Monday, 28 February 2022

 ✍️ *दलित - दलित साहित्य से लेकर आंबेडकरी - बौध्द साहित्य तक : डा. अम्बेडकर वैचारिक चिंतन ...!*

   *डा.‌ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


     पिछले कुछ दिन पहले मेरे व्हाट्सएप पर, कुछ लोगों ने *"दलित साहित्य"* संदर्भ में, *प्रा.‌ शैलजा पाईक*, जो सिनसिनाटी विश्वविद्यालय मे पढाने का जिक्र है, उनका लिखा एक लेख मुझे भेजा गया. सदर लेख के लेखिका ने, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहब के संदर्भ कोट किये है. इस लेख के पहले मैने, कालानुरुप डॉ. आंबेडकर साहेब के संदर्भ देते हुये, *"आंबेडकरी - बौध्द साहित्य"* की वकालत की थी. परंतु सदर लेखिका ने, आंबेडकर साहेब के सन १९३० - ४० साल के संदर्भ देकर, बस *"दलित - दलित साहित्य"* की दलिल दी. अब सवाल यह है कि, *"हमारी जो मुव्हमेंट है, क्या उसे भी हम "दलित मुव्हमेंट" कहा जाएं या नही? वो आंबेडकरी मुव्हमेंट नही है.‌"* यह कहा जाए.‌ क्यौ कि, उनके विशेष नजरों मे, *"दलित यह समुहवाचक शब्द है. वह जातीवाचक या व्यक्तिवाचक शब्द नही है. सामाजिक एवं राजनीतिक कार्य का अविभाज्य घटक है.* मै इस लेख का उत्तर, मराठी भाषा में ही लिखना चाहता था. परंतु भारत के जादातर बहुसंख्यक लोगों के जानकारी के लिए, वह हिंदी मे लिखना, मैनै वह उचित समझा. वैसे ही एक माजी सनदी अधिकारी *इ. झेड. खोब्रागडे* इन्होने भी, अपना अलग सुपर - डुपर दिमाख लगाकर, *"संविधान साहित्य"* नाम से, अपनी अलग दुकानदारी खोलने की, एक हिन चेष्टा की थी. उस साहित्य का कडा विरोध, मैने *(डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य')* किया था. बाद में उस साहित्य पर, कोई विशेष ऐसी चर्चा हमे दिखाई नही दी. हमे यह भी समझना बहुत जरूरी है कि, *"भारत का संविधान"* यह कोई साधारण *"कानुनी किताब"* (Legal Book) नही है. वह भारत का सर्वोच्च / बहुमुल्य *"कानुनी दस्तावेज़"* (Legal Documents) है. उसे साहित्य के श्रेणी मे लाकर, लिमिटेड करना या पदावनत करना, यह एक बडा गुन्हा है. साहित्य यह अच्छा भी होता है, या गंदा भी...! *"अस्विकार साहित्य का निषेध भी होता है, या निषेध के रुप में, जलाया भी जा सकता है...!"* अत: संविधान को साहित्य कहना, वो देश से गद्दारी है. वो देशद्रोह भी है...!

   ‌   *प्रा.‌ शैलजा पाईक* इन्होने *"दलित - दलित साहित्य"* इस शब्द के मान्यता के लिए, डॉ. आंबेडकर साहेब का *"लिखाण या मुव्हमेंट"* संदर्भ कोट किया है, वे संदर्भ सन १९३० - १९४० दरम्यान के दिये गये है. और शैलजा ने स्वयं यह माना भी है कि, *"अंग्रेज़ी और मराठी संस्करण में, 'डिप्रेस्ड क्लासेस' / 'अस्पृश्य' (अछुत) / 'दलित' / 'बहिष्कृत' इन शब्दों का उल्लेख बताया है."* इसके अलावा उन्होने यह कहा भी है कि, *"हालाकी डॉ. आंबेडकर इन्होने 'दलित' शब्द का उल्लेख विरले ही किया है."*  लेकिन मुझे प्रा. शैलजा पाईक के तिन बयान बडे खटके है. *एक* है - "दलित शब्द अपने सामाजिक - राजनीतिक कार्य से अविभाज्य है. और इसमे दलितों के लिए, राजनीतिक कारवाई को प्रभावी ढंग से सुगम बनाना." *दुसरा* है - दलित शब्द विद्वता और अन्य लेखन में, अच्छी तरह से स्थापित है." *तिसरा* है -  "दलित शब्द अछुतों के समुदायों के कुछ सदस्यों द्वारा, समानता, न्याय और अधिकारीता के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में चुना गया था." और उन्होने अपने लेख में, *मि.‌ क्रिश्र्चियन ली नोवेट्ज* इनके एक लेख का, संदर्भ देकर उनका आभार भी माना है. साथ में प्रा. शारदा पाईक इन्होने ५ अप्रेल १९४६ को *"अखिल भारतीय दलित फेडरेशन"* (AIDF) का उल्लेख बता कर, अंग्रेजो को एक *"खलिता"* (याचिका) भेजने का जिक्र किया है. साथ ही शारदा जी ने यह भी कहा है कि, *"बहुत से लोग इस शब्द का, प्रयोग करना नही चाहते है. क्यौ कि, एक बहुत छोटा अल्पसंख्यक, दलित के रूप में अपनी पहचान रखता है. और कई लोग सोचते है कि, समय बदल गया है. और वे दलित नही है. यानी अब वे उत्पिडित और टुटे हुये नही है. उनकी नजर में, दलित ये 'अछुत, महार, चांभार की तरह, एक अपमानजनक शब्द है."* अर्थात मैने प्रा.‌‌ शारदा पाईक के लेख का, समस्त सार यहां उदबोधित किया है.

       प्रा.‌ शारदा पाईक के सदर लेख की, चिकित्सा करना मुझे आवश्यक हो गया है.‌ शारदा पाईक ने, डॉ. आंबेडकर के संदर्भ में, 'दलित' इस *शब्द प्रयोग कालखंड* यह सन १९३० - १९४० का बताया हुआ है.‌ *"दलित साहित्य"* यह साहित्य विषय होने के कारण, डॉ. आंबेडकर इनकी *"पत्रकारिता"* से ही मेरा उत्तर देना बहोत उचित समझ रहां हुं. बाबासाहेब की "पत्रकारिता क्षेत्र" का प्रवास - *बहिष्कृत भारत* (१९२७) > *मुकनायक* (जनवरी १९३०) > *जनता* (दिसंबर १९३०) > *प्रबुध्द भारत* अर्थात डॉ. आंबेडकर साहेब ने,  *"दलित"* नाम से कोई पत्रिका नही निकाली और वे हमें *"प्रबुद्ध भारत"* की ओर ले जा रहे है. अब सामाजिक आंदोलन के संदर्भ में - दिनांक २० मार्च १९२४ को *"बहिष्कृत हितकारणी सभा"* > १९२७ को *"समता सैनिक दल"* >  फिर बाबासाहेब हमे धम्म की ओर ले जाते है.‌ *"भारतीय बौध्द जनसंघ"* (जुलै १९५१) > *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया "* (४ अक्तूबर १९५४) उसका पंजीकरण ४ मई १९५५ करते है. और १४ अक्तूबर १९५६ को, वे *"बौध्द धर्म की दीक्षा"* लेते है.‌और हमे भी बुध्द की ओर ले जाते है. अब हम बाबासाहब का राजनीतिक प्रवास देखेंगे.‌ *"इंडिपेंडंट लेबर पार्टी"* (स्वतंत्र मजुर पक्ष - अगस्त १९३६) > *"ऑल इंडिया शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन"* (अप्रेल १९४२) दलित फेडरेशन (IDF) नही है. शायद गलती से वह नाम लिखा गया हो. *"रिपब्लीकन पार्टी ऑफ इंडिया"* (भारतीय प्रजासत्ताक दल - १ जुलै १९५६) और *"डॉ. बाबासाहेब, ०६ दिसंबर १९५६"* को, हमे छोडकर जाते है. फिर ३ अक्तूबर १९५७ को *"रिपब्लीकन पार्टी ऑफ इंडिया"* की रितसर घोषणा की जाती है.

      डॉ. आंबेडकर साहेब सन १९३५ में, येवला में *"धर्मांतर"* की घोषणा कर, १४ अक्तूबर १९५६ को, लगबग *"२१ साल के अंतराल"* में, चिरंतन अनुभव से, हमे बुध्द का दामन थाम देते है.‌ और बाबासाहब हमें *"बाईस प्रतिज्ञा"* भी देते है. हमे उस का अनुकरण करना, यह हमारा दायित्व भी है.‌ बाबासाहब उनके मुंबई दादर स्थित घर का नाम, *"राजगृह"*(१९४०) बुध्द विचारों पर रखते है.‌ और *"दि पिपल्स एज्यूकेशन सोसायटी"* की बुनीयाद भी रखते है. सदर संस्था द्वारा स्थापित, वो कॉलेज का नाम भी - *"मिलिन्द कॉलेज"* औरंगाबाद, *"सिध्दार्थ कॉलेज"* मुंबई रखते है. किसी *"दलित एज्यूकेशन सोसायटी / दलित कॉलेज"*  इन शब्द से नही है. सन १९४७ को भारत आजादी मिलने के बाद, *"झेंडा कमेटी"* मे रहते हुये *"अशोक चक्र"* और चार दिशाओं की ओर दहाड करनेवाला शेर - *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक की विरासत,"* *"भारत की राजमुद्रा"* अपने देश‌ को देते है. दिनांक ४ दिसंबर १९५४ को रंगुन (बर्मा - म्यानमार) में, *"इंटरनेशनल बुध्दीस्ट कॉंफरंस"* को सहभाग लेकर, *"Buddhist Movement of India"* की, हमे *"ब्लु प्रिंट"* देते है. वहां वे *दो मुद्दों* पर, हमारा लक्ष केंद्रीत करते है.‌ *पहला* मुद्दा है - "By publishing the Buddhist Gospel." *"दि बुध्दा एंड हिज धम्मा"* यह ग्रंथ लिखकर, उस की पुर्ती करते है. *दुसरा* अहं मुद्दा है - "Introducing a ceremony for conversation to Buddhism." *"बौध्द धर्म का मास कन्व्हर्शन"* लेकर, उस की पुर्ती १४ अक्तूबर १९५६ को, वे पुर्ण करते है.‌ और बाबासाहब की आखरी घटना बहुत ही महत्वपुर्ण है.‌ वह घटना है - *"४ दिसंबर १९५६ का, आयु. एस.‌ व्ही. कर्डक इनको लिखा गया पत्र."* वह पत्र साधारण पत्र नही है. शायद बहुत कम ही लोगों को, इसकी जानकारी होगी. उस पत्र मे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने *"बौध्द विधी से विवाह"* करने की, *"बौध्द विधी"* बतायी है. उस में बाबासाहब कहते है कि, *"बौध्द पध्दति के विवाह में, न तो हवन होता है. और न ही सप्तपदी. इस प्रकार के विवाह संस्कार का सार तत्व इस बात में है कि, एक नव निर्मित मिट्टी का घडा शुध्द जल से भरकर, वर और वधु के बिच में एक स्टुल रख दिया जाए.‌ इस घडे के दोनो ओर, वर और वधु खडे हो जाए.‌ और एक कच्चे धागे को, घडे के पानी में डुबो दिया जाए.‌ और एक एक सिरा प्रत्येक को, अपने हाथों में पकड लेना चाहिये. किसी एक ने वर और वधु को, त्रिशरण / पंचशील देना चाहिये. और महामंगल सुत्त का पठन करना चाहिये. इस अवसर पर, वर और वधु को श्वेत वस्त्र परिधान करना चाहिये. "*

      डॉ.आंबेडकर साहेब का लिखाण हो या भाषण हो, उनका अभ्यास हो या संदर्भ भी हो, वो *"कालानुसापेक्ष"* होना चाहिये. परंतु अधुरे ज्ञान पर, जब कोई लेखक बाबासाहब का मुल्यमापन करता हो तो, वह केवल *डॉ. आंबेडकर साहेब* इन पर अन्याय नही है. परंतु वो‌ *"देश, समाज एवं‌ व्यक्ती,"* इनकी दशा और दिशा को असर करता है. *प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर* इनके लिखाण मे, कार्ल मार्क्स है, महात्मा फुले है, केशवसुत भी है. महात्मा फुले जी पर लिखाण को, हम समझ सकते है. उन्होने यशोधरा पर लिखाण किया है, रमाई पर लिखाण किया है, बाबासाहब आंबेडकर साहेब पर भी लिखाण किया है. इस लिये हम उनको *"सच्चा आंबेडकरी - बौध्द साहित्यिक"* कहना चाहिये या तो कोई, *"व्यावसायिक साहित्यिक"* कहना चाहिये ? (Commercial Literal) क्यौ कि, उनकी बांधिलकी एक विचार नही है.‌ मेरे खयाल से, यशवंत मनोहर यह पुर्णत: आंबेडकरी साहित्यिक नही है.‌ वे तो पुर्णत: व्यावसायिक साहित्यिक है. *प्रा. रावसाहेब कसबे"* इन्होने तो, मोहनदास गांधी विचारों को, डॉ. आंबेडकर विचारों से जोडने की असफल‌ कोशिश की.‌ इस संदर्भ में, मैने पहले ही एक लेख लिखा है. *शरणकुमार लिंबाळे* उन्हे *"सरस्वती पुरस्कार"* लेने में, बडा गर्व महसुस होता है. उपर से *"दलित साहित्य"* की बडी वकालत...! *"प्रा. दिपक खोब्रागडे* इनको तो, कट्टर जातीयवादी - *"गिरिश गांधी"* के बिना, साहित्य कार्यक्रम लेना संभव ही नही लगता...! गिरिश गांधी के और दोस्त है, *प्रा.‌ यशवंत मनोहर और इ. झेड. खोब्रागडे*...! क्या करे, *"विशेष अर्थ प्रयोजन"* संबंध का विषय है. *"डॉ. बाबासाहब आंबेडकर पुरस्कार"* पाने का भी विषय है...!!! मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि, हमारी *"एक दिशा"* बिलकुल निश्चित हो. उस में कोई, भटकाव ना हो...!

       *"दलित - दलित साहित्य"* इस विषय विरोध संदर्भ में, मेरे *(डॉ. मिलिन्द जीवने)* कई बार *"विचार युध्द"* हुये है. और मैने उस विरोध में, लिखाण भी किया है. और अंतत: मेरे नाम के पिछे *"शाक्य "* यह उपनाम लगा दिया.‌ और *"दलित - दलित साहित्य* शब्द की वकालत करनेवालो कों, खुली चुनौती दी कि, अगर *"दलित"* यह शब्द *"सन्मान जनक"* शब्द हो तो, उन्होने अपने नाम के पिछे, वे लोग *"दलित"* उपनाम लिखे.‌ जैसे कि - शरणकुमार लिंबाळे 'दलित' / मनवर - धनविलय 'दलित' / कांबळ 'दलित' / कसबे - खोबागडे 'दलित'......! दलित इस शब्द का समर्थन करना हो तो, पुर्णत: कृतीशील बनो.‌ हमे दलित उपनाम नही चाहिये.‌ इस लिए तो हम, अपने नाम के पिछे *"शाक्य / गौतम / भीम / आंबेडकर / सिध्दार्थ....!"* इस प्रकार के उपनाम लिख रहे है.‌ मित्रो, हमे *"आंगलावे / भोगलावे,"* इस प्रकार की दुष - प्रवृत्ती / विचारों से, हमारे सच्चे मिशन को बचाना है.‌ तभी तो हमारा *"आंबेडकरी - बौध्द मिशन* यह सशक्त होगा. अन्यथा वह बिलकुल नही..! क्यौं कि, सु-विचारों से ही क्रांती का उदय होता है.‌..! *"देश‌ / समाज / व्यक्ती"* में परिवर्तन आता है...!!!


(नागपुर‌, दिनांक २८ फरवरी २०२२)

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

Saturday, 26 February 2022

 💥 *तृतीय महायुध्द के गदर में रशिया - अमेरिका - चायना की सत्तानीति ...!* 

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


     मैने एक साल पहले, विश्व मे चल रहा कोरोना का संक्रमण (?) नाद एवं चिनी सेना द्वारा भारत - चायना की *"वास्तविक नियंत्रण रेखा"* (Line of Actual Control - LAC) को पार कर, चिनी सेना द्वारा, भारत में प्रवेश करना इस संदर्भ में, *"कोरोना की छाया में तृतीय महायुध्द (?) और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर "* यह लेख लिखा था. सदर मेरे लेख में, *"जब डॉ. आंबेडकर हमारे बिच नही रहे, तो वह जिक्र क्यौं ?"* यह प्रश्न आप के अंतर्मन में, निर्माण हुआ होगा. क्यौं कि, इस का संदर्भ यह, *"द्वितिय महायुध्द"* से जुडा हुआ है. सन १९३९ - ४५ का कालखंड, यह भारत के गुलामी का कालखंड था. जर्मनी के बडे हुकुमशहा *अडॉल्फ हिटलर* की बडी ही महत्वकांक्षा हो, या जापान के *झारशाही* की अलग कुटनीती हो, या रशिया का नेता *विन्स्टन चर्चिल* की राजनिती हो, अमेरिका *(फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट)* की जापान पर दुश्मनी जंग हो,  इन सभी विषयों की जडता में, *"द्वितिय महायुध्द"* घुमता हुआ, हमे विशेष‌ नज़र आता है. जर्मनी / इटली / जापान / पोलंड / फ्रांस / ग्रेट ब्रिटन / संयुक्त राज्य अमेरिका / सोवियत संघ रशिया / चायना इन लगबग सभी भुभागों में, दुसरे महायुध्द की ज्वाला भडकी हुयी थी. *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा "द्वितिय महायुध्द" में, गुलाम भारत के तत्कालिन शासक - ब्रिटिश शासन के पक्ष मे, अपनी सक्रिय भुमिका अदा की थी.* तथा *"महार रेजीमेंट"* की सेना भी, द्वितीय महायुध्द में, अंग्रेजो के साथ में ही खडी रही थी. द्वितिय महायुध्द के बादल घने छाये थे. और लढाई का तांडव भी सक्रिय घना था. *"मोहनदास करमचंद गांधी हो या कांग्रेस, यह पुर्णत: साधु मौन थी."* डॉ. आंबेडकर साहब का द्वितिय महायुध्द में, अंग्रेजो के पक्ष में खडे होना, यह बडी दूरदर्शिता थी. क्यौ की, अंग्रेजो ने देश को छोडने पर, भारत पर *"जर्मनी के हिटलर की सत्ता"* हो, या *"जापान के झारशाही की सत्ता"* हो,  इनकी गुलामगिरी भी, भारत के लिए अच्छी नही थी. जब डॉ. आंबेडकर की यह पहल, मोहनदास गांधी या कांग्रेस ने समझने पर, उनका भी द्वितिय महायुध्द मे, अंग्रेजो के पक्ष में विशेषत: खडे होना, यह एक इतिहास रहा. परंतु मोहनदास गांधी की अ-दुरदर्शिता हो, या भारतीय कांग्रेस का बिन-अकलवाद हो, *"भारत को आजादी, चार - पाच साल देर से मिलना'",*  इसे हम क्या कहे ? द्वितिय महायुध्द के समय में ही, भारत को आजादी मिलना संभव थी. परंतु वह आजादी - *"सन १९४३ - ४५  दरम्यान"* भारत को ना मिलना, इसमे हमारा *"अंतर्गत विचार युध्द"* भी कारण रहा. और आज भी वह "अंतर्गत विचार युध्द," भारतीय की गंदी राजनीति / मानसिकता के कारण, *"ना ही थमा है, ना थमने का नाम ले रहा है, ना कभी थमेगा भी...!”* अर्थात यह एक बडा संशोधन का विषय है.

    दिनांक २४ फरवरी २०२२. *रशिया* द्वारा *"युक्रेन"* इस पडोसी देश पर, की गयी युध्द चढाई.‌ और रशिया के अध्यक्ष *ब्लादिमिर पुतिन* ने अन्य देशों को धमकी भी दे गया कि, *"इस हमले में, किसी भी अन्य देशों ने दखलंदाजी ना करे. अगर किसी ने यह दु:साहस किया तो, आज तक किसी भी देशो ने, जो परिणाम देखा नही होगा, वो गंभिर परिणाम दिखाई देंगे!"* वही युक्रेन के अध्यक्ष मि. *ब्लाजिमिर झिल्येन्स्की* की देशवासीयों को कि गयी अपिल, *"अपने मातृभुमी की रक्षा के लिए, आप आगे आये.‌ हम आप सभी को शस्त्र देंगे...!"* युक्रेन के अध्यक्ष को, अपनी जमिनी शक्ती का पता है.‌ उसने बडी बडी बातें नही की. बस, उसने देशभक्ती जगाने की कोशिश की.‌ जो बहुत मायने रखता है. यह सिख *"भारत के प्रधानमन्त्री हो या अन्य नेता वर्ग हो,"* उन्हे लागु है.‌ क्यौ कि, भारत की राजनीति धर्म - जाती - देव आधारित है.‌ देशभक्ती का नामोनिशाण नही है.‌ आजादी के ७५ साल होने पर भी, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* की ना स्थापना हुयी, ना ही वह *"संचालनालय"* बना है. बजेट में प्रावधान तो, बहुत दुर की बात है.‌ जब की, भारत का प्राचिन इतिहास, यह गुलामी का रहा है.‌ और अभी सरकारी संस्थानों का *"खाजगीकरण "* होना, अर्थात *" पुंजीवाद"* का बढावा है. युक्रेन देश में पढनेवाले छात्रों को, *"भारत लाने के लिए सरकार के पास, अपनी खुद की विमान कंपनी नही है...!!"* और खाजगी कंपनीयां *"डबल तिकट दर"* लादकर,  इस मजबुरी का फायदा ले रही है. अब यह केवल तो एक शुरूवात है.‌ अवैध *"क्रिप्टो करंसी"* की वो मान्यता भी, भविष्य में *भारत के करंसी* का बेहाल करेगी, और यह एक सत्यता होगी...! भारतीय जन मन पर, *"शोषण - महंगाई - गुलामी - बेकारी - भुखमरी थोपने की,"* वह एक बडी कडी है.

     हमारे बचपन‌ में, हम दो सशक्त देशों के नाम, अकसर हम सुना करते थे.‌ वे देश है - अमेरिका एवं सोवियत महासंघ रशिया. चॉंद पर गये *चंद्रयान* के न्युज फोटो भी, हमारे पिताजी हमे दिखाया करते थे.‌ *दिनांक २५ दिसंबर १९९१* का वह दिन, आज भी हमें याद है. *"शक्तीशाली सोवियत महासंघ रशिया बिखरसा गया. पंधरा नये देशों ने, अपना अलग अस्तित्व बना लिया."* और विश्व का केवल एक देश - *"अमेरिका यह देश दादा हो गया."* रशियाने वो बिखराव हो, या अपनी *"शक्तीशाही"* को कभी भुला ही नही.‌ द्वितिय महायुध्द में, *जापान‌* को सिकस्त देने के लिए, *अमेरिका ने चायना से दोस्ती की थी.* वही चायना ने भी, उस मौके का पुरा फायदा उठाते हुये, *"तिब्बत"* पर अपना अधिपत्य जमा लिया. *तायवान* का हाल भी वही हुआ. महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"अमेरिका का असली दुश्मन जर्मनी नही, बल्की जापान था."* और जापान‌ के *हिरोशिमा - नागासाकी* पर, अमेरिका ने अणुबाँब डालकर, जापान को अपने अधिन कर लिया. अर्थात महाकाय देश‌ - *"रशिया - अमेरिका - चायना "* इन्होने, अपनी *"भु - विस्तारवादी"* मानसिकता से, अन्य छोटे छोटे देशों को, अपने अधिन बना लिया था. गुलाम भारत का विभाजन *(भारत और पाकिस्तान),* उसी की एक कडी थी. आज *"चायना देश यह, विश्व का नंबर वन देश"* बनना चाहता है. अमेरिका को वह ललकार रहा है. *रशिया को भी चायना का पुर्णत: समर्थन है.‌* अमेरिका आज सहायसा हमे दिखाई देता है.‌ वही *"अर्थव्यवस्था"* के मामले ने, *चायना आज नंबर वन पर ही है.‌* भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में, *"चायना की घुसपैठ,"* उसी की ही तो, एक कडी है. चायना का *"OBOR"* (One Belt One Road) नामक परियोजना, जो‌ बाद में  *"BRI"* (Belt and Road Initiative) नाम सें जानी जाती है. वह विश्वशक्ती बनने की ही तो कडी है / थी. *"भारत केवल मुंह से, बडे तोफगोले फेकंता है...!"*  चायना ने, उस परियोजना से, *"विश्व के ६० देशों के राजमार्ग"* को जोडा हुआ है.‌ वही कुछ *"जलमार्ग एवं रेलमार्ग "* भी वहां निहित है. चायना ने एक दशक में, *"एक लाख कोटी डॉलर"* (अंदाजे ७० लाख कोटी रुपये) खर्च कर, *आशियाई देश / युरोपीय देश / ओसिनिया / इस्ट आफ्रिका* इन भुभागों को जोडते हुयें, *छ: कोरिडोर* बनाए हुये‌ है. *"मेरिटाइम सिल्क रोड"* का भी, उस परियोजना में समावेश है.‌ वो परियोजना को प्रोजेक्ट करने के लिए, चायना ने सन २०१७ में *बिजींग* में *"Belt and Road Forum"* नाम से, एक *"आंतरराष्ट्रिय परिषद"* का सफल आयोजन किया गया था. उस परिषद में *"२९ देशों के प्रमुखों"* ने सहभागी हुये थे. तथा विभिन्न देशों के १३० प्रतिनिधि तथा आंतरराष्ट्रिय संघटनों का सहभाग, हमे उस का महत्व बयान कर देता है. दु:ख की बात यह कि, भारत ने उस परिषद में *बहिष्कार* डाला था. जब की अमेरिका / रशिया यह देश, वहां सहभागी हुये थे. *भारत के तमाम पडोसी देश,* आज चायना के साथ है.‌ चाहे वो नेपाल हो, या श्रीलंका हो, या बांगला देश हो, बर्मा - म्यानमार हो, या पाकिस्तान तो भारत के साथ बिलकुल नही...!

       रशिया की *"उत्तर कोरिया"* से घनिष्ट मित्रता है. वैसे रशिया ने उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *किम जोंग उन"* को *"युध्द पदक"* देकर, सन्मानित किया है. उधर *युरोप* भी रशिया से पंगा लेगा या नही, यह प्रश्न है. क्यौं कि, युरोप का, नैसर्गीक वायु संबंध का व्यवहार जुडा है. *चायना* का कोई प्रश्न ही नही है. रही बात *भारत* की...! भारत के प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* की पुंगी, *ब्लादिमिर पुतिन* के सामने कितनी बजेगी...? यह प्रश्न अभी है ही नही. *अमेरिका* की *"आर्थिक दिवालखोरी"* कब करवट लेगी ? यह तो भविष्य ही बतायेगा. शायद अमेरिका का भी, *"सोवियत महासंघ"* के समान बडा बिखराव हो...? अभी भविष्य के बारे में, कुछ कहां नही जा सकता. *"अगर चायना महाकाय शक्ती बन गया तो...!"* भारत का अस्तित्व क्या होगा. यह बडा ही बिकट प्रश्न है. क्या भारत से, कोई तडजोड होना संभव होगा ? चायना का *पाकिस्तान* यह प्रिय देश है. उन्ही के इशारों पर, वो चलता है. *श्रीलंका - नेपाल* देश की भी, वही स्थिती है. चायना का *"लद्दाख "* भुभागों पर चढाई, यह केवल राजनीति है. चायना का असली लक्ष, यह *"अरूणाचल प्रदेश "* है. विशेषत: *"तवांग भुभाग"* ही है. अगर भारत पर चायना का, सभी दिशाओं से (पाकिस्तान - नेपाल - तिब्बत - श्रीलंका) एकसाथ आक्रमण हुआ तो, *"क्या भारत उन स्थिती को निपट सकता है ?"* यह प्रश्न है. *"तृतीय महायुध्द"* के छाया में....! एक संभावना सोचनी होगी. *भुटान* को भारत द्वारा दी गयी मदत, क्या कोई काम आयेगी...? *अमेरिका* का भी, भारत को क्या सहयोग होगा...? पुनश्च प्रश्न‌ है. क्या भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, युक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष *ब्लजिमिर झिल्येन्स्की* समान, *"देशभक्ती"* की अपिल, भारत वासियों को कर पायेंगे ? और भारत की जनता, *नरेंद्र मोदी* के शब्दों पर, कितना विश्वास कर पायेगी ? सभी पहलुओं पर, अब सोचने की आवश्यकता है...! क्यौं कि, आजाद भारत में *"भारत राष्ट्रवाद"* कभी जगाया नही गया. केवल धर्म - जात - देवभाव पर, राजनीति की जाती रही.

    रशिया के सेना ने, युक्रेन की राजधानी *"किव्ह"* तक आगेकुच की हुयी है. और *"होस्टोमेल"* इस हवाई तल पर, रशिया का अधिपत्य ने, *युक्रेन के भावी स्थिती* का अंदाजा हो गया है. *अमेरिका* इस आक्रमण में, बेवससा दिखाई दे रहा है.‌ वही *"नाटो"*- (नाटो सदस्य देशों की आजादी अबाधित रखना एवं संरक्षण करनेवाली संघटना) ने *"युक्रेन हमारा सदस्य देश नही,"* यह कहकर हात उपर कर गया है. *"मानवता की भावना"* भी, यहां भुल गये है. विश्व के देशों की, यह भुमिका देखकर युक्रेन के अध्यक्ष - झिल्येन्स्की कहते है, *"कल की तरह आज भी, हम हमारे देश‌ की रक्षा कर रहे है.‌ सभी बलाढ्य देश, बाहर से ही यह सब देख रहे है....!"* युक्रेन के अध्यक्ष को, अपनी अगतिकता समज में आने के कारण, उन्होने रशिया ये चर्चा की बात कही है.‌ अर्थात रशिया अब अपना बिखरा हुआ  *"सोवियत महासंघ"* बनाने की ओर बढना, यह तय है.‌ और सोवियत महासंघ से बिखरे हुये देशों को, *"युक्रेन का आक्रमण,"* बहुत कुछ संदेश‌ दे रहा है. अब सवाल भारत के, *"भविष्य राजनीति"* का है.‌ अमेरिका / नाटो ने युक्रेन को, जो कुछ सिख दी है. वह भारत के लिए भी लागु है. *अमेरिका* बेबस है. *रशिया* अपना, सोवियत महासंघ बनाने में लगा है. *चायना* अब विश्व की महाशक्ती बनने की ओर, बढते जा रहा है. *"भारत कहां है...?"* "अंतर्गत विचार युध्द" मे, वह फ़सतें चला जा रहा है. वही *उत्तर प्रदेश* के मुख्यमंत्री - (धर्मांधी) योगी आदित्यनाथ ने, *"कुशीनगर बुध्दीस्ट परियोजना "* को रद्द  करने से, भविष्य में *"सभी बुध्दीस्ट देशों की नाराजी"* लेने की, बुनियाद डाल दी है.‌ उधर *"अयोध्या राम जन्मभूमी"* के लिए पैसा / जमिन, खैरात के समान दी गयी है.‌ *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* का वह फैसला, भविष्य में *"गले की हड्डी"* हो सकता है. क्यौ कि, *"अयोध्या"* यह प्राचिन बौध्द क्षेत्र था, वह इतिहास रहा है.‌ भारत की *"धर्म - जाती - देवभाव"* यह राजनीति, भारत के गंभिर अधोगती का कारण होगा.‌ सरकारी संस्थानों के *"खाजगीकरण"* से, सरकार की शक्तियां कमजोर होने की, वो बुनियाद रही है. वही *"पुंजीवाद भारत"* पर हावी होने पर, वही *"तानाशाही रवैया"* के कारण, भविष्य में *"खुन की नदीयां"* बहाने का, हमे अंदेशा दिखाई दे रहा है.‌ अत: यह *"अंतर्गत विचार युध्द"* भारत को, गुलामी के ओर ले जाएगा, इसमे मुझे कोई संदेह नही है.


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

      (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

(दिनांक २४ - २५ फरवरी २०२२.)


💥 *कोरोना की छाया में तॄतीय महायुध्द (?) और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर*

             *डॉ.‌ मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*

* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२


      चायना सेना द्वारा *"वास्तविक नियंत्रण रेखा"* (Line of Actual Control - LAC) को पार करते हुये, भारत के हिमालयीन लद्दाख क्षेत्र अंतर्गत *"गॅल्वन व्हेली, पॅंगांग त्सो लेक, डेमचोक / गोगरा"* तक आना, तथा *"पुर्व लद्दाख पर अपना दावा करना,"* वही जो रेखा भारत - चायना सीमाओं का विलगीकरण दर्शाती है, और वह एक *"संभावित विस्फोटक ऑक्सीमोरोन "* है, तथा यह भी कहा जाता रहा कि, *"ना तो वह स्पष्ट रेखा है, ना हीं वह पुरी तरह से किसी के नियंत्रण में है...!"* १९ वी सदी में, ब्रिटिश राज और राजवंश ने तरल भुराजनैतिक परिस्थितीयों में, अपने अतिव्याप्ती साम्राज्यवादी सीमाओं पर, बातचीत करने की मांग, उपनिवेशवाद की एक जहरीली विरासत भी कही जाती है. वही यह भी एक सच्चाई है कि, सदर भारत - चायना विवाद ने, ४० साल का एक लंबा अंतराल पार कर चुका है. परंतु उस कारणवश वहां एक भी गोली नहीं चली. *परंतु नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद, पिछले दो माह में "ट्राय जंक्शन"* पर, निरंतर चायना - भारत के बिच हमले होते दिखाई दे रहे है. इसे हम क्या कहे...? वही हमारे दुसरे *"पडोसी मित्र राष्ट्र नेपाल"* द्वारा, भारत से दुरी बनाये रखना, एवं *"नेपाल की चायना से बढती मित्रता भी,"* भविष्य में भारत के लिये, बडे ही कठिणाई का इशारा दे रहा है...!

     नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा द्वारा *"भारत के अधिन लिम्पिया धुर्रा - लिपुलेक - काला पानी इन भुभागों पर, नेपाल ने अपना दावा जताते हुये, वह भुभाग भारत से वापस मिलाने की"* बातें कही है...!!! वही अभी अभी, नेपाल होते हुये, हिंदु धार्मिक स्थल - *"कैलास मानसरोवर"* जाने के लिये, लिपुलेक - दक्षिण आशियाई पडोसी देशों से, *"८० कि.मी. सडक मार्ग का उदघाटन, भारत के रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने करने से, "* नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा, भारत का जाहिर निषेध किया गया. वही काठमांडू में, उस के विरोध में प्रदर्शन भी हुये है. अत: नेपाल की यह नाराजी, भविष्य में क्या करवट लेगी...? यह भी प्रश्न है. महत्त्व का विषय यह कि, *"नेपाल यह विश्व का, एकमेव हिंदु राष्ट्र था...! परंतु नेपाल ने "हिंदु राष्ट्र" से पल्ला झाडते हुये, वह भारत के समान ही, वो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन गया."* और नेपाल ने नये संविधान का निर्माण भी किया...!!! जो बात, भारत के ब्राम्हणशाही को रास नहीं आयी. और उन्होंने नेपाल पर, दबाव लाने का असफल प्रयास भी किया...! परंतु नेपाल के सत्तानीति ने, भारतीय ब्राम्हणशाही को उसकी औकात दिखा दी. अभी अभी *"नेपाल संसद"* में, उनके देश के नकाशा में बदलाव करने, एक विधेयक सादर किया. और नेपाल के विरोध दल ने भी, उस विधेयक को अपनी स्विकॄती दी है. *"अंत: लिपुलेख, कालापानी एवं लिम्पियापुरा इन क्षेत्रोंपर, नेपाल का दावा करना, अब भारत के लिये बडा चिंता का विषय है...!"* भारत ने, नेपाल के इस कार्यवाही पर, अपनी नाराजी जताई है. परंतु उसका कोई असर नेपाल पर होगा, यह संभावना ना के बराबर है. *"वही नेपाल के करंसी पर, बुध्द को स्थापित करना भी,"* नेपाल के उज्वल भविष्य की दिशा अंकित कराती है...!

     चायना का भारत के साथ *"और एक सीमा संघर्ष,"* यह *"डोकलाम पठार"* सीमा से संबंधित दिखाई देता है. जो सिक्किम (भारत) - भुतान - चायना इन देशों का जंक्शन है. भारत डोकलाम पठार संदर्भ में, भुतान के साथ खडा रहा है. वैसे *"सन १९६२ का भारत - चायना युध्द,"* यह सीमा संदर्भ में और कई क्षेत्रों के विवादों पर, होने की बात कही जाती है. परंतु *"भारत - चायना युध्द"* यह चायना द्वारा एक तरफा लादा गया. और *"युध्द विराम"* भी चायना द्वारा एक तरफा लिया गया. इस विषय पर कुछ चर्चा निचे करेंगे. वही बीजींग (चायना) की मुखरता, जो भारत के साथ साथ पुर्व एवं दक्षिण चीन सागर में, समुद्र पडोसी देश जापान - व्हियतनाम - फिलिपिन्स - मलेशिया इन देशों को भी झकझोर दिया है...! वही चीनी सीमा रक्षकों ने सीमा क्षेत्रों में, *"सडक निर्माण उपकरण"* लाने से भी, उसे रोकने का प्रयास भारतीय सेना द्वारा किया गया.

     चायना का भारत के साथ बहुत महत्त्वपूर्ण *"युध्द संघर्ष इतिहास,"* यह अरुणाचल प्रदेश का १३,७०० उंचाई पर स्थित, *"तवांग बुद्ध विहार"* (Tawang Buddhist Monastery) और अरुणाचल प्रदेश सीमा रही है. और सन १९६२ में *"चायना - भारत युध्द"* होने का प्रमुख कारण, तवांग बुध्दीस्ट मॉनेस्ट्री ही थी...! यह अलग बात है कि, वह सत्य इतिहास मिडिया हो या सत्ता व्यवस्था ने, कभी हमारे सामने नहीं लाया गया. मैने कुछ साल पहले *"तवांग बुध्दीस्ट मॉनेस्ट्री और चायना - भारत १९६२ का युद्ध की कारण मिमांसा"* इस विषय पर एक लेख लिखकर, वह लेख मिडिया पर पोष्ट शेअर किया था. जिस पर अच्छी चर्चा भी हुयी. हमें १९६२ के युद्ध की पार्श्वभूमी समझने के लिये, सबसे पहले चायना का बहुत प्रभावशाली राजनितिज्ञ *दाई बिंगुओ* का, "चायना मिडिया" को दिया गया एक बयान समझना होगा. वे कहते हैं, *"अगर भारत सरकार ने, अरूणाचल प्रदेश स्थित राजकिय एवं संवेदनशील 'तवांग का भुभाग', चायना को हस्तांतरित कर दिया तो, चायना भी उसके अधिपत्य का 'अक्साई चीन भुभाग,' भारत को हस्तांतरित कर सकता है. और "भारत - चायना सीमा विवाद" का हल भी निकाला जा सकता है...!"*  मि. दाई बिंगुओ, यह वो शक्ती है, जो चायना के साम्यवादी सरकार में, बहुत ही महत्त्व रखता है. अंत: चायना सरकार के, बिना किसी चर्चा से या बिना पॉलिसी के, दाई बिंगुओ इस तरह के बयान कभी नही दे सकता...! वही १३ अप्रेल २०१७ को, तिब्बती धर्मगुरू *प.पा.‌ दलाई लामा जी* इनके हाथो, "तवांग मॉनेस्ट्री" में, धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. जिसका चिनी सरकार ने, तिव्र विरोध किया था. और महत्त्वपुर्ण विषय यह है कि, प.पा. दलाई लामा जी ने, भारत में राजनैतिक शरण ली है. और उन्हे भारत के किसी भी भुभाग में, आने - जाने की पुर्णत: संविधानिक आजादी है...!

     हमें सन १९६२ के चायना - भारत युध्द का पुराना इतिहास समझने के लिये, चायना का तत्कालिन सर्वेसर्वा *माओ त्से तुंग* की राजनीति समझनी होगी...! माओ, ये बडा हुशार, दुरदर्शी, आशावादी और क्रुर साम्यवादी नेता था. और एक लामा ने, माओ की भविष्यवाणी करते हुये, उसके मॄत्यू की तारिख भी बतायी थी. माओ, ये चायना पर बहुत सालों तक, राजसत्ता चलाना चाहता था. और यह भी कहा जाता है कि, माओ त्से तुंग की मॄत्यु भी, लामा द्वारा बतायें गये तारिख को हुयी थी. *जेम्स हिल्टन* के एक उपन्यास में,  *"शांग्रिला घाटी"* का उल्लेख है. *"जहां लोग २०० - ३०० साल तक, अपना आयुष्य जी सकते हैं...!"* इस लिये माओ ने, अपने गुप्तचरों को, उसकी खोज में लगाया था. अचानक बिजिंग में, एक लामा संदेहात्मक रूप में दिखाई दिया. चायना के गुप्तचरों ने, उस लामा को पकड कर, उस लामा का मेडिकल परिक्षण किया गया. *"तब वैद्यकीय परिक्षण में, उस लामा की आयु २०० साल बतायी गयी. जब कि, दिखने में वो ४० - ५० साल का दिखाई देता था...!"*  अंत: चायना के  गुप्तचरों ने, उस लामा को बहुत कठिण यातनाएं दी. और उस लामा से, उस घाटी का पत्ता देने की बात कही. परंतु उस लामा नें, चायना के गुप्तचरों को कुछ नहीं बताया. अंततः चायना के गुप्तचरों ने, उसे छोड दिया. और चायना गुप्तचरों को, उस लामा के पिछे लगा दिया. परंतु वह बौद्ध लामा, तिब्बत की सीमा पार करते हुये, भारत की सीमा अरुणाचल प्रदेश के *"तवांग मॉनेस्ट्री"* में चले गया. अंत: उस लामा को पकडने के लिये, चिनी सेना ने अरूणाचल प्रदेश की सीमा से, *"एक तरफा युध्द छेड दिया...!"* और दुसरी तुकडी ने, लद्दाख के *"अक्साई चीन क्षेत्र से युध्द छेड दिया."* अरुणाचल प्रदेश की तुकडी, वो तवांग मॉनेस्ट्री तक आ गयी. परंतु तवांग मॉनेस्ट्री के लामाओं ने, *"चायना बार्डर से आये लामा"* को, घोडे पर बिठाकर, असम की ओर भगा दिया. परंतु पहाडी क्षेत्र में, चायना से आयें उस लामा का घोडा फिसल गया. और वहां उस लामा की मॄत्यु हो गयी. चिनी सैनिकों ने, तवांग मॉनेस्ट्री में उस लामा की खोज की. परंतु वो लामा वहां न मिलने के कारण, चीनी सेना असम की ओर बढी. जहां उन्हे चायना से भारत आयें, उस लामा का शव मिला. *"चीनी सैनिकों ने, उस लामा का शव अपने साथ, चायना में ले गये. और "एक तरफा युध्द बंदी" जाहीर की...!"* युध्द बंदी जाहीर होने के बाद चिनी सेना ने, तवांग मॉनेस्ट्री में उस शांग्रिला समान घाटी के नकाशा का शोध किया. *"परंतु चिनी सैनिकों को, ना तो वो रहस्यमय घाटी का नकाशा मिला. ना ही वो रहस्यमय घाटी...!"*

    जब कभी युध्द होता हैं, तब वह हार - जीत के बाद रुक जाता है, या दो देशों के बिच हुये आपसी समझौते से...!!! *"परंतु सन १९६२ में हुआ "चायना - भारत युध्द" यह ऐसा युद्ध है, जो चीन ने सुरू किया. और चीन द्वारा ही "एक तरफा" रोका गया. दो देशों की बीच युध्द रोकने संबंध में, कभी आपसी समझौता हुआ ही नहीं...!"* शायद इस तरह का हुआ ये युध्द, एक अलग *"युध्द नीति"* की मिसाल है. वही जवाहरलाल नेहरू - माओ त्से तुंग इन दो नेताओं के बिच हुये, *"चिनी - हिंदी भाई भाई...!"* इस जोर शोर नारे की ऐसे तैसी...!!! जवाहरलाल नेहरू - माओ की वह कथित दोस्ती, और आज कल *"नरेंद्र मोदी - शि जिमपिंग"* (चीन का राष्ट्रपती) इन दो दिग्गज नेताओं के दोस्ती में, मुझे कोई फरक दिखाई नही देता...! शायद नरेंद्र मोदी, ये चीन के सर्वेसर्वा शि जिमपिंग को, *"गुजरात मॉडेल"* बतानें में, भारत की बडी उपलब्धी बता रहा है...! परंतु उस "गुजरात मॉडेल" की असली पोल, *"ये चायना द्वारा भारत - चायना सीमा पर, लगातार हो रहे आक्रमण...???"* इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* की गुजरात यात्रा में, ५००० की संख्या में विदेशी मेहमांनों की भरकम उपस्थिती और लाखों की भीड़...! और  कोरोना व्हायरस संक्रमण...? क्या भविष्य में, वो दागदार होगा...? यह प्रश्न है.

    चीन का *OBOR* (One Belt One Road) प्रोजेक्ट, जो बाद में  *BRI* (Belt and Road Initiative) नाम से जाना जा रहा है, जिसके अंतर्गत, *विश्व के ६० देशों के राजमार्ग"* को जोडा जाना है. इतना ही नही, उस प्रोजक्ट में *"कुछ जल मार्ग एवं रेल मार्ग"* को भी अंतर्भूत किया गया है. इस ड्रिम प्रोजक्ट को साकार करने के लिये चायना, स्वयं एक दशक में, *"एक लाख कोटी डॉलर"* (अंदाजे ७० लाख कोटी रुपये) खर्च करने जा रहा है. *"इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत आशियाई देश, युरोप, ओसिनिया, इस्ट आफ्रिका इन भुभागों का समावेश है."* इसमे भौगोलिक दृष्ट्यी से *"छ: कोरीडोर बनाएं गये है, एवं मॅरिटाईम सिल्क रोड"* का भी समावेश किया गया है. चीन ने इस ड्रिम प्रोजक्ट को *"प्रोजेक्ट"* करने के लिये, १४ - १६ मई २०१७ को बिजिंग में, *"Belt and Road Forum"* नाम में, एक आंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया था. इस आंतरराष्ट्रीय परिषद में *"२९ देशों के प्रमुखों"* ने आना, विभिन्न देशों के १३० प्रतिनिधीयों ने सहभागी होना, साथ में ७० आंतरराष्ट्रीय संघटनों के प्रतिनिधी भी सहभागी थे. वही उस आंतरराष्ट्रीय परिषद में, रशिया के राष्ट्राध्यक्ष *ब्लॉदीनर पुतीन* का व्यक्तीश: सहभागी होना तथा अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष द्वारा अपने प्रतीनिधी को भेजना, उस परिषद की महतत्ता बताती है. *"परंतु भारत के नरेंद्र मोदी सरकार ने, पाकिस्तान के पाकव्याप्त काश्मीर से, एक राजमार्ग जाने के कारण, उस परिषद पर बहिष्कार डाला था...!"* भारत ने उस आंतरराष्ट्रीय परिषद पर बहिष्कार डालकर, चीन से नाराजी ओढ ली थी. वही भारत के पडोसी देश - नेपाल, श्रीलंका, बांगला देश आदीयों ने, उस परिषद में, खुलकर हिस्सा लिया. *"चीन की ही नाराजी है, जिस के कारण, भारत ने "संयुक्त राष्ट्र संघ" (UNO) में, अब तक "कायम सदस्यता" नहीं पा सकी है...!"* वही भारत का *"न्युक्लीअर सप्लायर ग्रुप"* का भी प्रश्न है...!!!

      कोरोना व्हायरस संक्रमणता कारण, समस्त विश्व, ये *"आर्थिक महा मंदी"* के जालं में फसा है. वही चीन मेंं कार्यरत उद्योगपतीयों को, नरेंद्र मोदी सरकार ने, भारत में उद्योग शुरू करने का, खुला आवाहन किया है. वही *"Remove China App"* इस नाम से, भारतीय टेक्नोसॅव्ही ने *"चायना द्वारा विकसीत विभिन्न अॅप को, मोबाईल - टॅब एवं काम्पुटर से, चायनीज अॅप - सॉफ्टवेअर - अॅंटीव्हायरस आदी को, डिलिट करने की मोहिम चलाने से, और मिडिया द्वारा हवा फैलाई जाने से,"* और उस हवा में, कुछ मोबाईल धारको ने अपने मोबाइल से वह अॅप, डिलिट भी कर दिया हैं. इसका बुरा असर *"चायना के टिकटॉक, हेलो, युसी ब्राऊजर"* को होने से, भविष्य में ३० - ३५ करोड अॅप का सफाया होगा. जो चायना के अर्थव्यवस्था को, बुरा असर करेगा. प्रश्न यह है कि, *"भारत सरकार के "आत्म निर्भर भारत" के अधिन जो स्वदेशी मोहिम चलाई जा रही है, उस स्वदेशी मोहिम में, भारतीय किस उद्योगपती वर्ग को इसका जादा फायदा होगा...?"* यह प्रश्न है. वही वे उद्योगपती, कोई मागास समाज का घटक नहीं रहेगा...? *"वही चायना अॅप से, युजर्स द्वारा डाटा चोरी होने का, प्रोपोगंडा चलाया जा रहा है. अब सवाल है कि, क्या भारतीय उद्योजक कंपनी इतनी इमामदार है, जो युजर्स का डाटा हॅक कभी नहीं करेगी...?"* वैसे देखा जाएं तो, चायना से भी जादा, भारत के उद्यमी ही सबसे खतरनाक - विषैले रहेंगे...! क्यौं कि, वे उद्यमी *"ब्राम्हणशाही"* के रखवाले है. उस वर्ग के प्रतिनिधि है. *"आंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवहार में, इस तरह के व्यवहार नीति को, दुषित अर्थनीति कहते हैं...!"* इस तरह की गंदी अर्थनीति, यह ब्राम्हणशाही उपज है. जो चायना को और नाराज करेगी. और उसका दुष्परिणाम भी, भविष्य में भारत को भोगने पडेंगे...!!!

       कोविद - १९ अर्थात कोरोना व्हायरस संक्रमण ने, समस्त विश्व की *"अर्थव्यवस्था को व्हायरस-मय"* करने से, "जागतिक महामंदी" के संकट में, *"किसिल या रेटींग एजंसी"* ने अर्थव्यवस्था का ग्राफ, *"५% से निचे आने"* की बात कही है. भारत का इतिहास बयान करता है कि, *"भारत में अर्थव्यवस्था का ग्राफ पिछले ६९ साल में, चार बार अर्थात सन १९५८, १९६६, १९८० तथा २०२० इन वर्षो में निचे आया."* परंतु कोरोना ने पिछले तिनों रिकार्ड को तोड डाला. *"वही बेरोजगारी का पहले का ग्राफ ७.५० - ८.०० से बढकर, आज वो २३ - २४ तक आ गया है...!"* श्रमिकों का अपने अपने मुल राज्यों में, पलायन हो रहा है. बेकारी, भुकमरी ने आदमी को, एक नयी अनुभुती दी है. कोरोना व्हायरस संक्रमण ने, समस्त विश्व को अस्तव्यस्त कर डाला. ये क्या कम था कि, *"पाकिस्तानी टिड्डीयों"*(टोलधाडी) ने, राजस्थान से लेकरं महाराष्ट्र (नागपुर) तक, *"हरे भरे खेंतों पर हमला बोल डाला..! खेती की हरीभरी फसल, बर्बाद हो गयी."* अब यहां भी सवाल खडे होते है कि, *"पाकिस्तान के टिड्डींयों का, अचानक भारत के खेतों पर हमले के पिछे, कोई षडयंत्र तो नहीं...!"*

     नोबेल अवार्ड विजेता नामांकित अर्थशास्त्री *डॉ. अमर्त सेन* प्राचिन बौध्द काल संदर्भ में कहते हैं कि, *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक काल में, दुनिया की अर्थव्यवस्था में, भारत की भागीदारी ३५% थी. और भारत जागतिक महाशक्ती राष्ट्र था...!"* वही जागतिक नामांकित लेखक *सर अलेक्झांडर कनिंगहॅम* अपने "Historical Geography of Ancient India" इस किताब में लिखते है कि, *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय अखंड भारत का बजेट ३६ करोड था. बुद्ध काल में, अखंड भारत में बुद्ध के नैतिक मुल्यों के आधार पर, जातीविहिन शील संपन्न गुणों से, उच्च आदर्श विचारों का सामाजिक विकास दर ९२% था. वही विकास आर्थिक दर, भारत का १ रूपया तो, संसार के २ रूपया बराबर था. सामाजिक - आर्थिक विषमता ना के बराबर थी...!"* चक्रवर्ती सम्राट अशोक का वंशज (जो आखरी वंशज रहा) - बॄहद्रथ की हत्या, बामणी सेनापती पुष्यमित्र ने कर *"विकास भारत" को, पतन की ओर ले गया...! अखंड विशालकाय "विकास भारत" को, "खंड - खंड कर, गुलाम भारत" करनेवाले, बामनी शासक, यह हमारे देश के गद्दार थे, और गद्दार है...!"* और यह इतिहास है. 

      भारत में जागतिक किर्ती के अर्थशास्त्री *डॉ. अमर्त्य सेन* है. परंतु इन गद्दार बामणी व्यवस्था ने, अमर्त्य सेन जी को, *"ना ही वो इज्जत दी, ना ही वो सन्मान नहीं दिया गया, जो उन्हे मिलना चाहिये था."* आज भारत की आर्थिक हालात, बहुत ही खस्ता होने पर भी, अमर्त्य सेन जी की कोई राय, नही ली जाती है. वही नामांकित अर्थविद *डॉ. रघुपती राजन* समान मान्यवर, रिझर्व बँक ऑफ इंडिया का *"गव्हर्नर"* बनने के बाद, देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिये, उन्हे पुनश्च मुदतवाढ नहीं दी गयी. रिझर्व बँक का *"रिझर्व फंड"* निकालनेवाली, भाजपा सरकार ने अनैतिक सत्तानीति की हदे ही पार कर डाली...! भारत पहले अंग्रेजों गुलाम था. अब *"पुंजीवादी व्यवस्था"* का गुलाम है. वैसे बामणी व्यवस्था ने,  चक्रवर्ती सम्राट अशोक का काल का अस्त कर, विभिन्न शासकों के अधिन गुलाम बनना स्विकार किया. *"जहाँ सत्ता गद्दारों के हाथों हो तो, उन गद्दारों से भारत की इज्जत बचानें को कहना, या ने उन्होंने मां (भारत माता) पर, बलात्कार करना ही है...!"* अर्थात आज देश की सभी व्यवस्था, उन मां भोगी के हाथ में है.

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखिया *डॉ. मोहन भागवत* का एक बयान, मिडिया के माध्यम से पढने में आया. सदर बयान में कितनी सच्चाई है, यह विवाद को छोड दिया जाए तो, डॉ. भागवत कहते हैं कि, *"कोरोना आते ही, सारे मंदिरो को ताले लग गये. जिन भगवानों की हम रात दिन पुजा करते है, चढावा चढाते है, उन्होने कोई चमत्कार नही दिखाया. हमारे प्रधानमंत्री ने, खुप तालीयां और थालीयां बजाई, दिये भी जलवायें है. पर वो कोई काम ना आये. केवल डॉक्टर और नर्स ही हमारी रक्षा कर रहे है. इस कोरोना महामारी ने मुझे एक सबक सिखाया कि, अब हमें धार्मिक स्थलों की जरूरत नही है. स्कुल और अस्पतालों की जरूरत है...!"* आगे डॉ भागवत कहते हैं, *"मेरे देश के सभी पुजारीयों को विनंती है कि, अब मंदिरो को हमेशा के लिये बंद कर दे. मंदिरो में जो भी सोना चांदी है, वो जनता का है. उसे जरूरतमंदो में बांटे. ता कि, कोरोना के लढाईं में, पैसे कोई रूकावट ना बने.‌ यही काम हमारे देश को सर्वोच्च बनायेगा..!"* सवाल है, डॉ भागवत ने यह शब्द बयान करने के बदले, उस संदर्भ में कोई लिखित आदेश दे दिया होता. और उस आदेश की प्रत, मिडिया को दी होती. उन्हे रोकनेवाला कौन है...? सभी तो तुम (बामनशाही) हो...! *"सत्ता व्यवस्था तुम हो. न्याय व्यवस्था तुम हो. नोकरशाही व्यवस्था तुम हो. मिडिया व्यवस्था तुम हो. उद्योग - व्यापार व्यवस्था तुम हो. मंदिर व्यवस्था तुम हो...! इतना ही क्या, देश गद्दार भाव भी तुम हो...!!!"*

      भारत का *"सालाना आर्थिक बजेट रू. १५ लाख करोड"* बताया जाता है. जब कि, भारत के *"मंदिरो का सालाना आर्थिक बजेट रू. ३०० लाख करोड"* या उसके उपर भी बताया जाता है. वही मंदिरों के अगिणत सोना - चांदी - जवाहिरत के बारे में क्या कहे...??? *" मंदिरों की वह संपत्ती, ना राष्ट्र के काम आ रही है. ना ही जन - मन के...! बस, वह मंदिरो में डंब पडी है...!"* यह काला धन ही है. सवाल है, *"भारत सरकार समस्त मंदिर - मस्जिद - गुरुद्वारा - बुध्द विहार आदी का, राष्ट्रियकरण क्यौं नहीं करती...?"* वही भारत का प्राचिन इतिहास, यह गुलामी का इतिहास रहा है...! और भारत को गुलाम बनानेवाली थी, गद्दार बामनशाही...! और अब भारत है *"पुंजीवाद का गुलाम."* और वह गुलाम करानेवाली है, *"देश गद्दार बामनशाही...!"* अगर उन में थोडी भी - *"देशभक्ती की शरम बची हो तो, उच्चत्तर उद्योंगों का 'राष्ट्रियीकरण'' कर डालो..."* वैसे देखे जाएं तो, इस गद्दारी में, भाजपा - कांग्रेस - कॅम्युनिष्ट ये सभी दल, बराबर के हिस्सेदार (दोषी) है. क्यौ कि, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जब *"भारतीय संविधान"* को अमली जामा पहना रहे थे, तब *"संविधान सभा"* में २६ नवंबर १९४९ में, वे कहते हैं, *"On 26th January 1950, India will be an Independent country. (Cheers) What would be happen to her independence ? Will she maintain her independence or will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. Will she lost it a second time ? It is this thought which makes me most anxious for the future...!"* परंतु इन गद्दारों को, उस पावन शब्द भाव का क्या...? भारत तो *"केवल 'देश' (Country) के सिमित रह गया. वो 'राष्ट्र' (Nation) नहीं बन पाया...!"* वही यहां हमें, *"भारतीय"* बहुत कम लोग दिखाई देते है, *"धर्मांध - धर्मवादी - जातवादी - देववादी"* बहुत जादा...! समस्त विश्व *"कोरोना व्हायरस संक्रमण"* से जुझ रहा है. और यहां *"विलगीकरण - लॉक डाऊन - सर्वेक्षण* की जरूरत है, कोरोना पर अंकुश लाने के लिये...! परंतु भारत में, *"मंदिरों के दरवाजे खुल रहे है,"* लॉक डाऊन और शिथिल किया जा रहा है, कोरोना महामारी के लिये...!!! अगर *"भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करना हो तो, मंदिरो के संपत्ती का उपयोग, राष्ट्रहित में करो...!"* लोगों के बैंक खातें में, आवश्यक निर्धारित राशी जमा करो. अनाज वितरण की व्यवस्था करो. यह जिम्मेदारी सरकार की है.

      अभी अभी *"अमेरिका में, अश्वेत (कॄष्ण वर्णीय) समुदाय के, एक नागरिक जार्ज फ्लाईड इनकी हत्या प्रकरण"* में, समस्त अमेरिका प्रशासन हिल गया है. कोरोना व्हायरस संक्रमण को भी, वहां के नागरिकों ने धत्ता के धत्ता बता दिया. *"इस प्रकरण से भी भयंकर प्रकरण जैसे की : अत्याचार - बलात्कार - शोषण आदी बातें, भारत में मागास समुह पर होना, यह आम बात है...!"* यही नहीं, बौद्ध - मुस्लिम समुदायों को भी, भारत में न्याय नहीं मिलता. *"अयोध्या बौद्ध विहार प्रकरण"* में, बाबरी मस्जीद - राम जन्मभूमी मंदिर प्रकरण में, उसे उलझा कर रख दिया. और बगैर किसी ऐतिहासिक डाकुमेंट के आधार पर, राम जन्मभूमी के हक में, *"सर्वोच्च न्यायालय"* द्वारा निर्णय दिया गया. अब *"अयोध्या (युध्द न लढे जिता शहर) अर्थात प्राचिन साकेत में, प्राचिन अशोक कालीन बौद्ध अवशेष मिले....!"* अब सवाल है कि, *"सर्वोच्च न्यायालय की सात बेंच की पीठ, सदर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्थगिती देती है या नहीं...?"* और सदर जगह पर, खुदाई कराने का आदेश देकरं, भारत की प्राचिन धरोहर के सुरक्षा करने, प्रतिबध्द होगी या नहीं...! *"वैसे तो हमारे न्याय व्यवस्था में, ना-लायक न्यायाधीशों की खोगिर भरती हुयी है."* इस लिए "सर्वोच्च न्यायालय" को, *"सर्वोच्च नहीं सवर्ण न्यायालय"* कहां जाएं तो, वह अतिशयोक्ती नहीं होगी...! और जिन जिन न्यायाधीशों ने, गलत - अनैतिक निर्णय दिये है, उन्हे चौराह पर फाशी देना चाहिये. परंतु हमारा *"भारतीय संविधान,"* यह करने की इजाजत नहीं देता. अत: हमें संविधान की गरिमा बचाना है. वही कोरोना संदर्भ में, केवल मुस्लिम समुदाय को दोषी के कटघरे में, खडा किया गया. भारत में पहिला कोरोना व्हायरस संक्रमण फैलानेवाला, कोई मुस्लिम व्यक्ती नहीं है...! भारत में की हिंदु मंदिरों में, उस पिरियड में बडे बडे कार्यक्रम किये गये है. *"नरेंद्र मोदी सरकार ने, डोनाल्ड ट्रम्प के साथ ५००० विदेशीयों के सन्मान में, गुजरात में, लाखों की भीड इकठ्ठा किया, उसका क्यां....?"* विदेशों सें दिसंबर २०१९ से लेकरं मार्च २०२० तक, विमान प्रवास से बगैर जांच किये, भारत में किसने प्रवेश करने दिया...? *"और भारत में लॉक डाऊन निर्णय जाहिर करने में, तिनं माह की देरी नरेंद्र मोदी ने की, उसे हम किस संदर्भ में ले...!!!"*

      अमेरिका में अश्वेत समुदाय के व्यक्ती को, अमेरिकी पुलिस नें यातना देते समय, वह अश्वेत व्यक्ती कह रहा था, *"I can't Breathe."* और अमेरिका में सभी अश्वेत, *"I can't Breathe"* यह नारा लेकरं, कोविड १९ के माहोल में, वे रास्तों पर उतर आये. वही परिस्थिती लेकर, आज के कोविड - १९ संक्रमण माहोल में, *"भारत में बौध्द  - मुस्लिम - मागासवर्ग समुदायों ने, सत्तानीति द्वारा उन पर हो रहे अन्याय - अत्याचार के विरोध में, वे रास्तों पर उतर आयें तो, वही भारतीय पोलिस वर्ग समुह भी उस आंदोलन में, सक्रिय रुप से गिर पडा तो....!!!"* भारत में ४ % *"बामनशाही सत्तावाद"* का क्या होगा...? *अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने, सुरू में ही उस "अश्वेत आंदोलन" को दडपने की कोशीश की.* और अमेरिका पुलिस ने, राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प के इशारे पर, चलने की कोशीश की. परंतु फ्लोरिडा शहर में, १५% अश्वेत का भरकम आंदोलन देखकर, अमेरीका पुलिस ने, घुटनों के बल बैठकर, अश्वेत समुदाय के मोर्चा को अभिवादन किया. वही ह्युस्टन में, पोलिस प्रमुख *आर्ट अॅक्वडो* इन्होने अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प को, दो टुक शब्दों में क्या कि, *"कोई भी रचनात्मक उपाय ना हो तो, अपना मुंह बंद रखना चाहिए...!"* वही *"अमेरिकी सेना"* द्वारा सदर प्रकरण पर, डोनाल्ड ट्रम्प को साथ देने से इंकार देते हुये कहा कि, *"हम संविधान बचाने के बने है. ट्रम्प के लिये नहीं...!"* यही नहीं, डोनाल्ड ट्रम्प ने, अपने आप को *"सुरक्षीत बंकर"* में, छुपने की बात मिडिया से चर्चा में आ रही है.  न्युझीलंड की प्रधानमंत्री *जसिंडा अर्डर्न* ने, अपने कुछ सहकारीयों के साथ खाना खानें, वेलिंग्टन के एक रेंस्तरा गयी. वहां कोरोना महामारी के कारण, नये कडे नियम लागु किये गये. *"वो लाईन में लगकर, खाने के लिये अपना इंतजार करते रही."* बडे मुस्कील से उनका नंबर लगा. महत्त्वपुर्ण विषय यह कि, *"न्युझीलंड आज कोरोना मुक्त राष्ट्र बन गया है...!"* और उन्होंने अपना आनंदोत्सव मनाते हुये, अपने दैनंदिन व्यवहार सुरू करने की बात कही है. परंतु नरेंद्र मोदी सरकार ने तो, नयी दिल्ली उच्च न्यायालय के *न्यायाधीश एस. मुरलीधर* ने, *"भारतीय संविधान के तहत, भाजपा मंत्री / सांसद के विरोध में, निर्णय दिया तो, रातोरात उस संविधानिक दायित्व निभानेवाले न्यायाधीश की बदली, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में की है."* हमारे भारतीय सत्ता राजनीति की यह अनैतिकता, कब सुधारने का करवट लेगी...? यह प्रश्न है. अमेरीका की वो भयान परिस्थिती, भारतीय बामनशाही के लिये, एक इशारा है.  *"अंत: भारत के ४% सवर्णों द्वारा, भारत में अनैतिकवादी व्यवस्था चलाने का, जो कु-चक्र चल रहा है, उस में उन्हे बदलाव लाना होगा..‌?"* वही *"मोहनदास गांधी हत्या प्रकरण"* में, भारत के बामनी नायक लोक, घर से भागते नज़र आये थे. वही उनकी महिला वर्ग, अपनी इज्जत की भींख मांगा कराने का, इतिहास हमें बताया जाता है...!!!

      कोरोना व्हायरस संक्रमण के महामारी में, *"अमेरिका ने चायना पर, वो बिमारी छुपाने का आरोप लगाया है. तथा कोरोना के मुल विषाणु स्वरुप की, जानकारी मांगी है...!"* इतना ही नहीं *"वुहान के वैज्ञानिक प्रयोगशाला"* के जांच करने की मांग करते हुये, चायना को धमका ने प्रयास किया है.‌ आस्ट्रेलिया, ब्रिटन भी अमेरिका के साथ है. वही चायना इन  सभी बातों को, नकार रहा है.  इधर चायना ने भारतीय सीमा में प्रवेश कर, उन क्षेत्रों पर अपना अधिपत्य जमाया है. भारत ने अभी अभी, पुर्व लद्दाख के क्षेत्र में, *६० के आसपास बोफोर्स तोफ* तैनात करने की, बांते मिडिया से सुननें में मिलती है. *अंनतनाग* के पास, राष्ट्रीय महामार्ग - ४४ पर, *"आपातकालीन हवाई धावपट्टी"* भी बनाने की बात चर्चा में है. अर्थात *"चायना - भारत"* के बीच, यह सभी बांते, आनेवाले लढाई का क्रियाशील भाव ही है. दुसरी ओर समस्त भारत में, *"जागतीक आर्थिक महामंदी का दौर चल रहा, और भारत की अर्थ व्यवस्था का खस्ता हाल होने पर भी, लॉक डाऊन को शिथिल किया गया है, मंदिर खोले गये है....! और कोरोना महामारी को निमंत्रण भी...!!!* आज भारत में, कोरोना की संख्या, दिनो दिन बढती जा रही है. कोरोना को नियंत्रण में लाना, इतना सहज भाव नहीं रहा. वही *"चायना को धमकाने वाला अमेरिका",* आज *"भारत - चायना"* इन दो देशों के बिच के धमासान पर, मध्यस्थी कराने की, बात कर रहा है. यह बात अलग है कि, भारत ने, अमेरिका के *"मध्यस्थी मांग"* को ठुकरा दिया है...! इतना ही नहीं तो, *"नरेंद्र मोदी ने - अमेरिका, फ्रांस, सिंगापूर, आस्ट्रेलिया इन देशों के साथ, शस्त्रास्त्र की मदत करना तथा लष्करी छावणी तल के उपयोग करने के संदर्भ में, करार किये जाने की चर्चा है...!"* अर्थात यह सभी बाते, *"तिसरे महायुध्द"* की ओर, इशारा दिखाई देता है...!!!

      नरेंद्र मोदी द्वारा - *"अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, सिंगापुर"* इन देश सें, भावी युध्दनीति पर करार होता हो तो, *रशिया"* ये शक्तीशाली देश, किस ओर करवट लेगा...? यह प्रश्न है.  वही *"नेपाल, श्रीलंका, बांगला देश, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया"* समान पडोसी देश भी, क्या भारत के साथ खडे होंगे...! यह भी अहं सवाल है. नेपाल से, भारत कें संबंध अच्छे नहीं है. वही *"चायना के BRI प्रकल्प ने,"* पाकिस्तान, नेपाल, बांगला देश, श्रीलंका समान पडोसी देश, चायना के करिबी बने है. *"समस्त विश्व में, पहले अमेरिका और रशिया ये दो महाशक्तीया थी."* अमेरिका ने, कुटिल राजनीति के तहत, संयुक्त रशिया में बिखराव कर डाला. और आज विश्व में, *"केवल अमेरिका ही, एकमेव महाशक्ती बनी है...!"* क्या रशिया, वो अपना महा दर्द भुलं पायेगी...? और *"तिसरे महायुध्द में रशिया यें, भारत - अमेरिका के साथ खडा रहेगा...?"* क्यौं कि, भारत भी रशिया के साथ वफादार नहीं रहा. *"आज अमेरिका भी, बिखराव के कगार पर खडा है...!"* थोडासा हतोडा मारना बाकी है. वैसे चायना ने, अमेरिका पर शक्तीशाली हतोडा मारा है. चायना अच्छी तरह से जानता था कि, अमेरिका को युद्ध में हराना संभव नहीं...! *"क्या कोरोना व्हायरस संक्रमण, अमेरिका और अन्य देशों के आर्थिक स्थिती को, खोकला करने की, एक गहरी कडी तो नहीं....?"* क्यौं कि, जब कभी महायुध्द होता हैं, तब उन देशों में महामंदी छा जाती है. अब तो कोविड - १९ ने, समस्त विश्व में महामंदी का दौर है...! बेकारी, भुकमरी, अंदाधुंदी का माहोल मचा है. और  *"अमेरिका, भारत, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया इन देशों की औकात नहीं, जो अब तिसरे महायुध्द में शिरकत करे...!"* अगर अमेरिका में बिखराव होता हो तो, *"चायना के, विश्व महाशक्ती बनने के दरवाजे, अपने आप खुल जाएंगे...!"* अत: तिसरे महायुध्द की खुमखुमी, ये चायना की एक राजनैतिक पहल है...! और अमेरिका - भारत की राजनैतिक हार...!!!

       उधर अमेरिका श्वेत - अश्वेत इस *"अंतर्गत युध्द"* से झुंज रहा है. साथ में समस्त विश्व में, *"कोरोना महामारी"* का प्रकोप  है. भारत में भी *"जातीगत अंतर्गत युध्द,"* चरम सीमा पर है...! बामनशाही के विरोध में, भारतीय माहोल गरम है. *"शायद बामनशाही पर, गरम हातोडा चलाने का, वह अच्छा मौसम हो...!"* और भविष्य में, *"चायना - रशिया - उत्तर कोरिया"* इन देशों में, अंतर्गत करार हुआ तो, *"तिसरे महायुध्द में, नये महाशक्ती का उदय, जादा दुर नहीं...!"*  यही नहीं, द्वितीय महायुध्द में जर्मनी पर, विजय मिलाने के कारण, रशियाने उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *"किम जोंग उन"* को *"युद्ध पदक"* देकर, कुछ दिन पहले सन्मानित किया है. इसे हम किस संदर्भ में लें. आज कल ये मिडिया, उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा के संदर्भ में, कुछ बयान भी करते नजर आती है. किम जोंग की मॗत्यु हुयी है, या वे गंभिर बिमार चल रहे है, आदी आदी. क्यौं कि, वे अदॄश्य से दिखाई देते है. परंतु किम जोंग उन की छोटी बहन, *किम यों जोंग,* आज कल उत्तर कोरिया की कमान संभाल रही है.

       *"चायना को महाशक्ती"* बनाने के दरवाजे, वैसे देखा जाएं तो, *"तत्कालीन भारत सरकार के, बिन-अकल राजनीति का, षंढ परिपाक है...!"* सन १९१४ में, *"भारत और तिब्बत"* के बिच *"शिमला करार,"* यह सीमा निर्धारण - *"मॅकमोहन रेखा"* ये, ब्रिटिश राज में हुआ था. सन १९४९ में, *"नेपाल ने 'संयुक्त राष्ट्र' की सदस्यता मिलने के लिये,"* जो आवेदन किया था, तब "सार्वभौम दर्जा" सिध्द करने के लिये, भारत - तिब्बत के बिच, उस करार का संदर्भ दिया गया. अर्थात *"तिब्बत"* यह स्वतंत्र राष्ट्र था, यह पुख्ता प्रमाण है. एवं तिब्बत का २१०० साल से भी पुराना, एक इतिहास है. सातवे से दसवे शतक तक, तिब्बत आशिया का सशक्त राष्ट्र था. और ७६३ में, तिब्बती सेना नें, चायना पर आक्रमण करने से, चायना का राजा देश तोडकर भागने का इतिहास है. सन ८२१ में, *"चीन - तिब्बत"* के बिच *"शांती करार"* होकर, दो देशों की सीमाएं निर्धारीत की गयी. सन १९५० में, चायना ने *"तिब्बत पर आक्रमण करने से, प.पा. दलाई लामा ने भारत में शरण ली...!"* उस चिनी आक्रमण के संदर्भ में, प.पा. दलाई लामा ने युनो तथा भारत सरकार सें, मदत मांगी. परंतु उस ओर, भारतीय विदेश नीति ने नजर अंदाज किया. तिब्बत के संदर्भ में, तत्कालीन प्रधानमंत्री *जवाहरलाल नेहरू* ने ७ दिसंबर १९५०में,  लोकसभा में कहा था कि, *"तिब्बत के संदर्भ में निर्णायक आवाज, यह केवल तिब्बतीयों की हो. अन्य देशों की नहीं....!"* भारत सरकार के इस गलत विदेश नीति पर, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने नाराजी जताते हुयें कहां कि, *"सन १९४९ में, भारत सरकार ने चीन के बदले तिब्बत के पक्ष में, अपनी स्वीकॄती दी होती तो, भारत - चीन सरहद्द सीमा का विवाद, कभी नहीं होता...!"*

       *"द्वितिय महायुध्द"* होने के पहले, सन १९१४ के भारत - तिब्बत *"शिमला करार"* को, अमेरिका की स्विकॄती थी. परंतु सन १९४१ के अमेरिका राजनीति ने, *"सिकियांग एवं तिब्बत ये दो राष्ट्र, चीन के अधिपत्य में देने की, बुनियाद रखी गयी...!"* द्वितिय महायुध्द में, अमेरिका ब्रिटन के बाजु में खडे रहते हुये, *"भारत पर की ब्रिटिश पकड, ढिली करने के लिये,"* अमेरिका ने चीनी सेना को तिब्बत में, छावणी बनाने को उकसाना...! वही एक रात में - समुचे आशिया पर, अमेरिकी साम्राज्य अधिपत्य स्थापित कराने की, वह गहरी चाल थी. अमेरिका के इस कुटील षडयंत्र से, ब्रिटन को अमेरिका से मिला धोका, क्या गद्दारी नहीं थी...? अमेरिका के इस गद्दारी का कारण, *"जर्मनी के हिटलर को, मदत करना था...!!! क्यौ कि, अमेरिका का असली दुश्मन जर्मनी नहीं, जापान था."* और अमेरिका द्वारा जापान पर अणुबाँब डालना, उसी का परिपाक रहा. यही नहीं, हिंदी महासागर पर के, ब्रिटिश नाविक दल की हुकुमत खत्म कर, अमेरिका का वर्चस्व प्रस्थापित करना भी था. यह सभी कुटनीति, अमेरिका द्वारा चायना को, मदत करने से ही संभव थी. अमेरिका की यह राजनीति, *विन्स्टन चर्चिल* समझ गया. इस लिये, विन्स्टन चर्चिल का घोषवाक्य रहा कि, *"इंग्लिश भाषी कों की राजनीति, एक ही है...!"* और भारत को, औकाती आयना दिखा दिया. और वो चीन के समर्थन में खडा हुआ. अमेरिका के इस कुटिल षडयंत्र से, तिब्बत पर चायना का अधिपत्य आ गया. उसी समय, भारत - पाकिस्तान यह विभाजन भी..!!! *"अर्थात भारत को आजादी, १९४५ में मिलना तय थी...!"* परंतु मोहनदास गांधी की हटवादीता और कांग्रेस की अदुरदर्शिता तथा भारतीय सामाजिक विषमता ने, भारत को आजादी दो साल देरी से मिली. *"अर्थात १५ अगस्त १९४७ को...!"* हमें यह समझना होगा कि, *"द्वितिय महायुध्द में आयी महामंदी ने, ब्रिटन की आर्थिक व्यवस्था खस्ता हुयी. और भारत के आजादी के, दरवाजे खुले...!"* परंतु कांग्रेस ने, मोहनदास गांधी को "आजादी का नायक" बनाया. और क्रांतीकारक रह गये हाशियें पर...!!!

      जवाहरलाल नेहरू कहे या कांग्रेस दल के अदुरदर्शी विदेश निती ने, तिब्बत पर चीनी अधिनता, यह आज भारत के लिये, बडा जी का झंझाल बना है. चायना द्वारा तिब्बत में, सशक्त सैनिक बल रखा गया है. विमान तल निर्मिती के साथ साथ, वहां रडार केंद्र भी बनायें गये है. *"केमीकल वार"* में प्रयोग आने वाली सामुग्री, वहां स्थापित है. जहां समुचे भारत पर, निशाणा लक्ष किया जा सकता है.‌ *"चायना, जिस अमेरिका के सहारे, इतना शक्तीशाली हुआ है, आज उसी अमेरिका को, वो ललकार रहा है...!"* अत: भारत को, वह युद्ध नीति - विदेश नीति और सत्ता नीति भी समझनी होगी...! *"बामनशाही कु-नीति नही....!"* कोरोना के कारण, समस्त विश्व में, आर्थिक महा मंदी छायी है. *"परंतु चायना की अर्थव्यवस्था, उतनी गंभिर नहीं है, जितनी की अन्य देशों की...!"* और भारत के बारे में, क्या कहे...? *"अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प"*, ने, भारत के भावी कोरोना स्थिती पर, बिलकुल सही कहा है. डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि, *"अमेरिका के ३३ करोड लोकसंख्या के अनुपात में, कोरोना निदान परिक्षण की संख्या २ करोड है. और निदान रूग्ण संख्या १९ लाख. वही भारत की लोक संख्या १३८ करोड की अनुपात में, भारत में ४० लाख कोरोना निदान परिक्षण किये है. वही कोरोना निदान रुग्ण संख्या २.५० लाख के ऊपर चली गयी है...! और भारत कोरोना संक्रमण में, अमेरिका को भी पिछे छोड देगा....!!!"* और यह सच्चाई है. क्यौं कि, भारत में लॉक डाऊन में दी गयी ढील, मंदिरो का खुलना, उद्दोग व्यवसाय का खुलना, विमान - रेल सेवा का आवागमन आदी अनेक कारण है, जो की कोरोना संक्रमण का, रोजाना ग्राफ बढा रहे है. अब सवाल है कि, इस दो महिने के कठोर लॉक डाऊन के, प्रयास का बंट्याधार तो नहीं होगा...? अत: सोचो, भारत की आर्थिक स्थिती क्या होगी..".? *क्या भारत, तिसरे महायुध्द के लिये सक्षम रहेगा...???"* जब की भारत, *"कोरोना युध्द"* में ही आर्थिक खस्ता हो चुका है...!!!

        *"कोरोना की छाया में तॄतीय महायुध्द"* यह विचार ही, भारत के भयावह परिस्थिती का, हमे अंदाज दे आता है. भारत के बौध्द समुहों के अधिकार संदर्भ में, दिनांक ३ - ४ जुन २००६ में, मेरे (डॉ. मिलिन्द जीवने) ही अध्यक्षता में, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* नागपुर में संपन्न हुयी. जिसमें तिब्बत, म्यानमार, ब्रिटन, भारत इन देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. तिब्बत सरकार के धार्मिक मंत्री *लोबसंग निमा* ये, सदर समारोप समारोह के प्रमुख अतिथी थे. उस परिषद , कुछ राजनैतिक ठराव पारित किये गये. परंतु वे ठराव, बौध्दों के नागरी अधिकारों से संबंधित है. वे पारित ठराव इस प्रकार हैं....

* *Reso. No. 3* : India and China should be made the focul points of Global Buddhist Movement considering the root of Buddhism in these countries and various demographic, economic, educational and the other factors. For this China should be ideological engaged into dialogue by Buddhist intellectuals at international level.

* *Reso. No 5* : World Buddhist Organizations :

(a) Central World Bhikkhu Sangha should be formed at world level on the line of Church of Rome (But not the same) for the mission of Dhamma.

(C) World Buddhist Countries Development Council should be set up under the apex World Buddhist Organizations to  look after the responses and finances for the *"Action Plan Programmes"* formed by the World Buddhist Organisation.

* *Reso. No7* : Strong proactive presence of all Buddhist Countries should be set up in UN and various Organisations of UN for contributing to the international Law to make it effective for Social Transformation of the global world order based on Humanism.

* *Reso. No. 9* : Other Resolutions...

* 9(1) : The management  of Buddhagaya Mahabodhi Buddha Vihar should be handed over to Buddhists instead of Hindus.

        सदर *"जागतिक बौद्ध परिषद - २००६"* में, और बहुत सारे ठराव पारित किये गये थे. और वे गुगल सर्च पर भी उपलब्ध है. यही नहीं, दिनांक ६  मार्च २००८ में, *"सर्व धर्म सभा"* परिषद का, नागपुर में आयोजन किया गया था. सरसंघचालक *डॉ. मोहन भागवत,* उस परिषद में प्रमुख अतिथी थे. मैने (डॉ. मिलिन्द जीवने) उस परिषद में, अपने अध्यक्षीय भाषण में, डॉ. मोहन भागवत को, आडों हाथ लेते हुये कहा था कि, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, "बौध्दमय भारत" यह संकल्पना क्यौं की थी. इस पर आज तक किसी ने, सही संशोधन नहीं किया. डॉ. आंबेडकर, भारत में "धर्मसंघर्ष" मिटाना चाहते थे. जातिविहिन समाज व्यवस्था को रूजाना, उनकी मुख्य चाह थी...!"* और उस परिषद मे मैने, डॉ. मोहन भागवत को *"विश्व हिंदु परिषद"* का नाम बदलकर, *"विश्र्व बौद्ध परिषद"* नामकरण कर, उन्हे *"बौध्द धम्म की दीक्षा लेने की अपिल की थी...!"* इसके पिछे, मैने उन्हे कई कारण भी बताये थे. उस पर हम, फिर कभी सविस्तर चर्चा करेंगे. अब हम सही विषय पर आयेंगे...!!!

       जब कभी हम *"युध्द"* पर चर्चा करते है, *"तब हमें अंतर्गत युद्ध (देश अंतर्गत संघर्ष) और बाह्य युध्द (सरहद्द पर लढे जा रही लढाई)"* इस पर सोचना बहुत जरूरी है. अगर हमारी अंतर्गत शक्ती ही कमजोर हो, और सामाजिक अन्याय की भावना बढती हो, या एक समुह ये दुसरे समुह पर अत्याचार करता हो तो, वो देश शक्तीशाली नहीं बनेगा...! भारत कें संदर्भ में, यह बात जादा लागु है. चायना ने BRI के माध्यम से, भारत के पडोसी देशों को, अपने साथ जोडा है. जो चायना कॅम्युनिझम की छाया में पल रहा था, उसने *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन करना, बौध्द राष्ट्रों से मित्रता कर, महाशक्ती की ओर उडान भरी है. मेरे उपरोक्त पॅरा मे, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का संदर्भ और पारित किये गये ठरावों का उल्लेख, उभी संदर्भ में है. डॉ मोहन भागवत को, की गयी मेरी अपिल यह *"भारत को बौध्द राष्ट्र घोषित करने संदर्भ में थी...!"* ता कि, धर्म संघर्ष, जाती संघर्ष, देववाद संघर्ष रोका जा सके. *आचार्य रजनीश* को जब अमेरिका से निकाला गया, और वे भारत आये, तब उनके शब्द थे, *"है बुद्ध के धरती पर, कदम रखा हुं....!"* जब कि आचार्य रजनीश, ये जैन धर्मिय थे.  उन्होंने अपना नामकरण भी, बुध्द संस्कॄती पर *"ओशो"* रखा था. अत: हमें अपने देश को सशक्त करना हो तो, और पडोसी बौद्ध राष्ट्र से मैत्री वॄध्दींगत करनी हो तो, बुध्द की ओर जाना, बहुत जरुरी है. साथ ही *"मंदिर संपत्ती कानुन (Temple Wealth Act)"* को बनाना अति आवश्यक है. ता कि, मंदिरो की संपत्ती का उपयोग, राष्ट्रहित में किया जा सके. इसके साथ ही *"पुंजीवादी व्यवस्था"* को खत्म करने के लिये, *"उच्च स्तरीय उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना जरूरी है....!"* अन्यथा भारत की अर्थ व्यवस्था, सशक्त करना असंभवनीय विषय होगा. और अगर, देश के पास अर्थ ही नहीं हो तो, *"युध्द किस आधार पर लढा जाऐगा...!"*

      भारत के जन- विघटीकरण का, अगर कोई मुख्य कारण हो तो, वह है - *"भारतीयत्व भावना का अभाव...!"*  यहां हर आदमी की पहचान, जाती - धर्म के आधार पर होती है. देश भावना पर नहीं...! *"अत: भारत, आज तक "देश" - (Country) ही बना रहा. वो "राष्ट्र" - (Nation) नहीं बन सका...!!!"* यही कारण है कि, हमें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के *"भारत राष्ट्रवाद "* विचारों की याद आती है. डॉ. आंबेडकर कहते हैं, *भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति को, मैं तवज्जो नहीं देता. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान, ये विचार भी मुझे मान्य नहीं. सभी लोगों ने, प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयत्व के आगे कुछ नहीं. यही मेरी धारणा है...!"* (मुंबई, १ अप्रेल १९३८) आज के संदर्भ में, हमें समस्त लोगों को जोडने के लिये, भारतीयत्व भावना को जगाने के लिये, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* को स्थापित करना, बहुत जरुरी हुआ है. ता कि, *"एकसंघ भारत"* का निर्माण किया जा सके...! और  *"महायुध्द"* समान परिस्थिती, जब देश पर आती है, तब लढाई पर जाने के लिये, हर आदमी घर से बाहर निकले...!!!

      जब *"द्वितिय महायुध्द"* चल रहा था, तब डॉ बाबासाहेब आंबेडकर नें, महार बटालियन को, ब्रिटिश के पक्ष में, लढने की अपिल की थी. ता कि, जर्मनी के हिटलर की एकाधिकार शाही खत्म की जा सके...! डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के इस अपिल पर, मोहनदास गांधी एवं कांग्रेस ने, डॉ. आंबेडकर इनके भुमिका की आलोचना की थी. *"बाद में, वही कांग्रेस ने ब्रिटिश सेना का समर्थन कर, डॉ. आंबेडकर इनके विचारों पर चल पडी...!"* आज हमारी एक मिडिया, चायना ने पुर्व लद्दाख क्षेत्रों पर, आक्रमण करने को झुठला रही है. वही एक मिडिया, चायना ढाई मैल पिछे जाने की, बात को दिखा रहा है. सबसे अहं विषय यह है कि, *"चायना को लद्दाख भुभागों से, कोई लगाव नहीं है. चायना का असली लक्ष, अरुणाचल प्रदेश का तवांग भुभाग है...!"* और चायना के प्रभावशाली राजनितिज्ञ *दाई बिंगुओ* का वह बयान, हमें बहुत कुछ बता देता है. चायना का लद्दाख पर आक्रमण, यह चायना की एक युध्दनीति है....! भविष्य में होने वाला *"तॄतीय महायुध्द,"* यह *"केमीकल वार"* होगा. समस्त विश्र्व पहले ही, *"कोरोना वार"* के कारण, आर्थिक महामंदी में फंसा है. और *"तॄतीय महायुध्द"* यह कल्पना भी, अब नहीं की सकती....!!! *"परंतु एक महाशक्ती (अमेरिका) का अंत करने, और नये महाशक्ती (चायना) को स्थापित करने के लिये, यह युद्ध निर्णायक होगा."* भारत तो केवल, अमेरिका का मोहरा बनेगा...! अत: भारत को, अपनी सत्तानीति - युध्दनीति में बदलाव लाना होगा. *डॉ. मनमोहन सिंग* समान सुलझे हुये, मान्यवरों के नेतृत्व में, सर्व दलीय सरकार का गठण बहुत जरूरी है. यह युध्द का मुकाबला करना, *नरेंद्र मोदी* हो या भाजपा के बस की बात नहीं है. वही अमेरिका के संदर्भ में कहां जाएं तो, अमेरिका का मुंहफट राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* को हटाकर, *बराक ओबामा* इस सुलझे हुये, माजी राष्ट्राध्यक्ष को अमेरिका के गद्दी पर बिठाना, आवश्यक हो गया है. अब सवाल है कि, भारत की पहल क्या होगी....??? नहीं तो, भारत की सत्ता नीति - युद्ध नीति पर, *संत कबीर* के शब्दों में कहां जाऐगा...

   *"गांडु भडवे रन चढे, मर्दों के बेहाल |*

    *पतिव्रता भुखी मरी, पेढे खाये छिनाल |*


* * * * * * * * * * * * * * * * * * *

* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर

      (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

(कोरोना संक्रमण काल में, पिछले साल लिखा है)

Tuesday, 22 February 2022

 🎞️ *ABP News चैनल की रूबिका लियाकत का हुंकार में मुजोर संचालन !*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


    दिनांक २१ फरवरी २०२२. शाम ५.३० बजे *ए.बी.पी.‌ न्युज चैनल* पर, देश का ताजा समाचार देखने लगा. वहां "हुंकार" इस कार्यक्रम में,  *मिस रुबिका लियाकत* संचालन करते हुये, मुझे नज़र आयी. और *विक्रम सिंह* (पुर्व डी.आय.जी. उत्तर प्रदेश), *नुपुर शर्मा* (प्रवक्ता भाजपा), *अभय दुबे* (प्रवक्ता, कांग्रेस), *डॉ. एम.एच. खान* (प्रवक्ता, बसपा), *विजय शंकर तिवारी* (विश्व हिंदु परिषद), *डॉ. सी. पी.‌ रॉय* (राजनीतिक विश्लेशक) यह लोक चर्चा में सहभागी थे.*"देश का आतंकवाद"* विषय पर, चर्चा हो रह थी. दस मिनिट तक, वह चर्चा सुनते रहा. वक्ताओं की चर्चा तथा *रुबिका लियाकत* का वैचारिकता अभाव / मुहफ़ट भाव / मुजोर संचालन देखकर, मैने फिर *"NDTV चैनल"* से न्युज देखने लगा. और वहां सनसनी न्युज दिखाई दी. उज्जैन के एक हिंदु मंदिर मे़, संघवाद के सेनापती *डॉ. मोहन भागवत* पुजा के लिए आने के कारण, सुबह ५.०० बजे से लाईन में खडे रहे लोगों को, दर्शन करने से रोका गया‌ था. और वहां खडे लोगों में, फिर बडा आक्रोश दिखाई दिया. *"क्या पुलिसी सिक्युरिटी नेताओं के कारण, साधारण लोगों को पुजा से वंचित करे...?"* इस तरह के प्रश्न भी, लोक पुछते नज़र आये.

    ए.बी.की. की मुहफ़ट अनाउंसर *रुबिका लियाकत,* भारत के संदर्भ में *"हिंदुस्तान"* कहते हुये, चर्चा में नज़र आयी. *"भारत का संविधान"* के अनुच्छेद १ में, स्पष्ट तौर पर लिखा है कि, *"India, that is Bharat, shall be a Union of States."*  और ए.बी.पी. न्युज की *रबिका लियाकत* ने देश का नाम, अ-संवैधानिक रूप में लिया है...! *और जीसे अपना देश का, संविधानिक नाम मालुम ना हो, वो अनुउंसर देश के विकास पर, चर्चा का आयोजन कर रही है.* हमे शर्म आती है, ऐसे लोगों पर, जो देश की तोहिम करते है. उन्हे *"गद्दार"* कहना होगा. *"राष्ट्रविरोधी"* कहना होगा.‌ रही बात *"हिंदु + स्तान"* इस शब्द के प्रयोग का ...! *"हिंदु"* ये दो अक्षरी शब्द नही है. तिन अक्षरी शब्द है. अर्थात हिनदु > हिन + दु > हिन = निच, दु = प्रजा / लोक > हिनदु = हिंदु = *"निच लोक."* हिंदुस्तान = *"निच लोकों का देश."* अर्थात इस शब्द का प्रयोग कर, पुन्हा भारत देश की तोहिम. क्या रुबिका को, इस शब्द प्रयोग के लिए, माफ करना चाहिये...? सदर चर्चा हो या अन्य कई अन्य चर्चाओं मे, रुबिका का स्वभाव चरित्र, मुझे मुहफट ही दिखाई दिया. पता नही, ए.बी.पी.‌चैनल द्वारा उसके संचालन में, क्या मेरिट नज़र आया?

     अब हम *"आतंकवाद एवं भारत की सत्तावादी राजनीति, "* इस विषय पर चर्चा करेंगे.‌ आतंकवाद यह भारत में, दो तरह का हमे दिखाई देता है. एक आतंकवाद है - *"अंतर्गत"* (देश के अंदर का) आतंकवाद, और दुसरा है - *"बाह्यगत"* (विदेशी शक्ती का) आतंकवाद. अंतर्गत आतंकवाद भी, दो प्रकार के है. एक *"सत्तावादी आतंकवाद"* और दुसरा *"रुढीवादी आतंकवाद."* मुझे चैनल की वह चर्चा, किस आतंकवाद की है ? यह समज से परे थी. वही सत्तावादी दल हो या, विरोधी राजनीतिक दल हो, वे चुनावी आखाडें में, किस आतंकवाद पर बोल रहे है ? यह भी समज से परे, दिखाई देता है. क्यौ कि, भारत में *"सत्ता पाने की लढाई"* हो या, *"सत्ता संभालने की लढाई"* हो, वे सभी के सभी राजकिय दल के लोक, *"आतंकवादी सरदार"* ही तो है. कौनसी देशभक्ती, देश विकास, समाज विकास की, उन नंगों से आशा करे... ? मोहनदास गांधी ने *"हाऊस को वेश्यालय"* ही कहा था ? क्यौ ? फिर हाऊस में बैठनेवाले लोग, वे कौन लोग होंगे ? यह क्या बताना होगा. क्यौ कि, *"नैतिकता का बलात्कार,"* उन नेताओं से हमेशा होता रहा है. अर्थात *"आतंकवाद पर खुली चर्चा,"* ये केवल एक ढकोसला है. *"विश्व हिंदु परिषद"* का प्रवक्ता भी, वहा हमें नज़र आया.‌ *"धार्मिक आतंकवाद"* यह, रुढीवादी आतंकवाद का दुसरा रूप ही है. और ऐसे बिन- अकल नेता लोगों से चर्चा कर, ये *"मिडिया चैनल"* हमे क्या बताना चाहती है...? जताना चाहती है ? यह प्रश्न आप सभी के लिए...!!!


* * * * * * * * * * * * * * * * * *

Monday, 21 February 2022

 🤝 *सीआरपीसी उत्तर महाराष्ट्र की विभागीय मिटिंग जलगाव यहां रविवार दिनांक २० फरवरी को संपन्न !*

     सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (उत्तर महाराष्ट्र) की विभागीय बैठक *"रविवार दिनांक २० फरवरी २०२२ को, सायं ७.०० बजे जलगाव बचत भवन"* यहां आयोजित की गयी. सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* ये जलगाव शिक्षक संघ द्वारा आयोजित पुरस्कार समारंभ कार्यक्रम में *"अतिथी"* के रूप में जलगाव यहां उपस्थित थे. तद नंतर सदर सी.आर.पी.सी. की ओर से विभागीय सभा को ऊन्होने मार्गदर्शन किया.‌ सदर सभा की अध्यक्षता उत्तर महाराष्ट्र सी. आर. पी. सी. के विभागीय अध्यक्ष *प्रा. भरत सिरसाठ* इन्होने की. सभा में बहुसंख्य पदाधिकारी वर्ग उपस्थित थे.


* स्नेहांकित :-

*डॉ. किरण मेश्राम* (मो.न. 93711 40469)

राष्ट्रीय महासचिव, सी.आर.पी.सी.

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सीआरपीसी वुमन विंगग

राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, सीआरपीसी वुमन क्लब

राष्ट्रीय सल्लागार, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

राष्ट्रीय सल्लागार, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

Thursday, 17 February 2022

 🇪🇬 *भारत - देश बनाम राष्ट्र एवं द्वि-राष्ट्र सिध्दांत और डॉ. आंबेडकर...!*

  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


      भारत को हम *"देश‌"* (Country) कहे या, *"राष्ट्र"* (Nation) कहे...? यह सब से बडा प्रश्न है. वही जब हम, स्कुल में प्रतिज्ञा लेते थे / है, तब हम *"भारत मेरा देश है. सभी भारतीय ...(!)"* यह हम से बोला जाता था. वही *"भारत का संविधान"* मे, अनुच्छेद १ में अंग्रेजी में स्पष्ट लिखा है कि, *"Name and territory of the Union - India, that is Bharat, shall be a Union of States."* अर्थात भारत यह *"राज्यों का संघ है."* हमें यह भी समझना बहुत जरुरी हो गया कि, देश‌ और राष्ट्र यह संकल्पना, बिलकुल भिन्न है.‌ वही भारत के प्रधानमन्त्री / मंत्रीगण / विरोधी दल नेता / राजकिय दल के नेता लोग, जब भारत को *"हिंदुस्तान"* कहते हो तो, तब वे *"भारत के संविधान "* की तोहिम कहते है.‌ तो भारत संविधान की, खुले आम तोहिम करनेवालों को, क्या *"देशभक्त"* (राष्ट्र - यह शब्द नही है) कहा जा सकता है...?  यह आप सभी को, मेरा खुला सवाल है. अर्थात वो *"गद्दार"* है. वो *"राष्ट्रद्रोही"* (यहा "राष्ट्र" शब्द आया है) है.‌ कभी *"देशद्रोही"* शब्द‌ का भी जिक्र आता‌ है. यहां भी हमे, *"देश एवं राष्ट्र"* शब्द की अलगता ही दिखाई देती है.‌ या वे दोनो ही शब्द, समानार्थक वाची है ? क्या हमारे देश‌ की *मा.‌ सर्वोच्च न्यायालय*, इस शब्द द्वंद्वता को न्याय दे पाएगी...?

     अभी हुये संसद अधिवेशन‌ में, मैने राहुल गांधी / नरेंद्र मोदी और अन्य बहोत नेताओं के भाषण सुने है. राहुल गांधी ने, भारत में जो *"दो राष्ट्र"* होने की, बातें कही थी या, *"युनियन एवं स्टेट"* संदर्भ में, बातें कही थी.‌ वो विचार राहुल गांधी की *"खुद की थेअरी"* नही है /थी. यह हमे समझना बहुत जरूरी है. हां, ठिक है कि, वे संदर्भ *"बहुत उचित"* थे. परंतु राहुल गांधी द्वारा भाषण में, बार बार *"हिंदुस्तान"* कहना, यह उसकी नादानी भी दिखाई दी.‌ राहुल की तुलना में, नरेंद्र मोदी का भाषण (उत्तर) देखा जाएं तो, वो *"बहुत ही थिल्लर"* था. हमे लग रहा था कि, हम एक बिन-अकल वक्ता का भाषण सुन रहे है.

      *R.S.S.* (Royal Secret Service), जो बाद में, *"राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ"* के नाम पर बदल कर गया, इसकी बुनियाद २७ सितंबर १९२५ को, लाल झेंडे के प्रभाव में हुयी. परंतु डॉ. आंबेडकर इनका सामाजिक आंदोलन प्रवेश, *"बहिष्कृत हितकारिणी सभा"* को २० जुलै १९२४ को स्थापित कर, १९२७ में मिलिटरी बेस्ज *"समता सैनिक दल"* की बुनियाद को, हमें समझना बहुत जरूरी है. संघवादी (द्वितीय) गोळवलकर गुरुजी की १९३९ में लिखी गयी, *We or Our Nationhood Defined* (हम कौन अर्थात हमारी राष्ट्रियता मिमांसा) यह पुस्तक *"राष्ट्रवाद (?)"* की बुनियाद नही है. ना ही वे *"द्वि-राष्ट्र सिध्दांत"* के उदगाता है.‌ उनका राष्ट्रवाद - *"भारत राष्ट्रवाद"* कभी रहा ही नही.‌ कट्टर धर्मांधवाद - *"हिंदु राष्ट्रवाद "* के माध्यम से, भारत में *"देववाद"* की जड़े मजबुत करना, यही उनका मुख्य उद्देश था.‌ अर्थात भारत की सत्ता पर, ब्राम्हणी सत्ता की एकाधिकारशाही...! *"ना ही SC / ST / OBC कभी हिंदु थे."* अंग्रेज सत्ता काल में, अधिकार प्राप्ती के लिए, बनाया गया वो शेड्युल्ड था. वही *"हिंदु धर्म"* संदर्भ में डॉ. आंबेडकर कहते है, *"भारत का धर्म, पहले से ही हिंदु धर्म था, यह विषय मुझे मान्य नही है. हिंदु धर्म यह सबसे बाद, विचारों के उत्क्रांती के पश्चात निर्माण हुआ. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद, तिन‌ बार धार्मिक परिवर्तन दिखाई देते है.‌ वैदिक धर्म का रूपांतर, ब्राम्हणी धर्म में हुआ.‌ और फिर ब्राम्हणी धर्म का रूपांतर हिंदु धर्म में हुआ."* (कोलंबो, ६ जुन १९५०) अर्थात ब्राम्हणी धर्म ही हिंदु धर्म है. *"भारतीय संविधान"* के अनुच्छेद ३४० / ३४१ / ३४२ में केवल अनु. जाती / अनु. जनजाती / मागासवर्गीय जाती के *"स्थिती का अवलोकन करने आयोग गठण"* का उल्लेख है. ब्राम्हण समुह तो सामान्य वर्ग में निहित है.

     *"भारतीयता"* संदर्भ में डॉ. आंबेडकर खुलकर कहते है कि - *"भाषा, प्रांतभेद, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजुर नही. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान यह विचार भी मुझे मंजुर नही. सभी लोंगो ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, भारतीयता के आगे कुछ नही, यही मेरा विचार है."* (मुंबई, १ अप्रेल १९३८) और संघवादी गोलवलकर गुरुजी १९३९ में, अलग विचारधारा की बातें करते है.‌ इसे भी हमे समझना जरूरी है. फिर डॉ. आंबेडकर *"राष्ट्रवाद"* पर कहते है, *"प्राचिन भुतकाल में पुजा करना ही, यह राष्ट्रवाद रहा होगा तो, वह कामगार वर्ग को स्विकार्ह नही. राष्ट्रवाद यह कालानुरुप होना चाहिये. अगर वो जीवन के पुनर्निर्मिती के बिच आता हो तो, वह भी कामगार वर्ग को नही चाहिये. कामगार वर्ग की ईच्छा आंतर-राष्ट्रियवाद की है.‌ यहां राष्ट्रवाद सब कुछ नही है. अंतिम ध्येय प्राप्ती का, वो केवल एक साधन है."* (ऑल इंडिया रेडियो, १ जनवरी १९४३) डॉ. आंबेडकर इनके राष्ट्रवाद संदर्भ में, इस भाषण को हम किस रुप में देखना होगा ? यह बडा प्रश्न है.

     २६ जनवरी १९५० को, भारत यह प्रजासत्ताक देश बना. फिर भी *"मुलभुत अधिकारों का उल्लंघन"* होने पर, डॉ. आंबेडकर कहते है, *"मुलभुत अधिकारों का अगर उल्लंघन होता हो तो, वहां बिलकुल ही माफी नही हो. और सभी संसद सदस्यों ने, अपनी व्यक्तिगत निष्ठा बाजु में रखकर, उस का विरोध करना चाहिये. परंतु दु:ख से कहना पडता है कि, इस समीक्षात्मक दृष्टी का अभाव है."* (केंद्रिय विधीमंडल, १९ मार्च १९५५) उस काल की राजकिय स्थिती, और आज के स्थिती में क्या बदलाव हुआ है ? वह स्थिती और मजबुत हुयी है‌. सरकार कैसी हो ? इस संदर्भ में भी डॉ. आंबेडकर कहते है, *"जो सरकार सही और शिघ्र निर्णय लेकर, उसका अमल नां करता हो तो, उसे सरकार कहने का कोई भी नैतिक अधिकार नही है.‌ यही मेरी धारणा है."* नरेंद्र मोदी सरकार की *"कृषीबील"* पर, तानाशाही दिखाई दी.‌ *"नोटाबंदी"* करते समय, उचित व्यवस्था का पुर्ण अभाव था. *"आभासी चलन"* को, मोदी सरकार की एक प्रकार से मान्यता दी. सरकारीकरण का *"खाजगीकरण "* होना, क्या यह सभी *"मेरिट सरकार के उत्तम लक्षण"* कहना होगा...? यह प्रश्न है. भारत की वह व्यवस्था को देखकर, डॉ. आंबेडकर उद्विग्न‌ हो जाते है.‌ और कहते है कि, *"सही कहा जाएं तो, अपने देश में दो अलग अलग राष्ट्र दिखाई देते है.‌ एक राष्ट्र है - सत्ताधीश वर्ग का, तो दुसरा राष्ट्र है - जो लोगों पर, शासन किया जा रहा है उनका. सभी के सभी मागासवर्गीय, यह दुसरे वर्ग के, राष्ट्र के घटक है."* (राज्यसभा, ६ सितंबर १९५४) अर्थात भारत, आज द्वि-राष्ट्र स्थिती से गुजर रहा है.


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Tuesday, 15 February 2022

 🌎 *आखिर ये जमीं....!*

*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

मो.न. ९३७०९८४१३८


कभी कुदरत से, या विचारों से

यें जमीं से तुम, युं दुर होते हो

हे रूप तो बसं, एक नज़ारा है

चेतना भाव ही, केवल सत्य है ...


बुध्द कह गये है, आत्म वाद पर

हे नाम रुप ही, एक साथ रहे तो

तुम जीवित हो, बस वो साथ ही

नही तो अंत हमारा, हो जाता है ...


हम जीयें तो, बसं सुख के लिए

यें मरना तो हमें, एक पल है ही

फिर क्यौं रखे, ये स्वार्थ भाव भी

आखिर यें जमीं, सात गज ही है ...

Sunday, 13 February 2022

भारत का प्रजातंत्र खतरे मे...! डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'

 https://youtu.be/8ZaxcLw--y8

Javeed Ansari Mohammed Mansur posted State President of West Bengal CRPC.

 🤝 *जावेद अंसारी मोहम्मद मंसुर की सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल -  "पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष" पद पर नियुक्ती...!!!*


    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (CRPC) के *"पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष"* पद पर *जावेद अंसारी मोहम्मद मंसुर* इनकी नियुक्ती, मेन विंग की राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा *प्रा.‌ वंदना जीवने* इनसे चर्चा कर, सेल की "राष्ट्रीय महासचिव" *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने घोषित की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / वुमन विंग / वुमन क्लब / ट्रायबल विंग के *"राष्ट्रीय पेट्रान"* तथा सेल के आंतरराष्ट्रिय / राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेजी गयी है.

     उपरोक्त नियुक्ती पर *"सी. आर. पी. सी. के राष्ट्रीय पदाधिकारी गण"* - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय महासचिव), प्रा. डॉ. फिरदोस श्राफ (फिल्म स्टार - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), एन. पी. जाधव (माजी उपजिल्हाधिकारी - राष्ट्रीय सचिव), सुर्यभान शेंडे (राष्ट्रीय सचिव), विजय बौद्ध (संपादक - राष्ट्रिय सचिव), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय सचिव), अमित कुमार पासवान (राष्ट्रीय सहसचिव), अॅड. डॉ. मोहन गवई (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार), अॅड. हर्षवर्धन मेश्राम (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार),‌ *"सी.आर.पी.सी. एम्प्लाई (कर्मचारी) विंग"* के राष्ट्रिय पदाधिकारी - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा),  सत्यजीत जानराव (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (राष्ट्रीय महासचिव), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. नितिन तागडे (राष्ट्रीय सचिव), शंकरराव ढेंगरे (राष्ट्रीय सल्लागार), निवॄत्ती रोकडे (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), अॅड. दयानंद माने (राष्ट्रीय कानुनी सलाहकार), प्रा. डॉ. भारत सिरसाठ (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र), निवास कोडाप (महाराष्ट्र प्रदेश संघटक), सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला अध्यक्ष ) तथा  *"सी.आर.पी.सी. राष्ट्रीय महिला विंग"* की प्रा. वंदना जीवने (संस्थापक अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्षा), प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय संघटक), रेणू किशोर (झारखंड - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. डॉ. प्रिती नाईक (राष्ट्रीय महासचिव - मध्य प्रदेश), इंजी. माधवी जांभुलकर (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), मीना उके (राष्ट्रीय सचिव), नंदा रामटेके (छत्तीसगड - राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. ममता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. सविता कांबळे (राष्ट्रीय सहसचिव), डॉ. साधना गेडाम (राष्ट्रीय सहसचिव) इन्होने अभिनंदन किया है. *"सी.आर.पी.सी. वुमन क्लब"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय, राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), कल्याणी इंदोरकर (राष्ट्रीय सचिव), अमिता फुलकर (राष्ट्रीय सहसचिव) *"सी.आर.पी.सी. ट्रायबल (आदिवासी) विंग"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी - आशा तुमडाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष), सतिश सलामे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), विलास सिडाम (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. मोहन गवई (कायदेशीर सल्लागार),  डा. श्रीधर गेडाम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), अॅड. स्वाती मसराम (राष्ट्रीय महासचिव), अर्चना पंधरे (राष्ट्रीय सचिव), मधुकर सडमेक (राष्ट्रीय सचिव), राजेश वट्टी (राष्ट्रीय सचिव), रवी मेडा- मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सचिव), प्रमिला रामेश्वर परते - मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सहसचिव), अंजना मडावी (राष्ट्रीय सचिव), स्मिता माटे (राष्ट्रीय सचिव), विशाल चिमोटे (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र) इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. (मेन विंग) के प्रदेश पदाधिकारी"* - डॉ. मनिषा घोष (अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), महेंद्र मानके (प्रोजेक्ट इन चार्ज), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द बडोले (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), नमो चकमा (अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश), सुब्रमण्या महेश (अध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), दिपक कुमार (अध्यक्ष, बिहार राज्य), पुष्पेंद्र मीना (अध्यक्ष, राजस्थान राज्य), रेणु किशोर (अध्यक्ष, झारखंड प्रदेश), लाल सिंग आनंद (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश), अमित कुमार पासवान (कार्याध्यक्ष, बिहार), सत्यजीत जानराव (महासचिव, महाराष्ट्र राज्य),  रोहिताश मीना (राजस्थान), मीना उके (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द धनवीज (प्रदेश उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), गिरीश व्यंकटेश (प्रदेश उपाध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), सुनिल चव्हान (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. गौतमादित्य (अध्यक्ष, मराठवाडा विभाग), प्रा. राज अटकोरे (महासचिव, मराठवाडा विभाग), अॅड. रविंदरसिंग धोत्रा (गुजरात), संजय टिकार (मध्य प्रदेश), आंचल श्रीवास्तव (गुजरात), मंटुरादेवी मीना (राजस्थान), चंद्रिका बहन सोलंकी (गुजरात), मुसाफिर (बिहार), प्रा. नितिन तागडे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अधिर बागडे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ विभाग), ममता वरठे (अध्यक्ष, विदर्भ विभाग), अविनाश गायकवाड (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), मिलिंद गाडेकर (महासचिव, विदर्भ विभाग), चरणदास नगराले (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), जावेद अंसारी मोहम्मद मंसुर (प्रदेश अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल), खेमराज मेश्राम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कॅप्टन सरदार कर्नलसिंग दिगवा (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), सचिन जि. गोंडाने (विदर्भ विभाग संघटक), अशोक निमसरकार (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), डॉ. श्रीधर गेडाम (प्रदेश‌ अध्यक्ष, तेलंगाना), प्रा. डॉ. किशोर वानखेडे (प्रदेश कार्याध्यक्ष, तेलंगाना), मनोहर गेडाम (प्रदेश संघटक, तेलंगाना), प्रविण मेश्राम (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), गजानन वैद्द (प्रदेश महासचिव, तेलंगाना), गणेश बोडखे (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), निवॄत्ती रोकडे (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. दयानंद माने (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र),  अॅड. हौसेराव धुमाल (समन्वयक, पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. शशिकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. गोरख बनसोडे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. सुनिल गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), महादेव कांबळे - उपसंपादक (पश्चिम महाराष्ट्र), अंगद गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), सोमनाथ शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. अर्जुन कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. बोधी प्रकाश (पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. डी. एच. माने (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. सागर कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), सुर्यकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), नागनाथ सोनवणे (उपाध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), सुनिल कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. विवेक गजशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (अध्यक्ष, कोंकण विभाग), प्रा. अंकुश सोहनी (कार्याध्यक्ष, कोकण विभाग), श्रीकांत जंवजाळ (महासचिव, कोकण विभाग), डॉ. लक्ष्मण सुरवसे (कोंकण विभाग), डॉ. शिवसजन कान्हेकर (कोंकण विभाग), प्रा. कानिफ भोसले (कोंकण विभाग), प्रा. विलास खरात (कोंकण विभाग), डॉ. शिवराज गोपाळे (कोंकण विभाग), डॉ. निलेश वानखेडे (कोंकण विभाग), विलास गायकवाड (कोंकण विभाग), पत्रकार शरद मोरे (कोंकण विभाग), हर्षवर्धन (छपरा, बिहार), रंजना परमार (महासचिव, गुजरात प्रदेश) बाबुलाल परमार (गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष), राहुल कुमार राजपुत (प्रदेश उपाध्यक्ष, गुजरात), भारत मनुभाई सेनवा (प्रदेश सचिव, गुजरात) वेचतभाई परमार (प्रदेश सचिव, गुजरात) आदी पदाधिकारी वर्ग ने भी अभिनंदन किया है.

     इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. के विभिन्न शाखा पदाधिकारी"* - एल. के. धवन (अध्यक्ष, मुंबई शहर), मुकेश शेंडे (अध्यक्ष, चंद्रपूर शहर), गौतमादित्य (अध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), प्रा. दशरथ रोडे (अध्यक्ष, बीड जिला), भारत थोरात (कार्याध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), डॉ. नामदेव खोब्रागडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), मिलिंद धनवीज (अध्यक्ष, यवतमाल जिला), प्रा. योगेंद्र नगराले (अध्यक्ष, गोंदिया जिला), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला कार्याध्यक्ष), इंजी. स्वप्नील सातवेकर (अध्यक्ष, कोल्हापूर जिला), संजय बघेले (अध्यक्ष, गोंदिया शहर), डॉ. देवानंद  उबाले (अध्यक्ष, जलगाव जिला), बापुसाहेब सोनवणे (अध्यक्ष, नासिक जिला), निखिल निकम (कार्याध्यक्ष, नासिक जिला), अंगद गायकवाड (अध्यक्ष, सोलापुर जिला), राजेश परमार (गुजरात), कमलकुमार चव्हाण (गुजरात), हरिदास जीवने (अध्यक्ष, पुसद जिला), प्रा. मिलिंद आठवले (अध्यक्ष, औरंगाबाद शहर), एड. रमेश विवेकी (अध्यक्ष, लातुर जिला), शांताराम इंगळे (अध्यक्ष, बुलढाणा जिल्हा), गौतम जाधव (कार्याध्यक्ष, मुंबई शहर), प्रवीण दाभाडे (महासचिव, मुंबई शहर), उमेश‌ कठाणे (जिला कार्याध्यक्ष, भंडारा), सुरेश वाघमारे (अध्यक्ष, उत्तर मुंबई), किशोर शेजुल (अध्यक्ष, जालना), निवास कोडाप (विदर्भ सचिव), मनिष खर्चे (अध्यक्ष, अकोला), संदिप गायकवाड (महासचिव, जालना), सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, विनोद भाई वनकर (गुजरात), धर्मेंद्र गणवीर, सुधिर जावले, हॄदय गोडबोले (अध्यक्ष, भंडारा जिला), महेंद्र मछिडा (गुजरात), प्रियदर्शी सुभुती (गुजरात), राजेश गोरले (समन्वयक, विदर्भ), अमित जाधव (जिल्हा अध्यक्ष, ठाणे), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला संघटक) *प्रदेश‌ ट्रायबल (आदिवासी) विंग* के निवास कोडाप (अध्यक्ष, ट्रायबल (आदिवासी), विशाल चिमोटे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), किसनलाल मडावी (प्रदेश कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र) अनिता मसराम (प्रदेश महासचिव, महाराष्ट्र), मनिषा मसराम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), दिलिप सुरपाम (प्रदेश संघटक, महाराष्ट्र), अनिलकुमार धुर्वे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र) *सीआरपीसी ट्रायबल विंग के अन्य पदाधिकारी* - पवन मोरे (नांदेड जिला अध्यक्ष, महाराष्ट्र), कोंडु मडावी (आदिलाबाद जिला अध्यक्ष, तेलंगाना), युवराज आडे (कार्याध्यक्ष, आदिलाबाद, तेलंगाना), तिरु. बलराम ऊइके (प्रदेश अध्यक्ष, मध्य प्रदेश), तिरू माय गितेश्वरि कुंजाम (प्रदेश उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), सुनिता मडावी (विदर्भ उपाध्यक्षा), तिरु. अड. हेमराज कंगाले (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरू. सुर्यभान कवडेति (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरु. शिवराज सिंह उरवेति (प्रदेश संघटक, मध्य प्रदेश), विरेंद्र इडपाचे (प्रदेश कोषाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), प्रल्हाद पत्रुजी ऊइके (जिला अध्यक्ष, चंद्रपुर), दयाराम कोडाप (गडचिरोली जिला),  सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला), प्रदिप चिचाम, सहसचिव, मध्य प्रदेश). *प्रदेश‌ महिला विंग*  की - डॉ. भारती लांजेवार (अध्यक्ष, महाराष्ट्र प्रदेश), अर्चना रामटेके (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र), गायिका - ज्योती चौहान - मुंबई (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), डॉ. सारिका कांबले (जानराव) - (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), अॅड. श्रृती संकपाल (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), वैशाली जानराव - (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), डॉ. सुवर्णा घिमघिमे (महासचिव, पश्र्चिम महाराष्ट्र), संजीवनी आटे (अध्यक्ष, विदर्भ), रंजना गांगुर्डे (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), ममता गाडेकर (नागपुर जिला अध्यक्ष), दिशा चनकापुरे (महाराष्ट्र उपाध्यक्ष), रिता बागडे, मंगला वनदूधे (विदर्भ समन्वयक), सुनिता मडावी (विदर्भ सचिव), लीना तुमडाम (सचिव, विदर्भ), प्रिती खोब्रागडे (संघटक, महाराष्ट्र), हिना लांजेवार, वीणा पराते (नागपुर जिला कार्याध्यक्ष), पवित्रा बांबोळे (अध्यक्षा, चंद्रपुर जिला), अपर्णा गाडेकर(नागपुर जिला उपाध्यक्ष), वीणा वासनिक (संघटक, महाराष्ट्र), अॅड. निलिमा लाडे आंबेडकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कल्याणी इंदोरकर (प्रदेश उपाध्यक्ष), वैशाली रामटेके (प्रदेश सचिव), शोभा मेश्राम (प्रदेश सचिव), इंदु मेश्राम (सचिव, विदर्भ विभाग), संध्या रंगारी (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), शीला घागरगुंडे (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), साधना सोनारे (महासचिव, विदर्भ), लक्ष्मी वाघमारे (पश्चिम महाराष्ट्र), वंदना चंदनशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), शैलजा क्षिरसागर (पश्चिम महाराष्ट्र), कविता कापुरे (पश्चिम महाराष्ट्र), रजनी साळवे (पश्चिम महाराष्ट्र), भाग्यश्री शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), सुप्रिया माने (पश्चिम महाराष्ट्र), अनिता मेश्राम (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अमिता फुलकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), मिनाक्षी शहारे (सचिव, महाराष्ट्र), निलिमा भैसारे (महासचिव, महाराष्ट्र), शालिनीताई शेंडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), निलिमा पुरुषोत्तम राऊत (जिला संघटक, गडचिरोली), कल्पना गोवर्धन, राया गजभिये, वैशाली राऊत, ममता कुंभलवार, प्रिया वनकर, भारती खोब्रागडे, अल्का कोचे (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), छाया खोब्रागडे (विदर्भ विभाग उपाध्यक्ष), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), सीमा मेश्राम, सरिता बोरकर, सुजाता सोमकुवर (खापा), संध्या सोमकुवर (वाडी), प्रतिमा गोडबोले (रामटेक), पुष्पा कांबळे (अध्यक्षा, काटोल सर्कल), संगिता नानोटकर (कोराडी), स्मिता जिभे (रामटेक), प्रियंका टोंगसे (रामटेक), सुहासिनी शनिचरे (रामटेक) आदी महिला पदाधिकारी तथा *नागपुर शाखा* के पदाधिकारी नरेश डोंगरे (अध्यक्ष, नागपूर जिला), डॉ. राजेश नंदेश्वर (महासचिव, नागपूर शहर), गंगाधर खापेकर (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), रोशन खोब्रागडे (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), मनिष खंडारे, रेवाराम वासनिक, प्रकाश बागडे, चंद्रशेखर दुपारे, राजु मेश्राम (कार्याध्यक्ष, नागपुर जिला), सुरेश रंगारी, सुनिल कुरील, सुहास चंद्रशेखर, निरज पाटील (कार्याध्यक्ष, काटोल सर्कल), उत्तम कांबळे (महासचिव, काटोल सर्कल) आदीयों ने सदर नियुक्ती पर, उनका अभिनंदन किया है.

Vechatbhai Parmar posted State Secretary, of CRPC Gujrath.

 🤝 *वेचतभाई परमार की सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल -  "गुजरात प्रदेश सचिव" पद पर नियुक्ती...!!!*


    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (CRPC) के *"गुजरात प्रदेश सचिव"* पद पर *वेचतभाई परमार* इनकी नियुक्ती, मेन विंग की राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा *प्रा.‌ वंदना जीवने* तथा सेल की "राष्ट्रीय महासचिव" *डॉ. किरण मेश्राम* इनसे चर्चा कर, गुजरात प्रदेश‌ अध्यक्ष *मिलिन्द बडोले* इन्होने घोषित की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / वुमन विंग / वुमन क्लब / ट्रायबल विंग के *"राष्ट्रीय पेट्रान"* तथा सेल के आंतरराष्ट्रिय / राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेजी गयी है.

     उपरोक्त नियुक्ती पर *"सी. आर. पी. सी. के राष्ट्रीय पदाधिकारी गण"* - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय महासचिव), प्रा. डॉ. फिरदोस श्राफ (फिल्म स्टार - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), एन. पी. जाधव (माजी उपजिल्हाधिकारी - राष्ट्रीय सचिव), सुर्यभान शेंडे (राष्ट्रीय सचिव), विजय बौद्ध (संपादक - राष्ट्रिय सचिव), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय सचिव), अमित कुमार पासवान (राष्ट्रीय सहसचिव), अॅड. डॉ. मोहन गवई (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार), अॅड. हर्षवर्धन मेश्राम (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार),‌ *"सी.आर.पी.सी. एम्प्लाई (कर्मचारी) विंग"* के राष्ट्रिय पदाधिकारी - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा),  सत्यजीत जानराव (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (राष्ट्रीय महासचिव), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. नितिन तागडे (राष्ट्रीय सचिव), शंकरराव ढेंगरे (राष्ट्रीय सल्लागार), निवॄत्ती रोकडे (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), अॅड. दयानंद माने (राष्ट्रीय कानुनी सलाहकार), प्रा. डॉ. भारत सिरसाठ (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र), निवास कोडाप (महाराष्ट्र प्रदेश संघटक), सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला अध्यक्ष ) तथा  *"सी.आर.पी.सी. राष्ट्रीय महिला विंग"* की प्रा. वंदना जीवने (संस्थापक अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्षा), प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय संघटक), रेणू किशोर (झारखंड - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. डॉ. प्रिती नाईक (राष्ट्रीय महासचिव - मध्य प्रदेश), इंजी. माधवी जांभुलकर (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), मीना उके (राष्ट्रीय सचिव), नंदा रामटेके (छत्तीसगड - राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. ममता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. सविता कांबळे (राष्ट्रीय सहसचिव), डॉ. साधना गेडाम (राष्ट्रीय सहसचिव) इन्होने अभिनंदन किया है. *"सी.आर.पी.सी. वुमन क्लब"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय, राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), कल्याणी इंदोरकर (राष्ट्रीय सचिव), अमिता फुलकर (राष्ट्रीय सहसचिव) *"सी.आर.पी.सी. ट्रायबल (आदिवासी) विंग"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी - आशा तुमडाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष), सतिश सलामे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), विलास सिडाम (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. मोहन गवई (कायदेशीर सल्लागार),  डा. श्रीधर गेडाम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), अॅड. स्वाती मसराम (राष्ट्रीय महासचिव), अर्चना पंधरे (राष्ट्रीय सचिव), मधुकर सडमेक (राष्ट्रीय सचिव), राजेश वट्टी (राष्ट्रीय सचिव), रवी मेडा- मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सचिव), प्रमिला रामेश्वर परते - मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सहसचिव), अंजना मडावी (राष्ट्रीय सचिव), स्मिता माटे (राष्ट्रीय सचिव), विशाल चिमोटे (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र) इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. (मेन विंग) के प्रदेश पदाधिकारी"* - डॉ. मनिषा घोष (अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), महेंद्र मानके (प्रोजेक्ट इन चार्ज), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द बडोले (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), नमो चकमा (अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश), सुब्रमण्या महेश (अध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), दिपक कुमार (अध्यक्ष, बिहार राज्य), पुष्पेंद्र मीना (अध्यक्ष, राजस्थान राज्य), रेणु किशोर (अध्यक्ष, झारखंड प्रदेश), लाल सिंग आनंद (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश), अमित कुमार पासवान (कार्याध्यक्ष, बिहार), सत्यजीत जानराव (महासचिव, महाराष्ट्र राज्य),  रोहिताश मीना (राजस्थान), मीना उके (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द धनवीज (प्रदेश उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), गिरीश व्यंकटेश (प्रदेश उपाध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), सुनिल चव्हान (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. गौतमादित्य (अध्यक्ष, मराठवाडा विभाग), प्रा. राज अटकोरे (महासचिव, मराठवाडा विभाग), अॅड. रविंदरसिंग धोत्रा (गुजरात), संजय टिकार (मध्य प्रदेश), आंचल श्रीवास्तव (गुजरात), मंटुरादेवी मीना (राजस्थान), चंद्रिका बहन सोलंकी (गुजरात), मुसाफिर (बिहार), प्रा. नितिन तागडे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अधिर बागडे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ विभाग), ममता वरठे (अध्यक्ष, विदर्भ विभाग), अविनाश गायकवाड (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), मिलिंद गाडेकर (महासचिव, विदर्भ विभाग), चरणदास नगराले (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), जावेद अंसारी (प्रदेश अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल), खेमराज मेश्राम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कॅप्टन सरदार कर्नलसिंग दिगवा (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), सचिन जि. गोंडाने (विदर्भ विभाग संघटक), अशोक निमसरकार (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), डॉ. श्रीधर गेडाम (प्रदेश‌ अध्यक्ष, तेलंगाना), प्रा. डॉ. किशोर वानखेडे (प्रदेश कार्याध्यक्ष, तेलंगाना), मनोहर गेडाम (प्रदेश संघटक, तेलंगाना), प्रविण मेश्राम (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), गजानन वैद्द (प्रदेश महासचिव, तेलंगाना), गणेश बोडखे (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), निवॄत्ती रोकडे (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. दयानंद माने (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र),  अॅड. हौसेराव धुमाल (समन्वयक, पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. शशिकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. गोरख बनसोडे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. सुनिल गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), महादेव कांबळे - उपसंपादक (पश्चिम महाराष्ट्र), अंगद गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), सोमनाथ शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. अर्जुन कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. बोधी प्रकाश (पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. डी. एच. माने (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. सागर कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), सुर्यकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), नागनाथ सोनवणे (उपाध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), सुनिल कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. विवेक गजशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (अध्यक्ष, कोंकण विभाग), प्रा. अंकुश सोहनी (कार्याध्यक्ष, कोकण विभाग), श्रीकांत जंवजाळ (महासचिव, कोकण विभाग), डॉ. लक्ष्मण सुरवसे (कोंकण विभाग), डॉ. शिवसजन कान्हेकर (कोंकण विभाग), प्रा. कानिफ भोसले (कोंकण विभाग), प्रा. विलास खरात (कोंकण विभाग), डॉ. शिवराज गोपाळे (कोंकण विभाग), डॉ. निलेश वानखेडे (कोंकण विभाग), विलास गायकवाड (कोंकण विभाग), पत्रकार शरद मोरे (कोंकण विभाग), हर्षवर्धन (छपरा, बिहार), रंजना परमार (महासचिव, गुजरात प्रदेश) बाबुलाल परमार (गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष), राहुल कुमार राजपुत (प्रदेश उपाध्यक्ष, गुजरात), भारत मनुभाई सेनवा (प्रदेश सचिव, गुजरात) वेचतभाई परमार (प्रदेश सचिव, गुजरात) आदी पदाधिकारी वर्ग ने भी अभिनंदन किया है.

     इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. के विभिन्न शाखा पदाधिकारी"* - एल. के. धवन (अध्यक्ष, मुंबई शहर), मुकेश शेंडे (अध्यक्ष, चंद्रपूर शहर), गौतमादित्य (अध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), प्रा. दशरथ रोडे (अध्यक्ष, बीड जिला), भारत थोरात (कार्याध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), डॉ. नामदेव खोब्रागडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), मिलिंद धनवीज (अध्यक्ष, यवतमाल जिला), प्रा. योगेंद्र नगराले (अध्यक्ष, गोंदिया जिला), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला कार्याध्यक्ष), इंजी. स्वप्नील सातवेकर (अध्यक्ष, कोल्हापूर जिला), संजय बघेले (अध्यक्ष, गोंदिया शहर), डॉ. देवानंद  उबाले (अध्यक्ष, जलगाव जिला), बापुसाहेब सोनवणे (अध्यक्ष, नासिक जिला), निखिल निकम (कार्याध्यक्ष, नासिक जिला), अंगद गायकवाड (अध्यक्ष, सोलापुर जिला), राजेश परमार (गुजरात), कमलकुमार चव्हाण (गुजरात), हरिदास जीवने (अध्यक्ष, पुसद जिला), प्रा. मिलिंद आठवले (अध्यक्ष, औरंगाबाद शहर), एड. रमेश विवेकी (अध्यक्ष, लातुर जिला), शांताराम इंगळे (अध्यक्ष, बुलढाणा जिल्हा), गौतम जाधव (कार्याध्यक्ष, मुंबई शहर), प्रवीण दाभाडे (महासचिव, मुंबई शहर), उमेश‌ कठाणे (जिला कार्याध्यक्ष, भंडारा), सुरेश वाघमारे (अध्यक्ष, उत्तर मुंबई), किशोर शेजुल (अध्यक्ष, जालना), निवास कोडाप (विदर्भ सचिव), मनिष खर्चे (अध्यक्ष, अकोला), संदिप गायकवाड (महासचिव, जालना), सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, विनोद भाई वनकर (गुजरात), धर्मेंद्र गणवीर, सुधिर जावले, हॄदय गोडबोले (अध्यक्ष, भंडारा जिला), महेंद्र मछिडा (गुजरात), प्रियदर्शी सुभुती (गुजरात), राजेश गोरले (समन्वयक, विदर्भ), अमित जाधव (जिल्हा अध्यक्ष, ठाणे), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला संघटक) *प्रदेश‌ ट्रायबल (आदिवासी) विंग* के निवास कोडाप (अध्यक्ष, ट्रायबल (आदिवासी), विशाल चिमोटे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), किसनलाल मडावी (प्रदेश कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र) अनिता मसराम (प्रदेश महासचिव, महाराष्ट्र), मनिषा मसराम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), दिलिप सुरपाम (प्रदेश संघटक, महाराष्ट्र), अनिलकुमार धुर्वे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र) *सीआरपीसी ट्रायबल विंग के अन्य पदाधिकारी* - पवन मोरे (नांदेड जिला अध्यक्ष, महाराष्ट्र), कोंडु मडावी (आदिलाबाद जिला अध्यक्ष, तेलंगाना), युवराज आडे (कार्याध्यक्ष, आदिलाबाद, तेलंगाना), तिरु. बलराम ऊइके (प्रदेश अध्यक्ष, मध्य प्रदेश), तिरू माय गितेश्वरि कुंजाम (प्रदेश उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), सुनिता मडावी (विदर्भ उपाध्यक्षा), तिरु. अड. हेमराज कंगाले (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरू. सुर्यभान कवडेति (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरु. शिवराज सिंह उरवेति (प्रदेश संघटक, मध्य प्रदेश), विरेंद्र इडपाचे (प्रदेश कोषाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), प्रल्हाद पत्रुजी ऊइके (जिला अध्यक्ष, चंद्रपुर), दयाराम कोडाप (गडचिरोली जिला),  सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला), प्रदिप चिचाम, सहसचिव, मध्य प्रदेश). *प्रदेश‌ महिला विंग*  की - डॉ. भारती लांजेवार (अध्यक्ष, महाराष्ट्र प्रदेश), अर्चना रामटेके (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र), गायिका - ज्योती चौहान - मुंबई (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), डॉ. सारिका कांबले (जानराव) - (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), अॅड. श्रृती संकपाल (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), वैशाली जानराव - (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), डॉ. सुवर्णा घिमघिमे (महासचिव, पश्र्चिम महाराष्ट्र), संजीवनी आटे (अध्यक्ष, विदर्भ), रंजना गांगुर्डे (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), ममता गाडेकर (नागपुर जिला अध्यक्ष), दिशा चनकापुरे (महाराष्ट्र उपाध्यक्ष), रिता बागडे, मंगला वनदूधे (विदर्भ समन्वयक), सुनिता मडावी (विदर्भ सचिव), लीना तुमडाम (सचिव, विदर्भ), प्रिती खोब्रागडे (संघटक, महाराष्ट्र), हिना लांजेवार, वीणा पराते (नागपुर जिला कार्याध्यक्ष), पवित्रा बांबोळे (अध्यक्षा, चंद्रपुर जिला), अपर्णा गाडेकर(नागपुर जिला उपाध्यक्ष), वीणा वासनिक (संघटक, महाराष्ट्र), अॅड. निलिमा लाडे आंबेडकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कल्याणी इंदोरकर (प्रदेश उपाध्यक्ष), वैशाली रामटेके (प्रदेश सचिव), शोभा मेश्राम (प्रदेश सचिव), इंदु मेश्राम (सचिव, विदर्भ विभाग), संध्या रंगारी (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), शीला घागरगुंडे (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), साधना सोनारे (महासचिव, विदर्भ), लक्ष्मी वाघमारे (पश्चिम महाराष्ट्र), वंदना चंदनशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), शैलजा क्षिरसागर (पश्चिम महाराष्ट्र), कविता कापुरे (पश्चिम महाराष्ट्र), रजनी साळवे (पश्चिम महाराष्ट्र), भाग्यश्री शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), सुप्रिया माने (पश्चिम महाराष्ट्र), अनिता मेश्राम (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अमिता फुलकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), मिनाक्षी शहारे (सचिव, महाराष्ट्र), निलिमा भैसारे (महासचिव, महाराष्ट्र), शालिनीताई शेंडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), निलिमा पुरुषोत्तम राऊत (जिला संघटक, गडचिरोली), कल्पना गोवर्धन, राया गजभिये, वैशाली राऊत, ममता कुंभलवार, प्रिया वनकर, भारती खोब्रागडे, अल्का कोचे (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), छाया खोब्रागडे (विदर्भ विभाग उपाध्यक्ष), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), सीमा मेश्राम, सरिता बोरकर, सुजाता सोमकुवर (खापा), संध्या सोमकुवर (वाडी), प्रतिमा गोडबोले (रामटेक), पुष्पा कांबळे (अध्यक्षा, काटोल सर्कल), संगिता नानोटकर (कोराडी), स्मिता जिभे (रामटेक), प्रियंका टोंगसे (रामटेक), सुहासिनी शनिचरे (रामटेक) आदी महिला पदाधिकारी तथा *नागपुर शाखा* के पदाधिकारी नरेश डोंगरे (अध्यक्ष, नागपूर जिला), डॉ. राजेश नंदेश्वर (महासचिव, नागपूर शहर), गंगाधर खापेकर (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), रोशन खोब्रागडे (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), मनिष खंडारे, रेवाराम वासनिक, प्रकाश बागडे, चंद्रशेखर दुपारे, राजु मेश्राम (कार्याध्यक्ष, नागपुर जिला), सुरेश रंगारी, सुनिल कुरील, सुहास चंद्रशेखर, निरज पाटील (कार्याध्यक्ष, काटोल सर्कल), उत्तम कांबळे (महासचिव, काटोल सर्कल) आदीयों ने सदर नियुक्ती पर, उनका अभिनंदन किया है.

Saturday, 12 February 2022

 इस *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १२ फरवरी २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में दर्ज  एतिहासिक घटनाओं के बीच, कृपया एक ऐसी घटना का परिचय दें जो धार्मिक लोगों को, आप के संबधित ग्रंथ में से जानने की आवश्यकता है...!*

* उत्तर : भगवान बुध्द सें जुडी, इतिहास में कई महत्वपुर्ण घटनाएं रही है. और वह घटनाएं बुध्द धर्म ग्रंथ में वर्णीत भी है. परंतु बुध्द ने, किसी भी दैवी चमत्कार को नकारा है. 

    उस कई घटनाओं में सें, एक घटना बताने के पहले, बुध्द ने संस्कार संदर्भ में क्या कहां ? वह पाली गाथा बताना चाहुंगा. 

*अनिच्छा वत संखारा, उप्पावदय धम्मिनो |*

*उपज्जित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वुपसमोहसुखो ||*

(अर्थात - भिक्खुओं ! मै तुम्हे स्पष्ट बता रहा हुं कि, सभी संस्कार नाशवंत है. तुम्हे अप्रमादी रहकर अपने मुक्ति के लिए, प्रयत्न करना है.)

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तथागत ने स्वयं को "उपदेशक / मार्गदाता" कहा है.‌ देव पुरुष नही. इस संदर्भ में भी, मै पाली गाथा बताना चाहुंगा.

*तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*

*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||*

(अर्थात - कार्य के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत बुध्द का कार्य केवल मार्ग बताना है. उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनो से तुम्हे मुक्त होना है.)

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उपरोक्त दो पाली गाथा समजने से, बुध्द से जुडी घटनाओं को, आप को बोध हो जाएगा. अब मैं *"डाकु अंगुलीमाल"* से जुडी एक घटना का जिक्र करूंगा.

कोशल‌‌ देश का पसेनदी (प्रसेनजित) राजा डाकु अंगुलीमाल से, बहुत परेशान था. क्यौ कि, अंगुलीमाल का जिस जंगल में वास रहता था, वहां दस / बीस / तीस /  चालीस लोग भी एकसाथ उस मार्ग से जाते थे, फिर भी वे अंगुलीमाल का मुकाबला नही कर सकते थे. अंगुलीमाल मारे गये लोगों की एक उंगली काटकर, उस की माला अपने गले में पहनता था. इस लिये उसका नाम *"अंगुलीमाल "* पडा.

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एक दिन तथागत श्रावस्ती आये थे. उन्होने अंगुलीमाल के अत्याचार की कहानी सुनी. और बुध्द ने उसे सदाचारी पुरूष बनाने का निश्चय किया. और वे अंगुलीमाल जहां रहता था, उस दिशा में निकल पडे. तब सभी लोगों ने, उस रास्ते से न जाने का बुध्द से अनुरोध किया. परंतु बुध्द शांत मन से, किसी को कुछ ना बोले, उस मार्ग पर निकल पडे.

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अंगुलीमाल ने दुर से ही उस मार्ग से, बुध्द को आते हुये देखा. अंगुलीमाल को बडा आश्चर्य हुआ की, इस मार्ग से मनुष्यों बडा झुंड भी आने को डरता है. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को मारने का निश्चय किया. और वह अपनी ढाल - तलवार लेकर, बुध्द को मारने को निकल पडा. परंतु अंगुलीमाल बुध्द के करिब भी नही जा सका. उसे बुध्द शांत मन से चलते ही नज़र आने लगा. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को आवाज दिया और कहां, *"ऐ तपस्वी रूक जा."*

बुध्द ने कहां, *अंगुलीमाल, मै तो रूका ही हुं. तु अपने दुष्कर्म कब बंद करेगा ? मुझे तुम्हे सदाचार के मार्ग पर ले जाना है. इस लिये, मै तुम्हारे लिए आया हुं. तुम्हारे अंदर का साधुत्व, अभी भी मरा हुआ नही है....!"*

अंगुलीमाल ने कहां, *"तथागत, आप के दिव्य वाणी ने मुझे, दुष्कर्म छोडने को कहां है. वह प्रयास मै निश्चित ही करुंगा...!"*

     डाकु अंगुलीमाल ने, गले से अंगुली की माला फेंक दी. बुध्द के पैरों मे प्रणाम कर, भिक्खु की दीक्षा ली. बाद में बुध्द उसे भिक्खु बनाकर, अपने साथ ले चले.

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एक दिन राजा प्रसेनजित अपने  सेना के साथ बुध्द को मिलने आये. तब राजा प्रसेनजित बहुत चिंता में दिखे. तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहा, *"हे राजन, क्या हुआ है ? मगध राजा बिंबिसार, वैशाली के लिच्छवी, या अन्य शत्रुओं‌‌ से, क्या आप परेशान है...?"*

तब राजा प्रसेनजित ने कहां, *"नही भगवंत. मै उन लोगों‌ से परेशान नही हुं. डाकु अंगुलीमाल से परेशान हुं."*

तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहां, *"हे राजन, मुंडन किया हुआ, काशाय वस्त्र परिधान किये, जो किसी को मारता नही, चोरी नही करता, झुट नही बोलता, दिन में केवल एक बार खाना खाता है, अत्याचार नही करता, श्रेष्ठ जीवन जी रहा है, उस अंगुलीमाल को देखकर, आप क्या करेंगे ...?"*

राजा प्रसेनजित ने कहां, *"भगवंत, मै उन्हे वंदन करूंगा. उसे मिलने के लिए, मै खडा रहुंगा. उसे बैठने के लिए निमंत्रण दुंगा. उसे वस्त्र - वस्तुओं का दान करूंगा. उस की सुरक्षा करूंगा. परंतु ऐसे दृष्ट पुरुष, किसी की छाया में गिरना, क्या संभव है..?"*

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तथागत ने कहां, *"हे राजन, ये भिक्खु जो मेरे पास बैठा है, वो अंगुलीमाल ही है. अब आप को, डरने की कोई आवश्यकता नही है."*

राजा प्रसेनजित भिक्खु अंगुलीमाल के पास गया. और उसे पुछा, *"भन्ते, आप के पिता का गोत्र क्या है ? माता का गोत्र क्या है...?"*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहां, *"हे राजन, मेरे पिता का गोत्र गार्ग्य है. और माता का मंत्राणी (मैत्रायणी) है."*

राजा प्रसेनजित ने कहां,*"गार्ग्य मैत्रायणी पुत्रा, सुखी हो. आप के सभी गरजों की, मै व्यवस्था करूंगा."*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहा, *"नही राजन, अब मैने भिक्षा मांगकर खाने की, तीन से जादा चिवर ना रखने की प्रतिज्ञा ली है.‌ मै आप के दान का स्विकार नही कर सकता."* 

बाद में राजा प्रसेनजित तथागत के पास गया और बुद्ध को कहा, *"हे भगवंत, यह अदभुत है. मै जिसे काठी से, तलवार से नही हरा पाया. परंतु आप की इस किमया ने, यह कर दिखाया."* और राजा प्रसेनजित तथागत को वंदन‌ कर, अपने राजवाडा की ओर निकल पडे. 

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एक दिन भिक्खु अंगुलीमाल भिक्षा लेने श्रावस्ती की ओर निकल पडे. तब एक आदमी ने उस, वीट फेककर घायल किया. दुसरे आदमी ने उसे सोटा मारा. तिसरे आदमी ने खापर से वार किया. उस का भिक्षापात्र फोड दिया. तब अंगुलीमाल रक्तबंबाल होकर, फटा हुआ चिवर पहन हुये, बुध्द के पास गया. तब बुध्द ने भिक्खु अंगुलीमाल को कहा, *"अंगुलीमाल, तुम्हे यह सहन करना होगा."* 

अंगुलीमाल ये शांत पुरुष बन गया. आगे जाकर अंगुलीमाल को मुक्त सुख की अनुभुती हुयी. 

* * * * * * * * * * * * * * * * * * 


प्रश्न - २ :

* *वर्तमान समय में रहनेवाले, धार्मिक लोगों के लिए, इस ऐतिहासिक घटना का, क्या अर्थ या महत्व है..?*

* उत्तर : भिक्खु अंगुलीमाल के  डाकु बनने का, एक विशेष इतिहास है. अंगुलीमाल डाकु बनने के बाद, लोगों को मारता था. उनकी उंगलियां काटकर, उन उंगली की माला पहनने के कारण, वो डाकु अंगुलीमाल के रूप में परिचीत हुआ. अंगुलीमाल का मुल नाम *"अहिंसक"* था. वो गुरुकुल में शिक्षा ले रहा था. वो बहुत हुशार, आज्ञाधारक, इमानदार, अपने गुरु का प्रिय शिष्य था. गुरुमाता उस से बहुत स्नेह करती थी. इस कारणवश गुरुकुल के अन्य छात्र, अहिंसक से इर्षा करते थे. उस कारणवश कुछ छात्रों ने, गुरु को अहिंसक की गुरुमाता से, अवैध संबध होने की छुटी बातें सुनाई. गुरु ने भी उन छात्रों के छुटी बातों पर विश्वास कर, अहिंसक की शिक्षा पुरी होने पर, उसे दंडित करने का मन बना लिया. गुरू ने अहिंसक को, *"एक सहस्त्र उंगलियों की माला"* लाने की, गुरु दक्षिणा मांगी. ता कि, अहिंसक वह गुरु दक्षिणा ना ला सके. और गुरु श्रृण से, वो मुक्त ना हो सके. या किसी के हत्या कर, उनकी उंगलियां की माला लाने की चेष्टा करने पर,  राजा द्वारा अहिंसक को मृत्युदंड मिल जाए. अर्थात यहां गुरु द्वारा मांगी गयी गुरु दक्षिणा, यह अंहिसक पर किया गया, एक बडा षडयंत्र ही था. हमारी व्यवस्था भी इसी तरह से अच्छे, होनहार , इमानदार छात्रों से, इस तरह का षडयंत्र करते आयी है.

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अहिंसक द्वारा व्यवस्था के बडे षडयंत्र का शिकार होना, वही वो डाकु अंगुलीमाल बन जाना, फिर बुध्द को शरण जाने पर, वो भिक्खु बन जाना, यह अहिंसक का एक नया पुनर्जन्म ही है. मुक्ती का मार्ग है. सुखी जीवन का सन्मार्ग है. अर्थात समाज में ऐसे बहुत अहिंसक पुरूष होते है. व्यवस्था के बडे षडयंत्र से, डाकु अंगुलीमाल बन जाते है. और बुध्द पुरुष के सहवास से, वे मुक्ती पाकर, इतिहास में नाम - रूप से पहचाने गये है / जाते है. बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को, पुर्णत: नकार दिया है. केवल नाम -रुप को माना है. इस *"नाम - रुप"* संबध में पाली में, एक गाथा है. वह पाली गाथा इस प्रकार है. (विशुध्दी मग्ग)

*नामों च रूपं च इध अत्थि सच्चते |*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं |*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||*

(अर्थात - नाम रुप की जोडी, यह एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक का नाश होता है, तब दुसरी का भी नाश होता है.‌ और मृतु होता है.)

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अर्थात इस घटना से,हमे एक सिख यह मिलती है कि, व्यवस्था के शिकार होने पर भी, हमे गलत मार्ग नही जाना चाहिये. हमे उस का मुकाबला करना चाहिये. संघर्ष करना चाहिये. क्यौ कि, गलत मार्ग पर चलने से, अपने को दु:ख ही मिलता है. बदनामी होती है. अत: सन्मार्ग की ओर जाना ही, उत्तम जीवन है. जो उज्वल भविष्य देता है. मुक्ती का मार्ग है.

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* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७