Wednesday, 24 January 2024

 🇮🇳 *प्रजासत्ताक भारत में बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर का वकृत्व एवं कर्तृत्व...!* (नयी दिल्ली स्थित कृतिहिन वकिल - दिनेश सिंघ के लेख को खुला जबाब)

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महु (म.प्र.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

   

       कुछ दिन पहले मुझे व्हाट्सअप पर, किसी एक महानुभाव ने, नयी दिल्ली के एक कृतिहिन वकिल - *दिनेश सिंघ* इस का, बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब पर, लिखा गया एक टिकात्मक लेख भेजा था. मैने वह लेख संशोधन विचारों से दो बार पढा. दिनेश सिंघ, ये किस वर्ग से आता है, यह वर्ग उसके लिखाण से ही, हमे ज्ञात हो गया. शायद दिनेश सिंघ ये जाना माना बडा वकिल ना हो, या साधी भाषा में हम *"फटीचर वकिल"* यह उपाधी दे डालते है, उस श्रेणी का वो वकिल हो, और फ्री में ही नाम पाना चाहता हो, उस महानुभावों (?) में, संशोधनात्मक भाव कितना है ??? इस अंतरंग में ना जाते हुये, *"भारत के संविधान"* को स्वीकृती मिलने के समय, २६ नवंबर १९४९ को,"संविधान सभा" मे *बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर"* द्वारा दिये गये भाषण के अंश को कोट करते हुये, मै एड. दिनेश सिंघ के लेख में लिखें गयें, विचारों पर बढुंगा. डॉ आंबेडकर कहते है कि, *"On 26th January 1950, India will be an independent country (Cheers). What would happen to her independence ? Will she maintain her independence or she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an India county. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ?....."*

      कृतिहिन वकिल दिनेश सिंघ ने, डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर पर, बडे ही गंभिर आरोप लगाये है. अत: इस संदर्भ में दिनेश सिंघ ने ही, उसके पुर्वजों द्वारा कहें, या तो स्वयं का ही, देश के विकास में किये गये योगदानों को, बताना बहुत जरुरी है. हम *"रामजन्मभुमी विवाद"* में, मा. सर्वोच्च न्यायालय के *"पांच न्यायधीशों"* का मेरीट देख चुके है. बाबासाहाब डॉ आंबेडकर ने २६ नवंबर १९४९ को, बिलकुल सही कहा है.‌ *"क्या हमारा भारत दोबारा गुलामी की ओर बढेगा ?"* भारत को दोबारा गुलामी की ओर बढाने में, सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालिन सरन्यायाधीश *रंजन गोगाई* के अध्यक्षतावाली पीठ के न्यायाधीश *"शरद अरविंद बोबडे / धनंजय चंद्रचुड / अशोक भुषण / अब्दुल नज़ीर* मुख्यत: कारक रहे है. क्यौं कि, उन्होने रामजन्मभुमी प्रकरण में, *"प्रायमा फेसी"* के आधार पर निर्णय ना देकर, *"भावना के आधार"* पर निर्णय दिया हुआ है. और हमारे  *"भारत माता पर / प्राचिन भारत इतिहास पर"* बलात्कार किया है. वे पांचो भी न्यायाधीश *"बलात्कारी पुरुष"* है.‌ रामास्वामी नायकर के *"सच्ची रामायण प्रकरण"*  का कोर्ट संदर्भ भी वे भुल गये है.

       अब हम डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के उसी भाषण के, और एक अंश ‌ को समझते है. बाबासाहेब कहते है कि, *"Without fraternity, liberty, and equality could not become natural cource of things. It would require a constable to enforce them. We must begin by acknowledging the fact that there is a complete absence of two things in Indian society. One of these is equality. On the social plane, we have in India society based on the principle of graded inequality which we have a society in which there are some who have immense wealth as against many who live in abject poverty. On 26th of January 1950, we are going to enter into life of contradictions. In politics we will have equality and in Social and economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one value. In our social and economic life, we shall, by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one vote and one value. How long shall we continue to live this life of contradictions ? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? ....."* अभी अभी भाजपाई नरेंद्र मोदी सरकार ने, सर्वोच्च न्यायालय की माध्यम से, *" धर्मनिरपेक्ष भारत को धर्मांधीकरण देश"* बना डाला है. भारत में *"खाजगीकरण"* का बोलबाला होकर, भारत *"पुंजीवादी देश"* बन गया है. वही भारत तो केवल *"देश"* (Country) है, वो अभी तक *"राष्ट्र"* (Nation) नही बन सका.‌ राष्ट्र बनने के लिए *"सामाजिक, आर्थिक समानता"* होना भी जरुरी है.

      प्राचिन भारत के *"सिंध संस्कृति या हडप्पा संस्कृति"*  तथा बहुत साल के बाद आयी *"वैदिक संस्कृति"* की ओर ना जाते हुयें, केवल *"मौर्य वंश साम्राज्य"* (कालखंड इ. पु. ३२२ - १८५ तक) की ओर, मै लेकर चलता हुं. और विशेषत: *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* (कालखंड इ. पु २६८ - २३२) के समय *"अखंड भारत"* में अफगानिस्तान (१८७६) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / तिब्बत (१९०७) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान (१९४७) / पुर्व पाकिस्तान - बांगला देश (१८७१) इन देशों का समावेश था. बुध्द मतावलंबी - *सम्राट बृहद्रथ मौर्य* इनका ब्राम्हणी वर्ग के सेनापति - *पुष्यमित्र शुंग* (अपनी बहन सम्राट बृहद्रथ को ब्याहकर) ने हत्या कर, *"अखंड भारत"* को, बाद मे परकिय शक्ति का गुलाम कर डाला. इतना ही नही तो, भारत को खंड खंड कर डाला. इस संदर्भ पर भी, कृतिहिन वकिल *दिनेश सिंघ* बोले...!!! अब हम चलते है - *"द्वितिय महायुध्द"* (इसवी १९३९ - १९४५) की ओर. इस द्वितिय महायुध्द में, *"कांग्रेस दल और मोहनदास गांधी की भुमिका"* यह बडी गोलमाल की थी. बामनी संघटन *"स्वयं सेवक संघ"* (RSS) का तो राम भरोसे था. या कहे कभी कभी वो संघटन *"इंग्लंड की महाराणी"* के सलामी में, या कभी कभी वो संघटन तो, *"हिटलर"* के भी भक्ती में ....? *बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर* ने तो, खुले रुप से, *"ब्रिटेन का समर्थन"* घोषित किया था.‌ इसका भी प्रमुख कारण ही था. *"द्वितिय महायुध्द"* यह दो प्रमुख देशों में बाटां गया. *"मित्र देश और धुरी देश."* मित्र देशों में - सोव्हीयत संघ, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, युनायटेड किंगडम, चायना आदी देश और मित्र देशों के नेता थे - *जोसेफ स्टलिन, फैंकलिन डेलिनो रुझवेल्ट, विंस्टन चर्चिल, चिआंग काई शेक* आदी नेता. धुरी देशो में - जर्मनी, इटली, जापान आदी देश और धुरी देशों के प्रमुख नेता थे - *एडाल्फ हिटलर, बेनितो मुसोलिनी, हिराहितो* और अन्य नेता. एडाल्फ हिटलर को द्वितिय महायुध्द के लिए कारक माना जाता है. धुरी देशों नेता ये क्रुर हुकुमशहा थे. अगर बाबासाहेब ने ब्रिटन और मित्र देशों को समर्थन नही दिया होता और मित्र देशों की हार हुयी होती तो, *"गुलाम भारत देश ये हिटलर / मुसोलिनी / हिराहितो का गुलाम बना होता."* और गुलाम भारत १५ अगस्त १९४७ को, ना कभी स्वतंत्र भी हुआ होता. यह भी सत्य है कि, कांग्रेस / गांधी की महा मुर्खता भी कहे या अदुरदर्शी राजनीति के कारण, *"भारत को आजादी दो - तिन साल देर सें"* मिली. इस विषय संदर्भ में मेरा *"द्वितिय महायुध्द"* विषयक लेख, ट्वीटर, ब्लॉगवर, फेसबुक इन जगह पर उपलब्ध है.

      जब तक हम भारत का प्राचिन इतिहास नही समझेंगे, तब तक हमे बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर इनके लिखाण को समझना, यह कठिण विषय हो जाएगा. अब हम कृतिहिन वकिल - *दिनेश सिंघ* ने बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर इनके उपर, लगाये गये आरोपों पर चलते है. * * *  *हिंदु धर्म रक्षक डॉ. आंबेडकर"* - एड.‌ दिनेश सिंघ के अनुसार - स्वामी अछुतानंद महाराज और बाबु मंगुराम ने अछुतों के हक अधिकार की लढाई लढी थी. और उन्होने अपना प्रतिनिधी बनाकर डॉ. भीमराव आंबेडकर को गोलमेज सम्मेलन भेजा...... इन्होने आंबेडकर के समर्थन में ब्रिटिश सरकार को १५६७ तार भेजे थे....... और *"पृथक संप्रदाय निर्वाचन का अधिकार"* के लिए लंबी लढाई लढी...... गांधी ने जेल के अंदर.... अनशन शुरु कर दिया. .... 'कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के बीच में पुना पैक्ट हो गया.... नौकरीयों और राजनीति में आरक्षण देने यानी सुरक्षीत सीटें देने को तैयार है तो, हम हिंदु बनने को तैयार है.... इस तरह से अछुतों के हिंदु बने रहने की शर्त पर आरक्षण दे दिया गया..... और अछुतों को हिंदु बना दिया. भीमराव आंबेडकर ने पुना पैक्ट करते समय, स्वामी अछुतानंद महाराज और बाबु मंगुराम को पुछा तक नही.... इस तरह  डॉ. भीमराव आंबेडकर ने, एक तरह से अछुतों की पीठ में सुरा घोपने का काम किया.

       *दिनेश सिंघ के इस आरोपों का उत्तर* - "बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर के संपर्क मे" इस पुस्तक के लेखक तथा बाबासाहेब के सहयोगी *सोहनलाल शास्त्री* / "डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात" इस पुस्तक की लेखिका तथा बाबासाहाब की पत्नी *डॉ. सविता आंबेडकर* / "डॉ. आंबेडकर का जीवन और मिशन" इस पुस्तक के लेखक *डॉ. एल. आर. बाली* इनकी लिखी गयी पुस्तक में, *"स्वामी अछुतानंद महाराज / बाबु मंगुराम* का उल्लेख इस विषय संदर्भ मे, हमें दिखाई नही देता. अगर हम ये मान भी ले कि, वे दोनो बाबासाहाब आंबेडकर के साथ जुडे हुये थे.‌ परंतु बाबासाहाब डॉ आंबेडकर, गांधी जी को मिलने येरवढा जेल, अकेले नही गये थे. पुना पैक्ट  के समय अछुतों की ओर से *डॉ आंबेडकर* ने तथा हिंदुओं की ओर से *मदनमोहन मालवीय* ने, करार पत्र पर सही की थी. साथ ही - डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्रीनिवासन, एम. सी. राजा, देवदास गांधी, विश्वास, सी. बालु, राजभोज, गवई, ठक्कर बाप्पा, सोलंकी, सी. व्ही. मेहता, बखले, कामत इनके हस्ताक्षर थे. दुसरी बात यह कि, डॉ. आंबेडकर गोलमेज परिषद से मिले *"पृथक निर्वाचन का अधिकार"* को छोडने को, बिलकुल तैयार नही थे. वह जो अधिकार अछुतों के अलावा, *"इसाई, मुस्लिम  और सिख वर्ग को भी मिला था."* गांधी जी ने अन्य वर्ग के हितों का विरोध नही किया था. परंतु तत्कालिन परिस्थिती, *"गांधी के अनशन"* से भयावह हो चुकी थी. आंबेडकर को धमकीयां मिलती थी. फिर भी वे अपने मांग पर डटे रहे. *नाथुराम गोडसे* नामक ब्राम्हण ने *"गांधी की हत्या"* की थी, हमें उस घटना को समझना होगा. उस समय ब्राम्हण पुरुष भाग गये थे और ब्राम्हण स्त्री - लडकियों पर बलात्कार हुये थे. बडा आतंक का माहोल बना था. *"अगर गांधी जी, उस अनशन से मृत्यु को प्राप्त हुये होते तो,"* वही परिस्थिती अछुतों पर आयी होती, यह समझना जरुरी है. तिसरी बात - पुना पैक्ट से अछुतों को आरक्षण अधिकार मिल गया था. *"परंतु अछुतों को हिंदु बना दिया"* यह आरोप ??? तो फिर *"बाबासाहाब के बौध्द धम्म दीक्षा को क्या कहे ?"* और जो बाबासाहाब डॉ आंबेडकर के साथ *"बौध्द धर्म"* में दीक्षित हुये, "उन्होने जो सामाजिक, शैक्षिक,  सांस्कृतिक, आर्थिक, वैचारिक उन्नति की है, वह उन्नति शोषक वर्ग समान है" ऐसा अमेरिका के एक संशोधन में कहा गया है. और दिनेश सिंग ने *"पुना पैक्ट पर Dr. Ambedkar Vol. 17"* इस ग्रंथ का जिक्र किया. वही *एल. आर.‌ बाली* की पुस्तक (पेज न. १३० - १३१) में लिखा गया है कि, (पुना पैक्ट क्यौं स्वीकार करना पडा) *"जहां तक मेरा संबंध है, यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि, आज तक कोई व्यक्ति मुझ से अधिक भयानक द्विविधा नही पडा होगा. मेरे समक्ष तो समानांतर मार्ग थे......."* और *"अछुतों की पीठ मे सुरा घोपना"* ये आरोपों तो, गांधी / कांग्रेस को लागु होते है. बाबासाहाब को कदापी नही ! और इस तरह का विचार मन में लाना ही शरम का विषय है. आज अछुतों को जो कुछ मिला है, वह सिर्फ और सिर्फ बाबासाहाब आंबेडकर की देण है.

     दिनेश सिंघ ने * * * *"हिंदु धर्म से बचने के लिए सिख बनने लगे थे..."* यह भी आरोप लगाया है. सिखी का प्रचार करने लगे थे.... भीमराव आंबेडकर हिंदु धर्म छोडना चाहते थे.‌ परंतु ऐसा धर्म अपनाना चाहते थे कि, हिंदु धर्म का कम से कम नुकसान हो..... और गांधी को यह वचन दिया था... भीमराव आंबेडकर १८ जुन १९३६ को, डॉ. बी. एस. मुंजे को, अपने घर *"राजगृह"* बुलाकर, एक सिक्रेट मिटिंग की की, मै सिख बनना चाहता हुं..... सिक्रेट एग्रीमेंट भी साईन किया.... अगर अछुत सिख बन जाएंगे तो, वे हमारे लिए  और जादा खतरनाक हो जाएंगे.... इसके बाद डॉ. मुंजे ने उस पैक्ट के दस्तावेज गांधी को भेज दिये. जीसे गांधी ने ८ अगस्त १९३६ को, The Bombay Cronical पत्रिका में प्रकाशीत किया. धर्मांतर विषय संदर्भ में *"Dr. Ambedkar Vol. 1, Page 239 - 243"* का जिक्र किया है. गांधी ने सिख स्वीकारने पर, आरक्षण देने को मना कर दिया.... कांग्रेस के दबाव में, भीमराव आंबेडकर ने सिख धर्म अपनाने का विचार त्याग दिया.

     *दिनेश सिंघ के इन आरोपों को उत्तर* -  इन किये गये आरोपों से, दिनेश सिंघ की वैचारिक औकात शुण्य दिखाई देती है. बाबासाहेब ने सन १९३५ में *"हिंदु धर्म छोडने की घोषणा"* करने के बाद, उनको  *"मुस्लिम, ईसाई, सिख, आर्य समाजी उन्हे अपने धर्म के दायरे में लाने की दावत देने लगे."* (सोहनलाल शास्त्री की किताब. .. पेज १४) पटीयाला के महाराज *भुपेंद्रसिंग* उन्होने बाबासाहाब को बुलाया था. शाही मेहमानी की थी. साथ ही सिखों के नेता सरदार महतावसिंग जी, वे भी पटियाला पहुंचे थे. महाराज ने बाबासाहाब को *"पटियाला का प्रधानमंत्री"* बनने का प्रलोभन दिया था. तब बाबासाहाब का उत्तर था कि, *"तुम्हारे धर्म (सिख) में मुझे और मेरे लोगों को, अन्दर लाने की कोई चिज ही नही है. महाराज, मै लालच और लोभ में फसनेवाली मछली नही हुं."* सरदार बहादुर महतावसिंग जब अपने शहर लाहोर लौटे, तब उन्हे सिख नेताओं ने इस विषय संदर्भ मे पुछा. तब सरदार कह गये कि, *"डॉ. आंबेडकर तो अजिब स्वभाव के व्यक्ति है. उन्हे तो कोई सांसरिक लोभ लालच नही खिच सकता."* हां, यह बात सत्य है कि, बाबासाहाब ने सिख धर्म स्वीकार करने संदर्भ में सोचा था. परंतु निर्णय नही लिया था. इसका कारण यह कि, *सोहनलाल शास्त्री* ये पंजाब से थे. और उन्होने बाबासाहाब को, *"सिख धर्म में अछुतों की स्थिती संदर्भ में अवगत कराया था."* यही नही मुस्लिम धर्मीय *"हैदराबाद के निजाम"* द्वारा, बाबासाहाब डॉ आंबेडकर ने मुस्लिम धर्म स्वीकार करने पर, *"४ करोड की रिश्वत"* का प्रलोभन दिया था. इस संदर्भ में पंजाब के हिंदु सभाई नेता *"परमानंद* इन्होने अपनी पत्रिका हिंदु में कहा कि, *"आंबेडकर में कितने ही दोष क्यौं ना हो, किंतु वे न तो बेईमान है, न ही खुदगर्ज, न ही लालची."* जब उनके संबंध मे आये इतने बडे लोग, इस तरह बाबासाहाब के चारित्र पर बयान देते हो तो, कृतिहिन वकिल *दिनेश सिंघ* की, क्या वैचारिक औकात है...? अब रही बात बाबासाहाब के बुध्द धर्म प्रभाव कि, बाबासाहाब ने अपने घर का नाम *"राजगृह"* रखा था. तथा अपने घर मे बुध्द की मुर्ती रखी थी. मुंबई मे स्थापित कॉलेज का नाम *"सिध्दार्थ कॉलेज"* एवं औरंगाबाद के कॉलेज का नाम *"मिलिन्द कॉलेज"* और परिसर का नाम *"नागसेन वन"* रखा था. बाबासाहाने बुध्द धर्म का स्वीकार (१४ अक्तुबर १९५६) करने से पहले, *"The Buddhist Society of India"* इस संस्था की स्थापना (सन १९५४) में की थी. जागतिक बौध्द परिषद बर्मा (१९५४), नेपाल (१९५६), श्रीलंका (१९५०) इन देशों में सहभाग भी लिया था. रही बात हिंदु महासभा के *डॉ. एस. एम. मुंजे* से, १८ जुन १९३६ को *"सिक्रेट बात करने की"* तो, यह पुर्णत: असत्य विधान है. हां, यह सत्य है कि, बाबासाहाब विभिन्न धर्म के नेताओं से, विद्वानों से मिला करते थे.‌ परंतु *"सिक्रेट मिटिंग....???"*  उनका काम  खुला और स्पष्ट रहा करता था. तो फिर *"गांधी / कांग्रेस के दबाव में आना"* यह बडा ही जोक है. रही बात *"अछुतों के अधिकार छिनने की."* गांधी और कांग्रेस की वो मज़ाल नही थी. *"हिंदु कोड बिल"* सदन में, कांग्रेस द्वारा मंजुर ना करने के कारण, बाबासाहाब ने *"कानुन मंत्री"* पद का इस्तिफा दिया. इसके बाद कानुन मंत्री बना *श्री हरिभाऊ पाटस्कर* ये महाशय, बाबासाहेब के पास आकर, उनसे विषय पर चर्चा कर वो ही बातें सदन में बोला करते थे. (डॉ. सविता आंबेडकर की पुस्तक से)

       दिनेश सिंघ का अगला आरोप - *"बौध्द धर्म अपनाकर दलितों के साथ धोका कर गये डॉ. भीमराव आंबेडकर...!"* आंबेडकर इस बात को जानते थे कि, छुआछुत, जातिवाद और वर्णव्यवस्था यह बौध्द धर्म की देण है. बाबासाहाब का इस संबंध का लेख भी २६ फरवरी १९४२ को "The Bombay Cronical" में छपा था.... फिर  भीमराव आंबेडकर ने बौध्द धर्म को अपनाना.... भीमराव आंबेडकर ने वरली बुध्द विहार में२९ सितंबर १९५० को अपने भाषण में कहा.... साथ ही Writting & Speches Vol. 17 Part III Page 410 का संदर्भ भी दिया. भीमराव आंबेडकर जानते थे कि, हिंदु धर्म यह बौध्द धर्म का नया नाम है, जो मुगलों द्वारा दिया गया है... बुध्द धर्म को सनातन धर्म कहते है. ब्राम्हण भी अपने धर्म को सनातन धर्म कहते है.... जो तीर्थस्थल बौध्दों के है, वे ही हिंदुओं के है... बौध्द और हिंदुओं की संस्कृति पुरी तरह एक सी है. हिंदुओं के धर्म ग्रंथ, बौध्द धर्म ग्रंथो की ही नकल है....१३ अक्तुबर १९५६ में भीमराव आंबेडकर कह रहे है कि,  ये धर्म भारत की संस्कृति और भारत के इतिहास को, कोई नुकसान नही पहुचाएगा... इस संदर्भ में Dr. Ambedkar Life & Mission page 498 इस ग्रंथ का संदर्भ दिया गया... भीमराव आंबेडकर अपनी पुस्तक *"दि बुध्दा एंड हिज धम्मा"* (पेज न. १२९) में लिखते है कि, मनुष्य का आजादी प्राप्त करने के लिए, अंतिम साधन हथियार उठाना का अधिकार है. ब्राम्हणों ने शुद्रो" और अछुतों को, शस्त्र से वंचित कर दिया था.... भीमराव आंबेडकर ऐसा धर्म क्यौं अपनाया, जीस की इतनी खतरनाक टिचिंग है.....भोले भाले लोगों को सिखाता है कि, हिंसा मत करो.... क्या अछुत इस धर्म द्वारा ब्राम्हण, क्षत्रीय और बनिया की गुलामी से आजाद हो सकते है ????

      *बिन-अकल वकिल दिनेश सिंघ को इन आरोंपो का उत्तर...!* - दिनेश सिंघ ने किये गये इन आरोपों पर, मै हंसु या रोना करु, यह बडा प्रश्न है. वो पुर्णत: बुध्द धर्म के ज्ञान के प्रति शुण्य है. या हो सकता है कि, दिनेश सिंघ ये पागल व्यक्ति है. उसका मानसिक उपचार करना, मुझे जरुरी लग रहा है. बाबासाहाब आंबेडकर का हिंदु धर्म संदर्भ में एक कोटेशन है. वे कहते है कि, *"भारत का धर्म हमेशा से हिंदु धर्म था, यह विचार मुझे कदापी मान्य नही है. हिंदु धर्म तो, सबसे अंत मे, विचारों के उत्क्रांती से निर्माण हुआ है. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद, भारत में तीन बार धार्मिक परिवर्तन हुआ है. वैदिक धर्म का रुपांतर ब्राम्हणी धर्म में, और ब्राम्हणी धर्म का रुपांतर हिंदु धर्म में हुआ है."* (कोलंबो, ६ जुन १९५०) बाबासाहाब डॉ आंबेडकर का बौध्द धर्म एवं ब्राम्हणी धर्म संदर्भ में एक कथन है. वे कहते है कि, *"बौध्द धर्म यह ब्राम्हणी धर्म को, आवाहन के समान था. क्यौं कि, बौध्द धर्म का चातुर्वर्ण्य व्यवस्था को विरोध था. फ्रेंच राज्यक्रांती से समता प्रस्थापित करने का, जो कार्य किया गया. वही क्रांती कार्य बौध्द धर्म के उदय के कारण निर्माण हुआ है. इस प्रकार बौध्द धर्म का उदय किन परिस्थिती में हुआ है, यह हम समज ले तो, उसकी महत्ता समझ में आएंगी."* (कोलंबो, ६ जुन १९५०) "भारत के संविधान" को स्वीकृति देते समय *"संविधान सभा"* में, २६ नवंबर १९४९ को, चर्चा को उत्तर देते हुये डॉ. आंबेडकर कह रहे थे कि, *"It is not that India did not know Parliament or Parliamentary procedure. A study of Buddhist Bhikshu Sanghs discloses that not only there were parliaments - for the sangh as were nothing but parliaments - but the sanghas knew and observed all the rules of parliamentary procedure known as modern times. They had rules regarding seating arrangements, rules regarding Motions, Resolutions, Quorum, Whip, Counting of votes, Voting by Ballot, Censure Motion, Regularisation, Res Judicata etc.... Although these rules of parliamentary procedure were applied by the Buddha to the meeting of sanghas, he must have barrowed them from the rules of political assemblies functioning in the country in his time."* इसके आगे बुध्द धर्म के बारे में बताने की जरुरी भी नही है. *"हिंदु धर्म"*  संबंध में सोहनलाल शास्त्री की बाबासाहेब से चर्चा होती थी. उस एक चर्चा यह बात सामने आयी कि, *स्वामी दयानन्द सरस्वती* इन्होने भारतीय समुदाय को, हिंदु शब्द न देकर *"आर्य"* शब्द प्रयोग करने का उपदेश दिया... उनके शिष्य *प. लेखराम* जो उर्दु और फारसी के विद्वान थे, उन्होने उनकी पुस्तक *"कुलियात आर्य मुसाफिर"* में, हिंन्दु का शब्दार्थ - *"चोर, दास, काला आदमी"* बताया था. (सोहनलाल शास्त्री की पुस्तक,  पेज न. ८७) और हिंदु यह मोगल द्वारा दी गयी गाली है.

      बुध्दीहिन वकिल *दिनेश सिंघ* का एक और बडा आरोप है -  *"पाकिस्तान निर्माण के फिलोसफर आंबेडकर"* - डॉ. भीमराव आंबेडकर, फ्रीमेसन जो ब्रिटन के राज परिवार की एक संस्था थी, वे उसके एजेंट थे.... अंग्रेजो को आभास हो गया कि, वे भारत में ज्यादा समय तक टिक नही पायेंगे, तो अंग्रेज सरकार ने एक दुरगामी योजना के तहत, भीमराव आंबेडकर को *"थाट्स ऑन पाकिस्तान"* यह किताब (सन १९४१ को प्रकाशन) लिखने को कहना.... आंबेडकर ने पाकिस्तान विभाजन की जोरदार वकालत की.... पाकिस्तान विभाजन की संपुर्ण योजना प्रस्तुत की.... बंटवारे का नक्शा भी तैयार किया...अम्बेडकर ने स्वयं तब दिया जब १९५५ में भाषा के आधार पर, राज्यों का गठण हो रहा था. इस संदर्भ में *Writting and Speeches Vol 1,* पुराना संस्करण पेज न. १७९ का संदर्भ दिया है. *"भारत के पाकिस्तान से अलग होने पर, मुझे खुशी हुयी है. कहना चाहिये, पाकिस्तान की कल्पना मेरी ही थी. मैने ही देश विभाजन की वकालत की थी. क्यौं कि, मै यह महसुस करता था कि, केवल विभाजन ही ऐसा विकल्प है, जिसके फलस्वरुप हिन्दु न केवल स्व अधिन हो सकेंगे, वरन मुक्त भी......"*

        *कृतिहिन दलाल (?) वकिल दिनेश सिंघ को इसका उत्तर* - बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर पर, यह आरोप बडा गंभिर है. और इन पिछे की शक्ति के कुटनीति को समझना बहुत जरुरी है. *"फ्रीमेसन जो ब्रिटन की राज परिवार की संस्था"* की लिस्ट में नाम होने का मतलब, *एजेंट* होना नही होता. यह पहली बात. दुसरी बात - यह संस्था आतंकवादी / देशद्रोही है या नही ? तिसरी बात - उसका एजेंट होने का / देशद्रोही होने का, दिनेश सिंघ ने कौनसा सबुत सादर किया है ? यह प्रश्न है. चवथी बात - बडे लोक हो या शासन भी, *"कुछ बडे मान्यवरों की यादी"* बनाती रहती है. ता कि, *"सरकारी निमंत्रण भेजने में सुविधा हो."* इस आरोपों में यह खुलासा दिखाई नही दे रहा है. अत: दिनेश सिंघ  ने *"जाहिर माफी"* मांगनी होगी. इसके साथ ही, उसके उपर *"फौजदारी केस"* दायर करना जरुरी है. अब हम चलते *""थाट्स ऑन पाकिस्तान"* ग्रंथ लिखाण के आवश्यकता पर...! *"गुलाम भारत का कालखंड तथा कांग्रेस - मुस्लिम लिग से राजनीतिक संबंध"* को समझना होगा. साथ ही *"स्वतंत्र मजदुर संघ (Independent Labour Party) / अखिल भारतीय शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन और कांग्रेस"* इनके राजनीतिक संबंध को समझना होगा. इन संघटनो में कभी कभी भी, मैत्रीपुर्ण संबंध बने ही नही थे. *मुहम्मद अली जीन्ना* ये बहुत ही अभिमानी घमेण्डी व्यक्ति था. वह सफल वकिल था. (संदर्भ - सोहनलाल शास्त्री की पुस्तक, पेज १५९) वही कांग्रेसी *जवाहरलाल नेहरू....???* सन १९३७ में, भारत के कई प्रांतो में कांग्रेस मंत्रीमंडल स्थापित हो गये. किंतु सितंबर १९३९ में, *"द्वितिय महायुध्द"* शुरु हो गया. दो महिने के पश्चात कांग्रेस मंत्रीमंडलो ने इस्तिफा दे दिया. *"मुस्लिम लिग"* ने इस पर खुशी करते हुये, *"मुक्ति दिवस"* (योमे निजात) मनाया. डाक्टर साहाब ने जिन्नाह के इस कदम का अनुमोदन दिया. (सोहनलाल शास्त्री की पुस्तक से, पेज न. २५३) दोनो नेताओं ने भेण्डी बाजार बंबई में बडे जोरदार भाषण हुये. सन १९४० में बाबासाहाब की अपनी पुस्तक *"पाकिस्तान पर विचार"* (Thoughts on Pakistan)  प्रकाशीत हो चुकी थी. इस पुस्तक में, तर्क और तथ्यों के आधार पर, और बिना किसी भय के, हिंदुओं को पाकिस्तान की मांग को स्वीकार करने की सलाह दी गयी थी. (सोहनलाल शास्त्री) बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर ने मुस्लिम - हिंदु राजनीतिक संबंध पर, *बेलगाव* की सभा मे (२६ दिसंबर १९३९) कहा कि, *"राष्ट्र की सत्ता अपने हाथ मे हो, यह कांग्रेस कहती है. परंतु तुमने मुसलमान के लिए क्या किया ? हिंदु - मुसलमानों के बिच कडी दुश्मनी बनी है. और वह पहले से जादा अती बढ गयी है. हिंदु के राज्य में रहना नही है, यह मुसलमानों की भावना बनी है. अत: भारत के दो तुकडे होना चाहिये, ऐसा उनको लगता है. इसके लिए केवल कांग्रेस ही जिम्मेदार है."* हमने हिंदु - मुसलमान संघर्ष की आग, सन १९४७ में देखी है. और भारत - पाकिस्तान ‌यह बिखराव भी...! हमे यह समझना जरुरी है कि, बाबासाहाब उन परिस्थिती में, अछुतों के लिए *"अलग अछुत लैंड"* की मांग नही की थी. दुसरी बात कांग्रेस ने बाबासाहेब आंबेडकर का हिंदु बहुल मतदार संघ *"खुलना / बारीसाल / जेस्सोर"* यह पाकिस्तान को देकर, अछुतों से बडी गद्दारी की थी. फिर भी बाबासाहाब आंबेडकर एवं अछुत वर्ग भारत में बने रहे. और बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा गांधी को पुछा गया कि, *"I have no Home Land."* इस शब्द की भावना, हमें समझना बहुत जरुरी है.

     बुध्दीहिन वकिल *दिनेश सिंघ* का और एक आरोप - *"अछुतों, सिख, जैन, और बौध्दों को कानुनी रुप से, हिंदु बना गये डॉ. भीमराव आंबेडकर""*  और एक और आरोप - *"भारत के संविधान के अनुच्छेद २५ के द्वारा सिख,  जैन और बौध्दों को हिंदु घोषित कर दिया."* इसके साथ और आरोप है कि, *"भारत के संविधान के अनुच्छेद २९० अ, से स्पष्ट है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नही है...!"* - पुना पैक्ट के करार के बाद भीमराव आंबेडकर ने, भारत के कानुन मंत्री थे, तब १० अगस्त १९५० को एक आदेश पारीत किया, अछुत यानी अनुसुचित जाती के लोगों को आरक्षण तभी मिलेगा, जब वे हिंदु बनकर रहेंगे..... यदी कोई अछुत बौध्द, जैन, सिख, ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो, आरक्षण का लाभ नही मिलेगा..... इस तरह भीमराव आंबेडकर ने अछुतों पर कानुनी पहरा बैठा दिया है..... इस संदर्भ में *धनंजय कीर* की पुस्तक *"डॉ. आंबेडकर लाईफ एंड मिशन""* (पेज न. ४९८) का संदर्भ दिया है. दुसरी कसर भीमराव आंबेडकर ने *"हिंदु कोड बिल"* लाकर पुरी कर दी. इस संदर्भ में *"डाॅ. आंबेडकर और हिंदु कोड बिल"* इस पुस्तक (पेज न. ८८७ - ८८८) का संदर्भ दिया है. जब बुध्द वैदिक ब्राम्हणों से भिन्न थे, तो उनका मतभेद पंथ तक सिमित था.... इसलिए उन्होने कुछ धार्मिक धारणाओं में किए गये परिवर्तनों के परिणाम स्वरुप, कानुनी प्रणाली में कोई बदलाव करने पर, अपना ध्यान केंद्रीत नही किया.... इसी तरह, जब भगवान महावीर ने अपना धर्म स्थापित किया तो, उन्होने जैनीयों के लिये,  कोई नयी कानुनी व्यवस्था नही बनाई....इसलिए बौध्दों, जैनीयों और सिखों पर, हिंदु कानुन और हिंदु कोड का लागु होना, एक एतिहासिक विकास है..... *"हिंदु मैरीज एक्ट १९५५"* में, हिंदु शब्द को परिभाषित करते हुये, सिख, जैन, बौध्दों को हिंदु घोषित कर दिया. इस तरह भारत एक *"हिंदु राष्ट्र"* है.... इस षडयंत्र को छुपाने के लिये *"भारत के संविधान के अनुच्छेद १ भारत यह नाम रख दिया. .."* भारत संविधान का अनुच्छेद २९०अ अनुसार.... भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नही है.... चंद्रयान छोडा गया तब हनुमान की पुजा... राफेल आता है तो हिंदु विधी पुजा.... रेल गाडी चलाई जाती.... संसद का उदघाटन हिंदु पध्दती से... राष्ट्रपती का शुध्दीकरण...

     *कृतिहिन वकिल दिनेश सिंघ को इन आरोपों पर उत्तर* - दिनेश सिंघ वकिल के यह आरोप भी, बडे गंभिर है. सबसे पहले हमें यह समझना होगा की, इंग्रज काल में *"अनुसुचि"* (Schedule) क्यौं बनायी गयी ? *"कास्ट कि अनुसुची, ट्राईब की अनुसुची, एन टी / व्ही टी की अनुसुची, ओबीसी की अनुसुची....!"* उपरी मेरे पैरा में, वैदिक धर्म का रुपांतर ब्राम्हणी धर्म में, ब्राम्हणी धर्म का रुपातंर यह हिंदु धर्म में हुआ है. दुसरी बात ब्राम्हण वर्ग यह *"मुल भारतीय"* नही था. वो विदेशी था. मुल भारतीय समुह इनकी अलग संस्कृती थी. जैसे - द्रवीड आदी.‌ अत: इंग्रज काल में, इन समुह को एक विशिष्ट अनुसुची रखा गया. वो हिंदु / ब्राहण कदापी नही थे. दुसरे अर्थ में गुलाम थे. परंतु *"सत्ता राजनीति"* ने, ब्राम्हणों ने इस समुह को, *"हिंदु धर्म"* में परावर्तीत कर डाला. *"देववाद, धर्मांधवाद"* परोसा गया. इस संदर्भ सें, *"प्राचिन भारत संस्कृति"* विषय पर, मेरा लेख प्रकाशित है. अब्राम्हण देव - *"राम - कृष्ण"* को परोसा गया. हमारा आवाम के मन मस्तिष्कों  में, वो देववाद भर दिया गया. तो फिर अकेले *"डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर"* से, तुम यह अपेक्षा कैसे कर सकतो हो. फिर भी उन्होने भारतीय आवाम को जगाने का भरपुर प्रयास किया. *"महाड सत्याग्रह / कालाराम मंदिर सत्याग्रह / बुध्द धम्म दीक्षा समारोह"* उसकी जन - जागरण की एक कडी है. अब हम दुसरे कोन से, इस विषय को देखेंगे.‌ भारतीय राजनीति में, *तत्कालिन अनुसुचित जाति / जनजाति / ओबीसी समुह राजकिय नेताओं ने,* क्या इस विषय पर कोई खास काम किया है ? यह प्रश्न है. *"आज की राजनीति संदर्भ में भी...!"* तुमने और तुम्हारे पुरखों ने भी...! और अकेला दोष *"बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर पर मढ रहे हो...!"* रही बात बाबासाहाब की. उनका स्वास्थ अच्छा नही रहते हुये भी, उन्होने अपने स्वास्थ की पर्वा ना करते हुये, *"गांधी / कांग्रेस के साथ लढाई लढी."* और हमने अपनी शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उन्नति हासिल की. यह क्या कम है ? बाबासाहाब हमे छोड देने के बाद, हमारे नेताओं ने क्या किया ??? यह प्रश्न है. *बौध्द समुह कमसे कम आंबेडकर जी के साथ जुडा रहा.* जैन, इसाई, मुसलमान, सिख यह समुह कहां खडे रहे ? भारत को आजादी (१५ अगस्त १९४७) मिलने के बाद, *"प्रजासत्ताक भारत"* की नीव (२६ जनवरी १९५०) रखी गयी. हमे राजकिय समानता मिली. *"सामाजिक / आर्थिक समानता पर, बाबासाहाब ने हमे आगाह किया."* क्या हम वो समस्या का हल, सुलझा चुके है ? यह अहं प्रश्न है.

      अब हम दिनेश सिंघ के आरोंपो पर भी आते है‌. *"मनुस्मृति"* वैदिक कानुनी ग्रंथ समान, बौध्द, जैन, सिख, इसाई, मुसलमानों की *"कानुनी संहिता"* उपलब्ध थी. अगर नही थी और वक्त का अभाव इन कारणों का मध्य, बाबासाहाब आंबेडकर इन्होने निकालने का प्रयास किया. *"हिंदु मैरीज एक्ट १९५५"* के समय, बाबासाहाब आंबेडकर *"कानुन मंत्री"* नही थे. उन्होने *"हिंदु कोड बिल"* (सन १९५१) मे, कांग्रेस सरकार ने मंजुर ना करने के कारण, कानुन मंत्री पद का इस्तिफा (२७ सितंबर १९५१) दिया था. हिंदु कोड बिल की माध्यम से, हमे कुछ अधिकार मिले, यह भुलना नही चाहिये. *"बुध्दा एंड हिज धम्मा"* यह बौध्दों का बायबल लिखने का काम, बाबासाहाब ने सन १९५१ से शुरु किया. और सन १९५६ को पुरा किया. परंतु *"प्रथम आवृत्ति प्रकाशन"* बाबासाहाब के महापरिनिर्वाण के बाद (सन १९५७) को प्रकाशीत हुयी. उस ग्रंथ मे सुधार कर *"द्वितिय आवृत्ति प्रकाशन"* करने में, वे हमारे बिच कहां थे ? *"भारत का संविधान अनुच्छेद २५"* संदर्भ मे कहे तो - *"Rights to Freedom of Religion"*  द्वारा Freedom of Conscience and free profession,  practice and propagation of Religion का अधिकार मिला है. साथ ही *"धर्मनिरपेक्षता"* (Secularism) के अधिन बांधिल रखा गया है. *"अनुच्छेद २९० अ"* का धर्मनिरपेक्षता विषय से कोई संबंध नही है.

      विचार शुण्य वकिल *दिनेश संघ* का आखरी आरोप - *"देश अघोषित हिंदु राष्ट्र है."* - ब्राम्हण ठाकुर बनियों के हाथ में, देश की सत्ता है. अर्थव्यवस्था है. शासन प्रशासन है. उद्दोग और मार्केट है. देश की समस्त पार्टी हिंदुओं की है. मिडिया हिंदुओं का है. हाय कोर्ट - सुप्रिम कोर्ट हिंदुओं का है. देश पर हिंदुओं का आतंक है. पुलिस थाने में मंदिर बना है. कलेक्टर , एस पी हिंदु है. सिख, बौध्द, इसाई, मुसलमान दोयम दर्जे के नागरीक बनकर रह गये है. भारत में सरकारी स्तरों पर हिंदु देवकरण हो चुका है. आदी आदी.... *"दिनेश सिंघ के इस आरोंपो को उत्तर"* - इस संदर्भ मे कहे तो, यह सत्य है. और इसका उत्तर मेरे उपरी आरोंपो में, आ चुकां है. सवाल तो, *"यहां हमारे अपने आवाम का है ?"* उनके उदासिनता का है. उनके सत्ता दल गुलामी का है.‌ उनके कृतिहिनता का भी है. *भारत की राष्ट्रपति, स्वयं का शुध्दीकरण क्यौ करे ? क्या वो अशुध्द हो चुकी है ?*  यह प्रश्न है. भारत की संसद हो, या चंद्रयान हो, या राफेल प्रकरण हो, हमारे अपने वर्ग प्रतिनिधी, खामोश बैठे है ? गुलामी मे जखडे हुये है. इस प्रकरण में बाबासाहाब आंबेडकर का दोष क्या है ? यह हमारी अपनी दासता है. *"भारतीय संविधान"* ने, इस प्रकार का बंधन नही डाला है. हमने स्वयं ही वो गुलामी बंधन डाला है...! *"भारत अघोषित हिंदु राष्ट्र"* निर्माण, ये पिछले दस वर्षों में बढा है. यह समझना भी जरुरी है.

      *"आखरी सार"* : - नयी दिल्ली स्थित कृतिहिन वकिल *दिनेश सिंघ* का लिखा गया लेख - *"हिंदु राष्ट्र के निर्माता है डॉ.  भीमराव आंबेडकर"*  यह लेख पढते समय, वो विचारहिन प्राणी *"बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर"* का उल्लेख इस शब्द से टालकर, *"डॉ. भीमराव आंबेडकर"* इस एकेरी शब्द का प्रयोग कर रहा है. जो दिनेश सिंघ की गंदगी परिवार का बोध कराती है. बाबासाहेबांचे डॉ. आंबेडकर साहाब ने, *"भारत राष्ट्रवाद"* संकल्पना इस देश में बोई है, उसको तक वह हरामी / अहसान फरामोश भुल गया है.  बाबासाहेब *"भारत राष्ट्रवाद"* संदर्भ मे कहते है कि, *"भाषा, प्रांतभेद, संस्कृति आदी भेदनीति को मै नही मानता. पहले हिंदी, बाद में हिंदु - मुसलमान हे विचार भी मुझे मान्य नही. सभी आवाम ने, पहले भारतीय, अंतत: भारतीय, और भारतीयता के बिना कुछ नही, यही मेरा विचार  है."* (मुंबई, १ अप्रेल १९३८) भारत आजादी को ७५ साल के उपर हो चुके है. कांग्रेस,  भाजपा, या किसी भी दलों क सरकार ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* कभी नही बनाया. ना ही भारत देशभक्ति जगाने बजेट में कोई प्रावधान. .. फिर भी आवाम खामोश है. इसे क्या कहे ???  बाबासाहाब आंबेडकर ब्रिटिश व्हाईसरॉय कार्यकारी परिषद में २२ जुलै १९४२ से २० अक्तुबर १९४६ तक *"श्रम मंत्री"* पद पर कार्यरत थे. उन्होने उस काल में कभी भी देश विरोधी कृत्य नही किया. और देश के हित में ही बात रखी. इसलिए उन्हे *"सच्चा देशभक्त"* भी कहा गया. सन १९३६ में लाहोर में *"जात पात तोंड परिषद"* का आयोजन किया गया था. वह परिषद बाबासाहाब आंबेडकर ने, अपनी भाषण में कोई भी बदलाव करने से, मना करने से रद्द करनी पडी. अर्थात बाबासाहाब अपनी विचारों से कभी समझौता नही किया. ना देशद्रोही कार्य किया है. *किसी दबाव में वे कभी रहे नही.* दिनेश सिंघ के उन आरोपों को उत्तर देने के लिए, मेरी बडी व्यस्तता होते हुये भी, मै पिछले पांच दिनों से, विविध ग्रंथो का वाचन कर रहा था. संदर्भ कोट कर रहा था. और दिनेश सिंघ के आरोपों के उत्तर, दो दिन में लिखने का प्रयास किया है. दिनेश सिंघ ने, इस आरोपवाले लेख का सही उत्तर देनेवाले को, *"एक लाख रुपये"* देने की, जाहिर घोषणा की है. उसकी हमे गरज भी नही है.  बस, वो केवल जाहिर माफी मांगे. *हमारे तथाकथित आंबेडकरी संशोधक, इस विषय पर अपना दायित्व निभाते या नही ?* यह प्रश्न है. क्यौं कि, यह विषय बडा ही गंभिर है. *"हिंदुत्वकरण / बदनामीकरण"* की निवं रची जा रही है. *"भारतीय संविधान खच्चीकरण"* की ओर *"संस्कृति संविधान"* बढ रहा है. *"संविधान संस्कृति"* ये खतरे में है. हमे यह बताना होगा कि, *"जो जीता वो सिकंदर नही 'मौर्य / मोरया' है."* "गणपति बाप्पा मोरिया" का सही अर्थ बताने का समय आ गया है. *"गण = राज्य, पति = प्रमुख, मोरया = मौर्य > गणपति बाप्पा मोरया = चक्रवर्ती सम्राट मौर्य"* इस अर्थ को, जन जन तक पहुचांना है. हमे यह वादा करना है, निभाना भी है. नही तो हमे कहना होगा कि, *"जो वादों से दुर भागता है, वो कायर है. गद्दार है."* जय भीम...!!!


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(दोस्तों, यह लेख जादा से ज्यादा लोगों को फारवर्ड करो. हमें जागना है. जगाना भी है. संघर्ष करने उठ खडे होना है. अपनी शक्ति को बताना भी है. इस विषय पर डिबेट, चर्चा करना भी है.)

नागपुर, दिनांक २५ जनवरी २०२४

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