😴 *शिम्बे ॲबे की मन की बात...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो.न. ९३७०९८४१३८
कुछ साल पहले
भारत में बुलेट ट्रैन की सिलसिले में
लोन करारनामा पर हस्ताक्षर करने
जापान के तत्कालिन कर्मठ प्रधानमंत्री
शिम्बे ॲबे भारत आये थे.
और भारत के प्रधानमंत्री के साथ
करारनामा पर हस्ताक्षर होने पश्चात
उन्हे हमारे भारत के प्रधानमंत्री (?)
बनारस मंदिर में आरती करने ले गये.
मंदिर में वह आरती तिन घंटे चली
शिम्बे ॲबे वक्त की नजाकत को देख
बहुत ही परेशान होने लगे
इस विषय पर, भारत के जाने माने कवि
संपत सरल ने एक कविता लिखी
साथ में भारत के प्रधानमंत्री के
"मन की बात पर" एक व्यंग भी कसा.
गुजरात के कुछ उद्दोजकों द्वारा
बैंकों को करोडो का चुना लगाकर
विदेशों में भागने की प्रवृत्ती को
बुलेट ट्रैन लोन के साथ जोडते हुये
मन की बात में, "काम की बात" पुंछा...?
अत: संपत सरल की वह रचना सुनकर
जापान के प्रधानमंत्री और मै स्वयं ही
एक ही धम्म से जुडे होने के कारण
शिम्बे ॲबे जी को जापान फोन लगाया
मेरा फोन शिम्बे जी के पीए ने उठाया
मैने मेरा अपना परिचय दिया
और भारत के बुलेट ट्रैन सिलसिले में
धम्म मित्र शिम्बे से बात करनी चाही.
तब शिम्बे जी का पीए कहने लगा
अरे भाई, हमे क्या मालुम था...?
भारत का प्रधानमंत्री वक्त बरबादी है
हमारे शिम्बे जी के तिन तास बरबाद हुयें
उपर से हमारा लोन का पैसा फस गया.
वह पैसा किसी गरिब देश को देते तो
हमे बहुत कुछ मन की उपलब्धि होती.
यह बातें सुनकर, मै थोडा हंसने लगा
तब उस पीए ने मुझे खेद से कहां
प्रिय धम्म मित्र जी, माफ करे.
शिम्बे ॲबे जी अभी बहुत व्यस्त है
देश के लिए बहुत कुछ करना बाकी है
हमारा हर बच्चा वक्त को समझता है
इसलिये हम "विकसीत राष्ट्र" है...!
मैने उन्हे "सायोनारा कहां"
और फोन पर हमारी वार्तालाप बंद हुयी.
फिर मै भारत के प्राचिन इतिहास पर
सोचने लगा, मंथन करने लगा
चक्रवर्ती सम्राट अशोक का
विशालकाय अखंड विकास भारत...!
आज खंड खंड "अ-विकास भारत" से
गोरे अंग्रेज चले गये, काले अंग्रेज आये
"भारत राष्ट्रवाद" का किनारा कर
यहां मन की बात होती रहती है
काम की बात कहां...???
* * * * * * * * * * * * * * * *
(मेरा अपना भी देश की व्यवस्था पर व्यंग.)
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