Sunday, 9 January 2022

 👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, ८ जनवरी २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें तिन प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!

*विषय : आत्मिक पहचान शास्त्रो द्वारा परिभाषित...!*

* प्रश्न - १ :

* *प्रत्येक धर्म के शास्त्रों में, परिभाषित आध्यात्मिक पहचान को, पुनर्स्थापित करने‌ या महसुस करने के लिए विश्वासीयों द्वारा किस तरह प्रयास की जरुरत है...? इसके लिए, जब हम अपनी आध्यात्मिक पहचान की बहाली या प्राप्ति हासिल करते है, तो हम किस तरह का बदलाव महसुस करते है...?*


*उत्तर*:-  बुध्द का विचार "आध्यात्मिक पहचान" इस संदर्भ मे, बहुत ही भिन्न है.‌ बुध्द ने "आत्मा" इस संकल्पना को, सिरे से नकार दिया है. बुध्द‌ ने वास्तविकता तथा मानवीय भावों‌‌ को, अहं माना है. अब हम बुध्द के विचारों की ओर जाएंगे.

 *भवतु‌ सब्बमंगलम् |*

(अर्थात :- सभी का मंगल हो.)

*बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय |*

(अर्थात :- बहुजन के हित के लिए हो. बहुजन के सुख के लिए हो.)

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तथागत बुध्द ने "आत्मा" इस भाव को नकारते हुये, पाली गाथा में कहा है. -

*सब्बे धम्मा अनत्त' ति यदा पञ्ञाय पस्सति |*

*अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुध्दिया ||*

(अर्थात :- सभी धर्म (पंचस्कंध) अनात्म है, ऐसा जब प्रज्ञा से देखता है, तब सभी दु:खो से व्यक्ति निर्वेद को प्राप्त करता है. यही विशुध्दी मार्ग है.)

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भगवान बुध्द ने "आत्मा" को नकारते हुये "नाम - रुप" इस भाव के आस्तित्व को, पुर्णत: स्विकार किया है. इस पर पाली गाथा मे कहा है.

*नामं च रुपं च इध अत्थि सच्चते*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||* 

(अर्थात :- नाम और रुप की यह जोडी, एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक भंग हो जाती है, तब दुसरी भी भंग हो जाती है. वो मृतु को प्राप्त हो जाती है.)

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बुध्द ने विश्व (संसार) का कर्ता, किसी देवभावों को नही माना. व्यक्ती का कर्म, यह उसके साथ ही रहता है.  कर्म के नियमानुसार फल का भी, अपने आप उदय होता है. इस संदर्भ में पाली गाथा है.

*न हेत्थ देवो ब्रम्ह संसारस्स अत्थि कारको |*

*बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुसंभारपच्चया ति ||*

(अर्थात :- यहां कोई भी, विश्व का निर्माता नही है. सृष्टी के नियम अनुसार, सृष्टीचक्र यह अपने आप सुरू रहता है.)

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विशुध्दीमग्ग इस ग्रंथ मे, कर्म इस भाव का भी, कोई कर्ता नही माना. वह पाली गाथा इस प्रकार है.

*कम्मस्स कारको नत्थि विपाकस्स च वेदको |*

*सुध्दधम्मापवत्तन्ति एव ऐतं सम्पादसृसनं ||*

(अर्थात :- "कर्म" को करनेवाला कोई कर्ता नही है. अवयवों के वस्तुघटक चक्र का, यह अपने आप घुमते रहता है. और यही वास्तविकता है.)

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बुध्द अपने‌ शासन / शिक्षा के‌ संदर्भ में पाली गाथा में‌ कहते है.

*अनूपवादो अनूपघातो पातिमोक्खे च संवरो |*

*मत्तञ्ञुता च भत्तस्मिं पन्तञ्च सयनासनं |*

*अधिचित्ते च आयोगो एतं बुध्दान सासनं ||*

(अर्थात :- किसी की निन्दा न करना, घात न करना, प्रातिमोक्ष, अर्थात भिक्खु के शील को संयमपुर्वक बनाये रखना, उचित मात्रा में भोजन करना, एकान्त में सोना -बैठना, चित्त को योग में लगाना, यही है बुध्द की शिक्षा. यही है बुध्द धर्म का शासन.)

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तथागत ने धर्मानुस्मृति को बताते हुये कहा है.

*स्वाक्खातो भगवता धम्मो संदिट्ठिको अकालिको एहिपस्सिको, ओपनाय्यिको पच्चतं वेदितब्बो विञ्ञुहि ति ||*

(अर्थात :- भगवान बुध्द का धम्म अच्छी तरह कहा गया है. वह सही दृष्टि प्रदान करनेवाला है. वह तत्काल मे फल देनेवाला है. कालान्तर में नही, अपितु आओ और देख लो, यह कहलाने के योग्य है. यह निर्वाण तक पहुचानेवाला है. वह विद्वानों द्वारा जानने के योग्य है.)

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थेरवादी बुध्दधम्म के सिध्दान्त के अनुसार -

१. सभी वस्तुओं का निर्माण, किसी न किसी कारण से होता है. कोई भी चिज यह स्वयंभु नही.

२. सभी वस्तु परिवर्तनशील है. कोई भी वस्तु नित्य (Permanent) है.

३. कोई नित्य आत्मा या ईश्वर का अस्तित्व नही है.

४. वर्तमान जीवन का अस्तित्व यह पुर्वजीवन - प्रवाह से है. और आगे के जीवन का अस्तित्व भी, उसी जीवन के कर्म नियम पर निर्भर है.

५. संसार (जीवन-मृत्यु) के दु:खचक्र, यह अष्टांगिक मार्ग के पालन करने से, रोका जा सकता है. और निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है. जीवन सुखकारक जीया जा सकता है.

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भगवान बुध्द के धम्म का सार को, पाली गाथा के‌ दो लाईन में, इस प्रकार कहा जा सकता है.

*सब्बपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा |*

*सचित्तपरियोदपनं एतं बुध्दान सासनं||*

(अर्थात :- सभी पापों का ना करना, कुशल कर्मों को करना,‌ तथा स्वयं के मन (चित्त) को परिशुद्ध करना, यही बुध्द‌ की शिक्षा है.)

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अंत में मै आप को बुध्द के वचन‌ को देना चाहुंगा.

*अत्त दिपो भव |*

(अर्थात :- अपना दिपक स्वयं बनो !)

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* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

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