🇪🇬 *कांग्रेस ने देश मे कोरोना फैलाया..! इति नरेंद्र दामोदर मोदी*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
दिनांक ६ - ७ फरवरी २०२२. राष्ट्रपती के अभिभाषण पर, लोकसभा / राज्यसभा में प्रधानमन्त्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने चर्चा को उत्तर दिया. उस चर्चा में, नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तिखे प्रहार करते हुये कहा कि, *"कांग्रेस ने देश में कोरोना फैलाया है. कांग्रेस ना होती तो, जातीयवाद को बढावा ना मिलता. कांग्रेस ना होती तो, प्रादेशिक वाद ना बढता. कांग्रेस ना होती तो, भ्रष्टाचार ना होता. कांग्रेस ना होती तो, शिख बंधुओं का नरसंहार ना हुआ होता. कांग्रेस ना होती तो, स्वदेशी संकल्पना को बल मिलता. कांग्रेस ना होती तो, कश्मिरी पंडित कश्मिर ना छोडते. कांग्रेस ना होती तो, लडकीयां तंदुर में ना जलती. यह सभी इंदिरा इज इंडिया का परिणाम है. आजादी के बाद, महात्मा गांधी ने कांग्रेस बरखास्त करने की बात कही थी. परंतु कांग्रेस बरखास्त ना करने का, यह सब दुष्परीणाम है...!"* नरेंद्र मोदी, यह बिलकुल सच कह गये है. *"बामनशाही का असली चेहरा"* संसद के माध्यम से, समस्त विश्व ने देखा है. भारत में *"बामन शाही - दो रूप* में कार्यरत है. एक है - नरम बामनशाही. और दुसरी है - गरम बामनशाही. कांग्रेस का असली रूप *"नरम बामनशाही"* का है. तो भाजपा का असली रूप *"गरम बामनशाही"* का है. इसके पहले कांग्रेसी नेता *"राहुल गांधी"* ने भी, भाजपा प्रणित सत्ताधीश सरकार (गरम बामनशाही) पर, तिखा हमला किया था. इस साल के राष्ट्रपती अभिभाषण में, दोनो ही बामनशाही दलो ने, एकमेक पर तिव्र वार करते हुयें जन मन को, *अपने अपने नंगेपण का अस्सल परिचय कराया...!!!*
कांग्रेस हो या भाजपा, इन दोनो ही राजकिय दलों को, बामनशाही कहने पिछे कारण भी है. *"बामनशाही यह एक प्रवृती है, व्यक्ती विशेष नही...!"* वह प्रवृती किसी भी समुहों मे, हमें दिखाई देती है. विद्यमान रहती है. बामनशाही यह क्या है ? *"गरिब हो या मध्यम वर्गीय समुह, इनके प्रती उच्च वर्गीय समुह का रहनेवाला हिन भाव को, बामनशाही कहते है."* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बामनशाही संदर्भ कहते है कि, *"बामनशाही इस शब्द का अर्थ स्वातंत्र, समता एवं बंधुता इन भावों का अभाव, यह मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थ से, इसने सभी बातों पर, कहर बरसाया है. बामन यह उस के जनक है. परंतु यह अभाव अब केवल, बामनों के सिमित नही रहा. इस बामनशाही का संचार, अब सर्वत्र बिखरा हुआ है. और उस ने, सभी वर्ग के आचार एवं विचार को नियंत्रीत किया है. यह बात निर्विवाद सत्य है."* (मनमाड, १३ फरवरी १९३८)
आजादी मिलने के पहले ही, भारतीय परिस्थिती का सही वर्णन करते हुये डॉ. आंबेडकर कहते है, *"आज देश की सभी संपत्ती, पांढरपेशा वर्ग लेकर बैठा है. उनका ऐशो-आराम सुरू है. यहां तुम्हे पेटभर खाने के लिए, अनाज नही है. और शरीर झाकने के लिए, कपडे नही है."* (सोलापुर, १ जनवरी १९३८) भारत प्रजासत्ताक होने के बाद, दु:खी भाव से डॉ. आंबेडकर कहते है, *"सच कहा जाएं तो, अपने देश में दो राष्ट्र दिखाई देते है. एक है, सत्तारूढ दल वालों का राष्ट्र. और दुसरा है, वह समुह जिस पर शासन किया जाता है, उन का राष्ट्र. सभी के सभी मागासवर्गीय समुह, यह दुसरे राष्ट्र से जुडे है."* (राज्यसभा, ६ सितंबर १९५४) डॉ. आंबेडकर इन्होने, देश के आवाम के बारें में, बहुत कुछ बातें कही है. परंतु हम अभी, इस दो बातों पर चर्चा करेंगे. क्यौं कि, दोनो ही बामनशाही राजकिय दलों के कार्यशीलता का संबध, इन दो बयान पर घुमते नज़र आता है. एक और अहं विषय है, *"परिवार वाद...!"*
पहले हम *"परिवार वाद",* इस गंभिर विषय पर चर्चा करेंगे. निश्चित ही *"कांग्रेस में नेहरु - गांधी"* यह परिवार वाद, बरसों से चलते आया है. इतना ही नहीं, कांग्रेस से *"जुडे जो भी नेता रहे हो / है,"* उन्होने भी अपने परिवार वाद को आगे बढाया है. अब सवाल है, *"क्या भाजपा दल, परिवार वाद से अछुता रहा है... ?"* भाजपा में कार्यरत सभी आजी / माजी नेता लोग, *"क्या वे अपने परिवार वाद को, बढावा नही दे रहे है...?"* यहां तो नंगे, दोनो ही दल है. केवल यहां भाषणबाजी का खेल, चलते नज़र आ रहा है. शायद भारतीय आवाम, उनके नजरों में बडी बेवकूफ है...!!!
अब हम नरेंद्र मोदी के भाषण पर चर्चा करेंगे. *"कांग्रेस ना होती तो....!"* जो बोला, वह सच्चाई भी है. क्यौं कि, आजादी के बाद कांग्रेस ने, *"भारत देशभक्ती"* बढाने का, कोई प्रयास ही नही किया. *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय तथा संचालनालय"* का गठण, कभी किया ही नही. ना ही बजेट में कोई प्रावधान. दुसरी बात है - *"सामाजिक / आर्थिक समानता"* प्रस्थापित करने की, कोई पहल भी नही की. अपने सत्ता में मदमस्त रही. फिर भी कांग्रेस ने, *"बैंको का राष्ट्रियकरण "* किया. भाभा अणु संशोधन संस्थान का निर्माण / सरंक्षण क्षेत्र को मजबुत करना / रेल्वे - यातायात को गावों तक पहुचांना / धरण का निर्माण आदी कामों को तवज्जो दी. *"भाजपा दल"* की, क्या उपलब्धी है...? क्या आप ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* का गठण कर, भारत देशभक्ती को बढावा देना उचित समझा ? बजेट में उस संदर्भ में कोई प्रावधान किया ? *"सामाजिक एवं आर्थिक समानता"* के लिए, कोई पहल की गयी? क्या *खेती को उद्दोग* की श्रेणी प्रदान की ? *"खेती का राष्ट्रियकरण / उद्दोगों का राष्ट्रीयकरण / मंदिरों का राष्ट्रियकरण / स्कुल - कॉलेजेस - हॉस्पिटल्स का राष्ट्रीयकरण"* एवं अन्य का, क्या आप ने उन सभी विषयों का, राष्ट्रियकरण करते हुये, *"सामाजिक / आर्थिक समता"* के दरवाजे खोले है ? बल्की आप के सत्ता काल मे आप की समग्र कृती नीति, *"सरकारीकरण का खाजगीकरण की ओर"* दिखाई दी. अर्थात *"पुंजीवादी व्यवस्था"* को, और भी ज्यादा मजबुती प्रदान की है. किसान आंदोलन के समय, आप का असली रूप *"हुकुमशहा / तानाशाह"* का दिखाई देता था. क्या आप *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को, आग में नही झोक रहे थे ?
दुसरा अहं विषय है, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्ती संबंध मे. Under *Article 124A,* There shall be a commission to be known as the *"National Judicial Appointment Commission"* (NJAC). सदर हुयी दुरूस्ती पर, पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा - [The Constitution Bench of the apex court declared the NAJC unconstitutional as its violates the basic structure of the Constitution of India. (99th Amendment)] इसे असंवैधानिक कहे जाने पर भी, भाजपा प्रणित भारत सरकार शांत कैसे बैठ गयी...? सन २०१४ के कानुन अमेंडमेंट में, जो भी कमीयां रह गयी थी तो, उसे सुधार कर नया सुधार बील, क्यौ सादर नही किया गया...? क्या संसद को, संविधान की धाराओं मे, सुधार करने का अधिकार नही है ? या संविधान की धाराओं में, कभी कोई सुधार ही नही किया गया ? क्या मा. सर्वोच्च न्यायालय के साथ, भारत सरकार की कोई अलग से सौदेबाजी हुयी है ? भारत सरकार (नरेंद्र मोदी) से कोई टकराव ना करने का, *मा. सर्वोच्च न्यायालय की कोई भुमिका तो नही है ?* यह भी अहं सवाल है. क्यौं कि, नरेंद्र मोदी इतनी सरलता से, हार मानने वालों में से नही है...!
आभासी चलन (करंसी) *"बिटकॉइन, एथेरियम, कारडेनो, रिप्पल, बीएनएस"* इन पर, ३०% टैक्स लगाकर, पुंजीवादी लोगों के (अवैध) करंसी को मान्यता प्रदान की. इस का असर भविष्य मे, भारतीय करंसी पर होनेवाला है. जब की, वो अवैध करंसी को ब्यान करना था. आप के सरकार ने *"खाजगीकरण* करने से, *"शोषण व्यवस्था को बल* दिया है. इस कारणवश *"गरिबी / बेकारी - बेरोजगारी"* का ग्राफ, आगे और बढनेवाला है. *"बेघर"* की समस्या, केवल घोषणा करने से छुटनेवाली नही है. बेघर लोगों को घर मिलने की कंडीशन, पुरे करते करते आदमी थक जाता है. वही बैंक कर्ज देने से, हाथ उपर कर देती है. *"तेल"* पर, आप का नियंत्रण ना होने से, *"मंहगाई"* आसमान छुं रही है. *"मुफ्त में अनाज वितरण"* यह गरिबों को, मुफ्त में खाने की आदत, भविष्य मे देश के सामने बहुत बडी समस्या होनेवाली है. उसके बदले *"गरिबों को रोजगार देना,"* यह सही कदम होता. अर्थात भाजपा-प्रणित सरकार की नीति, यह *"पुंजीवादी व्यवस्था / हुकुमशाही व्यवस्था"* की ओर, ले जानेवाली दिखाई देती है. *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को खत्म करने की, वह नीति दिख रही है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, सरकार कैसी हो, इस संदर्भ में कहते है, *"जो सरकार उचित और जल्द से निर्णय लेकर, उस का अमल ना करती हो तो, उसे सरकार कहने का कोई भी अधिकार नही है, और यही मेरी धारणा है."* (केंद्रिय विधीमंडल नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४) अंत मे मै यही कहुंगा, *"पुंजीवाद / हुकुमशाही"* यह, एक सिमित समय तक ठिक रहेगी. परंतु जब उठाव होगा तो, *"रक्त क्रांती"* होगी. जो भविष्य में किसी शासक / पुंजीवादी लोगों के हित में, वह कभी नही होगी. अत: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"प्रजातंत्र"* संदर्भ के शब्द, आप को अपने ब्रेन मे, वह याद रखना है. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"प्रजातंत्र, जब वह चलानेवाले लोग, लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में, मुलभुत बदल लाने मे सफल दिखाई देते हो तो, लोग वह बदल बिना रक्तपात से, सहजता से स्विकार करते है. और उसे मै प्रजातंत्र मानता हुं...!!!"*(पुणे, २२ दिसंबर १९५२)
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