Tuesday, 11 March 2025

 ‌👌 *बुध्द के धम्म चक्र प्रवर्तन दिन से लेकरं धम्म दीक्षा समारोह तक !* (बुध्द - आंबेडकरी साहित्य चेतना की एक सच्ची मानवता गुंज़)

       *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४२३८, ९२२५२२६९२२


          राजकुमार सिध्दार्थ के शाक्य संघ *"जल विवाद"* से, भारत को सम्यक बुध्द मिला. वही शाक्य - कोलिय राजवंश के परंपरागत *"जल युध्द"* की परिणती, यह *"मित्रता"* में बदल गयी. परंतु *बुध्द का जन्म इ. पु. ५६३* माने, या सन २०२३ को, डरहम विद्यापीठ के *प्रा. रॉबिन कनिंगहॅम* द्वारा लुंबिनी उत्खनन के शोध में / कार्बन डेटिंग करने पर, *बुध्द का जन्म इ. पु. ६२०* (बुद्ध के ४७ साल और पिछे जाना) यह रिपोर्ट आना / नेपाली बोध्द लोक *"बुध्द का सही जन्म इ. पु. ६२३"* को मनाते है, उसकी पुष्टी होने से, *क्या हम भी उस दिशा की ओर बढ़ सकते हैं ?* यह प्रश्न है. लुंबिनी उत्खनन में जमिन के निघे *"इट का मंदिर"* मिलना / उसके निघे *"लकडी का मंडप* मिलना / और उस मंडप के बिचो बिच *"शाल वृक्ष की जड"* मिलना, यह बुद्ध का इतिहास बयाण कर गया है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक शिलालेख से, सिध्दार्थ का मुलं नाम *सुकिती* / महामाया का नाम *रुम्मणदेई* / महाप्रजापति इनका नाम *रुपम* दिखाई दिया है. अत: सिध्दार्थ को *बुध्दत्व प्राप्ति इ. पु. ५२८* को माने या नया शोध के अनुसार *इ. पु. ५८८* (जन्म से ३५ साल बाद) मानना है ? *बुध्द का महापरिनिर्वाण भी इ. पु. ४८३* माने या नया शोध अनुसार *इ. पु‌ ५४३* (बुध्दत्व प्राप्ती से ४५ साल बाद) मानना है ?  यह अहं प्रश्न है. अत: इस गंभीर विषय पर, *"क्या बुध्द सांगिती का आयोजन"* कराकर, इसका समाधान निकाला जाना चाहिए ? यह प्रश्न विश्व के तमाम बौध्द विचारविदों को है. अर्थात बुध्द का *"प्रथम धम्म चक्र प्रवर्तन"* यह भी नये शोध अनुसार,*"इ.पु. ५८८"* (बुद्ध के जन्म से ३५ साल बाद) यह हो जाएगा.

           राजकुमार सिध्दार्थ का *"बुद्धत्व"* को प्राप्त होना, अर्थात *"ज्ञान प्राप्त हो जाना / बोधी प्राप्त होना / प्रबुद्ध हो जाना"* आदि आदि. *महायान संप्रदाय* में बुध्द को अलौकिक प्राणी माना है. बुध्द को सर्वज्ञ, अतुलनीय, शक्तीशाली माना है. वही *हिनयान संप्रदाय* ने बुध्द के भौतिक शरीर की कुछ मर्यादा बतायी है. इस विषय पर सविस्तर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. सिध्दार्थ को जन्म से ३५ साल बाद *"इ. पु. ५२८ (नये शोध अनुसार इ. पु. ५८८)"* को, बुद्धगया में बुद्धत्व प्राप्ती हुयी है. उन्होंने फिर *"ऋषीपतन"* मृगदाय वन में, पांच सहपाठी - *कौडिण्य / भद्दीय / वप्प / महानाम / अश्वजीत"* इन्हे सर्व प्रथम धर्मोपदेश दिया था. उसे *"धम्म चक्क पवत्तन"* रूप में जाना जाता है. बुध्द का *"प्रथम धर्मोपदेश दो भागों"* में है. एक - धम्म चक्क पवत्तन सुत्त. दुसरा अनन्त लक्खन सुत्त. पहिले प्रवचन में *"चार आर्य सत्य - दु:ख / दु:ख समुदाय / दु:ख निरोध / दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपदा"* बताया जाता है. दु:ख का नाश करने का मार्ग बताया है. उसे बुद्ध धम्म का आधार भी कहा जाता है. दुसरे प्रवचन में *अनित्य* - कोई भी वस्तु सनातन नहीं है. *दु:ख अस्तित्व* बताया है. और *अनात्म* - आत्मा का अस्तित्व नकारना, यह बताया है. इस विषय सविस्तर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. इस धम्म चक्क पवत्तन का संबंध *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* इनके, बौध्द धम्म में दीक्षीत (इ. पु. २६८) होने से / *"अशोका विजया दशमी"* से भी जोडा जाता है.

           मगध सम्राट *बिंदुसार* इनका पुत्र राजकुमार अशोक यह राजगद्दी पर बैठने के बाद, सम्राट अशोक ने बहुत से युध्द जीते थे. परंतु *"कलिंग युध्द"* ने सम्राट को, बुध्द की शरण में जाने को प्रेरीत किया. कलिंग युध्द एक भयानक घटना थी. जिसका उल्लेख सम्राट अशोक के *"१३ वे शिलालेख"* में मिलता है. सिंहली अनुश्रृतीयों *"दिपवंश / महावंश"* इसके अनुसार, सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदह (१४) वर्ष में, *निग्रोध* नामक बौध्द भिक्खु द्वारा, बौध्द धम्म में दीक्षीत करने का वर्णन है. तत्पश्चात *मोगली पुत्र तिस्स"* इनके प्रभाव से, सम्राट अशोक पुर्णतः बौध्द हो गये. कुछ बौध्द ग्रंथो मेंं बौध्द भिक्खु *उपगुप्त* इनके प्रभाव से, बौध्द धर्म ग्रहण करने का संदर्भ है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक द्वारा *"मोगली पुत्र तिस्स"* इनकी अध्यक्षता में, *"तिसरी बौध्द सांगिती"* होने का भी संदर्भ है. राजकुमार अशोक जब विदिशा (म.प्र.) गये हुये थे, तब राजकुमार अशोक की भेट विदिशा के सेठ कन्या *देवी उर्फ वेदिशा* इसके साथ हुयी‌. और राजकुमार अशोक इन्होने *देवी* से विवाह किया था. शाक्य कुल कन्या *देवी* यह *बुध्द* की उपासक थी. सम्राट अशोक की माता *शुभंद्रांगी* भी धार्मिक वृत्ती की थी. अत: सम्राट अशोक को बुध्द धम्म के लगाव में, *"मां और पत्नी"* के योगदान को, नकारा नहीं जा सकता. सम्राट अशोक के विजय को *"अशोका विजया दशमी"* जाना जाता है. सम्राट अशोक ने *"बुध्द के दस सिध्दांत"* को जारी करने का आदेश दिया. वे दस सिध्दांत - बडों के प्रति सन्मान / दासों और नौकरों के प्रति चिंता करना / जानवरों के प्रति दया - करुणा / आत्म नियंत्रण / हिंसा और कठोर भाषा से बचना / दान का अभ्यास करना / धार्मिक सहिष्णुता - सद्भाव को बढावा देना / सत्य बोलना / धर्मानुशासन / कृतज्ञता. *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्होने १४ अक्तुबर १९५६ को, *"बौध्द धम्म"* दीक्षीत होना वह दिन, *"अशोका विजया दशमी"* के रूप में मनाया जाता है. यह भी कहा जाता है कि उस दिन ही, *"सम्राट अशोक के धम्म दीक्षा को २२२५ साल"* पुर्ण हुये थे.

           बोधिसत्व *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने १४ अक्तुबर १९५६ को, नागपुर की पावन दीक्षाभूमी में, *"पांच लाख लोगो"* की उपस्थिती में, बर्मा के महास्थविर चंद्रमणी इनके सु-हाथो, *"बुद्ध धम्म"* की दीक्षा ली थी. तथा बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने *"पांच लाख लोगो"* को बुद्ध धम्म की दीक्षा दी. यह *"सामुहिक धम्म दीक्षा समारोह"* विश्व की एक असामान्य घटना बनी. हर साल *"अशोका विजया दशमी"* इस दिन तथा *"१४ अक्तुबर"* इस दिन पर, लाखों की संख्या में देश विदेश के बौध्द बांधव, *"दीक्षाभूमी "* जाकर अभिवादन करते है. १६ अक्तुबर १९५६ को *"चंद्रपुर दीक्षाभूमी"* में भी लाखों की संख्या में, धम्म दिक्षा समारोह का आयोजन किया गया था. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्हे तो *"समस्त भारत बौद्धमय"* करना था. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने २६ जनवरी १९५० इस दिन *"भारत का संविधान"* अर्पित कर, भारत को *"प्रजासत्ताक देश"* बनाया है. अर्थात *"संस्कृति संविधान"* (मनुस्मृती का अंत) शासन व्यवस्था को खत्म करते हुये, *"संविधान संस्कृति"*(भारत संविधान) की बुनियाद रखी. भारत का राष्ट्रिय चिन्ह *"सम्राट अशोक की चार दिशांओं की ओर दहाड लगानेवाला शेर"* तथा राष्ट्रध्वज तिरंगा में *"अशोक चक्र"* इसे स्थापित कराकर, *"संविधान संस्कृति"* बिगुल सन १९५६ के पहले ही फुंका था. बाबासाहेब भारत में *"समता मुलक समाज"* बनाना चाहते थे. परंतु ६ दिसंबर १९५६ को *"बोधिसत्व"* हमें छोडकर चले गये. फिर भारत का *"बौध्द धम्म मिशन"* यह थमसा गया था.

          बुध्द का धम्म यह मानवता का केंद्र बिंदु रहा है. और बुध्द विचारों ने  *"बुद्ध साहित्य"* को विचार चेतना दी. उस *"बुद्ध साहित्य"* विचार चेतना ने ही, *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक"* को कल्याणकारी सम्राट बनाया. *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्हे भी, महान *"बोधिसत्व"* बनाया. बुध्द साहित्य विचार चेतना ही *"आंबेडकरी साहित्य"* की सही बुनियाद रही है. परंतु कुछ खुरापति तत्वो ने *"दलित साहित्य / संविधान साहित्य"* का किस बनाया. आज वे खुरापति तत्व इतिहास जमा हुये दिखाई देते है. साथ ही सन १९५६ के बाद *"थमे हुये धम्म मिशन"* को, *स्मृतिशेष - विमलसुर्य चिमणकर / अशोक मेंढे / डॉ मिलिन्द जीवने / स्मृतिशेष - संघरक्षित सुखदेवे* इन युवा मित्र वर्ग ने, मिशन जगाने के लिये *"पिंपल्स डेमोक्रॅटिक मुव्हमेंट"* (PDM) की स्थापना, सन १९९० में की थी. परंतु विमलसुर्य चिमनकर और हमारे बिच कुछ मतभेद होने पर, चिमणकर ने अलग होकर *"भारतीय सामाजिक लोकशाही संघटन"* बनाया. आगे जाकर उसका रूपांतरण *"समता सैनिक दल"* नामक - बाबासाहेब डॉ आंबेडकर स्थापित संघटन में किया. *"पिंपल्स डेमोक्रॅटिक मुव्हमेंट"* द्वारा  सन १९९२ - ९३ - ९४ में *"बौध्द धम्म दीक्षा समारोह"* का सफल आयोजन, "धनवटे रंग मंदिर सभागृह" में किया गया था. हमारे *"बौध्द धम्म दीक्षा समारोह "* में नागपुर की नामांकित विदुषी *प्रा. डॉ. रुपाताई कुलकर्णी* / ओबीसी नेता *प्रा. प्रभाकर पावडे*/ दिल्ली के नामांकित साहित्यिक *मोहनदास नैमिशराय* इन्होने, बौध्द धम्म की दीक्षा ली थी. मराठी के महान कवि *सुरेश भट* इन्होने भी, आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई जी इनके हाथो, बौध्द धम्म की दीक्षा ली. "दलित व्हाईस" पत्रिका बंगलोर के संपादक तथा नामांकित ओबीसी नेता *व्ही. टी. राजशेखर* इन्हे भी, बौध्द धम्म की दीक्षा लेने हेतु , *मैने स्वयं (डॉ जीवने)* बहुत पत्रव्यवहार किया. अंत में राजशेखर जीने बिहार जाकर, पोलिस आय. जी. *मैकुराम जी* समवेत पटना मे, *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा ली थी. मुझे भी उस समारोह उपस्थित होने की संधी मिली. सन १९९५ में *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* जी उनके सुचना से, वह *"बौध्द धम्म दिक्षा समारोह"* यह दीक्षाभूमी से प्रारंभ हुआ. वही *मै तथा स्मृतिशेष - संघरक्षित सुखदेवे* इनके मेंढे से मतभेद हो गये. स्मृतिशेष सुखदेवे जी ये स्मृतिशेष विमलसुर्य चिमणकर इनके साथ जुडे. और मैने *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* (CRPC) इस राष्ट्रिय संघटन की बुनियाद रखी.

             मेरे *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* इस राष्ट्रिय संघटन गठण के बाद, पहिला सफल आंदोलन *"महाराष्ट्र विद्यापीठ कानुन"* अंतर्गत "मागासवर्गीय आरक्षण" यह था. उक्त आंदोलन सफल होने के कारण उक्त कानुन से सिनेट में, मागासवर्ग को आरक्षण का लाभ मिला है. ३ - ४ जुन २००६ को *"जागतिक बौध्द परिषद"* आयोजन, मेरे ही अध्यक्षता में हुआ था. उक्त परिषद में ३ देशो कै प्रतिनिधी उपस्थित रहे थे. उक्त परिषद में *"पारित ठराव"* विश्व के सभी बौध्द राष्ट्र प्रमुखो को भेजा गया. साथ ही सन २०१३ / २०१४ को भी *"जागतिक बौध्द परिषद"* का आयोजन किया गया. उक्त परिषद की सफलता में *शंकर ढेंगरे / सुर्यभान शेंडे / डी. बी. वानकर / विजय मानकर / संजय जीवने / प्रा जयंत जांभुळकर / अमर रामटेके / वंदना मिलिन्द जीवने / वंदना संजय जीवने* इनका योगदान रहा था. सन २०१५ में मेरी संघटन - *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन / जीवक वेल्फेअर सोसायटी"* तथा *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* इनके संयुक्त तत्वाधान में, *"जागतिक बौध्द परिषद / जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५"* का सफल आयोजन तथा श्रीलंका से *"बुध्द अस्थि धातु"* को लाकर, बौध्द लोगों को अभिवादन करने का, सफल आयोजन किया था. सदर कार्यक्रम सफल करने में *चंद्रबोधी पाटील / शंकरराव ढेंगरे / वंदना जीवने / पुष्पा बौध्द / प्रा. वर्षा चहांदे* आदी वर्ग का योगदान रहा था. इसके साथ ही मेरे संघटन ने *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद"* तथा *"महिला परिषद"* २०१७ / २०२० २०२१ का सफल आयोजन, मेरे ही नेतृत्व में किया गया. सदर परिषद के सफलता में हेतु मेरे मित्र *इंजी. विजय मेश्राम (IRRS) / डॉ.अरविंद आलोक (नयी दिल्ली) / कुलगुरु - आर. एस. कुरील / कुलगुरू - डॉ. सी. डी. नायक / डॉ. राजाभाऊ टांकसाळे / इंजी. अशोक शंभरकर / अशोक गेडाम (माजी जिलाधिकारी) / सुर्यभान शेंडे / प्रा. टी. जी. गेडाम /  डॉ प्रमोद चिंचखेडे / मिलिन्द धनवीज / अधिर बागडे / डॉ राजेश नंदेश्वर / मिलिंद गाडेकर / प्रा. वंदना जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / प्रा. वर्षा चहांदे /  डॉ मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / सुरेखा खंडारे / ममता वरठे / इंजी. माधवी जांभुलकर* आदी वर्ग का बडा योगदान रहा. CRPC की उक्त टीम के कारण ही *"विश्व शांती रॅली"* २००७ / २०२० / २०२१ का सफल आयोजन किया गया था. इस वर्ष २०२५ में भी *"विश्व शांती रॅली"* के आयोजन प्लॅनिंग चल रही है. उक्त रॅली के सफलता हेतु *सुर्यभान शेंडे / शंकरराव ढेंगरे / प्रा. नितिन तागडे / इंजी. गौतम हेंदरे / रवी पाटील / डॉ मनिषा घोष / एड. प्रज्ञा निकोसे / डॉ. भारती लांजेवार / करुणा रामटेके / सुरेखा खंडारे / साधना सोनारे / डॉ राजेश नंदेश्वर / विजय निकोसे / धर्मेंद्र सिंग / नंदकुमार पाटील / विजय भैसारे* आदी टीम प्रयासरत है. मेरे इस धम्म मिशन के कारण ही, आंतरराष्ट्रीय नामांकित मान्यवर *थिक नॅट हॅन*  (व्हिएतनाम) / महाबोधी सोसायटी श्रीलंका के *पुज्य बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* / महाबोधी सोसायटी लद्दाख *भदंत संघसेन* / भिक्खु संघ के *भदंत आनंद कौशल्यायन - भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई - भदंत सदानंद महाथेरो*  / तिब्बती *परम पावन दलाई लामा - परम पावन कर्माप्पा लामा - परम पावन ड्रायकंग कॅबगन चॅटसंग* / भिक्खुनी संघ की *चाट्सुर्मन कबिलसिंग - धम्मानंदा* (थायलंड) / कोरीया की *मदर पार्क चुंग सु* / अमेरिका के *परम पावन बुध्द मैत्रेय* / ऐसे अनगिणत मान्यवरों से मेरे संबंध आये है. कुछ मान्यवरों ने तो, मेरी जागतिक बौध्द परिषदों में सहभाग भी लिया है. कुछ मान्यवरों से मेरी निकटता भी है. जीवन में और क्या चाहिये ? इस मेरे मिशन से *"मैने बहुत कुछ पाया भी है, और कुछ खोया भी !!"*!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर दिनांक ११ मार्च २०२५.

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