👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, ३० मई २०२१ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछे दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* पेनालिस्ट : *डॉ. मिलिन्द जीवने* (बुध्दीझम) / *पाद्री इथान क्रुझ* (ख्रिस्त) / *डाॅ. सैय्यद इलिआस* (मुस्लिम) / *यशराज सिंग* (शिख) और यह १७० देशों में टेलिकास्ट किया जाएगा.
* प्रश्न - १ :
* *आप की राय में, वर्तमान समय सहित क्या कारण है कि, धर्म मानव इतिहास में संघर्ष एवं विवादों का कारण बना...?*
*** इस प्रश्न को समजने के लिए, सबसे पहले हमे *"धर्म"* इस शब्द की, संकल्पना समझना बहुत जरूरी है. विशेषत: भारत के संदर्भ में...!!! प्राचिन काल से आज तक का इतिहास देखें तो, *"धर्म"* इस शब्द की संकल्पना, कभी एक समान नहीं रही. वह कालानुरुप बदलती गयी. प्राचिन काल में *"बिजली गिरना, बारिस आना, बांढ़ आना"* आदी विषय मानव के लिए, विचार शक्ती के बाहर के विषय थे. इन घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए, जादुटोणा समान क्रिया भी की जाती रही और उसे *"धर्म"* कहा गया.
दुसरी अवस्था मे धर्म की संकल्पना, *"यह मनुष्य की श्रध्दा, धार्मिक कर्मकांड, रिती रिवाज़, प्रार्थना, बली देना"* इस विषय से संबधित दिखाई देती है. और यह घटना जो घटित होती रही है, इस के पिछे *"ईश्वर / परमात्मा / विश्व निर्माण कर्ता"* यह अंध:विश्वास कारण बना.
तिसरी अवस्था में, कुछ नया भाव उस में जोडा गया. हर मनुष्य के शरिर में, *"आत्मा"* वास करता है. वह नित्य है. वह नश्वर है. मनुष्य जो कोई अच्छे या बुरे कर्म करता है, उसके पिछे *"ईश्वर पर श्रध्दा या आत्मा को उत्तरदायी"* माना गया. और यही धार्मिक मान्यता *धर्म"* उत्थान का, हमें एक कारण दिखाई देता है.
आज की अवस्था मे, *"ईश्वर पर आस्था रखना, आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास रखना, ईश्वर की पुजा - अर्चना करना, आत्मा का सुधार, प्रार्थना करना, इन सारे क्रिया भाव को करते हुये, ईश्वर को प्रसन्न करना"* इस अर्थ में *"धर्म"* की संकल्पना, हमें दिखाई देती है...!!!
जब हम *"धर्म"* की संकल्पना उपरोक्त अर्थ से जोडते है तो, *"बुध्द का धम्म"* यह *"धर्म या मजहब"* हमें, कहीं भी दिखाई नही देता. *"धम्म"* यह पाली भाषा का शब्द है...! वही भगवान बुध्द ने भी स्वयं को, *"ईश्वर"* मानने से इंकार किया है. भगवान बुध्द स्वयं को, *"उपदेशक या मार्गदाता"* ही कहते है. *"धम्म्मपद"* इस ग्रंथ के २० वे प्रकरण में, तथागत बुध्द कहते है....!
"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं
अक्खातारो तथागता
पटिपन्ना पमोक्खन्ति
झायिनो मारबंधना II"
*(अर्थात : - कार्य करने के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत का काम केवल मार्ग दिखाना है. अत: तुम्हे ही मार्ग पर आरुढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनों से मुक्त होना है...!)*
तथागत ने ऋषीपत्तन में अपने भिक्खु संघ कों उपदेश देते हुये कहा था. वह गाथा इस प्रकार है.
"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकानु कंपाय अत्थाय, हिताय, सुखाय देवमनुस्सानं, देसेत्थ भिक्खवे धम्मं आदि कल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसान कल्याणं, सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुण्णं परिसुध्दं ब्रम्हचरियं पकासेथ I"
*(अर्थात : - हे भिक्खुओ, बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए, लोकोंपर अनुकंपा कर, देव एवं मनुष्यों के कल्याण के लिए, प्रसार करने भ्रमण करो. प्रारंभ मे कल्याणप्रद, मध्य में कल्याणप्रद एवं अंत में कल्याणप्रद ऐसे धम्म मार्ग का अर्थ और भावसहित परिशुध्द इस धर्म का ज्ञान, ब्रम्हचर्य पालन कर प्रकाशमान करो...!)*
उपरोक्त दो गाथा कहने का, मेरा एक ही कारण रहा है. आज भारत में *"धर्म"* इस शब्द का अर्थ, *"धारण करना"* इस अर्थ में लिया हुआ, हमें कही भी दिखाई नही देता. बल्की *धर्मांधवाद* का, जहां वहां बोलबाला दिखाई देता है. *"धार्मिक विवादों की आग लपेटें"* तिव्रता से बढकर, मारकाट की रणनीति खेली जा रही है. *"धर्म आंतकवाद"* की छाया, जहां वहां हमें दिखाई दे रही है...! *"प्रेम / मैत्री / बंधुता / शांती /करुणा"* इस बुध्दभाव के अभाव में, मानवतावाद मिटसा गया है...!! उपरोक्त कारण से ही, धर्म यह मानव इतिहास में, संघर्ष एवं विवादों का कारण रहा है...!!!
* * * * * * * * * * * * * * * *
* प्रश्न - २ :
* *धर्म के कारण होनेवाले विवादों को रोकने के लिए किस तरह के प्रयासों की आवश्यकता है. विशेष रुप से धार्मिक नेताओं द्वारा क्या किया जा सकता है ?*
*** मेरे खयाल से इस प्रश्न का उत्तर, *"विश्व स्तर"* पर अलग है. तथा *"भारत के संदर्भ"* में अलग रहेगा. क्यौं कि, इन दोनों की ही पृष्ठभूमि, यह भिन्न भिन्न है. अत: मै पहले *"भारत के संदर्भ"* मे, इसका उत्तर दुंगा. भारत की राजनीति, यह पुर्णत: *"धर्म एवं जाति"* आधारित दिखाई देती है. और इन भारतीय राजनेताओं को, वैसे देखा जाएं तो, *"विकास भारत"* (Developed India) बनाने की, कोई ईच्छा शक्ती ही नही है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के प्राचिन काल का *"अखंड / विशालकाय / समृध्द भारत / विकास भारत"* को, खंड खंड विभाजीत कर, *"विकसनशील भारत"* (Under Developed India) की कु-स्थिति में, लानेवाले उन गद्दार लोगों की, आज के सत्ताधीश वारिस है.
भारत आजादी के एक सहभागी नायक *मोहनदास गांधी* ने, भारतीय राजनिती को *"वेश्या"* (Prost) कहां है. यह युं हीं नही है. आज की भारतीय अर्थव्यवस्था, यह बहुत ही बदतर स्थिती की ओर जा चुकीं है...! *"सुजलाम् सुफलाम् मलयज सितलाम्"* यह भारत कहां है...? आजादी के ७२ साल गुजरने के बाद भी, भारत में रहनेवाला कोई भी व्यक्ती, वह स्वयं अपना परिचय कभी *"भारतीय"* (Indian) देते, हमें नज़र नही आता. यहां आदमी की पहचान, जाति / धर्म के आधार पर होती है. भारत में अब तक सत्तारूढ़ रहे, किसी भी राजकिय दल ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं भारत राष्ट्रवाद संचालनालय"* का निर्माण, कभी नही किया. नां ही *"भारत देशभक्ती"* जगाने के लिए, बजेट में उस संदर्भ में, कोई भी प्रावधान...! अत: सब से पहले, *भारत को इस दिशा में पहल करना,* बहुत जरूरी है. उस के बाद, *"जाति विहिन समाज का निर्माण"* की ओर, हमें बढना होगा.
अब हम *"विश्व स्तर"* पर, चल रहे धर्म विवादों की चर्चा करेंगे. आज समस्त विश्व में, *"युध्द या बुध्द"* (Battle or Buddha) इन *"दो B"* विषयों पर, चर्चा हो रही है. UNO की संसद ने, *"बुध्द धर्म यह विश्व का सर्वोत्तम धर्म"* होने की, अपनी मान्यता प्रदान की है. भविष्य मे विश्व का होनेवाला युध्द, यह "आमने - सामने का युध्द" ना होकर, *"केमिकल सदृश्य युध्द"* होगा. भयावह मानवी संहार होगा. *"कोविड - १९"* यह उस युध्द की, एक पहली कडी है. आज लोगों की आर्थिक हालात, बहुत ही खस्ता दिखाई देती है. तेजी से बेरोज़गारी, यह बढ रही है. *"पुंजीवाद"* अपने पैर पसरते हुये, हमें दिखाई दे रहा है. *"प्रजातंत्र* यह मिटसा गया है. अत: समस्त विश्व में "शांती / अमन" चाहिये हो तो, हमें बुध्द की ओर जाना होगा. *"प्रेम / मैत्री / भाईचारा / शांती / करुणा"* इन बुध्दभाव को, हमें जगाना होगा. तथा समस्त विश्व में, *"धर्म की परिभाषा,"* अब हमें बदलनी होगी. और *"तथागत बुध्द के शब्द में"* कहा जाएं तो...!
"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकानु कंपाय अत्थाय, हिताय, सुखाय देवमनुस्सानं, देसेत्थ भिक्खवे धम्मं आदि कल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसान कल्याणं, सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुण्णं परिसुध्दं ब्रम्हचरियं पकासेथ I"
अत: समस्त *धार्मिक नेताओं* को, *"अपने धर्म से बाहर उठकर,"* विश्व में *"शांती / अमन"* स्थापित करने के लिए, इस से बढकर, और दुसरा कोई भी अन्य बेहतर हल, मुझे नज़र नही आता...! अंत मे, तथागत बुध्द के शब्द में कहा जाएं तो....!!!
सब्बपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा I
सचित्तपरियोदपनं, एतं बुध्दान सासनं II
*(अर्थात :- सभी तरह के पापों का न करना, पुण्य का संचय करना, अपने चित्त को परिशुध्द एवं नियंत्रित रखना, यही बुध्द की शिक्षा है. यही बुध्द का शासन (धर्म) है.)*
* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
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