Saturday, 16 April 2022

 🇳🇪 *भारत का संविधान संस्कृती से संस्कृती संविधान की ओर पलायन...!!!*

   *डॉ.‌ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

    

    भारत में *"संविधान संस्कृती"* बसी है, या *"संस्कृती संविधान"* की ओर भारत बढा है / बढ रहा है. ? यह आज गहन चिंतन का बडा ही विषय है. उपरोक्त दोनो ही वाक्यों में, *"संविधान "* भी है. और *"संस्कृती"* भी ! बस केवल शब्दों का हेरफेर है. पर यह शब्दों का हेरफेर इतना सहज नही है. जो साधारण विचारों का व्यक्ती, उस शब्दच्छल को सहज समज जाएं ! और आज कल *दो बडे अलग मुद्दों* पर, गहन चर्चा भी हो रही है. वह दो बडे गहन मुद्दे - पहला मुद्दा है, हरिद्वार की सभा में संघनायक *डॉ.‌ मोहन भागवत"* का यह एक बयान है, *"हमारे अखंड भारत बनाने बिच, जो कोई भी आयेंगे वो मिट जाएंगे. हम अंहिसा के पक्षधर है. पर हम हाथ में दंडा भी पकडेंगे...!"* वही दुसरा बयान अमेरिका की *प्रा. अँंनी मँक्स* का है. उसने अपने बयान कहा कि, *"भारत यह गंदा देश है.‌ यहां की बामन औरते...! (वे अपमान शब्द स्वयं सुने) और भारतीय मुल के कई डॉक्टर अमेरिका में नोकरी करते हुये भी, अमेरिका की ही बदनामी करते आये है.....!"*

    भारत एक सार्वभौम / समाजवादी / धर्मनिरपेक्ष / लोकशाही / प्रजातंत्र को देश में रूजाना और उस भाव के अनुरुप में, देश को चलाना / प्रत्यक्ष आचरण में लाना, इसे *"संविधान संस्कृती"* कहते है. वही उसके बिलकुल विपरीत आचरण करना / व्यवहार अशुध्दता जोपासना करना / पुंजीवादी / हुकुमशाही / राजेशाही / धर्मांधवादी / देववादी / विचारों से चलना एवं उसे अमल में लाना, इसे *"संस्कृती संविधान"* कहते है.   वाक्यों के शब्दच्छल भेद की परिसिमा बोध, हमे इस भाव मे समझ में लेना बहुत जरूरी है. अत: उपरोक्त भाव, हमें भारत के स्थिती को समझने के लिए, काफी मदतगार सिध्द हो सकता है.‌ *"लोकशाही / प्रजातंत्र"* की परीभाषा, *"प्रजा द्वारा चलाया गया, प्रजा के हित के लिए, प्रजा का शासन"* इस भाव को, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* ने पुर्ण रुप से नही माना. उनका कहना था कि,*"प्रजातंत्र"* इस परिभाषा से, शासन के सही स्वरुप का बोध नही होता.  वही डॉ.‌ आंबेडकर साहेब जी ने प्रजातंत्र के विभिन्न स्वरुप, जैसे की - *"सामाजिक प्रजातंत्र / राजनीतिक प्रजातंत्र / आर्थिक प्रजातंत्र"* इस भाव का भी परामर्श लेकर, *"भारत के संविधान"* को पुरा जामा पहनाते हुये, २६ नवंबर १९४९ को *"संविधान सभा"* में परम पुज्य डॉ.‌  बाबासाहेब आंबेडकर कह गये कि, *"On the 26th of January 1950, we are going to enter into a life of contradictions. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one value. In our social and economic life, we shall, by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one vote. How long shall we continue to live this life of contradictions ? How long shall we continue to deny to equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will do so only by putting our political democracy in peril. We must remove this contradictions at the earliest possible moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy which is Assembly has to laboriously built up...!"*

     अब हमे पहला मुद्दा - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (R.S.S.) के संघनायक *डॉ. मोहन भागवत* इनके उपरोक्त कथन पर चर्चा करेंगे. भागवत का सदर कथन *"क्या वह प्रत्यक्ष में साकार होना संभव है ?"* यह महत्व का प्रश्न है.‌ और सब से बडा प्रश्न है, *"वह अखंड भारत यह कितना विशाल होगा ?"* वह पुरा बनाना की सीमा २० - २५ साल की बतायी गयी है. और लोगों का साथ रहा तो १० - १५ साल ! अब इस पर विवाद का दौर चल रहा है. अब हम इस विवाद पर जखडे रहे, वो इस बिच दुसरा अन्य काम कर जाएंगे...! जब हम प्राचिनतम *"अखंड विशाल भारत"* की वह बातें करते है, तब *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का नाम हमारे सामने आता है. सम्राट अशोक का साम्राज्य *"वर्तमान भारत /  पाकिस्तान / नेपाल / अफगानिस्तान / पश्चिम में फारस / दक्षिण आशियाई भाग / बांगला देश‌ ..!"* तक फैला हुआ था. अशोक का आखरी वंशज बृहद्रथ की हत्या बामनी सेनापती *पुष्यमित्र शुंग* ने कर, वह *"अखंड विशाल भारत"* को खंड खंड कर दिया.‌ अर्थात *"अखंड विशाल भारत"* को तोडनेवाले, वे बामनी गद्दारों की वंशज आज *"अखंड भारत"* की बातें कर रहे है. तब हमें सोचना होगा कि, उनका अगला निशाना कुछ और है. और बातों बातों में *"वे अंहिसा का नाम लेकर, काठी भी बोल गये है...!"*  जरासा, दिमाग पर जोर डालो, दोस्तो.

      अब हम दुसरा मुद्दा अमेरिका की *प्रा. अँनी मँक्स* के बयान पर चर्चा करेंगे.‌ मैक्स ने कहा कि, *"भारत यह गंधा देश है."* और बामनी औरतों तथा वहां कार्यरत डॉक्टरों पर, उसने बहुत ही गंदी टिप्पणी की है.‌ और उसने उन पर अमेरिका को बदनाम करने का आरोप भी लगाया है. उस प्राध्यापक के बयान पर, *"भारत के कुछ बामनी विद्वान खपा हो गये है."* बहुत आग बबुला हो गये है. अब सवाल यह है कि, *"क्या हम उस अमेरिकी प्राध्यापक के बयान का जाहिर निषेध करे ?"*  वैसे तो वह प्राध्यापक बहुत छोटे पद पर कार्यरत है. उसके बयान की गंभिर दखल, बामनी नायक क्यौं ले रहे है ? यह प्रश्न है.‌ वही अमेरिकी कौंसिलर *मिसेस नाडार* ने तो, अमेरिका कौंसिल में जो खुला भाषण दिया है, वह तो, हम सब का होश उडानेवाला है. वह भाषण के कुछ अंश इस प्रकार है.

      अमेरिका कौंसिलर *मिसेस नाडार* ने अमेरिका कौंसिल में कहा कि, *"मई २०१४ से भारत में, एक तानाशाही सरकार ने कब्जा कर लिया है. जिस का नेतृत्व प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी कर रहे है. मोदी सरकार बार बार संवैधानिक संस्थानों को कंट्रोल करती है. उनकी नीतियाँ गलत है. अमेरिका में रहनेवाले मुल भारतीय का ध्यान भी हटा रहे है. और वे कट्टरपंथी लोक जो खासकर अमेरिका में है, वे उस बात को अमेरिका की स्विकृती मिल जाए, यह कोशिश कर रहे है. भारत में सभी चंगा सा है, यह बताने की कोशिश कर रहे है.‌ मै जो कि हिंदु हुं. अमेरिका मे रहती हुं.‌ यह सब बेनकाब करने के लिए मजबुर हुं.‌ नरेंद्र मोदी ही नही, बल्की अमेरिका में रहनेवाले लोग RSS के प्रोडक्ट है.‌ RSS यह संगठन हिटलर के औलादों से प्रभावित है. वैसे उनकी जो यहां आंतरराष्ट्रिय संस्थाएं है.‌ जैसे की - HSS, हिंदु कौंसिल ऑफ़ अमेरिका, हिंदु अमेरिकन फाऊंडेशन, हिंदु स्टुडंट कौंसिल यह सभी अमेरिका विश्वविद्यालयों मे कार्यरत है. त्योहारों के नाम पर, वे अपना एजेंडा फैला रहे है. अल्पसख्यांक के खिलाफ, वे नफरत फैला रहे है. मुस्लिम ही नही, इस्लाम और सिखों को टारगेट कर रही है.‌ मोदी सरकार भ्रष्टाचार और खुब लुटाने का काम कर रही है.‌ भारत में कोरोना काल में ५० बिलियन लोग, गरिबी रेखा के निचे आ गये है. मोदी सरकार उनके लिए, कोई काम नही कर रही है....!"* यह अमेरिका कौंसिल का भाषण, भारत की स्थिती को दर्शाता है. जो बहुत बेहद गंभिर और संवेदनशील विषय है.

      नयी दिल्ली के *पं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU*) में, जो रामनवमी के नाम पर *"भगवा आंदोलन"* चल रहा है.‌ इधर महाराष्ट्र में मनसे नेता *राज ठाकरे* जो हनुमान मंदिर में *"हनुमान चालिसा"* पढने का आंदोलन चला रहे है. मस्जिदों के भोंगे हटाने की मांग कर रहे है. उत्तर प्रदेश / मध्य प्रदेश में, *"बुलडोजर से गुंडो को मकान डहाने"* की न्युज दिखाई देती है.‌ यह सभी इतना सहज विषय नही है. अगर गुंडो ने अपराध किया हो तो, *"मा. न्यायालय वह अपना काम करेगा."* उस संदर्भ में उनकी वकालत नही की जा सकती. परंतु सरकार खुद कानुन अपने हाथ में लेकर निर्णय करे तो, हमारे *न्यायालय का कोई औचित्य ही नही रहा."* हमारे *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* ने "अयोध्या रामजन्मभूमी प्रकरण" पर जो निर्णय दिया है, उस का भी भविष्य में बहुत दुरगामी दुष्परिणाम दिखाई देंगे ही. उस केस में, प्रायमा फेसी यह विषय हमेशा याद रहेगा...! *"भारत राष्ट्रवाद / भारतीय भावना"* संदर्भ में / *"भारतीय संविधान की गरिमा"* खंडीत होने पर भी, न्यायालय की शिघ्रता दिखाई नही देती. *"गोमांस सेवन"* यह विषय हमेशा भावनिक रहा है. समस्त विश्व में गोमांस सेवन किया जाता है. परंतु भारत देश में वह धार्मिक विषय बनाया जाता है. वैदिक काल में *"गोहत्या"* यह यज्ञ विधी संस्कार का भाग हुआ करती था. परंतु कालानुरुप यह सभी संदर्भ बदल गये है. *"पहले वैदिक धर्म, फिर बामनी धर्म और सबसे अंत मे हिंदु धर्म... यह धर्म की उत्क्रांती...!"*  डॉ. आंबेडकर बता गये है. बामन छोडकर वे अन्य जाती - अनुसुचित जाती / अनुसुचित जमाती / विमुक्त जाती / ओ.बी‌.सी. यह कभी *"हिंदु"* संज्ञा में ना होने से, अंग्रेज काल में अनुसुची (Schedule) बनायी गयी. और आज *"हिंदुत्व"* नाम की राजनीति...???

    १५ अगस्त १९४७ को भारत को सच्ची *"आजादी"* मिली या वो *"सत्ता हस्तांतरण करार"* था, यह संशोधन का विषय है.‌ परंतु २६ जनवरी १९५० इस दिन को, भारत यह *"प्रजासत्ताक"* होने पर, हमारे *"भारतीय संविधान"* से भारत राजसत्ता की बुनियाद रची गयी. सम्राट अशोक के चिन्ह को *"भारत की राजमुद्रा"* मान्यता मिल गयी.  और भारत में *"संविधान संस्कृती"* का स्विकार किया गया. फिर धीरे धीरे कांग्रेसी काल से ही, सम्राट अशोक की राजमुद्रा *"भारतीय करंसी"* पर छोटी की गयी. और मोहनदास गांधी को बडा कर वहां बिठाया गया.‌ और कुछ अन्य जगह से, जैसे - *पोष्ट कार्ड / आंतरदेशीय पत्र* से राजमुद्रा हटाई गयी.‌ आज *शासन के बहुत से विभागों* ने, राजमुद्रा को दर किनारा कर, उन शासन विभागों ने *"अपने अलग मोनो"* स्थापित किये है.‌ यह सभी *"स्लो पायझनिंग डोज"* जनता को, *उच्च जातीय वर्ग* द्वारा दिया जाता रहा.‌ और हम उन सवर्ण नेताओं के राजकिय गुलाम हो गये. अर्थात *"संस्कृती संविधान"* इस तरह यहां रूजाते हुये चली आयी. और हम खामोशी से, यह सब देख रहे है. पहले भी और आज भी...!!!

    कांग्रेस का काल यह *"स्लो पायझनिंग डोज"* काल था. और भाजपा का काल *"हार्ड पायझनिंग डोज"* काल है.‌ कांग्रेस ने *"आंबेडकरी आंदोलन"* को तोडने का काम किया. और धीरे धीरे धर्माधिष्ठित राजनीति कर, ५५ साल तक देश पर हुकुमत की.‌ वही वो धीरे धीरे खोकला होती गयी. *"प्रकृति का यही नियम है."* बुध्द ने कुशल कर्म की बातें कही. और अकुशल कर्म करनेवाला यह पतन की ओर बढता रहता है. *भाजपा का भी हश्र एक दिन कांग्रेस के समान होगा.* मायावती एक समय तुफान पर थी. आज वो हासिया पर है. रिपब्लीकन का भी वही हाल है. अत: *"संस्कृती संविधान"* का हश्र शांती से परे है. हिंसा की ओर ले जाता है. अत: *"संविधान संस्कृती"* ही तुम्हे सन्मार्ग देगी. शांती देंगी. बुध्द का प्रज्ञा, शील, करुणा सिखायेगी. स्वातंत्र, समता, बंधुता, न्याय का आगाज देगी. *"बुध्द चाहिये या युध्द"* यह विचार युं ही नही है. समझना तो आप पर निर्भर है.  जय भीम ! नमो बुध्दाय !!!


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(नागपुर, दिनांक १६ अप्रेल २०२२)

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