Friday, 4 November 2022

 🍷 *तुम मधुशाला...!*

      *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

      मो.न. ९३७०९८४१३८


हे नशा में धुत हो, तुम मधुशाला

अधम का रुप हो, तुम मधुशाला...


आग की चिंगारी हो, तुम मधुशाला

मन का तुफान हो, तुम मधुशाला

दीन की मिसाल हो, तुम मधुशाला

नारी का नरक हो, तुम मधुशाला...


गद्दारों की खान हो, तुम मधुशाला

उजाडें का नाम हो, तुम मधुशाला

प्यार की नादानी हो, तुम मधुशाला

डुबाने का राज हो, तुम मधुशाला...


ना चैन की वफा हो, तुम मधुशाला

हिंसा का गदर हो, तुम मधुशाला

सत्ता की मैफिल हो, तुम मधुशाला

देश का कलंक हो, तुम मधुशाला... 


* * * * * * * * * * * * * * * * * 

(अभिताभ बच्चन इनके पिता ने, *"मधुशाला"* का अलग वर्णन किया था. परंतु कवि की दृष्टीकोन से, *"मधुशाला"* का वास्तव इस प्रकार है.)

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