* *सरदार वल्लभभाई स्मारक - स्टॅचु ऑफ युनिटी का लोकार्पण: नेताराज को एक सवाल?*
*डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य', नागपुर*
मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हिंदुस्तान (विश्व का अस्तित्वहीन देश - असंबद्ध/अनैतिक देश) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (भारत के प्रधानमंत्री नहीं) आज दिनांक ३१ अक्तूबर २०१८ को, गुजरात के सरदार बांध परिसर में, *भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री -गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल* के बहुकाय प्रतिमा का लोकार्पण किया. एवं वह प्रतिमा *"विश्व की सबसे उंची प्रतिमा"* होने का, एक दावा भी किया गया. उस प्रतिमा स्थल को *"Statue of Unity"* यह नामकरण भी किया गया. हमारी सत्ता नीति इससे क्या हासिल करना चाहती है...? प्राचीन अशोक काल का "अखंड भारत", आज *"खंड - खंड भारत"* बन गया है. जाती - धर्मवाद का अतिकरण हो रहा है. एकात्मता - बंधुभाव खोजने पर भी दिखाई नही देती. अगर हमारे राजसत्ता नीति ने *"आर्थिक समतावाद - सामाजिक समतावाद - राजकीय समतावाद"* के दिशा में, एक पहल की होती तो, उस का बडा स्वागत होता. वही उस लोकार्पण समारोह में, नरेंद्र मोदी का भाषण भी विचार अपक्वता का परिचय देते गया. *"नरेंद्र मोदी ने भाषण की सुरुवात ही तो, "हिंदुस्तान", इस अस्तित्वहीन और संविधान विरोधी नाजायज शब्द से की.* जो प्रधानमंत्री इस भारत देश में रहता हो, और जिसे हमारे अपने देश का, संविधानिक नाम मालुम ना हो ते, वो व्यक्ति निश्चित ही किसी पद के लायक नहीं माना जा सकता. आगे जाकर नरेंद्र मोदी ने, सरदार वल्लभभाई पटेल के *"भारत राष्ट्रवाद" (?)* की बडी तारिफ की.
सरदार पटेल, उस काल में निश्चित ही एक सफल - सशक्त - प्रभावशाली कॉंग्रेस नेता रहे है. इतना ही नहीं, सरदार पटेल, ये प्रधानमंत्री पद के भी सशक्त दावेदार थे. मोहनदास गांधी तो, उस काल में, कॉंग्रेस के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. दुसरी अहं बात यह कि, *"मोहनदास गांधी और सरदार पटेल यह दोनों नेता भी गुजरात प्रांत से जुडा करते थे. फिर भी सरदार पटेल का भारत का प्रथम प्रधानमंत्री ना बनना,"* यह कुटनीति इतनी सहज नही है. विशेषतः गुजराती समाज यह प्रांतवाद को, विशेष रुप से प्राधान्य देता रहा है. परंतु यहां *'जवाहरलाल नेहरू का भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनना...?'* इस इतिहास को हम किस संदर्भ की राजनीति समझे? यह संशोधन का विषय है. खैर छोडो, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे. परंतु नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के संदर्भ में "भारत राष्ट्रवाद" की बातें करना, यह तो बहुत बडा ही जोक हो गया. क्यों कि, इतिहास गवाह है कि, *"तत्कालीन समस्त नेताओं में केवल डॉ. आंबेडकर ही 'भारत राष्ट्रवाद - भारतीयत्व "* की वकालत करते थे. अन्य सभी कॉंग्रेसी नेता लोग तो, *"हिंदु धर्म व्यवस्था"* के पक्षधर थे. सरदार वल्लभभाई पटेल भी...! यही कारण है कि, भारत आजादी के बाद इस ७० लाल में, *"भारत राष्ट्रवाद - भारतीयत्व भावना"* का कभी सुर्योदय ही नही हुआ. ना तो कॉंग्रेस ने, ना ही भारतीय जनता पार्टी ने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय "* की स्थापना की है. ना ही केंद्रीय बजेट मे कोई प्रावधान ..! यहां तो " नंगा सत्ताराज" चल रहा है. जहां "नीतिवाद" को कोई जगह नही है. फिर भी वे कॉंग्रेसी नेता बन गये महान देशभक्त...!!! *संघवादी भी उस विचारों मे अछुते नही रहे. उन्होंने सत्ता मिलते ही, अपने जाती विशेष के लिए "देशभक्ती" किताब की, स्वयं सरकार से व्यवस्था कर डाली.*
सरदार वल्लभभाई पटेल स्मारक का नामकरण भी *"Statue of Unity "* करना तो, *" अतिवाद"* का एक प्रतिक है. वे कभी भी *"लोकशाही शक्तिवाद"* के पुरस्कर्ता थे ही नहीं..! *"युनिटी"* यह बडा ही उदात्त शब्द है. केवल इस तरह के प्रसार - प्रचार से, वो कभी हासिल नही होगा. समस्त विश्व के विद्वान मुर्ख नही है. 'युनिटी' के पुरस्कर्ता तो बुध्द थे. महात्मा जोतिबा फुले थे. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर थे. ऐसे महान महामानव पर, यह तो ना-इंसाफी है. वही मोहनदास गांधी को *" स्वच्छता "* के नाम पर ब्रांडिंग किया जा रहा है. *" पर महाराष्ट्र के उस महान संत गाडगेबाबा का क्या..?"* जिन्हें भारतीय राजनीति गुमनाम कर रही है. *"भारतीय करंसी** पर कॉंग्रेस ने मोहनदास गांधी को बिठाकर, अखंड भारत का *"महान सम्राट - चक्रवर्ती अशोक की राजमुद्रा को छोटा किया गया."* वही भाजपा की सत्ता नीति भी, उसी मोड पर चलती दिखाई देती है..! फर्क क्या है..? दोनो भी चित-पट...! भारत की इस कु-नीति के कारण ही, रूपये के यह अवमूल्यन होते आया है. *"भारतीय राज सत्ता यह ब्राम्ह़ण्यवाद की! (चाहे कॉंग्रेस हो या, भाजपा वा लालवाद..!) भ्रष्टाचार भी ब्राम्हण्यवाद का! भारत पर लादी गयी यह गुलामी भी ब्राम्हण्यवाद की! देशद्रोहीता भी ब्राम्हण्यवाद की! कु-नीतिया भी ब्राम्हण्यवाद की!"* और बदनामी (?) तो, मागासवर्ग के आरक्षण नाम पर...? इसे कहते है, *"चाणक्य की कु-ब्राम्हण नीति...! "* "गर्भ मेरीट" हम से पूछा जाता है. परंतु उनके मांओं के 'गर्भ मेरिट' का क्या...?
अंत में, नरेंद्र मोदी सरकार ने सरदार पटेल स्मारक पर करोडो रुपये खर्च किये है. इसका भावी आऊट पुट क्या है? यही नहीं, ऐसे कितने सारे करोडो रुपयों की, कु-नीतियों में होली खेली गयी. कांग्रेस भी, इससे कभी अछुती नही रहीं. नेहरू का त्रिमूर्ती भवन स्मारक, इंदिरा गांधी का स्मारक, राहुल गांधी स्मारक से लेकर, करोडों की हेराफेरी कांग्रेस की देन है. वही मागासवर्ग से जुडी मायावती, जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी, और उसने डॉ. आंबेडकर का स्मारक बनाया तो, पैसों के अपव्यय पर बडा हंगामा किया गया. अब पैसों के बरबादी का आलम, लगातार हर राजसत्ता में चल रहा है. पर यहा बडा हंगामा नही मच रहा है. अत: इसे कहते है, *"हमाम में भारतीय राजनीति नंगी है...! "*
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* *डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य', नागपुर*
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
*डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य', नागपुर*
मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हिंदुस्तान (विश्व का अस्तित्वहीन देश - असंबद्ध/अनैतिक देश) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (भारत के प्रधानमंत्री नहीं) आज दिनांक ३१ अक्तूबर २०१८ को, गुजरात के सरदार बांध परिसर में, *भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री -गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल* के बहुकाय प्रतिमा का लोकार्पण किया. एवं वह प्रतिमा *"विश्व की सबसे उंची प्रतिमा"* होने का, एक दावा भी किया गया. उस प्रतिमा स्थल को *"Statue of Unity"* यह नामकरण भी किया गया. हमारी सत्ता नीति इससे क्या हासिल करना चाहती है...? प्राचीन अशोक काल का "अखंड भारत", आज *"खंड - खंड भारत"* बन गया है. जाती - धर्मवाद का अतिकरण हो रहा है. एकात्मता - बंधुभाव खोजने पर भी दिखाई नही देती. अगर हमारे राजसत्ता नीति ने *"आर्थिक समतावाद - सामाजिक समतावाद - राजकीय समतावाद"* के दिशा में, एक पहल की होती तो, उस का बडा स्वागत होता. वही उस लोकार्पण समारोह में, नरेंद्र मोदी का भाषण भी विचार अपक्वता का परिचय देते गया. *"नरेंद्र मोदी ने भाषण की सुरुवात ही तो, "हिंदुस्तान", इस अस्तित्वहीन और संविधान विरोधी नाजायज शब्द से की.* जो प्रधानमंत्री इस भारत देश में रहता हो, और जिसे हमारे अपने देश का, संविधानिक नाम मालुम ना हो ते, वो व्यक्ति निश्चित ही किसी पद के लायक नहीं माना जा सकता. आगे जाकर नरेंद्र मोदी ने, सरदार वल्लभभाई पटेल के *"भारत राष्ट्रवाद" (?)* की बडी तारिफ की.
सरदार पटेल, उस काल में निश्चित ही एक सफल - सशक्त - प्रभावशाली कॉंग्रेस नेता रहे है. इतना ही नहीं, सरदार पटेल, ये प्रधानमंत्री पद के भी सशक्त दावेदार थे. मोहनदास गांधी तो, उस काल में, कॉंग्रेस के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. दुसरी अहं बात यह कि, *"मोहनदास गांधी और सरदार पटेल यह दोनों नेता भी गुजरात प्रांत से जुडा करते थे. फिर भी सरदार पटेल का भारत का प्रथम प्रधानमंत्री ना बनना,"* यह कुटनीति इतनी सहज नही है. विशेषतः गुजराती समाज यह प्रांतवाद को, विशेष रुप से प्राधान्य देता रहा है. परंतु यहां *'जवाहरलाल नेहरू का भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनना...?'* इस इतिहास को हम किस संदर्भ की राजनीति समझे? यह संशोधन का विषय है. खैर छोडो, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे. परंतु नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के संदर्भ में "भारत राष्ट्रवाद" की बातें करना, यह तो बहुत बडा ही जोक हो गया. क्यों कि, इतिहास गवाह है कि, *"तत्कालीन समस्त नेताओं में केवल डॉ. आंबेडकर ही 'भारत राष्ट्रवाद - भारतीयत्व "* की वकालत करते थे. अन्य सभी कॉंग्रेसी नेता लोग तो, *"हिंदु धर्म व्यवस्था"* के पक्षधर थे. सरदार वल्लभभाई पटेल भी...! यही कारण है कि, भारत आजादी के बाद इस ७० लाल में, *"भारत राष्ट्रवाद - भारतीयत्व भावना"* का कभी सुर्योदय ही नही हुआ. ना तो कॉंग्रेस ने, ना ही भारतीय जनता पार्टी ने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय "* की स्थापना की है. ना ही केंद्रीय बजेट मे कोई प्रावधान ..! यहां तो " नंगा सत्ताराज" चल रहा है. जहां "नीतिवाद" को कोई जगह नही है. फिर भी वे कॉंग्रेसी नेता बन गये महान देशभक्त...!!! *संघवादी भी उस विचारों मे अछुते नही रहे. उन्होंने सत्ता मिलते ही, अपने जाती विशेष के लिए "देशभक्ती" किताब की, स्वयं सरकार से व्यवस्था कर डाली.*
सरदार वल्लभभाई पटेल स्मारक का नामकरण भी *"Statue of Unity "* करना तो, *" अतिवाद"* का एक प्रतिक है. वे कभी भी *"लोकशाही शक्तिवाद"* के पुरस्कर्ता थे ही नहीं..! *"युनिटी"* यह बडा ही उदात्त शब्द है. केवल इस तरह के प्रसार - प्रचार से, वो कभी हासिल नही होगा. समस्त विश्व के विद्वान मुर्ख नही है. 'युनिटी' के पुरस्कर्ता तो बुध्द थे. महात्मा जोतिबा फुले थे. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर थे. ऐसे महान महामानव पर, यह तो ना-इंसाफी है. वही मोहनदास गांधी को *" स्वच्छता "* के नाम पर ब्रांडिंग किया जा रहा है. *" पर महाराष्ट्र के उस महान संत गाडगेबाबा का क्या..?"* जिन्हें भारतीय राजनीति गुमनाम कर रही है. *"भारतीय करंसी** पर कॉंग्रेस ने मोहनदास गांधी को बिठाकर, अखंड भारत का *"महान सम्राट - चक्रवर्ती अशोक की राजमुद्रा को छोटा किया गया."* वही भाजपा की सत्ता नीति भी, उसी मोड पर चलती दिखाई देती है..! फर्क क्या है..? दोनो भी चित-पट...! भारत की इस कु-नीति के कारण ही, रूपये के यह अवमूल्यन होते आया है. *"भारतीय राज सत्ता यह ब्राम्ह़ण्यवाद की! (चाहे कॉंग्रेस हो या, भाजपा वा लालवाद..!) भ्रष्टाचार भी ब्राम्हण्यवाद का! भारत पर लादी गयी यह गुलामी भी ब्राम्हण्यवाद की! देशद्रोहीता भी ब्राम्हण्यवाद की! कु-नीतिया भी ब्राम्हण्यवाद की!"* और बदनामी (?) तो, मागासवर्ग के आरक्षण नाम पर...? इसे कहते है, *"चाणक्य की कु-ब्राम्हण नीति...! "* "गर्भ मेरीट" हम से पूछा जाता है. परंतु उनके मांओं के 'गर्भ मेरिट' का क्या...?
अंत में, नरेंद्र मोदी सरकार ने सरदार पटेल स्मारक पर करोडो रुपये खर्च किये है. इसका भावी आऊट पुट क्या है? यही नहीं, ऐसे कितने सारे करोडो रुपयों की, कु-नीतियों में होली खेली गयी. कांग्रेस भी, इससे कभी अछुती नही रहीं. नेहरू का त्रिमूर्ती भवन स्मारक, इंदिरा गांधी का स्मारक, राहुल गांधी स्मारक से लेकर, करोडों की हेराफेरी कांग्रेस की देन है. वही मागासवर्ग से जुडी मायावती, जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी, और उसने डॉ. आंबेडकर का स्मारक बनाया तो, पैसों के अपव्यय पर बडा हंगामा किया गया. अब पैसों के बरबादी का आलम, लगातार हर राजसत्ता में चल रहा है. पर यहा बडा हंगामा नही मच रहा है. अत: इसे कहते है, *"हमाम में भारतीय राजनीति नंगी है...! "*
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* *डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य', नागपुर*
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
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