💥 *तृतीय महायुध्द के गदर में रशिया - अमेरिका - चायना की सत्तानीति ...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
मैने एक साल पहले, विश्व मे चल रहा कोरोना का संक्रमण (?) नाद एवं चिनी सेना द्वारा भारत - चायना की *"वास्तविक नियंत्रण रेखा"* (Line of Actual Control - LAC) को पार कर, चिनी सेना द्वारा, भारत में प्रवेश करना इस संदर्भ में, *"कोरोना की छाया में तृतीय महायुध्द (?) और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर "* यह लेख लिखा था. सदर मेरे लेख में, *"जब डॉ. आंबेडकर हमारे बिच नही रहे, तो वह जिक्र क्यौं ?"* यह प्रश्न आप के अंतर्मन में, निर्माण हुआ होगा. क्यौं कि, इस का संदर्भ यह, *"द्वितिय महायुध्द"* से जुडा हुआ है. सन १९३९ - ४५ का कालखंड, यह भारत के गुलामी का कालखंड था. जर्मनी के बडे हुकुमशहा *अडॉल्फ हिटलर* की बडी ही महत्वकांक्षा हो, या जापान के *झारशाही* की अलग कुटनीती हो, या रशिया का नेता *विन्स्टन चर्चिल* की राजनिती हो, अमेरिका *(फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट)* की जापान पर दुश्मनी जंग हो, इन सभी विषयों की जडता में, *"द्वितिय महायुध्द"* घुमता हुआ, हमे विशेष नज़र आता है. जर्मनी / इटली / जापान / पोलंड / फ्रांस / ग्रेट ब्रिटन / संयुक्त राज्य अमेरिका / सोवियत संघ रशिया / चायना इन लगबग सभी भुभागों में, दुसरे महायुध्द की ज्वाला भडकी हुयी थी. *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा "द्वितिय महायुध्द" में, गुलाम भारत के तत्कालिन शासक - ब्रिटिश शासन के पक्ष मे, अपनी सक्रिय भुमिका अदा की थी.* तथा *"महार रेजीमेंट"* की सेना भी, द्वितीय महायुध्द में, अंग्रेजो के साथ में ही खडी रही थी. द्वितिय महायुध्द के बादल घने छाये थे. और लढाई का तांडव भी सक्रिय घना था. *"मोहनदास करमचंद गांधी हो या कांग्रेस, यह पुर्णत: साधु मौन थी."* डॉ. आंबेडकर साहब का द्वितिय महायुध्द में, अंग्रेजो के पक्ष में खडे होना, यह बडी दूरदर्शिता थी. क्यौ की, अंग्रेजो ने देश को छोडने पर, भारत पर *"जर्मनी के हिटलर की सत्ता"* हो, या *"जापान के झारशाही की सत्ता"* हो, इनकी गुलामगिरी भी, भारत के लिए अच्छी नही थी. जब डॉ. आंबेडकर की यह पहल, मोहनदास गांधी या कांग्रेस ने समझने पर, उनका भी द्वितिय महायुध्द मे, अंग्रेजो के पक्ष में विशेषत: खडे होना, यह एक इतिहास रहा. परंतु मोहनदास गांधी की अ-दुरदर्शिता हो, या भारतीय कांग्रेस का बिन-अकलवाद हो, *"भारत को आजादी, चार - पाच साल देर से मिलना'",* इसे हम क्या कहे ? द्वितिय महायुध्द के समय में ही, भारत को आजादी मिलना संभव थी. परंतु वह आजादी - *"सन १९४३ - ४५ दरम्यान"* भारत को ना मिलना, इसमे हमारा *"अंतर्गत विचार युध्द"* भी कारण रहा. और आज भी वह "अंतर्गत विचार युध्द," भारतीय की गंदी राजनीति / मानसिकता के कारण, *"ना ही थमा है, ना थमने का नाम ले रहा है, ना कभी थमेगा भी...!”* अर्थात यह एक बडा संशोधन का विषय है.
दिनांक २४ फरवरी २०२२. *रशिया* द्वारा *"युक्रेन"* इस पडोसी देश पर, की गयी युध्द चढाई. और रशिया के अध्यक्ष *ब्लादिमिर पुतिन* ने अन्य देशों को धमकी भी दे गया कि, *"इस हमले में, किसी भी अन्य देशों ने दखलंदाजी ना करे. अगर किसी ने यह दु:साहस किया तो, आज तक किसी भी देशो ने, जो परिणाम देखा नही होगा, वो गंभिर परिणाम दिखाई देंगे!"* वही युक्रेन के अध्यक्ष मि. *ब्लाजिमिर झिल्येन्स्की* की देशवासीयों को कि गयी अपिल, *"अपने मातृभुमी की रक्षा के लिए, आप आगे आये. हम आप सभी को शस्त्र देंगे...!"* युक्रेन के अध्यक्ष को, अपनी जमिनी शक्ती का पता है. उसने बडी बडी बातें नही की. बस, उसने देशभक्ती जगाने की कोशिश की. जो बहुत मायने रखता है. यह सिख *"भारत के प्रधानमन्त्री हो या अन्य नेता वर्ग हो,"* उन्हे लागु है. क्यौ कि, भारत की राजनीति धर्म - जाती - देव आधारित है. देशभक्ती का नामोनिशाण नही है. आजादी के ७५ साल होने पर भी, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* की ना स्थापना हुयी, ना ही वह *"संचालनालय"* बना है. बजेट में प्रावधान तो, बहुत दुर की बात है. जब की, भारत का प्राचिन इतिहास, यह गुलामी का रहा है. और अभी सरकारी संस्थानों का *"खाजगीकरण "* होना, अर्थात *" पुंजीवाद"* का बढावा है. युक्रेन देश में पढनेवाले छात्रों को, *"भारत लाने के लिए सरकार के पास, अपनी खुद की विमान कंपनी नही है...!!"* और खाजगी कंपनीयां *"डबल तिकट दर"* लादकर, इस मजबुरी का फायदा ले रही है. अब यह केवल तो एक शुरूवात है. अवैध *"क्रिप्टो करंसी"* की वो मान्यता भी, भविष्य में *भारत के करंसी* का बेहाल करेगी, और यह एक सत्यता होगी...! भारतीय जन मन पर, *"शोषण - महंगाई - गुलामी - बेकारी - भुखमरी थोपने की,"* वह एक बडी कडी है.
हमारे बचपन में, हम दो सशक्त देशों के नाम, अकसर हम सुना करते थे. वे देश है - अमेरिका एवं सोवियत महासंघ रशिया. चॉंद पर गये *चंद्रयान* के न्युज फोटो भी, हमारे पिताजी हमे दिखाया करते थे. *दिनांक २५ दिसंबर १९९१* का वह दिन, आज भी हमें याद है. *"शक्तीशाली सोवियत महासंघ रशिया बिखरसा गया. पंधरा नये देशों ने, अपना अलग अस्तित्व बना लिया."* और विश्व का केवल एक देश - *"अमेरिका यह देश दादा हो गया."* रशियाने वो बिखराव हो, या अपनी *"शक्तीशाही"* को कभी भुला ही नही. द्वितिय महायुध्द में, *जापान* को सिकस्त देने के लिए, *अमेरिका ने चायना से दोस्ती की थी.* वही चायना ने भी, उस मौके का पुरा फायदा उठाते हुये, *"तिब्बत"* पर अपना अधिपत्य जमा लिया. *तायवान* का हाल भी वही हुआ. महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"अमेरिका का असली दुश्मन जर्मनी नही, बल्की जापान था."* और जापान के *हिरोशिमा - नागासाकी* पर, अमेरिका ने अणुबाँब डालकर, जापान को अपने अधिन कर लिया. अर्थात महाकाय देश - *"रशिया - अमेरिका - चायना "* इन्होने, अपनी *"भु - विस्तारवादी"* मानसिकता से, अन्य छोटे छोटे देशों को, अपने अधिन बना लिया था. गुलाम भारत का विभाजन *(भारत और पाकिस्तान),* उसी की एक कडी थी. आज *"चायना देश यह, विश्व का नंबर वन देश"* बनना चाहता है. अमेरिका को वह ललकार रहा है. *रशिया को भी चायना का पुर्णत: समर्थन है.* अमेरिका आज सहायसा हमे दिखाई देता है. वही *"अर्थव्यवस्था"* के मामले ने, *चायना आज नंबर वन पर ही है.* भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में, *"चायना की घुसपैठ,"* उसी की ही तो, एक कडी है. चायना का *"OBOR"* (One Belt One Road) नामक परियोजना, जो बाद में *"BRI"* (Belt and Road Initiative) नाम सें जानी जाती है. वह विश्वशक्ती बनने की ही तो कडी है / थी. *"भारत केवल मुंह से, बडे तोफगोले फेकंता है...!"* चायना ने, उस परियोजना से, *"विश्व के ६० देशों के राजमार्ग"* को जोडा हुआ है. वही कुछ *"जलमार्ग एवं रेलमार्ग "* भी वहां निहित है. चायना ने एक दशक में, *"एक लाख कोटी डॉलर"* (अंदाजे ७० लाख कोटी रुपये) खर्च कर, *आशियाई देश / युरोपीय देश / ओसिनिया / इस्ट आफ्रिका* इन भुभागों को जोडते हुयें, *छ: कोरिडोर* बनाए हुये है. *"मेरिटाइम सिल्क रोड"* का भी, उस परियोजना में समावेश है. वो परियोजना को प्रोजेक्ट करने के लिए, चायना ने सन २०१७ में *बिजींग* में *"Belt and Road Forum"* नाम से, एक *"आंतरराष्ट्रिय परिषद"* का सफल आयोजन किया गया था. उस परिषद में *"२९ देशों के प्रमुखों"* ने सहभागी हुये थे. तथा विभिन्न देशों के १३० प्रतिनिधि तथा आंतरराष्ट्रिय संघटनों का सहभाग, हमे उस का महत्व बयान कर देता है. दु:ख की बात यह कि, भारत ने उस परिषद में *बहिष्कार* डाला था. जब की अमेरिका / रशिया यह देश, वहां सहभागी हुये थे. *भारत के तमाम पडोसी देश,* आज चायना के साथ है. चाहे वो नेपाल हो, या श्रीलंका हो, या बांगला देश हो, बर्मा - म्यानमार हो, या पाकिस्तान तो भारत के साथ बिलकुल नही...!
रशिया की *"उत्तर कोरिया"* से घनिष्ट मित्रता है. वैसे रशिया ने उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *किम जोंग उन"* को *"युध्द पदक"* देकर, सन्मानित किया है. उधर *युरोप* भी रशिया से पंगा लेगा या नही, यह प्रश्न है. क्यौं कि, युरोप का, नैसर्गीक वायु संबंध का व्यवहार जुडा है. *चायना* का कोई प्रश्न ही नही है. रही बात *भारत* की...! भारत के प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* की पुंगी, *ब्लादिमिर पुतिन* के सामने कितनी बजेगी...? यह प्रश्न अभी है ही नही. *अमेरिका* की *"आर्थिक दिवालखोरी"* कब करवट लेगी ? यह तो भविष्य ही बतायेगा. शायद अमेरिका का भी, *"सोवियत महासंघ"* के समान बडा बिखराव हो...? अभी भविष्य के बारे में, कुछ कहां नही जा सकता. *"अगर चायना महाकाय शक्ती बन गया तो...!"* भारत का अस्तित्व क्या होगा. यह बडा ही बिकट प्रश्न है. क्या भारत से, कोई तडजोड होना संभव होगा ? चायना का *पाकिस्तान* यह प्रिय देश है. उन्ही के इशारों पर, वो चलता है. *श्रीलंका - नेपाल* देश की भी, वही स्थिती है. चायना का *"लद्दाख "* भुभागों पर चढाई, यह केवल राजनीति है. चायना का असली लक्ष, यह *"अरूणाचल प्रदेश "* है. विशेषत: *"तवांग भुभाग"* ही है. अगर भारत पर चायना का, सभी दिशाओं से (पाकिस्तान - नेपाल - तिब्बत - श्रीलंका) एकसाथ आक्रमण हुआ तो, *"क्या भारत उन स्थिती को निपट सकता है ?"* यह प्रश्न है. *"तृतीय महायुध्द"* के छाया में....! एक संभावना सोचनी होगी. *भुटान* को भारत द्वारा दी गयी मदत, क्या कोई काम आयेगी...? *अमेरिका* का भी, भारत को क्या सहयोग होगा...? पुनश्च प्रश्न है. क्या भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, युक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष *ब्लजिमिर झिल्येन्स्की* समान, *"देशभक्ती"* की अपिल, भारत वासियों को कर पायेंगे ? और भारत की जनता, *नरेंद्र मोदी* के शब्दों पर, कितना विश्वास कर पायेगी ? सभी पहलुओं पर, अब सोचने की आवश्यकता है...! क्यौं कि, आजाद भारत में *"भारत राष्ट्रवाद"* कभी जगाया नही गया. केवल धर्म - जात - देवभाव पर, राजनीति की जाती रही.
रशिया के सेना ने, युक्रेन की राजधानी *"किव्ह"* तक आगेकुच की हुयी है. और *"होस्टोमेल"* इस हवाई तल पर, रशिया का अधिपत्य ने, *युक्रेन के भावी स्थिती* का अंदाजा हो गया है. *अमेरिका* इस आक्रमण में, बेवससा दिखाई दे रहा है. वही *"नाटो"*- (नाटो सदस्य देशों की आजादी अबाधित रखना एवं संरक्षण करनेवाली संघटना) ने *"युक्रेन हमारा सदस्य देश नही,"* यह कहकर हात उपर कर गया है. *"मानवता की भावना"* भी, यहां भुल गये है. विश्व के देशों की, यह भुमिका देखकर युक्रेन के अध्यक्ष - झिल्येन्स्की कहते है, *"कल की तरह आज भी, हम हमारे देश की रक्षा कर रहे है. सभी बलाढ्य देश, बाहर से ही यह सब देख रहे है....!"* युक्रेन के अध्यक्ष को, अपनी अगतिकता समज में आने के कारण, उन्होने रशिया ये चर्चा की बात कही है. अर्थात रशिया अब अपना बिखरा हुआ *"सोवियत महासंघ"* बनाने की ओर बढना, यह तय है. और सोवियत महासंघ से बिखरे हुये देशों को, *"युक्रेन का आक्रमण,"* बहुत कुछ संदेश दे रहा है. अब सवाल भारत के, *"भविष्य राजनीति"* का है. अमेरिका / नाटो ने युक्रेन को, जो कुछ सिख दी है. वह भारत के लिए भी लागु है. *अमेरिका* बेबस है. *रशिया* अपना, सोवियत महासंघ बनाने में लगा है. *चायना* अब विश्व की महाशक्ती बनने की ओर, बढते जा रहा है. *"भारत कहां है...?"* "अंतर्गत विचार युध्द" मे, वह फ़सतें चला जा रहा है. वही *उत्तर प्रदेश* के मुख्यमंत्री - (धर्मांधी) योगी आदित्यनाथ ने, *"कुशीनगर बुध्दीस्ट परियोजना "* को रद्द करने से, भविष्य में *"सभी बुध्दीस्ट देशों की नाराजी"* लेने की, बुनियाद डाल दी है. उधर *"अयोध्या राम जन्मभूमी"* के लिए पैसा / जमिन, खैरात के समान दी गयी है. *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* का वह फैसला, भविष्य में *"गले की हड्डी"* हो सकता है. क्यौ कि, *"अयोध्या"* यह प्राचिन बौध्द क्षेत्र था, वह इतिहास रहा है. भारत की *"धर्म - जाती - देवभाव"* यह राजनीति, भारत के गंभिर अधोगती का कारण होगा. सरकारी संस्थानों के *"खाजगीकरण"* से, सरकार की शक्तियां कमजोर होने की, वो बुनियाद रही है. वही *"पुंजीवाद भारत"* पर हावी होने पर, वही *"तानाशाही रवैया"* के कारण, भविष्य में *"खुन की नदीयां"* बहाने का, हमे अंदेशा दिखाई दे रहा है. अत: यह *"अंतर्गत विचार युध्द"* भारत को, गुलामी के ओर ले जाएगा, इसमे मुझे कोई संदेह नही है.
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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
(दिनांक २४ - २५ फरवरी २०२२.)
💥 *कोरोना की छाया में तॄतीय महायुध्द (?) और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२
चायना सेना द्वारा *"वास्तविक नियंत्रण रेखा"* (Line of Actual Control - LAC) को पार करते हुये, भारत के हिमालयीन लद्दाख क्षेत्र अंतर्गत *"गॅल्वन व्हेली, पॅंगांग त्सो लेक, डेमचोक / गोगरा"* तक आना, तथा *"पुर्व लद्दाख पर अपना दावा करना,"* वही जो रेखा भारत - चायना सीमाओं का विलगीकरण दर्शाती है, और वह एक *"संभावित विस्फोटक ऑक्सीमोरोन "* है, तथा यह भी कहा जाता रहा कि, *"ना तो वह स्पष्ट रेखा है, ना हीं वह पुरी तरह से किसी के नियंत्रण में है...!"* १९ वी सदी में, ब्रिटिश राज और राजवंश ने तरल भुराजनैतिक परिस्थितीयों में, अपने अतिव्याप्ती साम्राज्यवादी सीमाओं पर, बातचीत करने की मांग, उपनिवेशवाद की एक जहरीली विरासत भी कही जाती है. वही यह भी एक सच्चाई है कि, सदर भारत - चायना विवाद ने, ४० साल का एक लंबा अंतराल पार कर चुका है. परंतु उस कारणवश वहां एक भी गोली नहीं चली. *परंतु नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद, पिछले दो माह में "ट्राय जंक्शन"* पर, निरंतर चायना - भारत के बिच हमले होते दिखाई दे रहे है. इसे हम क्या कहे...? वही हमारे दुसरे *"पडोसी मित्र राष्ट्र नेपाल"* द्वारा, भारत से दुरी बनाये रखना, एवं *"नेपाल की चायना से बढती मित्रता भी,"* भविष्य में भारत के लिये, बडे ही कठिणाई का इशारा दे रहा है...!
नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा द्वारा *"भारत के अधिन लिम्पिया धुर्रा - लिपुलेक - काला पानी इन भुभागों पर, नेपाल ने अपना दावा जताते हुये, वह भुभाग भारत से वापस मिलाने की"* बातें कही है...!!! वही अभी अभी, नेपाल होते हुये, हिंदु धार्मिक स्थल - *"कैलास मानसरोवर"* जाने के लिये, लिपुलेक - दक्षिण आशियाई पडोसी देशों से, *"८० कि.मी. सडक मार्ग का उदघाटन, भारत के रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने करने से, "* नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा, भारत का जाहिर निषेध किया गया. वही काठमांडू में, उस के विरोध में प्रदर्शन भी हुये है. अत: नेपाल की यह नाराजी, भविष्य में क्या करवट लेगी...? यह भी प्रश्न है. महत्त्व का विषय यह कि, *"नेपाल यह विश्व का, एकमेव हिंदु राष्ट्र था...! परंतु नेपाल ने "हिंदु राष्ट्र" से पल्ला झाडते हुये, वह भारत के समान ही, वो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन गया."* और नेपाल ने नये संविधान का निर्माण भी किया...!!! जो बात, भारत के ब्राम्हणशाही को रास नहीं आयी. और उन्होंने नेपाल पर, दबाव लाने का असफल प्रयास भी किया...! परंतु नेपाल के सत्तानीति ने, भारतीय ब्राम्हणशाही को उसकी औकात दिखा दी. अभी अभी *"नेपाल संसद"* में, उनके देश के नकाशा में बदलाव करने, एक विधेयक सादर किया. और नेपाल के विरोध दल ने भी, उस विधेयक को अपनी स्विकॄती दी है. *"अंत: लिपुलेख, कालापानी एवं लिम्पियापुरा इन क्षेत्रोंपर, नेपाल का दावा करना, अब भारत के लिये बडा चिंता का विषय है...!"* भारत ने, नेपाल के इस कार्यवाही पर, अपनी नाराजी जताई है. परंतु उसका कोई असर नेपाल पर होगा, यह संभावना ना के बराबर है. *"वही नेपाल के करंसी पर, बुध्द को स्थापित करना भी,"* नेपाल के उज्वल भविष्य की दिशा अंकित कराती है...!
चायना का भारत के साथ *"और एक सीमा संघर्ष,"* यह *"डोकलाम पठार"* सीमा से संबंधित दिखाई देता है. जो सिक्किम (भारत) - भुतान - चायना इन देशों का जंक्शन है. भारत डोकलाम पठार संदर्भ में, भुतान के साथ खडा रहा है. वैसे *"सन १९६२ का भारत - चायना युध्द,"* यह सीमा संदर्भ में और कई क्षेत्रों के विवादों पर, होने की बात कही जाती है. परंतु *"भारत - चायना युध्द"* यह चायना द्वारा एक तरफा लादा गया. और *"युध्द विराम"* भी चायना द्वारा एक तरफा लिया गया. इस विषय पर कुछ चर्चा निचे करेंगे. वही बीजींग (चायना) की मुखरता, जो भारत के साथ साथ पुर्व एवं दक्षिण चीन सागर में, समुद्र पडोसी देश जापान - व्हियतनाम - फिलिपिन्स - मलेशिया इन देशों को भी झकझोर दिया है...! वही चीनी सीमा रक्षकों ने सीमा क्षेत्रों में, *"सडक निर्माण उपकरण"* लाने से भी, उसे रोकने का प्रयास भारतीय सेना द्वारा किया गया.
चायना का भारत के साथ बहुत महत्त्वपूर्ण *"युध्द संघर्ष इतिहास,"* यह अरुणाचल प्रदेश का १३,७०० उंचाई पर स्थित, *"तवांग बुद्ध विहार"* (Tawang Buddhist Monastery) और अरुणाचल प्रदेश सीमा रही है. और सन १९६२ में *"चायना - भारत युध्द"* होने का प्रमुख कारण, तवांग बुध्दीस्ट मॉनेस्ट्री ही थी...! यह अलग बात है कि, वह सत्य इतिहास मिडिया हो या सत्ता व्यवस्था ने, कभी हमारे सामने नहीं लाया गया. मैने कुछ साल पहले *"तवांग बुध्दीस्ट मॉनेस्ट्री और चायना - भारत १९६२ का युद्ध की कारण मिमांसा"* इस विषय पर एक लेख लिखकर, वह लेख मिडिया पर पोष्ट शेअर किया था. जिस पर अच्छी चर्चा भी हुयी. हमें १९६२ के युद्ध की पार्श्वभूमी समझने के लिये, सबसे पहले चायना का बहुत प्रभावशाली राजनितिज्ञ *दाई बिंगुओ* का, "चायना मिडिया" को दिया गया एक बयान समझना होगा. वे कहते हैं, *"अगर भारत सरकार ने, अरूणाचल प्रदेश स्थित राजकिय एवं संवेदनशील 'तवांग का भुभाग', चायना को हस्तांतरित कर दिया तो, चायना भी उसके अधिपत्य का 'अक्साई चीन भुभाग,' भारत को हस्तांतरित कर सकता है. और "भारत - चायना सीमा विवाद" का हल भी निकाला जा सकता है...!"* मि. दाई बिंगुओ, यह वो शक्ती है, जो चायना के साम्यवादी सरकार में, बहुत ही महत्त्व रखता है. अंत: चायना सरकार के, बिना किसी चर्चा से या बिना पॉलिसी के, दाई बिंगुओ इस तरह के बयान कभी नही दे सकता...! वही १३ अप्रेल २०१७ को, तिब्बती धर्मगुरू *प.पा. दलाई लामा जी* इनके हाथो, "तवांग मॉनेस्ट्री" में, धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. जिसका चिनी सरकार ने, तिव्र विरोध किया था. और महत्त्वपुर्ण विषय यह है कि, प.पा. दलाई लामा जी ने, भारत में राजनैतिक शरण ली है. और उन्हे भारत के किसी भी भुभाग में, आने - जाने की पुर्णत: संविधानिक आजादी है...!
हमें सन १९६२ के चायना - भारत युध्द का पुराना इतिहास समझने के लिये, चायना का तत्कालिन सर्वेसर्वा *माओ त्से तुंग* की राजनीति समझनी होगी...! माओ, ये बडा हुशार, दुरदर्शी, आशावादी और क्रुर साम्यवादी नेता था. और एक लामा ने, माओ की भविष्यवाणी करते हुये, उसके मॄत्यू की तारिख भी बतायी थी. माओ, ये चायना पर बहुत सालों तक, राजसत्ता चलाना चाहता था. और यह भी कहा जाता है कि, माओ त्से तुंग की मॄत्यु भी, लामा द्वारा बतायें गये तारिख को हुयी थी. *जेम्स हिल्टन* के एक उपन्यास में, *"शांग्रिला घाटी"* का उल्लेख है. *"जहां लोग २०० - ३०० साल तक, अपना आयुष्य जी सकते हैं...!"* इस लिये माओ ने, अपने गुप्तचरों को, उसकी खोज में लगाया था. अचानक बिजिंग में, एक लामा संदेहात्मक रूप में दिखाई दिया. चायना के गुप्तचरों ने, उस लामा को पकड कर, उस लामा का मेडिकल परिक्षण किया गया. *"तब वैद्यकीय परिक्षण में, उस लामा की आयु २०० साल बतायी गयी. जब कि, दिखने में वो ४० - ५० साल का दिखाई देता था...!"* अंत: चायना के गुप्तचरों ने, उस लामा को बहुत कठिण यातनाएं दी. और उस लामा से, उस घाटी का पत्ता देने की बात कही. परंतु उस लामा नें, चायना के गुप्तचरों को कुछ नहीं बताया. अंततः चायना के गुप्तचरों ने, उसे छोड दिया. और चायना गुप्तचरों को, उस लामा के पिछे लगा दिया. परंतु वह बौद्ध लामा, तिब्बत की सीमा पार करते हुये, भारत की सीमा अरुणाचल प्रदेश के *"तवांग मॉनेस्ट्री"* में चले गया. अंत: उस लामा को पकडने के लिये, चिनी सेना ने अरूणाचल प्रदेश की सीमा से, *"एक तरफा युध्द छेड दिया...!"* और दुसरी तुकडी ने, लद्दाख के *"अक्साई चीन क्षेत्र से युध्द छेड दिया."* अरुणाचल प्रदेश की तुकडी, वो तवांग मॉनेस्ट्री तक आ गयी. परंतु तवांग मॉनेस्ट्री के लामाओं ने, *"चायना बार्डर से आये लामा"* को, घोडे पर बिठाकर, असम की ओर भगा दिया. परंतु पहाडी क्षेत्र में, चायना से आयें उस लामा का घोडा फिसल गया. और वहां उस लामा की मॄत्यु हो गयी. चिनी सैनिकों ने, तवांग मॉनेस्ट्री में उस लामा की खोज की. परंतु वो लामा वहां न मिलने के कारण, चीनी सेना असम की ओर बढी. जहां उन्हे चायना से भारत आयें, उस लामा का शव मिला. *"चीनी सैनिकों ने, उस लामा का शव अपने साथ, चायना में ले गये. और "एक तरफा युध्द बंदी" जाहीर की...!"* युध्द बंदी जाहीर होने के बाद चिनी सेना ने, तवांग मॉनेस्ट्री में उस शांग्रिला समान घाटी के नकाशा का शोध किया. *"परंतु चिनी सैनिकों को, ना तो वो रहस्यमय घाटी का नकाशा मिला. ना ही वो रहस्यमय घाटी...!"*
जब कभी युध्द होता हैं, तब वह हार - जीत के बाद रुक जाता है, या दो देशों के बिच हुये आपसी समझौते से...!!! *"परंतु सन १९६२ में हुआ "चायना - भारत युध्द" यह ऐसा युद्ध है, जो चीन ने सुरू किया. और चीन द्वारा ही "एक तरफा" रोका गया. दो देशों की बीच युध्द रोकने संबंध में, कभी आपसी समझौता हुआ ही नहीं...!"* शायद इस तरह का हुआ ये युध्द, एक अलग *"युध्द नीति"* की मिसाल है. वही जवाहरलाल नेहरू - माओ त्से तुंग इन दो नेताओं के बिच हुये, *"चिनी - हिंदी भाई भाई...!"* इस जोर शोर नारे की ऐसे तैसी...!!! जवाहरलाल नेहरू - माओ की वह कथित दोस्ती, और आज कल *"नरेंद्र मोदी - शि जिमपिंग"* (चीन का राष्ट्रपती) इन दो दिग्गज नेताओं के दोस्ती में, मुझे कोई फरक दिखाई नही देता...! शायद नरेंद्र मोदी, ये चीन के सर्वेसर्वा शि जिमपिंग को, *"गुजरात मॉडेल"* बतानें में, भारत की बडी उपलब्धी बता रहा है...! परंतु उस "गुजरात मॉडेल" की असली पोल, *"ये चायना द्वारा भारत - चायना सीमा पर, लगातार हो रहे आक्रमण...???"* इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* की गुजरात यात्रा में, ५००० की संख्या में विदेशी मेहमांनों की भरकम उपस्थिती और लाखों की भीड़...! और कोरोना व्हायरस संक्रमण...? क्या भविष्य में, वो दागदार होगा...? यह प्रश्न है.
चीन का *OBOR* (One Belt One Road) प्रोजेक्ट, जो बाद में *BRI* (Belt and Road Initiative) नाम से जाना जा रहा है, जिसके अंतर्गत, *विश्व के ६० देशों के राजमार्ग"* को जोडा जाना है. इतना ही नही, उस प्रोजक्ट में *"कुछ जल मार्ग एवं रेल मार्ग"* को भी अंतर्भूत किया गया है. इस ड्रिम प्रोजक्ट को साकार करने के लिये चायना, स्वयं एक दशक में, *"एक लाख कोटी डॉलर"* (अंदाजे ७० लाख कोटी रुपये) खर्च करने जा रहा है. *"इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत आशियाई देश, युरोप, ओसिनिया, इस्ट आफ्रिका इन भुभागों का समावेश है."* इसमे भौगोलिक दृष्ट्यी से *"छ: कोरीडोर बनाएं गये है, एवं मॅरिटाईम सिल्क रोड"* का भी समावेश किया गया है. चीन ने इस ड्रिम प्रोजक्ट को *"प्रोजेक्ट"* करने के लिये, १४ - १६ मई २०१७ को बिजिंग में, *"Belt and Road Forum"* नाम में, एक आंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया था. इस आंतरराष्ट्रीय परिषद में *"२९ देशों के प्रमुखों"* ने आना, विभिन्न देशों के १३० प्रतिनिधीयों ने सहभागी होना, साथ में ७० आंतरराष्ट्रीय संघटनों के प्रतिनिधी भी सहभागी थे. वही उस आंतरराष्ट्रीय परिषद में, रशिया के राष्ट्राध्यक्ष *ब्लॉदीनर पुतीन* का व्यक्तीश: सहभागी होना तथा अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष द्वारा अपने प्रतीनिधी को भेजना, उस परिषद की महतत्ता बताती है. *"परंतु भारत के नरेंद्र मोदी सरकार ने, पाकिस्तान के पाकव्याप्त काश्मीर से, एक राजमार्ग जाने के कारण, उस परिषद पर बहिष्कार डाला था...!"* भारत ने उस आंतरराष्ट्रीय परिषद पर बहिष्कार डालकर, चीन से नाराजी ओढ ली थी. वही भारत के पडोसी देश - नेपाल, श्रीलंका, बांगला देश आदीयों ने, उस परिषद में, खुलकर हिस्सा लिया. *"चीन की ही नाराजी है, जिस के कारण, भारत ने "संयुक्त राष्ट्र संघ" (UNO) में, अब तक "कायम सदस्यता" नहीं पा सकी है...!"* वही भारत का *"न्युक्लीअर सप्लायर ग्रुप"* का भी प्रश्न है...!!!
कोरोना व्हायरस संक्रमणता कारण, समस्त विश्व, ये *"आर्थिक महा मंदी"* के जालं में फसा है. वही चीन मेंं कार्यरत उद्योगपतीयों को, नरेंद्र मोदी सरकार ने, भारत में उद्योग शुरू करने का, खुला आवाहन किया है. वही *"Remove China App"* इस नाम से, भारतीय टेक्नोसॅव्ही ने *"चायना द्वारा विकसीत विभिन्न अॅप को, मोबाईल - टॅब एवं काम्पुटर से, चायनीज अॅप - सॉफ्टवेअर - अॅंटीव्हायरस आदी को, डिलिट करने की मोहिम चलाने से, और मिडिया द्वारा हवा फैलाई जाने से,"* और उस हवा में, कुछ मोबाईल धारको ने अपने मोबाइल से वह अॅप, डिलिट भी कर दिया हैं. इसका बुरा असर *"चायना के टिकटॉक, हेलो, युसी ब्राऊजर"* को होने से, भविष्य में ३० - ३५ करोड अॅप का सफाया होगा. जो चायना के अर्थव्यवस्था को, बुरा असर करेगा. प्रश्न यह है कि, *"भारत सरकार के "आत्म निर्भर भारत" के अधिन जो स्वदेशी मोहिम चलाई जा रही है, उस स्वदेशी मोहिम में, भारतीय किस उद्योगपती वर्ग को इसका जादा फायदा होगा...?"* यह प्रश्न है. वही वे उद्योगपती, कोई मागास समाज का घटक नहीं रहेगा...? *"वही चायना अॅप से, युजर्स द्वारा डाटा चोरी होने का, प्रोपोगंडा चलाया जा रहा है. अब सवाल है कि, क्या भारतीय उद्योजक कंपनी इतनी इमामदार है, जो युजर्स का डाटा हॅक कभी नहीं करेगी...?"* वैसे देखा जाएं तो, चायना से भी जादा, भारत के उद्यमी ही सबसे खतरनाक - विषैले रहेंगे...! क्यौं कि, वे उद्यमी *"ब्राम्हणशाही"* के रखवाले है. उस वर्ग के प्रतिनिधि है. *"आंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवहार में, इस तरह के व्यवहार नीति को, दुषित अर्थनीति कहते हैं...!"* इस तरह की गंदी अर्थनीति, यह ब्राम्हणशाही उपज है. जो चायना को और नाराज करेगी. और उसका दुष्परिणाम भी, भविष्य में भारत को भोगने पडेंगे...!!!
कोविद - १९ अर्थात कोरोना व्हायरस संक्रमण ने, समस्त विश्व की *"अर्थव्यवस्था को व्हायरस-मय"* करने से, "जागतिक महामंदी" के संकट में, *"किसिल या रेटींग एजंसी"* ने अर्थव्यवस्था का ग्राफ, *"५% से निचे आने"* की बात कही है. भारत का इतिहास बयान करता है कि, *"भारत में अर्थव्यवस्था का ग्राफ पिछले ६९ साल में, चार बार अर्थात सन १९५८, १९६६, १९८० तथा २०२० इन वर्षो में निचे आया."* परंतु कोरोना ने पिछले तिनों रिकार्ड को तोड डाला. *"वही बेरोजगारी का पहले का ग्राफ ७.५० - ८.०० से बढकर, आज वो २३ - २४ तक आ गया है...!"* श्रमिकों का अपने अपने मुल राज्यों में, पलायन हो रहा है. बेकारी, भुकमरी ने आदमी को, एक नयी अनुभुती दी है. कोरोना व्हायरस संक्रमण ने, समस्त विश्व को अस्तव्यस्त कर डाला. ये क्या कम था कि, *"पाकिस्तानी टिड्डीयों"*(टोलधाडी) ने, राजस्थान से लेकरं महाराष्ट्र (नागपुर) तक, *"हरे भरे खेंतों पर हमला बोल डाला..! खेती की हरीभरी फसल, बर्बाद हो गयी."* अब यहां भी सवाल खडे होते है कि, *"पाकिस्तान के टिड्डींयों का, अचानक भारत के खेतों पर हमले के पिछे, कोई षडयंत्र तो नहीं...!"*
नोबेल अवार्ड विजेता नामांकित अर्थशास्त्री *डॉ. अमर्त सेन* प्राचिन बौध्द काल संदर्भ में कहते हैं कि, *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक काल में, दुनिया की अर्थव्यवस्था में, भारत की भागीदारी ३५% थी. और भारत जागतिक महाशक्ती राष्ट्र था...!"* वही जागतिक नामांकित लेखक *सर अलेक्झांडर कनिंगहॅम* अपने "Historical Geography of Ancient India" इस किताब में लिखते है कि, *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय अखंड भारत का बजेट ३६ करोड था. बुद्ध काल में, अखंड भारत में बुद्ध के नैतिक मुल्यों के आधार पर, जातीविहिन शील संपन्न गुणों से, उच्च आदर्श विचारों का सामाजिक विकास दर ९२% था. वही विकास आर्थिक दर, भारत का १ रूपया तो, संसार के २ रूपया बराबर था. सामाजिक - आर्थिक विषमता ना के बराबर थी...!"* चक्रवर्ती सम्राट अशोक का वंशज (जो आखरी वंशज रहा) - बॄहद्रथ की हत्या, बामणी सेनापती पुष्यमित्र ने कर *"विकास भारत" को, पतन की ओर ले गया...! अखंड विशालकाय "विकास भारत" को, "खंड - खंड कर, गुलाम भारत" करनेवाले, बामनी शासक, यह हमारे देश के गद्दार थे, और गद्दार है...!"* और यह इतिहास है.
भारत में जागतिक किर्ती के अर्थशास्त्री *डॉ. अमर्त्य सेन* है. परंतु इन गद्दार बामणी व्यवस्था ने, अमर्त्य सेन जी को, *"ना ही वो इज्जत दी, ना ही वो सन्मान नहीं दिया गया, जो उन्हे मिलना चाहिये था."* आज भारत की आर्थिक हालात, बहुत ही खस्ता होने पर भी, अमर्त्य सेन जी की कोई राय, नही ली जाती है. वही नामांकित अर्थविद *डॉ. रघुपती राजन* समान मान्यवर, रिझर्व बँक ऑफ इंडिया का *"गव्हर्नर"* बनने के बाद, देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिये, उन्हे पुनश्च मुदतवाढ नहीं दी गयी. रिझर्व बँक का *"रिझर्व फंड"* निकालनेवाली, भाजपा सरकार ने अनैतिक सत्तानीति की हदे ही पार कर डाली...! भारत पहले अंग्रेजों गुलाम था. अब *"पुंजीवादी व्यवस्था"* का गुलाम है. वैसे बामणी व्यवस्था ने, चक्रवर्ती सम्राट अशोक का काल का अस्त कर, विभिन्न शासकों के अधिन गुलाम बनना स्विकार किया. *"जहाँ सत्ता गद्दारों के हाथों हो तो, उन गद्दारों से भारत की इज्जत बचानें को कहना, या ने उन्होंने मां (भारत माता) पर, बलात्कार करना ही है...!"* अर्थात आज देश की सभी व्यवस्था, उन मां भोगी के हाथ में है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखिया *डॉ. मोहन भागवत* का एक बयान, मिडिया के माध्यम से पढने में आया. सदर बयान में कितनी सच्चाई है, यह विवाद को छोड दिया जाए तो, डॉ. भागवत कहते हैं कि, *"कोरोना आते ही, सारे मंदिरो को ताले लग गये. जिन भगवानों की हम रात दिन पुजा करते है, चढावा चढाते है, उन्होने कोई चमत्कार नही दिखाया. हमारे प्रधानमंत्री ने, खुप तालीयां और थालीयां बजाई, दिये भी जलवायें है. पर वो कोई काम ना आये. केवल डॉक्टर और नर्स ही हमारी रक्षा कर रहे है. इस कोरोना महामारी ने मुझे एक सबक सिखाया कि, अब हमें धार्मिक स्थलों की जरूरत नही है. स्कुल और अस्पतालों की जरूरत है...!"* आगे डॉ भागवत कहते हैं, *"मेरे देश के सभी पुजारीयों को विनंती है कि, अब मंदिरो को हमेशा के लिये बंद कर दे. मंदिरो में जो भी सोना चांदी है, वो जनता का है. उसे जरूरतमंदो में बांटे. ता कि, कोरोना के लढाईं में, पैसे कोई रूकावट ना बने. यही काम हमारे देश को सर्वोच्च बनायेगा..!"* सवाल है, डॉ भागवत ने यह शब्द बयान करने के बदले, उस संदर्भ में कोई लिखित आदेश दे दिया होता. और उस आदेश की प्रत, मिडिया को दी होती. उन्हे रोकनेवाला कौन है...? सभी तो तुम (बामनशाही) हो...! *"सत्ता व्यवस्था तुम हो. न्याय व्यवस्था तुम हो. नोकरशाही व्यवस्था तुम हो. मिडिया व्यवस्था तुम हो. उद्योग - व्यापार व्यवस्था तुम हो. मंदिर व्यवस्था तुम हो...! इतना ही क्या, देश गद्दार भाव भी तुम हो...!!!"*
भारत का *"सालाना आर्थिक बजेट रू. १५ लाख करोड"* बताया जाता है. जब कि, भारत के *"मंदिरो का सालाना आर्थिक बजेट रू. ३०० लाख करोड"* या उसके उपर भी बताया जाता है. वही मंदिरों के अगिणत सोना - चांदी - जवाहिरत के बारे में क्या कहे...??? *" मंदिरों की वह संपत्ती, ना राष्ट्र के काम आ रही है. ना ही जन - मन के...! बस, वह मंदिरो में डंब पडी है...!"* यह काला धन ही है. सवाल है, *"भारत सरकार समस्त मंदिर - मस्जिद - गुरुद्वारा - बुध्द विहार आदी का, राष्ट्रियकरण क्यौं नहीं करती...?"* वही भारत का प्राचिन इतिहास, यह गुलामी का इतिहास रहा है...! और भारत को गुलाम बनानेवाली थी, गद्दार बामनशाही...! और अब भारत है *"पुंजीवाद का गुलाम."* और वह गुलाम करानेवाली है, *"देश गद्दार बामनशाही...!"* अगर उन में थोडी भी - *"देशभक्ती की शरम बची हो तो, उच्चत्तर उद्योंगों का 'राष्ट्रियीकरण'' कर डालो..."* वैसे देखे जाएं तो, इस गद्दारी में, भाजपा - कांग्रेस - कॅम्युनिष्ट ये सभी दल, बराबर के हिस्सेदार (दोषी) है. क्यौ कि, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जब *"भारतीय संविधान"* को अमली जामा पहना रहे थे, तब *"संविधान सभा"* में २६ नवंबर १९४९ में, वे कहते हैं, *"On 26th January 1950, India will be an Independent country. (Cheers) What would be happen to her independence ? Will she maintain her independence or will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. Will she lost it a second time ? It is this thought which makes me most anxious for the future...!"* परंतु इन गद्दारों को, उस पावन शब्द भाव का क्या...? भारत तो *"केवल 'देश' (Country) के सिमित रह गया. वो 'राष्ट्र' (Nation) नहीं बन पाया...!"* वही यहां हमें, *"भारतीय"* बहुत कम लोग दिखाई देते है, *"धर्मांध - धर्मवादी - जातवादी - देववादी"* बहुत जादा...! समस्त विश्व *"कोरोना व्हायरस संक्रमण"* से जुझ रहा है. और यहां *"विलगीकरण - लॉक डाऊन - सर्वेक्षण* की जरूरत है, कोरोना पर अंकुश लाने के लिये...! परंतु भारत में, *"मंदिरों के दरवाजे खुल रहे है,"* लॉक डाऊन और शिथिल किया जा रहा है, कोरोना महामारी के लिये...!!! अगर *"भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करना हो तो, मंदिरो के संपत्ती का उपयोग, राष्ट्रहित में करो...!"* लोगों के बैंक खातें में, आवश्यक निर्धारित राशी जमा करो. अनाज वितरण की व्यवस्था करो. यह जिम्मेदारी सरकार की है.
अभी अभी *"अमेरिका में, अश्वेत (कॄष्ण वर्णीय) समुदाय के, एक नागरिक जार्ज फ्लाईड इनकी हत्या प्रकरण"* में, समस्त अमेरिका प्रशासन हिल गया है. कोरोना व्हायरस संक्रमण को भी, वहां के नागरिकों ने धत्ता के धत्ता बता दिया. *"इस प्रकरण से भी भयंकर प्रकरण जैसे की : अत्याचार - बलात्कार - शोषण आदी बातें, भारत में मागास समुह पर होना, यह आम बात है...!"* यही नहीं, बौद्ध - मुस्लिम समुदायों को भी, भारत में न्याय नहीं मिलता. *"अयोध्या बौद्ध विहार प्रकरण"* में, बाबरी मस्जीद - राम जन्मभूमी मंदिर प्रकरण में, उसे उलझा कर रख दिया. और बगैर किसी ऐतिहासिक डाकुमेंट के आधार पर, राम जन्मभूमी के हक में, *"सर्वोच्च न्यायालय"* द्वारा निर्णय दिया गया. अब *"अयोध्या (युध्द न लढे जिता शहर) अर्थात प्राचिन साकेत में, प्राचिन अशोक कालीन बौद्ध अवशेष मिले....!"* अब सवाल है कि, *"सर्वोच्च न्यायालय की सात बेंच की पीठ, सदर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्थगिती देती है या नहीं...?"* और सदर जगह पर, खुदाई कराने का आदेश देकरं, भारत की प्राचिन धरोहर के सुरक्षा करने, प्रतिबध्द होगी या नहीं...! *"वैसे तो हमारे न्याय व्यवस्था में, ना-लायक न्यायाधीशों की खोगिर भरती हुयी है."* इस लिए "सर्वोच्च न्यायालय" को, *"सर्वोच्च नहीं सवर्ण न्यायालय"* कहां जाएं तो, वह अतिशयोक्ती नहीं होगी...! और जिन जिन न्यायाधीशों ने, गलत - अनैतिक निर्णय दिये है, उन्हे चौराह पर फाशी देना चाहिये. परंतु हमारा *"भारतीय संविधान,"* यह करने की इजाजत नहीं देता. अत: हमें संविधान की गरिमा बचाना है. वही कोरोना संदर्भ में, केवल मुस्लिम समुदाय को दोषी के कटघरे में, खडा किया गया. भारत में पहिला कोरोना व्हायरस संक्रमण फैलानेवाला, कोई मुस्लिम व्यक्ती नहीं है...! भारत में की हिंदु मंदिरों में, उस पिरियड में बडे बडे कार्यक्रम किये गये है. *"नरेंद्र मोदी सरकार ने, डोनाल्ड ट्रम्प के साथ ५००० विदेशीयों के सन्मान में, गुजरात में, लाखों की भीड इकठ्ठा किया, उसका क्यां....?"* विदेशों सें दिसंबर २०१९ से लेकरं मार्च २०२० तक, विमान प्रवास से बगैर जांच किये, भारत में किसने प्रवेश करने दिया...? *"और भारत में लॉक डाऊन निर्णय जाहिर करने में, तिनं माह की देरी नरेंद्र मोदी ने की, उसे हम किस संदर्भ में ले...!!!"*
अमेरिका में अश्वेत समुदाय के व्यक्ती को, अमेरिकी पुलिस नें यातना देते समय, वह अश्वेत व्यक्ती कह रहा था, *"I can't Breathe."* और अमेरिका में सभी अश्वेत, *"I can't Breathe"* यह नारा लेकरं, कोविड १९ के माहोल में, वे रास्तों पर उतर आये. वही परिस्थिती लेकर, आज के कोविड - १९ संक्रमण माहोल में, *"भारत में बौध्द - मुस्लिम - मागासवर्ग समुदायों ने, सत्तानीति द्वारा उन पर हो रहे अन्याय - अत्याचार के विरोध में, वे रास्तों पर उतर आयें तो, वही भारतीय पोलिस वर्ग समुह भी उस आंदोलन में, सक्रिय रुप से गिर पडा तो....!!!"* भारत में ४ % *"बामनशाही सत्तावाद"* का क्या होगा...? *अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने, सुरू में ही उस "अश्वेत आंदोलन" को दडपने की कोशीश की.* और अमेरिका पुलिस ने, राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प के इशारे पर, चलने की कोशीश की. परंतु फ्लोरिडा शहर में, १५% अश्वेत का भरकम आंदोलन देखकर, अमेरीका पुलिस ने, घुटनों के बल बैठकर, अश्वेत समुदाय के मोर्चा को अभिवादन किया. वही ह्युस्टन में, पोलिस प्रमुख *आर्ट अॅक्वडो* इन्होने अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प को, दो टुक शब्दों में क्या कि, *"कोई भी रचनात्मक उपाय ना हो तो, अपना मुंह बंद रखना चाहिए...!"* वही *"अमेरिकी सेना"* द्वारा सदर प्रकरण पर, डोनाल्ड ट्रम्प को साथ देने से इंकार देते हुये कहा कि, *"हम संविधान बचाने के बने है. ट्रम्प के लिये नहीं...!"* यही नहीं, डोनाल्ड ट्रम्प ने, अपने आप को *"सुरक्षीत बंकर"* में, छुपने की बात मिडिया से चर्चा में आ रही है. न्युझीलंड की प्रधानमंत्री *जसिंडा अर्डर्न* ने, अपने कुछ सहकारीयों के साथ खाना खानें, वेलिंग्टन के एक रेंस्तरा गयी. वहां कोरोना महामारी के कारण, नये कडे नियम लागु किये गये. *"वो लाईन में लगकर, खाने के लिये अपना इंतजार करते रही."* बडे मुस्कील से उनका नंबर लगा. महत्त्वपुर्ण विषय यह कि, *"न्युझीलंड आज कोरोना मुक्त राष्ट्र बन गया है...!"* और उन्होंने अपना आनंदोत्सव मनाते हुये, अपने दैनंदिन व्यवहार सुरू करने की बात कही है. परंतु नरेंद्र मोदी सरकार ने तो, नयी दिल्ली उच्च न्यायालय के *न्यायाधीश एस. मुरलीधर* ने, *"भारतीय संविधान के तहत, भाजपा मंत्री / सांसद के विरोध में, निर्णय दिया तो, रातोरात उस संविधानिक दायित्व निभानेवाले न्यायाधीश की बदली, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में की है."* हमारे भारतीय सत्ता राजनीति की यह अनैतिकता, कब सुधारने का करवट लेगी...? यह प्रश्न है. अमेरीका की वो भयान परिस्थिती, भारतीय बामनशाही के लिये, एक इशारा है. *"अंत: भारत के ४% सवर्णों द्वारा, भारत में अनैतिकवादी व्यवस्था चलाने का, जो कु-चक्र चल रहा है, उस में उन्हे बदलाव लाना होगा..?"* वही *"मोहनदास गांधी हत्या प्रकरण"* में, भारत के बामनी नायक लोक, घर से भागते नज़र आये थे. वही उनकी महिला वर्ग, अपनी इज्जत की भींख मांगा कराने का, इतिहास हमें बताया जाता है...!!!
कोरोना व्हायरस संक्रमण के महामारी में, *"अमेरिका ने चायना पर, वो बिमारी छुपाने का आरोप लगाया है. तथा कोरोना के मुल विषाणु स्वरुप की, जानकारी मांगी है...!"* इतना ही नहीं *"वुहान के वैज्ञानिक प्रयोगशाला"* के जांच करने की मांग करते हुये, चायना को धमका ने प्रयास किया है. आस्ट्रेलिया, ब्रिटन भी अमेरिका के साथ है. वही चायना इन सभी बातों को, नकार रहा है. इधर चायना ने भारतीय सीमा में प्रवेश कर, उन क्षेत्रों पर अपना अधिपत्य जमाया है. भारत ने अभी अभी, पुर्व लद्दाख के क्षेत्र में, *६० के आसपास बोफोर्स तोफ* तैनात करने की, बांते मिडिया से सुननें में मिलती है. *अंनतनाग* के पास, राष्ट्रीय महामार्ग - ४४ पर, *"आपातकालीन हवाई धावपट्टी"* भी बनाने की बात चर्चा में है. अर्थात *"चायना - भारत"* के बीच, यह सभी बांते, आनेवाले लढाई का क्रियाशील भाव ही है. दुसरी ओर समस्त भारत में, *"जागतीक आर्थिक महामंदी का दौर चल रहा, और भारत की अर्थ व्यवस्था का खस्ता हाल होने पर भी, लॉक डाऊन को शिथिल किया गया है, मंदिर खोले गये है....! और कोरोना महामारी को निमंत्रण भी...!!!* आज भारत में, कोरोना की संख्या, दिनो दिन बढती जा रही है. कोरोना को नियंत्रण में लाना, इतना सहज भाव नहीं रहा. वही *"चायना को धमकाने वाला अमेरिका",* आज *"भारत - चायना"* इन दो देशों के बिच के धमासान पर, मध्यस्थी कराने की, बात कर रहा है. यह बात अलग है कि, भारत ने, अमेरिका के *"मध्यस्थी मांग"* को ठुकरा दिया है...! इतना ही नहीं तो, *"नरेंद्र मोदी ने - अमेरिका, फ्रांस, सिंगापूर, आस्ट्रेलिया इन देशों के साथ, शस्त्रास्त्र की मदत करना तथा लष्करी छावणी तल के उपयोग करने के संदर्भ में, करार किये जाने की चर्चा है...!"* अर्थात यह सभी बाते, *"तिसरे महायुध्द"* की ओर, इशारा दिखाई देता है...!!!
नरेंद्र मोदी द्वारा - *"अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, सिंगापुर"* इन देश सें, भावी युध्दनीति पर करार होता हो तो, *रशिया"* ये शक्तीशाली देश, किस ओर करवट लेगा...? यह प्रश्न है. वही *"नेपाल, श्रीलंका, बांगला देश, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया"* समान पडोसी देश भी, क्या भारत के साथ खडे होंगे...! यह भी अहं सवाल है. नेपाल से, भारत कें संबंध अच्छे नहीं है. वही *"चायना के BRI प्रकल्प ने,"* पाकिस्तान, नेपाल, बांगला देश, श्रीलंका समान पडोसी देश, चायना के करिबी बने है. *"समस्त विश्व में, पहले अमेरिका और रशिया ये दो महाशक्तीया थी."* अमेरिका ने, कुटिल राजनीति के तहत, संयुक्त रशिया में बिखराव कर डाला. और आज विश्व में, *"केवल अमेरिका ही, एकमेव महाशक्ती बनी है...!"* क्या रशिया, वो अपना महा दर्द भुलं पायेगी...? और *"तिसरे महायुध्द में रशिया यें, भारत - अमेरिका के साथ खडा रहेगा...?"* क्यौं कि, भारत भी रशिया के साथ वफादार नहीं रहा. *"आज अमेरिका भी, बिखराव के कगार पर खडा है...!"* थोडासा हतोडा मारना बाकी है. वैसे चायना ने, अमेरिका पर शक्तीशाली हतोडा मारा है. चायना अच्छी तरह से जानता था कि, अमेरिका को युद्ध में हराना संभव नहीं...! *"क्या कोरोना व्हायरस संक्रमण, अमेरिका और अन्य देशों के आर्थिक स्थिती को, खोकला करने की, एक गहरी कडी तो नहीं....?"* क्यौं कि, जब कभी महायुध्द होता हैं, तब उन देशों में महामंदी छा जाती है. अब तो कोविड - १९ ने, समस्त विश्व में महामंदी का दौर है...! बेकारी, भुकमरी, अंदाधुंदी का माहोल मचा है. और *"अमेरिका, भारत, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया इन देशों की औकात नहीं, जो अब तिसरे महायुध्द में शिरकत करे...!"* अगर अमेरिका में बिखराव होता हो तो, *"चायना के, विश्व महाशक्ती बनने के दरवाजे, अपने आप खुल जाएंगे...!"* अत: तिसरे महायुध्द की खुमखुमी, ये चायना की एक राजनैतिक पहल है...! और अमेरिका - भारत की राजनैतिक हार...!!!
उधर अमेरिका श्वेत - अश्वेत इस *"अंतर्गत युध्द"* से झुंज रहा है. साथ में समस्त विश्व में, *"कोरोना महामारी"* का प्रकोप है. भारत में भी *"जातीगत अंतर्गत युध्द,"* चरम सीमा पर है...! बामनशाही के विरोध में, भारतीय माहोल गरम है. *"शायद बामनशाही पर, गरम हातोडा चलाने का, वह अच्छा मौसम हो...!"* और भविष्य में, *"चायना - रशिया - उत्तर कोरिया"* इन देशों में, अंतर्गत करार हुआ तो, *"तिसरे महायुध्द में, नये महाशक्ती का उदय, जादा दुर नहीं...!"* यही नहीं, द्वितीय महायुध्द में जर्मनी पर, विजय मिलाने के कारण, रशियाने उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *"किम जोंग उन"* को *"युद्ध पदक"* देकर, कुछ दिन पहले सन्मानित किया है. इसे हम किस संदर्भ में लें. आज कल ये मिडिया, उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा के संदर्भ में, कुछ बयान भी करते नजर आती है. किम जोंग की मॗत्यु हुयी है, या वे गंभिर बिमार चल रहे है, आदी आदी. क्यौं कि, वे अदॄश्य से दिखाई देते है. परंतु किम जोंग उन की छोटी बहन, *किम यों जोंग,* आज कल उत्तर कोरिया की कमान संभाल रही है.
*"चायना को महाशक्ती"* बनाने के दरवाजे, वैसे देखा जाएं तो, *"तत्कालीन भारत सरकार के, बिन-अकल राजनीति का, षंढ परिपाक है...!"* सन १९१४ में, *"भारत और तिब्बत"* के बिच *"शिमला करार,"* यह सीमा निर्धारण - *"मॅकमोहन रेखा"* ये, ब्रिटिश राज में हुआ था. सन १९४९ में, *"नेपाल ने 'संयुक्त राष्ट्र' की सदस्यता मिलने के लिये,"* जो आवेदन किया था, तब "सार्वभौम दर्जा" सिध्द करने के लिये, भारत - तिब्बत के बिच, उस करार का संदर्भ दिया गया. अर्थात *"तिब्बत"* यह स्वतंत्र राष्ट्र था, यह पुख्ता प्रमाण है. एवं तिब्बत का २१०० साल से भी पुराना, एक इतिहास है. सातवे से दसवे शतक तक, तिब्बत आशिया का सशक्त राष्ट्र था. और ७६३ में, तिब्बती सेना नें, चायना पर आक्रमण करने से, चायना का राजा देश तोडकर भागने का इतिहास है. सन ८२१ में, *"चीन - तिब्बत"* के बिच *"शांती करार"* होकर, दो देशों की सीमाएं निर्धारीत की गयी. सन १९५० में, चायना ने *"तिब्बत पर आक्रमण करने से, प.पा. दलाई लामा ने भारत में शरण ली...!"* उस चिनी आक्रमण के संदर्भ में, प.पा. दलाई लामा ने युनो तथा भारत सरकार सें, मदत मांगी. परंतु उस ओर, भारतीय विदेश नीति ने नजर अंदाज किया. तिब्बत के संदर्भ में, तत्कालीन प्रधानमंत्री *जवाहरलाल नेहरू* ने ७ दिसंबर १९५०में, लोकसभा में कहा था कि, *"तिब्बत के संदर्भ में निर्णायक आवाज, यह केवल तिब्बतीयों की हो. अन्य देशों की नहीं....!"* भारत सरकार के इस गलत विदेश नीति पर, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने नाराजी जताते हुयें कहां कि, *"सन १९४९ में, भारत सरकार ने चीन के बदले तिब्बत के पक्ष में, अपनी स्वीकॄती दी होती तो, भारत - चीन सरहद्द सीमा का विवाद, कभी नहीं होता...!"*
*"द्वितिय महायुध्द"* होने के पहले, सन १९१४ के भारत - तिब्बत *"शिमला करार"* को, अमेरिका की स्विकॄती थी. परंतु सन १९४१ के अमेरिका राजनीति ने, *"सिकियांग एवं तिब्बत ये दो राष्ट्र, चीन के अधिपत्य में देने की, बुनियाद रखी गयी...!"* द्वितिय महायुध्द में, अमेरिका ब्रिटन के बाजु में खडे रहते हुये, *"भारत पर की ब्रिटिश पकड, ढिली करने के लिये,"* अमेरिका ने चीनी सेना को तिब्बत में, छावणी बनाने को उकसाना...! वही एक रात में - समुचे आशिया पर, अमेरिकी साम्राज्य अधिपत्य स्थापित कराने की, वह गहरी चाल थी. अमेरिका के इस कुटील षडयंत्र से, ब्रिटन को अमेरिका से मिला धोका, क्या गद्दारी नहीं थी...? अमेरिका के इस गद्दारी का कारण, *"जर्मनी के हिटलर को, मदत करना था...!!! क्यौ कि, अमेरिका का असली दुश्मन जर्मनी नहीं, जापान था."* और अमेरिका द्वारा जापान पर अणुबाँब डालना, उसी का परिपाक रहा. यही नहीं, हिंदी महासागर पर के, ब्रिटिश नाविक दल की हुकुमत खत्म कर, अमेरिका का वर्चस्व प्रस्थापित करना भी था. यह सभी कुटनीति, अमेरिका द्वारा चायना को, मदत करने से ही संभव थी. अमेरिका की यह राजनीति, *विन्स्टन चर्चिल* समझ गया. इस लिये, विन्स्टन चर्चिल का घोषवाक्य रहा कि, *"इंग्लिश भाषी कों की राजनीति, एक ही है...!"* और भारत को, औकाती आयना दिखा दिया. और वो चीन के समर्थन में खडा हुआ. अमेरिका के इस कुटिल षडयंत्र से, तिब्बत पर चायना का अधिपत्य आ गया. उसी समय, भारत - पाकिस्तान यह विभाजन भी..!!! *"अर्थात भारत को आजादी, १९४५ में मिलना तय थी...!"* परंतु मोहनदास गांधी की हटवादीता और कांग्रेस की अदुरदर्शिता तथा भारतीय सामाजिक विषमता ने, भारत को आजादी दो साल देरी से मिली. *"अर्थात १५ अगस्त १९४७ को...!"* हमें यह समझना होगा कि, *"द्वितिय महायुध्द में आयी महामंदी ने, ब्रिटन की आर्थिक व्यवस्था खस्ता हुयी. और भारत के आजादी के, दरवाजे खुले...!"* परंतु कांग्रेस ने, मोहनदास गांधी को "आजादी का नायक" बनाया. और क्रांतीकारक रह गये हाशियें पर...!!!
जवाहरलाल नेहरू कहे या कांग्रेस दल के अदुरदर्शी विदेश निती ने, तिब्बत पर चीनी अधिनता, यह आज भारत के लिये, बडा जी का झंझाल बना है. चायना द्वारा तिब्बत में, सशक्त सैनिक बल रखा गया है. विमान तल निर्मिती के साथ साथ, वहां रडार केंद्र भी बनायें गये है. *"केमीकल वार"* में प्रयोग आने वाली सामुग्री, वहां स्थापित है. जहां समुचे भारत पर, निशाणा लक्ष किया जा सकता है. *"चायना, जिस अमेरिका के सहारे, इतना शक्तीशाली हुआ है, आज उसी अमेरिका को, वो ललकार रहा है...!"* अत: भारत को, वह युद्ध नीति - विदेश नीति और सत्ता नीति भी समझनी होगी...! *"बामनशाही कु-नीति नही....!"* कोरोना के कारण, समस्त विश्व में, आर्थिक महा मंदी छायी है. *"परंतु चायना की अर्थव्यवस्था, उतनी गंभिर नहीं है, जितनी की अन्य देशों की...!"* और भारत के बारे में, क्या कहे...? *"अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प"*, ने, भारत के भावी कोरोना स्थिती पर, बिलकुल सही कहा है. डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि, *"अमेरिका के ३३ करोड लोकसंख्या के अनुपात में, कोरोना निदान परिक्षण की संख्या २ करोड है. और निदान रूग्ण संख्या १९ लाख. वही भारत की लोक संख्या १३८ करोड की अनुपात में, भारत में ४० लाख कोरोना निदान परिक्षण किये है. वही कोरोना निदान रुग्ण संख्या २.५० लाख के ऊपर चली गयी है...! और भारत कोरोना संक्रमण में, अमेरिका को भी पिछे छोड देगा....!!!"* और यह सच्चाई है. क्यौं कि, भारत में लॉक डाऊन में दी गयी ढील, मंदिरो का खुलना, उद्दोग व्यवसाय का खुलना, विमान - रेल सेवा का आवागमन आदी अनेक कारण है, जो की कोरोना संक्रमण का, रोजाना ग्राफ बढा रहे है. अब सवाल है कि, इस दो महिने के कठोर लॉक डाऊन के, प्रयास का बंट्याधार तो नहीं होगा...? अत: सोचो, भारत की आर्थिक स्थिती क्या होगी..".? *क्या भारत, तिसरे महायुध्द के लिये सक्षम रहेगा...???"* जब की भारत, *"कोरोना युध्द"* में ही आर्थिक खस्ता हो चुका है...!!!
*"कोरोना की छाया में तॄतीय महायुध्द"* यह विचार ही, भारत के भयावह परिस्थिती का, हमे अंदाज दे आता है. भारत के बौध्द समुहों के अधिकार संदर्भ में, दिनांक ३ - ४ जुन २००६ में, मेरे (डॉ. मिलिन्द जीवने) ही अध्यक्षता में, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* नागपुर में संपन्न हुयी. जिसमें तिब्बत, म्यानमार, ब्रिटन, भारत इन देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. तिब्बत सरकार के धार्मिक मंत्री *लोबसंग निमा* ये, सदर समारोप समारोह के प्रमुख अतिथी थे. उस परिषद , कुछ राजनैतिक ठराव पारित किये गये. परंतु वे ठराव, बौध्दों के नागरी अधिकारों से संबंधित है. वे पारित ठराव इस प्रकार हैं....
* *Reso. No. 3* : India and China should be made the focul points of Global Buddhist Movement considering the root of Buddhism in these countries and various demographic, economic, educational and the other factors. For this China should be ideological engaged into dialogue by Buddhist intellectuals at international level.
* *Reso. No 5* : World Buddhist Organizations :
(a) Central World Bhikkhu Sangha should be formed at world level on the line of Church of Rome (But not the same) for the mission of Dhamma.
(C) World Buddhist Countries Development Council should be set up under the apex World Buddhist Organizations to look after the responses and finances for the *"Action Plan Programmes"* formed by the World Buddhist Organisation.
* *Reso. No7* : Strong proactive presence of all Buddhist Countries should be set up in UN and various Organisations of UN for contributing to the international Law to make it effective for Social Transformation of the global world order based on Humanism.
* *Reso. No. 9* : Other Resolutions...
* 9(1) : The management of Buddhagaya Mahabodhi Buddha Vihar should be handed over to Buddhists instead of Hindus.
सदर *"जागतिक बौद्ध परिषद - २००६"* में, और बहुत सारे ठराव पारित किये गये थे. और वे गुगल सर्च पर भी उपलब्ध है. यही नहीं, दिनांक ६ मार्च २००८ में, *"सर्व धर्म सभा"* परिषद का, नागपुर में आयोजन किया गया था. सरसंघचालक *डॉ. मोहन भागवत,* उस परिषद में प्रमुख अतिथी थे. मैने (डॉ. मिलिन्द जीवने) उस परिषद में, अपने अध्यक्षीय भाषण में, डॉ. मोहन भागवत को, आडों हाथ लेते हुये कहा था कि, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, "बौध्दमय भारत" यह संकल्पना क्यौं की थी. इस पर आज तक किसी ने, सही संशोधन नहीं किया. डॉ. आंबेडकर, भारत में "धर्मसंघर्ष" मिटाना चाहते थे. जातिविहिन समाज व्यवस्था को रूजाना, उनकी मुख्य चाह थी...!"* और उस परिषद मे मैने, डॉ. मोहन भागवत को *"विश्व हिंदु परिषद"* का नाम बदलकर, *"विश्र्व बौद्ध परिषद"* नामकरण कर, उन्हे *"बौध्द धम्म की दीक्षा लेने की अपिल की थी...!"* इसके पिछे, मैने उन्हे कई कारण भी बताये थे. उस पर हम, फिर कभी सविस्तर चर्चा करेंगे. अब हम सही विषय पर आयेंगे...!!!
जब कभी हम *"युध्द"* पर चर्चा करते है, *"तब हमें अंतर्गत युद्ध (देश अंतर्गत संघर्ष) और बाह्य युध्द (सरहद्द पर लढे जा रही लढाई)"* इस पर सोचना बहुत जरूरी है. अगर हमारी अंतर्गत शक्ती ही कमजोर हो, और सामाजिक अन्याय की भावना बढती हो, या एक समुह ये दुसरे समुह पर अत्याचार करता हो तो, वो देश शक्तीशाली नहीं बनेगा...! भारत कें संदर्भ में, यह बात जादा लागु है. चायना ने BRI के माध्यम से, भारत के पडोसी देशों को, अपने साथ जोडा है. जो चायना कॅम्युनिझम की छाया में पल रहा था, उसने *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन करना, बौध्द राष्ट्रों से मित्रता कर, महाशक्ती की ओर उडान भरी है. मेरे उपरोक्त पॅरा मे, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का संदर्भ और पारित किये गये ठरावों का उल्लेख, उभी संदर्भ में है. डॉ मोहन भागवत को, की गयी मेरी अपिल यह *"भारत को बौध्द राष्ट्र घोषित करने संदर्भ में थी...!"* ता कि, धर्म संघर्ष, जाती संघर्ष, देववाद संघर्ष रोका जा सके. *आचार्य रजनीश* को जब अमेरिका से निकाला गया, और वे भारत आये, तब उनके शब्द थे, *"है बुद्ध के धरती पर, कदम रखा हुं....!"* जब कि आचार्य रजनीश, ये जैन धर्मिय थे. उन्होंने अपना नामकरण भी, बुध्द संस्कॄती पर *"ओशो"* रखा था. अत: हमें अपने देश को सशक्त करना हो तो, और पडोसी बौद्ध राष्ट्र से मैत्री वॄध्दींगत करनी हो तो, बुध्द की ओर जाना, बहुत जरुरी है. साथ ही *"मंदिर संपत्ती कानुन (Temple Wealth Act)"* को बनाना अति आवश्यक है. ता कि, मंदिरो की संपत्ती का उपयोग, राष्ट्रहित में किया जा सके. इसके साथ ही *"पुंजीवादी व्यवस्था"* को खत्म करने के लिये, *"उच्च स्तरीय उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना जरूरी है....!"* अन्यथा भारत की अर्थ व्यवस्था, सशक्त करना असंभवनीय विषय होगा. और अगर, देश के पास अर्थ ही नहीं हो तो, *"युध्द किस आधार पर लढा जाऐगा...!"*
भारत के जन- विघटीकरण का, अगर कोई मुख्य कारण हो तो, वह है - *"भारतीयत्व भावना का अभाव...!"* यहां हर आदमी की पहचान, जाती - धर्म के आधार पर होती है. देश भावना पर नहीं...! *"अत: भारत, आज तक "देश" - (Country) ही बना रहा. वो "राष्ट्र" - (Nation) नहीं बन सका...!!!"* यही कारण है कि, हमें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के *"भारत राष्ट्रवाद "* विचारों की याद आती है. डॉ. आंबेडकर कहते हैं, *भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति को, मैं तवज्जो नहीं देता. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान, ये विचार भी मुझे मान्य नहीं. सभी लोगों ने, प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयत्व के आगे कुछ नहीं. यही मेरी धारणा है...!"* (मुंबई, १ अप्रेल १९३८) आज के संदर्भ में, हमें समस्त लोगों को जोडने के लिये, भारतीयत्व भावना को जगाने के लिये, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* को स्थापित करना, बहुत जरुरी हुआ है. ता कि, *"एकसंघ भारत"* का निर्माण किया जा सके...! और *"महायुध्द"* समान परिस्थिती, जब देश पर आती है, तब लढाई पर जाने के लिये, हर आदमी घर से बाहर निकले...!!!
जब *"द्वितिय महायुध्द"* चल रहा था, तब डॉ बाबासाहेब आंबेडकर नें, महार बटालियन को, ब्रिटिश के पक्ष में, लढने की अपिल की थी. ता कि, जर्मनी के हिटलर की एकाधिकार शाही खत्म की जा सके...! डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के इस अपिल पर, मोहनदास गांधी एवं कांग्रेस ने, डॉ. आंबेडकर इनके भुमिका की आलोचना की थी. *"बाद में, वही कांग्रेस ने ब्रिटिश सेना का समर्थन कर, डॉ. आंबेडकर इनके विचारों पर चल पडी...!"* आज हमारी एक मिडिया, चायना ने पुर्व लद्दाख क्षेत्रों पर, आक्रमण करने को झुठला रही है. वही एक मिडिया, चायना ढाई मैल पिछे जाने की, बात को दिखा रहा है. सबसे अहं विषय यह है कि, *"चायना को लद्दाख भुभागों से, कोई लगाव नहीं है. चायना का असली लक्ष, अरुणाचल प्रदेश का तवांग भुभाग है...!"* और चायना के प्रभावशाली राजनितिज्ञ *दाई बिंगुओ* का वह बयान, हमें बहुत कुछ बता देता है. चायना का लद्दाख पर आक्रमण, यह चायना की एक युध्दनीति है....! भविष्य में होने वाला *"तॄतीय महायुध्द,"* यह *"केमीकल वार"* होगा. समस्त विश्र्व पहले ही, *"कोरोना वार"* के कारण, आर्थिक महामंदी में फंसा है. और *"तॄतीय महायुध्द"* यह कल्पना भी, अब नहीं की सकती....!!! *"परंतु एक महाशक्ती (अमेरिका) का अंत करने, और नये महाशक्ती (चायना) को स्थापित करने के लिये, यह युद्ध निर्णायक होगा."* भारत तो केवल, अमेरिका का मोहरा बनेगा...! अत: भारत को, अपनी सत्तानीति - युध्दनीति में बदलाव लाना होगा. *डॉ. मनमोहन सिंग* समान सुलझे हुये, मान्यवरों के नेतृत्व में, सर्व दलीय सरकार का गठण बहुत जरूरी है. यह युध्द का मुकाबला करना, *नरेंद्र मोदी* हो या भाजपा के बस की बात नहीं है. वही अमेरिका के संदर्भ में कहां जाएं तो, अमेरिका का मुंहफट राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* को हटाकर, *बराक ओबामा* इस सुलझे हुये, माजी राष्ट्राध्यक्ष को अमेरिका के गद्दी पर बिठाना, आवश्यक हो गया है. अब सवाल है कि, भारत की पहल क्या होगी....??? नहीं तो, भारत की सत्ता नीति - युद्ध नीति पर, *संत कबीर* के शब्दों में कहां जाऐगा...
*"गांडु भडवे रन चढे, मर्दों के बेहाल |*
*पतिव्रता भुखी मरी, पेढे खाये छिनाल |*
* * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२
(कोरोना संक्रमण काल में, पिछले साल लिखा है)