🇪🇬 *प्रजातंत्र भारत बनाम पुंजीवादी भारत तथा हुकुमशहा भारत एवं बामनी एकाधिकारशाही...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
प्रजातंत्र को अंग्रेजी में *"डेमोक्रेसी"* यह शब्द है. जो ग्रीक शब्द *"डेमोक्रेटिया"* से आया हुआ, कहा जाता है. इसा पुर्व पाचवी शताब्दी में, *"डेमोस"* (प्रजा) तथा *क्रेटोस* (नियम) इन दो शब्दों से, इस शब्द का निर्माण बताया गया. वही कुछ विचारविदों ने *"प्रजातंत्र"* की चार विशेषता बतायी है. वे चार विशेषताएं है - १. जनता द्वारा शासन : बहुमत का शासन २. सरकार जिसमे सर्वोच्च शक्ती प्रजा के पास होती है. और आम तौर पर, प्रतिनिधियों के माध्यम से उपयोग में लायी जाती है ३. लोगों द्वारा शासीत एक राजनीतिक इकाई (एक राष्ट्र के रूप में) ४. इस विचार मे विश्वास या व्यवहार कि, सभी लोक सामाजिक रूप में समान है.
परंतु डॉ. आंबेडकर इन्होने *"प्रजातंत्र "* यह शब्द *"भारत के संविधान "* में, *"बुध्द भिक्खु संघ"* से लेने की बात कही. इस संदर्भ में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने "संविधान सभा" (२६ नवंबर १९४९) में कहा कि, *"It is not that India did not know what Democracy is. There was a time when India was studded with republics, and even where monarchies, they were either elected or limited. They were never absolute. It is not that India did not know Parliaments or Parliamentary procedure. A study of Buddhists Bhikkhu Sanghas discloses that not only there were parliaments - for the Sanghas were nothing but Parliaments - But the Sanghas knew and observed all the rules of parliamentary procedure known to modern times. They had rules regarding seating arrangement, rules regarding Motions, Resolutions, Quorum, Whip, Counting of votes, Voting of Ballots, Censure Motion, Regularisation, Res Judicata etc. Although these rules of parliamentary procedure were applied by the Buddha to the meetings of Sanghas, he must have borrowed them from rules of political Assemblies functioning in the country in his time."* इस से यह स्पष्ट बोध हो जाता है कि, ग्रीक विचारविदों ने भी *"प्रजातंत्र"* अर्थात Democracy यह शब्द, भारत से (बुध्द) ही लिया है. क्यौ कि, उस काल में बुध्द धर्म का प्रभाव, समस्त विश्व पर दिखाई देता था. वही *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का, बुध्द धर्म पर राजाश्रय यह सर्वविदित है.
भारत को १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से *"आजादी"* मिली या वह *"सत्ता का हस्तांतरण"* था...? यह भी प्रश्न है. क्यौं कि, *"गोरे अंग्रेजो का शासन"* यह शिस्तबध्द, इमानदार, पारदर्शी, न्यायप्रिय, भ्रष्टाचार मुक्त दिखाई देता है. परंतु *"काले अंग्रेजो का शासन"* (बामनशाही) यह बेशिस्त, धोकादारी, अपारदर्शी, अन्यायपूर्ण तथा भ्रष्टाचार युक्त हमे दिखाई देता है. वही अखंड भारत का *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का शासन भी, गोरे अंग्रेजों के समान ही था. परंतु साथ में *'प्रजातंत्र "* भी दिखाई देता था. वही २६ जनवरी १९५० को होनेवाले, *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) संदर्भ में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) में कहा कि, *"On 26th January 1950, India will be an Independent Country. (Cheers) What would happen to her Independence ? Will she maintain her Independence or will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an Independent Country ? The point is that she once lost the Independence she had. Will she lost it a second time ? It is this thought which makes me most anxious for the future."* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के, संविधान सभा दिनांक २६ नवंबर १९४९ के वे शब्द, *२६ जनवरी २०२२* को, हमे लागु दिखाई दे रहे है. आज मुझे *अखंड विशाल भारत* के चक्रवर्ती सम्राट अशोक मार्य के आखरी वंशज, *बृहदत्त* की हत्या *बामनी सेनापती पुष्यमित्र शुंग* ने कर, *"बामनी सत्ता - बामनशाही"* की बुनियाद रखी थी. गद्दारी की निव रची थी. *अखंड विशाल भारत* (भारत, पाकिस्तान, नेपाल, अफगानीस्तान, कजाकिस्तान, बांगला देश आदी) को *खंड खंड* कर, *"गुलाम भारत"* यह इतिहास रचा गया. आज *"विदेशी काले अंग्रेज - बामनी वर्ग समुह"* यह उन गद्दारो की वंशज है. तो हम उन बामनी समुहों से, *"देशभक्ती"* की उम्मीद कैसे करे ...?
अब हम *"पुंजीवाद"* (Capitalism) पर चर्चा करेंगे. पुंजीवाद यह ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिस में धनिक वर्ग उत्पादन साधनों पर अधिकार कर, श्रमिकों का शोषण करता है. *लॉक्स और हुट* इन विचारविदों के अनुसार, *"पुंजीवाद आर्थिक संघटन की ऐसी प्रणाली है, जिस मे व्यक्तिगत स्वामित्व पाया जाता है. और मानवकृत एवं प्राकृतिक साधनों के व्यक्तिगत लाभ के लिए, प्रयोग किया जाता है. पुंजीवाद अर्थिक प्रणाली वह है, जिसमे उत्पत्ती के भौतिक साधनों का अधिकार अथवा उपयोग का अधिकार, कुछ ही व्यक्तियों के पास होता है."* भाजपा प्रणित भारत सरकार, क्या कर रही है...? भारत के सरकारी संस्थाओं का *"खाजगीकरण."* कांग्रेसी माजी पंतप्रधान *इंदिरा गांधी* ने, बैंको का *"राष्ट्रीयकरण"* किया था. क्यौ कि, उस काल में एक विशिष्ट वर्ग का, बैंको पर मोनोपॉली हुआ करती थी. भाजप प्रणित *नरेंद्र मोदी* सरकार द्वारा, बी.एस.एन.एल. / रेल्वे / बैंक से लेकर *"सरंक्षण"* (Defense) तथा अन्य सरकारी संस्थाओं का भी *"खाजगीकरण "* कर डाला. और कुछ सरकारी संस्थाओं का, वो करने जा रही है. *भारतीय लढाकु विमानों* का उत्पादन, *सरकारी कंपनी* द्वारा किया जाता था. अब वह *अंबानी* के हवाले कर दिया. *फिर सरकार का दायित्व क्या है / रहा...?* अर्थात भाजपा-प्रणित बामनशाही सरकार द्वारा, हमारे उज्वल *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) को, *"पुंजीवादी भारत"* (Capitalist India) बना डाला...!!!
अब हमे *"हुकुमशाही व्यवस्था"* अर्थात Dictatorship इस संदर्भ में, यहा चर्चा करना आवश्यक है. *हुकुमशाही व्यवस्था को तानाशाही / अधिनायकवाद / अधिनायकता / अधिकारशाही* यह भी पर्यायी नाम दिये गये है. इतिहास में, बहुत से हुकुमशहा हो गये. उन्होने राजकिय तथा सामाजिक निर्बंध को तोडकर, अनियंत्रित सत्ता चलाई थी. *"उन हुकुमशहा का अंत भी बहुत बुरा हुआ,"* हमे इतिहास में दिखाई देता है. प्रजा के बढते दबाव में, उन हुकुमशहा ने आत्मघात किया है या, किसी को फाशी पर लटका दिया है. वे हुकुमशहा सिमित काल तक, प्रजा के चेहते रहे. परंतु उनके अतिरेक के कारण, उन्हे प्रजा के रोष का सामना करना पडा. भाजपा-प्रणित सरकार / प्रधानमन्त्री *नरेन्द्र मोदी* का कार्य भी, *"कृषी बील"* तथा अन्य विषय संदर्भ में, हुकुमशहा के रुप में दिखाई दिया है. आखिर *"किसान आंदोलन"* के कारण, नरेंद्र मोदी को पिछे हटना पडा. अर्थात *"हुकुमशहा भारत"* (Dictator India), अब हमें नजर आ रहा है. प्रजा के अनुमती बिना, प्रजा पर *सत्ता द्वारा* कानुन को लादने का, भारत में जबरन प्रयास किया गया है. यह जो *"अधिकारशाही"* (En:authoritarianism) है, वो "प्रजातंत्र विरोधी" होती है. दुसरे अर्थ में कहा जाएं तों, वह *सर्वकष-सत्ता* यह *"बहुत्ववाद"* (Pluralism) विरोधी हमे दिखाई देती है. तथा इस व्यवस्था में, *"सर्व-शक्तीमान"* (Omnipotenence) ऐसे प्रजा के अधिकार, यह पुर्णत: निलंबित किये जाते है. अर्थात *"अधिकारो का संकेद्रण"* (Concentration) कर, प्रजा के वैधिक भाव (Legitimate) को खत्म किया जाता है. भाजपा प्रणीत *नरेंद्र मोदी* भी, कांग्रेसी तत्कालीन प्रधानमन्त्री *इंदिरा गांधी* के राह पर चलते हुयें, हमे दिखाई देते है. इंदिरा गांधी, उस काल में सर्वशक्तीमान थी. आज नरेंद्र मोदी, सर्वशक्तीमान दिखाई देते है. इंदिरा गांधी का हश्र, हम सभी ने देखा है. निश्चित ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने, इतिहास के उन हुकुमशहा के हश्र की, जरुर सिख लेनी चाहीये...!!! और संघवादी परिवार ने भी...!!!!
अब हम *"बामनशाही"* या अंग्रेज़ी में Brahminism, तथा उनके द्वारा निर्मित संघटन पर, चर्चा करेंगे. सन १९२४ मे बामनशाही द्वारा, *"RSS (Royal Secret Service)"* नामक संघटन की, *"लाल झेंडे"* के प्रभाव में बुनियाद रची गयी. जो बाद में, *"राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ"* नाम मे, उस मे बदल कर दिया. *"रॉयल सिक्रेट सर्व्हिस"* (अर्थात - राजा की गोपनीय सेवा) इस नाम से ही, आप उनके काम करने की मानसिकता को, सहजता से समज सकते है. सन १९२४ में भारत गुलाम था. अर्थात *किस राजा की गोपनीय सेवा* के लिए, यह संघटन बनाया गया है / था...? दुसरी बात *RSS ने आजादी के आंदोलन में, सक्रिय भुमिका नही निभायी.* विनायक दामोधर सावरकर लो या अटल बिहारी बाजपेयी लो, इनका इतिहास अंग्रेजों से माफी का रहा है. *वही RSS के संस्थापक के जन्म की कडी भी, यह अंग्रेजो से जुडी बतायी जाती है.* शायद अंग्रेज, उनके पिता होने का रहस्य भी ..? वही RSS पर, जर्मनी के *"हिटलर"* का प्रभाव दिखाई देता है / था. *"लाल झेंडे"* के प्रभाव में, संगठन निर्माण हुआ, हमें दिखाई देता है. वो बामनी समुह *"प्रजातंत्र विरोधी"* तथा *"हुकुमशहा वादी"* (Dictotorship) विचारों का है. अर्थात हिटलरशाही (Hitelerism) के वे पुरस्कर्ता है. *"पुंजीवादी व्यवस्था"* से उन्हे परहेज नही है. "हुकुमशाही" के जडे मजबुत करने के लिए, "पुंजीवाद" का सहारा, वे लोक लेते रहे है. तो फिर, *"भारतीय देशभक्ती"* की, बामनशाही से अपेक्षा करना वह बेमानी होगी ...!!! बामनी समुह का इतिहास भी विदेशी का है. मौर्य वंश का आखरी *"सम्राट ब्रृहदत की हत्या,"* बामनी वंश का पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया जाना, यह इतिहास रहा है. *"अखंड भारत"* को खंड खंड करना हो, भारत को गुलामी के दलदल में ढकेलना हो, या आज के भारत संदर्भ में भी, बामनशाही द्वारा *"पुंजीवादी व्यवस्था"* भारत पर लादना हो, भारत को आर्थिक गुलाम बनाना हो, इन सभी के पिछे बामनी मानसिकता, हमे कार्यरत दिखाई देती है. *फिर भी हमारी भारतीय आवाम, उनके पिछे जाती हो तो, इसे क्या कहें...???*
भारत के बामनशाही ने *"न्यायपालिका /कार्यपालिका / नोकरशाही / मिडिया"* समान सभी क्षेत्रों पर, अपना अधिपत्य बना रखा है. पुंजीवादी व्यवस्था को खुश करते हुये, *"उद्योग / व्यापार क्षेत्रों"* पर, उन्होने अपना अंकुश बनाया है. भारत की कुल लोकसंख्या के प्रमाण में, *"बामनी समुह / उच्च जातीय का प्रमाण, ४% से भी अधिक नही है."* परंतु बिना आरक्षण, उन्होने *"९०% जगहों पर अपना कब्जा"* बनाया है. सत्ता यह किसी भी दल की हो, बामन वर्ग का *'बिना आरक्षण सदर पदों पर नियुक्ती "* यह निश्चित बना है. वही *"न्यायपालिका"* भी, बामन वर्ग नियुक्ती को, यथावत करने का अपना दायित्व, पुरी इमानदारी से निभाते आयी है. वही भारत के बहुसंख्यक समाज को, कभी *"आरक्षण प्रश्न,"* इस नाम पर उलझा कर रखना, तो कभी *"देववाद / धर्मांधवाद"* इस नाम पर उलझा कर रखा गया है. इसे बामनशाही मिडिया / कार्यपालिका / न्यायपालिका का षडयंत्र कहे, या हमारी अपनी कमजोरी...? यह संशोधन का अहं विषय है. सवाल यह है कि, *"हमारा ये बहुसंख्यक समाज, कब जाग उठेगा...???"* कब अधिकारो की लढाई करेगा...??? अर्थात इस *"बामनी एकाधिकारशाही"* को, हम कैसे तोडे...?? यह प्रश्न है.
बामनी समुह, आज कल *"राष्ट्रवाद"* का डंका, पीटते हुये नजर आते है. उनका कौनसा राष्ट्रवाद है...? *"हिंदु राष्ट्रवाद या भारत राष्ट्रवाद...!!!"* अगर हिंदु राष्ट्रवाद हो तो, हम हिंदु क्यौ बने ? हिंदु यह विदेशी शब्द है. रामायण / महाभारत / वेद आदी में, हिंदु शब्द का उल्लेख कितने बार आया है ? *"हिंदु"* यह दो अक्षरी शब्द नही है. *"हिनदु"* - तिन अक्षरी शब्द है. हिनदु > हिन + दु > हिन = निच / काले मुंहवाला / चोर, दु = प्रजा > हिनदु = निच लोक / चोर. *स्वामी दयानंद सरस्वती* ने हिंदु शब्द के प्रयोग पर, विरोध किया था. हिंदुस्तान > हिंदु + स्तान > निच लोगों का देश. कांग्रेसी अज्ञानी बच्चा *राहुल गांधी* अपने भाषण में, हिंदुस्तान शब्द का जिक्र कर, *"भारत के संविधान "* की तोहिम करता रहा है. प्रधानमंत्री *नरेन्द्र मोदी* को भी *"हिंदुस्तान"* कहने मे, कोई शर्म नही दिखाई दी. भारत के संविधान में, *"इंडिया, दैट इज भारत"* यह शब्द लिखा हुआ है. राहुल गांधी को, अपने देश का संविधानिक नाम, मालुम ना हो तो, वो नेता बनने के लायक भी नही है. वैसे *"संघवादी"* परिवार के लोग भी, अकसर "हिंदुस्तान" बोलते हुये, भारत के संविधान की तोहिम करते आये है. भारत देश में जो भी सरकारे आयी / गयी, उन्होने कभी भी *"भारत राष्ट्रवाद "* जगाने की, कोई चेष्टा नही की. ना उन सरकारों ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* का गठण किया है. ना ही *"भारत राष्ट्रवाद संचालनालय"* का गठण किया है...! तो फिर बजेट में, राष्ट्रवाद जगाने का प्रावधान करना तो, बहुत दुर की बात है. हमार देश की *"वॉच डॉग" - सर्वोच्च न्यायालय* भी, स्वयं होकर इस विषय को, ना संज्ञान ले रही है. इन सब के लिए, *लायक न्यायाधीश* होना, बहुत आवश्यक है. इन न्यायाधीशों में मेरिट कहा है. *"न्यायालय में कोलोजीयम"* ना होता तो, वो चपराशी के स्पर्धा परिक्षा भी पास होंगे या नही...? यह प्रश्न है. ना ही कोई राष्ट्रपती ने, इस संदर्भ में ना कोई पहल की है. भारत में *"बिना आरक्षण"* से, बामनी समुह से, *राज्यपाल / आयोग मे अध्यक्ष* - सदस्य, नियुक्त किये जाते है. उनमे भी मेरिट कहा होता है. *"गधों की खोगीर भरती,"* यह उपमा उनके लिए सही है. तो फिर भारत देश, यह *"विकास भारत - उज्वल भारत - स्वच्छ भारत - सुंदर भारत"* कैसे बनेगा ? यह प्रश्न है. भारत आजादी के ७५ साल में, भारत की आवाम में, *देशभक्ती* जगाने की कभी कोशीश ही नही की गयी ...? इस का जिम्मेदार कौन है...??? *न्यायपालिका / कार्यपालिका / विधायिका / मिडिया* / आदी ....!!!! जबाब दो.
अखंड विशाल भारत का निर्माता - *चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य* का प्रतिक, यह भारत देश की *"राजमुद्रा "* है. परंतु उनकी जयंती पर, भारत सरकार ने ना ही सरकारी छुट्टी घोषित की है. ना ही *"सम्राट अशोक जयंती"* यह, सरकारी स्तर पर मनायी जाती है. *भारत में "चक्रवर्ती सम्राट अशोक जयंती," यह सब से पहले, हमारे संस्था ने मनायी थी.* यह मै गर्व के साथ कह सकता हुं. उस समय चक्रवर्ती सम्राट अशोक का फोटो मिलना भी, बहुत दुर्लभ था. हम ने वह तिथी का जिक्र कर, भारत सरकार को एक पत्र लिखा भी था. सरकारी छुट्टी की मांग भी की थी. परंतु सरकार से जबाब आया था कि, यह विषय अभी उनके एजेंडा में नही है. हमारे भारत सरकारों की नालायकी, केवल यहां तक सिमित नही है. *"भारत का संविधान"* संदर्भ में, जहां चर्चा होती थी, वह ऐतिहासिक वास्तु *"संविधान सभा"* के जगह *"ऑफिसर वाईन क्लब"* बनाया गया था. दिल्ली के मेरे एक मित्र, जो *"केंद्रिय लोक सेवा आयोग"* में वरिष्ठ अधिकारी पद पर नियुक्त थे, तब मै उससे मिलने के उपरांत, दस मिनट दुरी पर स्थित, उस वास्तु को भेट दी थी. तब उस सत्य की मुझे जानकारी हुयी. तभी मैने प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर, उस ऐतिहासिक जगह पर, *"प.पु. डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय संविधान तथा कानुन अकादमी"* बनाने की, मांग की थी. वह भी स्विकार नही की गयी. यह कितनी बडी विडंबना है. हमारे सत्तावादी सरकारे, यह कितने अहसान फरामोश है...!!! उन के हिन कर्म पर, हमे शर्म आती है.
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत को *"आदर्श व्यक्ती - आदर्श समाज - आदर्श राष्ट्र"* बनाने का स्वप्न देखा था. जातीविहिन समाज अर्थात *"बौध्दमय भारत"* होना, वह उसकी कडी थी. उसके साथ ही बाबासाहेब ने *"सामाजिक / आर्थिक समानता"* की वकालत की. उस संदर्भ में डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा कि, *"On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradictions. In politics, we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics, we will be recognising the principle of one man one vote, one value. In our social and economic life, we shall, by reasons of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradictions ? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will."* (26th November 1949) भारत आजादी ने, आज ७५ साल पार किये है. फिर भी भारत *गरिबी, बेकारी / बे-रोजगारी, बेघर, महंगाई* इन समस्याओं से जुझ रहा है. सरकार इस संदर्भ में, बहुत से वादें और घोषणाएं करती आयी है / रही. परंतु *सामाजिक / आर्थिक समानता* का यहां ना रूज पाना, *यह किस की गलती है ?* यह प्रश्न है. क्या *बामनी एकाधिकारशाही,* इस के लिए कारण है ? यह भी अहं प्रश्न है. *सरकारीकरण* (Nationalization) से *खाजगीकरण* (Privatisation) यह *"सामाजिक / आर्थिक समानता दुरी"* को, और जादा बढायेगी, या कम करेेगी...? वही दुसरी ओर, *"खाजगीकरण से सरकारीकरण की ओर जाना,"* यह एक सर्वोत्तम पर्याय होगा...? हमे इस दिशा में भी सोचने की, चिंतन करने की, संशोधन करने की, बहुत आवश्यकता है. पहिला पर्याय, यह हमे *"पुंजीवाद / हुकुमशहा की अनुभुती"* देता है. वही दुसरा पर्याय, यह *"प्रजातंत्र की ओर"* हमे इंगित करता है. *"भारत में खेती को उद्दोग (Industry) का दर्जा, कभी मिला ही नही."* केवल खोकली सरकारी घोषणा दिखाई देती है. अगर खेती को उद्दोग समज कर, उद्दोगों की सवलत दी गयी होती तो, गरिब - मध्यम वर्गीय किसानों की, यह हालात नही होती. *"अत: खेती का राष्ट्रीयकरण / मंदिरो का राष्ट्रीयकरण / उद्दोगो का राष्ट्रीयकरण / बैंको का राष्ट्रीयकरण / सभी स्कुल - कॉलेजेस - हॉस्पिटल्स का राष्ट्रियकरण"* होता है तो, *"सामाजिक / आर्थिक समानता की निव"* डाली जा सकती है. अब सवाल यह *"बामनी एकाधिकारशाही"* तोडने का है...? खोया हुआ वह *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) लाने का भी है. मेरे विचारों में, इस के शिवाय कोई दुसरा उपाय नही है...!!!
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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
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