विवादों से दुर होकर, मैने (डॉ. जीवने) *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* (CRPC) इस संघटन का गठण किया. महत्वपुर्ण विषय यह कि, *भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई* जी ने, हमारा वह *"धम्म दीक्षा समारोह"* मिशन, फिर अपने हाथों लेकर, "दीक्षाभूमी" से उसे चालु किया.

       "सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल" के गठण के बाद, *"जागतिक बौध्द परिषद"* का आयोजन, २००६ / २०१३ / २०१४ को किया गया. *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद"* तथा *"महिला परिषद"*  का सफल आयोजन, सन २०१७ / २०१९ / २०२० को किया गया. *"विश्व शांति रैली"* का आयोजन २००७ / २०१८ / २०२० को किया गया. वही *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (TBSI) के साथ भी सन २०१५ में, मेरे (डाॅ. जीवने) ही प्लँनिंग में *"जागतिक बौध्द परिषद"* तथा *"जागतिक बौध्द महिला परिषद"* का आयोजन तथा श्रीलंका से *"बुध्द अस्थि धातु"* का दर्शन, बौध्द समाज के लिए हमने किया था. परंतु TBSI पदाधिकारी के साथ का अनुभव, अच्छा नही रहा. उस संघटन के तथाकथित अध्यक्ष वैचारिक कम, केवल बाबुगिरी के ही पात्र है. और इस पर चर्चा फिर कभी करेंगे. *आंध्र प्रदेश सरकार* ने, हमे *"अमरावती महोत्सव - विश्व शांती परिषद २०१८"* को, हमे बुलाया था. और उन्होने तिन बसेस की भी व्यवस्था की थी. तब मेरे ही नेतृत्व में, हम आंध्र प्रदेश में भी गये थे. *श्रीलंका सरकार* ने मुझे, अनुराधापुर बुध्दीस्ट मॉंक विद्यापीठ में, *"बौध्द धम्म परिषद"* के लिए आमंत्रित किया था. अभी अभी *HWPL* संघटन द्वारा *कोरीया* में आयोजित *"विश्व शांती परिषद २०२३"* के लिए, मुझे निमंत्रित किया गया. इसके पहले *HWPL H.Q. Korea तथा CRPC H.Q. India* इनके संयुक्त तत्वाधान में, आन लाईन स्वरुप में, *"Mini World Peace Conference 2022"* का सफल आयोजन, HWPL चेयरमैन *मैन ही ली* इनके हाथों तथा CRPC के अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनकी अध्यक्षता में, किया गया था. इस मिशन के कारण श्रीलंका / कोरीया / व्हिएतनाम / थायलंड / मलेशिया / नेपाल / सिंगापुर  इन देशों में जाने का, मुझे अवसर प्राप्त हुआ. 

       धम्म मिशन के कारण ही, मुझे विश्व के कुछ महान मान्यवरों के साथ मिलने का, कुछ मान्यवरों को मेरी संघटन -  *"जीवक सोसायटी / अश्वघोष फाऊंडेशन"* द्वारा आंतरराष्ट्रिय पुरस्कार देकर उन्हे सन्मानित करने का, तो कुछ मान्यवरों के छाया में, कुछ पल गुजारने का मुझे सु-अवसर प्राप्त हुआ. उन कुछ महान मान्यवरों के नाम है - *परम पावन दलाई लामा* (धरमशाला)/ *परम पावन ड्रायकंग कैबगान चेटसंग* (तिब्बती धर्मगुरु) / *परम पावन सोना रिंपोचे* (बोम्डीया) / *परम पावन बुध्द मैत्रेय* (अमेरीका) / *परम पावन कर्माप्पा लामा - त्रिनले थाये दोरजे* / आंतरराष्ट्रिय विचारविद *परम पावन थिक नैट हैन* (व्हिएतनाम) / *भदंत प्रज्ञानंद* (बाबासाहेब आंबेडकर जी के दीक्षा मे, उपस्थित हुये पाच भिक्खु मे से वे एक) / *भदंत आनंद कौशल्यायन* (बुध्द भुमी) / *भदंत बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* (महाबोधी सोसायटी श्रीलंका) / जापान मुल के भंते - *भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई* (नागपुर) / *भदंत ज्ञानेश्वर महाथेरो* (म्यानमार) / *भदंत संघसेन* (महाबोधी सोसायटी लद्दाख) / *मदर पार्क चुंग सु* (कोरीया) / *मदर बँगकॉट सित्थिपाल* (थायलंड) / *भदंत सोमरतन महाथेरो* (महाबोधी सोसायटी श्रीलंका)  *भिक्खुनी धम्मानंदा* (थायलंड) / *लामा रिंपोचे* (नेपाल) / *लामा थिक जिएक लुयांग* (अमेरिका) / *भंते बुध्दधातु* (आस्ट्रेलिया) / तिब्बत के प्रधानमंत्री *लामा एस. रिंपोचे*  आदी धम्म नायकों से तथा कुछ नामांकित वे आंबेडकरी विचारविद / लेखक भी है. - *मा. एल. आर. बाली* (पंजाब) / *मा. भगवानदास* (नयी दिल्ली)  / *डाॅ. पी. जी. ज्योतिकर* (गुजरात) - TBSI / *डॉ. डी. आर. जाटव* (जयपुर) / *संघप्रिय गौतम* / *मा. सुबुती* (टी.बी.एम.एस.) / *डॉ. मुंसिलाल गौतम* (IAS) /  *डाॅ. सी. डी. नायक* (कुलगुरु, महु) / *डाॅ. आर. एस. कुरील* (कुलगुरु, महु) / *डाॅ. अरविंद आलोक* (नयी दिल्ली) / *मा. डी. के. खापर्डे* (बामसेफ) और ऐसे बहुत सारे नाम है, कुछ मान्यवर तो आज इस दुनिया में नही रहे है, वही कुछ मान्यवरों से तो, मेरे बहुत ही अच्छे मित्रवत संबंध बने है. कुछ मान्यवरों ने तो, मेरे घर आकर, मेरा सन्मान भी बढाया है.

      बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर साहाब के विचार *"Pay Back to Society"* इस विचारो पर, खरा उतारने का मेरा प्रयास रहा है. हमने सबसे पहले, *"विदेशों की ६ फुट की बुध्द मुर्ती का वितरण,"* १० - १२ साल पहले किया था. विदर्भ के बहुत से बुध्द विहार, इसकी गवाह देंगे.‌ इसी के साथ ही *"तायवान देश से धम्म पुस्तके"* लाकर, मैने मोफत वितरण किया है. इतने सारे कार्य करते हुये, किसी भी व्यक्ति ने / पदाधिकारी वर्ग ने मुझ पर, *"पैसों का गभन"* करने का आरोप नही लगाया है.‌ मैने यह संपुर्ण कार्य करते समय, पुरी पारदर्शकता रखी थी. परंतु आज कल धम्म का व्यापार देखकर, बडा ही दु:ख होता है. फिल्मी नायक *गगन मलिक* भी, हमारे साथ ही जुडा हुआ था. वो मेरे घर भी आया. परंतु उसका व्यवहार उचित सा ना देखकर, हमने उससे दुरी बनायी. परंतु हमारे अपने लोग स्वार्थवश गगन मलिक से, बुध्द मुर्ती खरीदकर, *"बुध्द मुर्ती तस्करी"* को बढावा देते नज़र आते है. स्मृतिशेष - *डॉ. आनंद जीवने* भाऊ के अध्यक्षता में, *एड. प्रकाश आंबेडकर* इनका ३० - ३५ साल पुर्व का *"सबसे पहले सामाजिक परिचय हमारा कार्यक्रम"* हो या, १० - १२ साल पुर्व की मेरी *"एड. प्रकाश आंबेडकर से मुलाखत"* हो, मेरा विचार यह स्पष्ट रहा है. धम्म के इस मिशन में, मुझे कुछ कटु तो, कुछ खट्टे - मिठे अनुभव भी आये है. कभी कभी तो, हमारे अपने जिगरी दोस्त कहे या, अच्छे ही विश्वासु सहपाठी ने भी, विचारों से बहुत दुरीया की है. मेरा प्रयास सभी को न्याय देने का रहा है. परंतु सभी को हम संतोष नही दे पाते. फिर भी मिशन रुका नही. हम चलते रहे, अपनी मंज़िल की ओर...!!!


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* *डाॅ. मिलिन्द जीवने ''शाक्य'*

नागपुर, दिनांक १ दिसंबर २०२३

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