Monday, 18 April 2022

 👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १७ अप्रेल २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!

विषय : *सृष्टी / सभी प्रकृति एवं मानव जाति...!*


* प्रश्न - १ :

* *क्या आप के शास्त्र में, सृष्टी या सभी प्रकृति और मानव जाति के बिच संबध को, कैसे परिभाषित करता है ?*

* उत्तर : भगवान बुध्द ने *"सृष्टी"* के बारें में कहां कि, सृष्टी में तिन वस्तुओं का अस्तित्व नही है. वे तिन वस्तुएं है -

१. सृष्टी में अजर, अमर, सचेतन या अचेतन यह कुछ भी नही है.

२. संस्कार नित्य (= कभी नष्ट न होनेवाला) नही है.

३. परमार्थत: कोई जीव या आत्मा नही है.

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भगवान बुध्द ने *_सृष्टी का निर्माणकर्ता यह ईश्वर है, इस बात को नही माना."* अगर ईश्वर यह सृष्टी का निर्माणकर्ता होता तो, सभी प्राणी मात्राओं ने उसके अधिन रहकर, उसके साथ ही चलना चाहिये. अगर ईश्वर ने सृष्टी का निर्माण किया हो तो, दु:ख / आपत्तीयां / पाप इसकी रचना क्यौं की है ? सभी अच्छाईयां या बुयराई भी, क्या ईश्वर ने निर्माण की है ? और अगर दु:ख एवं पाप इस का स्त्रोत ईश्वर ना हो तो, उस का दुसरा भी कारण होगा. अत: ईश्वर सर्व-शक्तीमान है, इस कल्पना का मुल रुप ही खत्म हो जाता है.

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भगवान बुध्द कहते है कि, *"ब्रम्हा भी सृष्टी का निर्माणकर्ता नही है."* जैसे कि, बीज से झाड निर्माण होता है, उस प्रकार ही सभी वस्तुओं की उत्पत्ती होती है. अगर ब्रम्हा  ये सर्वव्यापक हो तो, वह निर्माता नही हो सकता. वही बात *"आत्मा"* इस विषय की है. प्रश्न यह है कि, निर्माण की गयी सभी वस्तुएं, सुखकर क्यौ नही बनायी गयी ? सुख ओर दु:ख यह वास्तव सत्य है.  और उसका बाह्य अस्तित्व भी है.

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बुध्द कहते है कि, सभी वस्तुओं का निर्माण, यह कोई ना कोई कारण से होता है. यह समस्त विश्व का निर्माण, *"कार्य कारण भाव सिध्दांत"* अर्थात *"प्रतित्यसमुत्पाद नियम"* पर आश्रीत है. जैसे कि - कोई वस्तु यदी स्वर्ण से बनी हो तो, वह वस्तु आदी से अंत तक केवल स्वर्ण की होगी.‌ वह वस्तु अन्य धातु की, वह कभी नही हो सकती है.

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भगवान बुध्द कहते‌ है कि, *"चित्तेन नियको लोको |"* अर्थात सृष्टी, संसार यह चित्त की उपज है. बुध्द ने शरीर में *"आत्मा"* इस भाव को नकारते हुये, *"शरीर"* यह नाम एवं रुप इस जोडी से, बनने की बात कही है. इस पर पाली में गाथा इस प्रकार है..

*"नामं च रुपं च इथ अत्थि सच्चतो,*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||*

(विसुध्दीमग्ग)

(अर्थात :- नाम - रुप की यह जोडी एकमेक‌ पर, आश्रित होती है. जब वो एक भंग हो जाती है, तब अपने आप दुसरी भी भंग हो जाती है. और मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.)

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भगवान बुध्द कहते है कि, "यहा कोई कर्ता नही है. सिर्फ कर्म है. यहां देखनेवाला कोई नही है. सिर्फ टेस्ट (चव) है.‌ यहां कोई कर्ता नही है. अनुभव लेनेवाला है. अपने चेतना के पिछे / क्रिया के पिछे, कोई प्रतिनिधि (Agent) नही है.‌ *सृष्टी* के नियमानुसार यहां चमत्कार दिखाई देता है.‌ वह निर्माणकर्ता कोई भी नही है.‌" इस संदर्भ मे पाली भाषा में गाथा इस प्रकार है.

*"कम्मस्स कारको नत्थि, विपाकस्सच वेदका |*

*सुध्दधम्मा पवत्तन्ति एव एतं सम्मादस्सन ||"*

(अर्थात :- कोई भी कर्ता नही है. वस्तु घटकों का चक्र अपने आप घुमते रहता है. और यही सत्य है.)

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* प्रश्न - २ :

* *क्या अतित या भविष्य में, युग के बारे कुछ दर्ज है, जहां सृष्टी या सारी प्रकृति और मानव जाति एक दुसरों के साथ, संवाद कर सकते हों ?*

* उत्तर : अतित या भविष्य के संदर्भ में समझने के लिए, भगवान बुध्द की *"पुनर्जन्म"* (Rebirth) इस संकल्पना को समझना होगा. बुध्द नें *"संसरण"* इस भाव को सिरे से नकारा है. संसरण का अर्थ होता है, "आत्मा का एक शरिर से, दुसरे शरिर में प्रवेश करना." आप को मैने पहिले प्रश्न में कहां कि, बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को नकारा है. बुध्द ने *"बिना - संसरण"* से पुनर्जन्म की बात कही है. परंतु बुध्द का *"पुनर्जन्म सिध्दांत"* यह, दुसरे अन्य धर्म से बहुत ही अलग है.

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भगवान बुध्द *"बिना - संसरण"* संदर्भ मे कहते है कि, "एक दिया की ज्योति से, दुसरे दिया की ज्योत जला दिया तो, यहा संसरण नही है. वैसे ही - एक पेड के आम की बिज से, दुसरा आम के झाड का निर्माण होता है. यहां पेड के जिवित तत्व में संसरण नही दिखाई देता."

    भगवान बुध्द ने मानव का यह शरिर, *"पृथ्वी / आप / तेज / वायु"* इन चार तत्वों से बनने की बात कहीं है. बुध्द ने *"आकाश"* यह महाभुत नही माना है. और उनका कार्य *"चेतना"* (Vitality) इस भाव से, सदोदित सुरु रहता है.  तथा मानव की जिवित क्रिया शुरु रहती है. नैसर्गिक नियम (Natural Law) के अनुसार जब चेतना शक्ती शरिर से निकल जाती है, तब शरिर यह बंद पडने लगता है. और मनुष्य निर्जिव हो जाता है. मृत्यु को प्राप्त होता है. अर्थात वह चारों महाभुत *"पृथ्वी / आप / तेज / वायु"* वे निसर्ग में, समगुण धर्मिय महाभुतों में विलिन हो जाते है. अग्नी यह अग्नी में मिल जाता है. इस प्रकार सभी महाभुतों मे विलिन हो जाते है....!

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भगवान बुध्द ने *"मन"* इस भाव को स्विकार किया है. बुध्द  ने कहा कि, "शरिर में जो *"पांच पंचेद्रिये"* (आंख / कान / नाक / जिव्हा / त्वचा) है, उससे *"चेतना"* का बोध होता है. जैसे - आंखो से देखना, नाक से बास लेना, कान से शब्द सुनना, जिव्हा से रस आस्वाद लेना, त्वचा से स्पर्श का ज्ञान होता है. आंख से वस्तु को देखना और हात से उस वस्तु को उठाना, इन दो क्रिया में जो तालमेल होता है, वह *"मन"* के अस्तित्व का बोध करता है. जब की मन यह *"दृश्य"* नही है. वह अनुभुती कराता है. *"मन"* के बिना दो भिन्न क्रियाओं का समन्वय सिध्द नही हो सकता. *"आत्मा"* का यहां कोई उपयोग ही नही. अर्थात आत्मा का अस्तित्व, यहां सिध्द नही होता.

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भगवान बुध्द ने मानव के, उनके साथ रहने की बातें कही है. परंतु वह शरिर के किसी भाग दिखाया नही जा सकता. परंतु *"कर्म नियम"* अनुसार उस कर्म फल का, अपने आप निर्माण हो जाता है. बुध्द ने विश्व का कर्ता नही, यह कहां है. इस संदर्भ में पाली भाषा मे, एक गाथा इस प्रकार है. 

*"न हेत्थ देवो ब्रम्ह संसारस्स अत्थि कारको*

*बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुसंभारपच्चया ति |"*

(अर्थात :- यहां कोई विश्व का कर्ता नही है. सृष्टी के नियमानुसार वह *"सृष्टी चक्र"* अपने आप शुरु रहता है.)

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भगवान बुध्द ने कुशल कर्म की बातें कही है. और उससे पांच प्रकार के लाभ की बतायें है. वे है -

१. दृढ नीतिमत्ता वाला व्यक्ती, अपने उद्दोगशीलता से संपत्ति कमाता है.

२. उस व्यक्ती की किर्ती दुर तक दिखाई देती है.

३. वह व्यक्ती किसी भी समाज में, आत्मसंयम तथा प्रसंगावधान रखकर प्रवेश‌ करता है.

४. चिंता विरहित होकर शांत चित्त से, मृत्यु को प्राप्त होता है.

५. मृत्यु के पश्चात शरिर नष्ट होने पर, उसका सत्कर्म ही सुख एवं शांती की अनुभूति देता है.

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* प्रश्न‌ - २ अ :

* *यदीं हां, तो ऐसा करने में, सक्षम होने की क्या शर्त है ?*

* उत्तर : भगवान बुध्द ने *"कुशल कर्म"* करने की शिक्षा दी है. अर्थात बुध्द *"क्रियावाद"* की बातें कहते है. उस संदर्भ में, पाली भाषा मे एक गाथा है.

*"सब्ब पापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा |*

*सचित्त परियोदपनं एतं बुध्दानसासन ||"*

(अर्थात :- अकुशल कर्म ना करना, कुशल कर्म करना, सद्गुण प्राप्त करना, स्वयं अंतकरण शुध्द करना, यह बुध्द का शासन है.) 


* * * * *  * * * * * * * *

* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

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