Wednesday, 17 January 2024

 ✍️ *क्या नरेंद्र दामोधर मोदी भारत के भावी आदि शंकराचार्य (?) बनेंगे तथा अयोध्या उनका मुख्यालय होगा ? हिंदुत्व धर्मांधवाद (?) में भारत के संविधान का अस्तित्व, दशा एवं दिशा...!!!*

  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      *"अयोध्या रामजन्मभुमी विवाद"* प्रकरण में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालिन सरन्यायाधीश *रंजन गोगाई* की अध्यक्षतावाली पीठ में - *न्यायाधीश - शरद अरविंद बोबडे / धनंजय चंद्रचुड / अशोक भुषण / अब्दुल नज़ीर* इन्होने अयोध्या प्रकरण में, *"बिना किसी "प्रायमा फेसी"* के आधार पर, *" रामजन्मभुमी निर्माण"* का रास्ता साफ कर डाला. उन पांचो न्यायाधीशों की बुध्दी की सच्ची पात्रता परिक्षा लेनी होगी. शायद उस बुध्दी की परिक्षा में, वो पांचो *"चपराशी"* की परिक्षा उत्तीर्ण हो पायेंगे या नही ? यह संशोधन का विषय है. क्यौं कि, उनकी नियुक्ती तो किसी बौध्दीक पात्रता आधार पर, कभी नही हुयी है. *"बगैर मेरिट"* आधार पर ही, न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है. अचानक मुझे *"मनुस्मृति"* इस हिंदु ग्रंथ के ८ / २१ - २२ अंतर्गत लिखे गये शब्द याद आ गये. वे शब्द है,*"ब्राम्हण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए. वर्ना राज्य यह मुसिबतों में फंस जाएगा."* वही *"अंग्रेज शासन"* काल (सन १९१९) में, अंग्रेजों ने ब्राम्हण न्यायाधीश बनने पर पाबंदी लगायी थी. और ब्राम्हणों का शत प्रतिशत वर्चस्व को लगाम लगाई थी. मनुस्मृति ग्रंथ में *"स्त्री और शुद्रो"* कें संदर्भ में, क्या लिखा गया ? इस विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे. मुझे वेदना तब हुयी, जब उन पांच न्यायाधीशों में से एक, मुस्लिम न्यायाधीश भी हरा घांस खाने गया था. वैसे कहां जाएं तो, इन सभी न्यायाधीशों के निर्णय पर, संशोधन ‌समिती बिठाकर, अवलोकन करना जरुरी लग रहा है.

     अकसर हम हमारे घर में तो, *"अंग्रेजी कुत्ते"* ही रखते है. क्यौं की, वे कुत्ते मालिक के प्रति, बडी ही वफादारी निभाते है. सच्चा साथ करते है. वे कुत्ते सच्चे आज्ञाकारी भी होते है. परंतु हम घर में *"गावरानी कुत्तों"* को नही पालते. क्यौं कि, गावरानी कुत्ते तो, कहीं भी मुंह डालते है. वे वफादारी कभी नही निभाते. अत: हमारे न्यायाधीश हो या, ब्युरोक्रासीवाले हो, राजकिय नेता हो, या अभी के तथाकथित संत हो, वो *"गावराणी कुत्ते"* ही तो है.‌  वैसे प्राचिन दार्शनिक (?) *भर्तुहरी* / भारत के आजादी सेनानी (?) *मोहनदास गांधी* / या राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के सर्वेसर्वा *के. सुदर्शन* इन्होने भी तो, *"भारतीय राजनिती को वेश्यालय"* कहा है. क्यौं कि, यह विशेष लोग अपने फायदे के लिए,  *"किसी के साथ भी शय्यासन कर लेते है."* हमारे तथाकथित योगगुरु, *"थुका चाटासन"* ही तो सिखाते है. अत: इन्हे *"वेश्या - नरेंद्र मोदी / वेश्या - राहुल गांधी"* (आदी आदी) कहे तो, वो भी कोई अतिशयोक्ति नही होंगी. अब हम मुल विषय पर आते है.

      अब हम *"अयोध्या"* नगरी, इस विषय पर चर्चा करेंगे. *"अयोध्या नगरी"* का मुल नाम *"साकेत"* है. और प्राचिन बौध्द ग्रंथ में इसका उल्लेख मिलता है. साकेत यह बौध्द राजनीति का केंद्र रहा हैं. चकवर्ती सम्राट अशोक शासन में भी इसका उल्लेख मिलता है. सन १८८१ में *लार्ड कनिंघम* ने, साकेत (अयोध्या) का उत्खनन भी किया था. और उसने अपनी *"ग्रंथ मालिका"* (Corpus Inscriptionum Indicarum) लिखी थी, उसमे वहां *"बुध्द विहार"* होने का संदर्भ दिया है. कनिंघम ने उत्खनन मे मिली, हर वस्तुओं के स्केच भी बनाये थे. आगे जाकर *लार्ड कनिंघम* के प्रयासों से ही, *"भारत पुरातत्व विभाग"* (Archaeological Survey of India) स्थापना, सन १८४६ में हुयी. और कनिंघम  ही इस विभाग के *"पहिले भारत गव्हर्नर जनरल"* बन गये थे. और भारत में, उस काल में, जो भी उत्खनन हुये थे, प्राचिन इतिहास मिला, उसका पुरा श्रेय लार्ड कनिंघम को जाता है.

      ज्योतिषी शास्त्र (?) के अनुसार *"वैदिक सभ्यता"* का कालखंड इ.पु. ४००० बताते रहे है. परंतु वैज्ञानिक विभिन्न अविष्कारों से, प्राचिन इतिहास कालखंड इस प्रकार है - *पुर्व हडप्पा संस्कृति* (पाषाण युग) - इ. पु. ७५०० - ३३०० / *पहला नागरीकरण* (सिंध संस्कृति / हडप्पा संस्कृति) - इ. पु. ३३०० - १५०० / *परिपक्व हडप्पा संस्कृति* (मध्य कास्य युग) - २६०० - १९०० / *वैदिक सभ्यता* - इ. पु. १५०० - ६०० / *बुध्द कालखंड* - इ. पु. ५६३ - ४८३ / *बौध्द सम्राट साम्राज्य* - इ. पु. ५४४ - १८५ / *दुसरा नागरीकरण* -  इ. पु. ६०० - २०० / *प्रारंभिक मध्यकालीन भारत* -  इ. पु. २०० - इसवी १२०० / *गत मध्यकालीन भारत* - इसवी १२०० - १५२६ / *प्रारंभिक आधुनिक भारत* - इसवी १५२६ - १८५८ / *आधुनिक स्वतंत्र भारत* - इसवी १८५८ के बाद का काल. प्राचिन भारत में *"वैदिक सभ्यता"* भले ही इ. पु. १५०० - ६०० रही हो. परंतु उस सभ्यता ने समस्त भारत में पैर नही फैलाये थे. वैदिक सभ्यता केवल *"उत्तरी भारत"* तक सिमित रही थी.‌ क्यौं कि ब्राम्हण समुह यह विदेशी (अरबी - फारसी क्षेत्र) था. *"और वह मुल भारतीय समुह - विदेशी ब्राम्हण संघर्ष का काल था."* और सिंध संस्कृति / हडप्पा संस्कृति यह मुल भारतीय लोगों की देन है. विदेशी ब्राम्हणों की नही. *"पेशवा / फडणवीस / बाजीराव / हिंदु (हिनदु > हिन + दु > हिन = निच / चोर, दु = प्रजा / लोग > हिंदु = चोर / निच > यह ब्राम्हणों को गाली दि गयी) "* आदी शब्द भी फारसी भाषा के ही है.  बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर के कहते है कि, *" हिंदु धर्म यह भारत का पहले से ही धर्म था, यह विचार मुझे मान्य नही है. हिंदु धर्म यह सब से बाद, विचारों की उत्कांती होने के बाद अस्तित्व में आया. वैदिक धर्म में तिन बार परिवर्तन हुये दिखाई देता है. वैदिक धर्म का रूपांतर ब्राम्हणी धर्म में, और ब्राम्हणी धर्म का रुपांतर हिंदु धर्म में हुआ."* (कोलोंबो, ६ जुन १९५०)

      विश्व के पहले आदि मानव का इतिहास यह *"आफ्रिका"* देश का है.‌ वैज्ञानिकों ने पहले मानव की खोज में, *"दो लाख साल पहले"* का बताया है. और उस पहले आदि मानव को *"होमो इरेक्टस"* (इमानदार आदमी) नाम दिया गया है. आदि मानव का तिन श्रेणी में विभाजन किया गया - वह विभाजन - होमो इरेक्टस / होमो डायरेक्टस / होमो हिंडलबर्गेंसिस. *"भारत में पहले मानव जीवन का कालखंड १ लाख - ८० हजार (पाषाण युग) का बताया है."* इसका प्रमाण हमे मध्य प्रदेश‌ स्थित *"भीमबेटका"* से मिलता है. *मुझे स्वयं सहपरिवार* उस इतिहास जगह भेट देने का, सु-अवसर मिला  है. *भारत मे पहला आदि मानव खोज* भूगर्भशास्त्र विभाग (Geological Survey of India) के प्रमुख / भुवैज्ञानिक *डॉ. अरुण सोनकिया* ने, ५ दिसंबर १९८२ में किया था. और उस आदि मानव को *"नर्मदा मानव"* यह नाम दिया गया. भारत मे उस *"आदि मानव की उपरी खोपडी""* मध्य प्रदेश‌ के नर्मदा नदी (सिहोर) के पास मिली. यह आदि मानव *"होमो इरेक्टस"* श्रेणी का है. साथ ही प्राचिन कालखंड के हाथी / दरयाई घोडा / जंगली भैस / डायनोसर अंडे के जिवाश्म भी वहां मिले है. *मुझे भी व्यक्तिश: भुवैज्ञानिक अरुण सोनकिया जी को प्रत्यक्ष मिलने का* तथा इन *"सभी जीवाश्म"* को बहुत ही पास से देखने का अवसर, भूगर्भशास्त्र विभाग के *माणिक भगत* के माध्यम से मिला है. पिछले साल ही एक कार दुर्घटना में, भुवैज्ञानिक *डॉ. अरुण सोनकिया* जी का दु:खद निधन हुआ है. यह सभी उदाहरण देने का संदर्भ *"सृष्टी का निर्माण / आदी मानव ‌का नंगा होना / देवों ने सृष्टी का निर्माण किया (?) / लिपी की उत्पत्ती / रामायण की रचना कालखंड (?)"* आदी से जुडा है. दुसरा अहं विषय यह कि, *"मानव का निर्माण सबसे अंत में हुआ. फिर ब्रम्हा ने सृष्टी का निर्माण किया / मानव का भी निर्माण कैसे किया ?"* यह अहं प्रश्न है. आदि मानव तो नंगा था. स्वर्ण आदी धातु का तब शोध ही नही था. *"ब्रम्हा तो कपडे पहने और अलंकार पहने होना,"* इसे हम क्या कहे ?

      अब हम ब्राम्हण पोंगा पंडितो (?) के *"रामायण"* कालखंड पर आते है.  वाल्मिकी रचित रामायण कालखंड *"त्रेतायुग"* (१२ लाख वर्ष पुर्व) और *"महाभारत"* का भी कालखंड इ.पु. ६००० बताते है. उनके कुछ नये शोध अनुसार, रामायण कालखंड इ. पु. ७३२३ बताया गया. और महाभारत कालखंड इ. पु.‌ १३०० - १००० साल में लढा गया. *"जब हम वैज्ञानिक शोध को देखा करते है, तब इन पोंगा पंडितो का कथन, बहुत बडा झुट दिखाई देता है."* अब हम वाल्मिकी रामायण के इस श्लोक पर, आपका लक्ष केंद्रीत करते है. - *"यथा हि चोर: तथा हि बुध्द"* (अर्थात - जहां चोर है, वही बुध्द है.) बुध्द का उल्लेख फिर रामायण में कैसे ? यह सबसे बडा प्रश्न है. और उन पोंगा पंडितो का ही कथन है कि, रामायण में *"उत्तर काण्ड"* बाद में जोडा गया है. *"अयोध्या काण्ड"* पर भी प्रश्न खडे होते है. दुसरा प्रश्न *"राम अगर क्षत्रीय हो तो, उसे ब्राम्हणों ने देव कैसे स्वीकार किया ?"* यह बडा प्रश्न है. महाभारत मे *"कृष्ण भी यादव है. अर्थात अब्राम्हण देव...!"* हमे यह समझना होगा कि, वाल्मिकी का रामायण तथा व्यास का महाभारत, यह कोई *"हिंदु धर्म ग्रंथ* नही है. वे तो *"महाकाव्य"* है. कवि की कल्पना है. फिर *"राम - कृष्ण"* इन अब्राम्हण देवों की निर्माण के पिछे का असली रहस्य क्या है ??? वैसे वाल्मिकी रामायण / तुलसीदास रामायण के अलावा भी बहुत सारे रामायण है.‌ इस विषय पर फिर कभी मै चर्चा करुंगा. अब हम *"प्राचिन अखंड भारत"* के महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य वंश कालखंड पर चर्चा करेंगे. मौर्य वंश - *सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य* - इ. पु. ३२२ - २९८ / *सम्राट बिंदुसार* - इ. पु. २९८ - २७२ / *सम्राट अशोक* - इ. पु. २६८ - २३२ / *सम्राट दशरथ* - इ. पु. २३२ - २२४ / *सम्राट सम्प्रती* - इ. पु. २२४ - २१५ / *सम्राट शालीशुक* - इ. पु. २१५ - २०२ / *सम्राट देववर्धन* - इ. पु. २०२ - १९५ / *सम्राट शतन्धवा* - इ. पु. १९५ - १८७ / *सम्राट बृहद्रथ* - इ. पु. १८७ -१८५.‌ और बृहद्रथ का ब्राम्हण धर्म सेनापति *पुष्यमित्र शुंग* द्वारा इ. पु. १८५ मे हत्या की जाती है. साथ ही *"शुंग वंश"* (ब्राम्हण) की स्थापना...! महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"सम्राट बिंदुसार से लेकर सम्राट बृहद्रथ तक, यह सभी मौर्य वंशी सम्राट ये बुध्द धर्मीय थे."*

        वाल्मिकी रामायण (धर्मग्रंथ नही है. महाकाव्य है) मे *"बुध्द को चोर कहना"* इससे सिध्द होता है कि, वाल्मिकी ब्राम्हण का कालखंड, यह *"बुध्द समय मे या बुध्द के बाद"* का है. और वाल्मिकी ने अपने महाकाव्य में, *"राम का राजा कहा है. भगवान नही."* वही *तुलसीदास का कालखंड यह इसवी १५११ - १६२३ का है.* तब हिंदु धर्म मे *"नशिली वस्तु - गांजा को मान्यता"* हमें दिखाई देती है. तुलसीदास गांजा सेवनी था या नही ? यह भी संशोधन का विषय है. महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"तुलसी रामायण मे राम का भगवान बताया गया."* अर्थात *"राम का क्षत्रियकरण कालखंड शायद यही हो...!"* क्यौं कि, ब्राम्हणों द्वारा क्षत्रीयों को, सहजता से देवत्व देना, यह हम कैसे स्विकार करे ? इसे भी समझना हमें बहुत जरुरी है. अब हम *ब्राम्हण धर्मी आचार्य - पाणिनी"* की ओर बढते है.  वह कालखंड (इ. पु. १८५) भी *सम्राट ब्रहदृथ मौर्य* (चक्रवर्ती सम्राट अशोक का आखरी वंशज) की हत्या, ब्राम्हणी धर्म सेनापति *पुष्यमित्र शुंग* द्वारा होती है. ब्राम्हणी धर्मीयों द्वारा पाणिनी को, *"रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य"* माना है. *"योग सुत्र"* (कालखंड इ.पु. २००) का रचयिता भी मानते है. जब कि रसायन विद्या का जनक बौध्द भिक्खु / आचार्य - *सिध्द नागार्जुन* (कालखंड इ.पु. १५० - ५०) को इतिहास की मान्यता है. ब्राम्हणी आचार्य *पातंजली* की मदत से, *पुष्यमित्र शुंग* ने बहदृथ की हत्या की थी, यह समझना जरुरी है. और इस प्रति क्रांती से, बौध्द साहित्य / धर्म की हानी हुयी है. इस संदर्भ में *बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर* जी, अपनी पुस्तक Revolution and Counter Revolution में लिखते है कि, *"पुष्यमित्र शुंग इसकी प्रतिक्रांति यह, राजकिय हेतु से प्रेरीत ना होकर क्रांती नही थी. बल्की वह बुध्द धर्म के विरोध में, वैदिक धर्मियों ने की गयी प्रतिक्रांति थी. एक बौध्द धर्म का राज्य नष्ट कर, भारत में ब्राम्हणी धर्म की सत्ता लाकर, राजकिय शक्ति से बौध्द धर्म पर, ब्राम्हणशाही का विजय पाना, यह पुष्यमित्र शुंग के प्रतिक्रांति का उद्देश‌ था."* आगे जाकर ब्राम्हणी धर्मीय *पाणिनी"* ने, वाल्मिकी रामायण महाकाव्य के पात्र अनुसार, *"ब्राम्हणी पुष्यमित्र शुंग को राम का पात्र दे डाला."* वह कालखंड इ. पु. १८५ ही है, जो हमे समझना जरुरी है. यहां पुष्यमित्र शुंग केवल राजा ही बना है, भगवान नही...!

      भारत की प्राचिन संस्कृति - सभ्यता का बोध, *"सिंध संस्कृति कहे या हडप्पा संस्कृति"* (कालखंड देंखे - इ. पु.‌ ३३०० - १५००) है. इसके पुर्व की *"पुर्व हडप्पा संस्कृति"* (इ. पु. ७५०० - ३३००) थी, जिसे *"पाषाण युग"* भी कहते है. हडप्पा संस्कृति के बाद *"परिपक्व हडप्पा संस्कृति"* (इ. पु. २६०० - १९००) थी, जिसे *"मध्य कांस्य युग"* भी कहते है, इन तिनो संस्कृति में, हमे *"राम अस्तित्व"* का कोई भी प्रमाण मिला हुआ, हमे दिखाई नही देता. *"अयस"* अर्थात लोह धातु का उगम नही दिखाई पडता. तो फिर स्वर्ण आदी धातु का अस्तित्व ??? *"राम के हाथ मे धनुष्य भी है."* राम कपडे पहने हुये है. ब्रम्हा भी कपडे पहने, अलंकार वस्तु पहने हुये है.‌ लक्ष्मी यह संपत्ति की देवी है. वे सभी नंगे नही है. *"बल्की आदि मानव ये नंगा था."* अत: राम आदी देवों के अस्तित्व का झुट, और भी क्या नही हो सकता है ? नामचिन इतिहासविध *रोमिला थापर* इन्होने राम - कृष्ण अस्तित्व पर, प्रश्न चिन्ह लगाये है. *प्राचिन भारत के लिपी इतिहास बोध, चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शिलालेखों से दिखाई देता है.* जिसे विश्व वैज्ञानिक भी स्वीकार करते है. जहां राम - कृष्ण आदी देवों (?) का, कोई प्रमाण हमे दिखाई दिया है. *"राम यह केवल वाल्मिकी के महाकाव्य का पात्र है"*  कोई वास्तविकता नही है. तो फिर *"राम अयोध्या का राजा...???"*  इस बडे झुट को हमे समझना होगा. साकेत / अयोध्या यह केवल बौध्दों की धरोहर है. और बाकी सब झुट है. फिर भी *"भारत की न्याय व्यवस्था"* के दरिंदो ने, *"अयोध्या रामजन्मभुमी"* पर, उनके पक्ष में निर्णय देकर, *"भारतीय प्राचिन संस्कृति पर बलात्कार किया है."* वे  न्याय व्यवस्था के तथाकथित पांच पोंगा पंडित, केवल *"बलात्कारी पुरुष"* है. उन्हे इस बलात्कार का दंड अवश्य मिलेगा...!!!

       प्राचिन ब्राम्हणी पातंजली / पुष्यमित्र शुंग द्वारा *"प्राचिन अखंड विशालकाय - समृध्द - विकास भारत"* पर, प्रतिक्रांति करने का यह दुष्परिणाम ही, *"भारत की गुलामी"* रहा है. और प्राचिन भारत, यह तुकडों तुकडों में बटं गया है. (जैसे कि - अफगानिस्तान (१८७६) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / तिब्बत (१९०७) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान (१९४७) / पुर्व पाकिस्तान - बांगला देश १९७१). अर्थात वैदिकी ब्राम्हणों द्वारा प्राचिन अखंड भारत पर, बलात्कार / गद्दारी कर, हमारे पुर्वजों को शिकार बनाये थे. अभी के शती में, न्याय व्यवस्था (?) कें *"पांच बलात्कारी पोंगा पंडितो"* (द्वितिय पातंजली) ने, अर्थात उन्ही बलात्कारी - गद्दार ब्राम्हणों के वंशजो द्वारा, भारत पर और सें गुलामी लादी जा रही है. और दुसरा पुष्यमित्र शुंग - *नरेंद्र दामोधर मोदी* को *"ब्राम्हणी धर्म सत्ता का नायक"* बना दिया है. पहला पुष्यमित्र शुंग यह ब्राम्हणी धर्मीय था. दुसरा पुष्यमित्र शुंग यह अ-ब्राम्हण है. बसं, इतना ही फरक है. परंतु अ-ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग, ये ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग से भी बडा शक्तिशाली होने के आसार है. कुछ लोग *"सनातन धर्म"* की बडी बातें करते है. धम्मपद (बुध्द वचन) में सनातन पर एक गाथा है. *"न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (अर्थात - वैर से वैर शांत नही होता, अवैर से शांत होता है. यही संसार का नियम है. यही तो सनातन धर्म है.) परंतु *"4 PM"* Youtube Channel का *संजय शर्मा* लो, या पोंगा पंडित ज्योतिषाचार्य *राजीव नारायण शर्मा* को लो, या *"दिपक शर्मा यु ट्यूब चैनल"* के महापंडित लो, या भारत के *अन्य मिडिया चैनलों* को लों, ये भी तमाम पोंगा पंडित, हमे मिडिया में, हमें क्या परोस रहे है ? यह भी प्रश्न है.

      भारत का द्वितिय पुष्यमित्र शुंग  *नरेंद्र दामोधर मोदी,* क्या भारत का *"द्वितिय आदि शंकराचार्य"* होगा ??? यह अहं प्रश्न है. और इस द्वितिय आदि शंकराचार्य को, गुरु के रुप में, किसी भी *"पातंजली गुरु"* की आवश्यकता नही होगी. अब गुरु पातंजली भी (न्याय व्यवस्था सह) द्वितिय आदि शंकराचार्य के अधिन ही काम करेगा. *"कुबेर मंत्रालय"* (अडानी - अंबानी) भी द्वितिय आदि शंकराचार्य के ही अधिन होंगे. *"चारों पीठों"* (पुरी का गोवर्धन पीठ / द्वारका पीठ / ज्योतिर्मय पीठ / ऋंगेरी पीठ) के शंकराचार्य को भी, द्वितिय आदि शंकराचार्य के शरण जाना होगा. क्यौं कि, भारत में बहुत सें *"गुरु घंटाल शंकराचार्य"* आज कार्यरत है, जो नरेंद्र मोदी के साथ ही खडे है. इसी हालात में *"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"* (RSS) की क्या मज़ाल होगी, द्वितिय आदि शंकराचार्य के विरोध में जाएं...! नवी दिल्ली के "नये संसद भवन" का नामकरण भी, *"आदि शंकराचार्य भवन"* (?) होगा. भारत की दुसरी राजधानी *"अयोध्या"* होगी. पुरानी *"मनु व्यवस्था"* की स्थापना होगी.‌ हम केवल ताली बजायेंगे. आज मुफ्त में मिलनेवाला गेहुं - चावल, तब गुलामी की मजुरी करने के बाद हाथ में मिलेंगा. पुना के *"पेशवाई"* को भी मात होगी. *"क्या हमारे लिए, यह बुरे दिन आने के आसार है ?"* जरां सोंचो. यहां सवाल हमारे जबाबदेही का है. हमारी कर्तव्यता भुलने का है. हिंदी में एक कहावत है - *"जैसा बोओंगे, वैसा ही पाओंगे !"* हम जो भी गलती करेंगे / गलत काम करेंगे, उसका दण्ड तो, हम को मिल ही जाता है. कुछ लोग डर से, कुछ भी ना बोल पाते है. अपने बातों पर अड़िग नही होते. कभी कभी तो, वे गिरगीट के समान, अपना रंग भी बदल जाते है. झुट बोलना तो, एक फैशन हो गयी है. अब हमें जागना - जगाना है या नही, यह सब मै आप पर ही छोडता हुं...!!! *"भारत के संविधान"* का अस्तित्व, दशा एवं दिशा...???


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*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* 

मो. न. 9370984138 

नागपुर, दिनांक १७ जनवरी २०२४

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