🌎 *आखिर ये जमीं....!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो.न. ९३७०९८४१३८
कभी कुदरत से, या विचारों से
यें जमीं से तुम, युं दुर होते हो
हे रूप तो बसं, एक नज़ारा है
चेतना भाव ही, केवल सत्य है ...
बुध्द कह गये है, आत्म वाद पर
हे नाम रुप ही, एक साथ रहे तो
तुम जीवित हो, बस वो साथ ही
नही तो अंत हमारा, हो जाता है ...
हम जीयें तो, बसं सुख के लिए
यें मरना तो हमें, एक पल है ही
फिर क्यौं रखे, ये स्वार्थ भाव भी
आखिर यें जमीं, सात गज ही है ...
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