Sunday, 10 October 2021

 🫀 *दीक्षाभूमी से लेकर चैत्यभूमी तक आंबेडकरी लंबे सफ़र में, आया / लादा हुआ दिल का कोरोना संक्रमण...!!!*

‌ *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      पिछले एक साल से समस्त भारत, यह *कोरोना संक्रमण (?)* से संघर्ष कर रहा है. और सभी सामाजिक/राजकिय/ धार्मिक / सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर शासन बंदी में, *"रामजन्मभूमी मंदिर का शिलान्यास / कुंभमेला / जगन्नाथपुरी रथयात्रा / शबरीमाला मंदिर"* समान और कुछ ऐसे कार्यक्रमों का *सफल आयोजन*,  सर्वोच्च न्यायालय के अनुमती से हुआ है. वही *पिछले साल* पावन दीक्षाभुमी पर, *"धम्मचक्र प्रवर्तन दिन"* कार्यक्रम का आयोजन ना होना, साथ में दीक्षाभूमी के *'सभी गेट बंद* रखकर, आंबेडकरी समाज को अभिवादन करने से मनाई करने का शासन / स्मारक समिती के *अनुचित निर्णय* को लेकर, मुझे (डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य') *मा. उच्च न्यायालय, नागपुर* में याचिका दाखल करनी पडी.

     दीक्षाभुमी के गेट खोलने हेतु मा. उच्च न्यायालय, नागपुर में मेरे द्वारा दाखल (डॉ. मिलिन्द जीवने ''शाक्य') पिटीशन क्र. (ST) 9691/2020 में, *मा. आर. के. देशपांडें / पुष्पा गणेडीवाला* इन्होने निर्णय इस प्रकार दिया है. *"The respondent no. 1 ( Deekshabhhomi Trust) is a public trust. We fail to understand as to how the petitioner can invoke the writ jurisdiction of this court seeking the direction as above."* अब सवाल यह है कि, क्या रामजन्मभूमी ट्रस्ट नहीं है / क्या जगन्नाथपुरी यह ट्रस्ट नहीं है / क्या कुंभमेला आयोजक आखाडा ट्रस्ट नहीं है / क्या शबरीमाला मंदिर यह ट्रस्ट नहीं है....? इन सभी केसेस पर, मा. सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चली है. और इस पर मा. सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय भी दिया है. और उसी निर्णय का संदर्भ देकर, दीक्षाभुमी संदर्भ में याचिका डाली गयी. अगर इस प्रकार का निर्णय मा. उच्च न्यायालय से मिलता हो तो, *"मा. उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों के मेरीट पर, प्रश्न तो बनता है. अगर न्यायालय कोलोजीयम ना होता तो, वे चपराशी की परिक्षा, पास करने के भी लायक दिखाई नही देते...!"* वही मागास आरक्षण संदर्भ में, हमारे मां का गर्भ मेरिट पुछनोवालों को *"हम शोषित लोगों ने, आझादी के इस ७४ सालों में, शोषक वर्ग समकक्ष वैचारीक / शैक्षिक / सामाजिक / धार्मिक / सांस्कृतिक / राजनीतिक प्रगती की है...!"* जो बहुत ही कम सालों मे किया गया, शोषित वर्ग का एक इतिहास है...!!!

       मा. उच्च न्यायालय के सदर भेदभावी निर्णय के आधार पर, मैने फिर *मा. धर्मादाय उपायुक्त, नागपुर* में केस क्र. ३२/२०२० दायर की थी. और उसमें  कोरोना संक्रमण पर, शासन परिपत्रक का संदर्भ दिया. जहां कोरोना संक्रमण निर्णय पर, प्रश्नचिह्न लगाये गये थे. कोरोना संक्रमण (?) के सदर प्रमाण के आधार पर, दीक्षाभुमी समिती ट्रस्टीयों के अयोग्यता पर प्रश्न उठाकर, उन्हे *"सदस्यता से दुर करने की"* बात कहीं गयी थी. उस पर मा. धर्मादाय उपायुक्त ने अपने आदेश में कहा है कि, *"This authority is not empowered to take decision of removal of the trustees."* और कोरोना संक्रमण का संदर्भ देकर दीक्षाभुमी स्मारक समितीने, "धम्मचक्र प्रवर्तन दिन" पर गेट बंद करने का लिया हुया वह निर्णय सही बताया...! अब सवाल यह है कि, *"अगर किसी ट्रस्ट में, अनैतिकता / भ्रष्टाचार जोरों सें चल रहा हो तो, उन भ्रष्ट / दोषी सदस्यों की सदस्यता रद्द करने का अधिकार फिर किसे है...?"* उपरोक्त निर्णय के विरोध में , मैने (डॉ. जीवने) फिर मा. उच्च न्यायालय नागपुर में *याचिका क्र. ४१५९/२०२०* दाखल की. जो अभी भी उच्च न्यायालय में प्रलंबीत है.

    इस वर्ष दिनांक १४ - १५ अक्तूबर २०२१ को *"धम्मचक्र प्रवर्तन दिन "* के पावन अवसर पर भी, शासन / समिती ने, अपने उसी पुराने निर्णय के आधार पर चलने की, मिडियां में घोषणा की थी. उसका हमने पुरा विरोध किया है. क्यौं कि, नागपुर के कस्तूरचंद पार्क पर, *" रावण दहन कार्यक्रम"* को उच्च न्यायालय द्वारा अनुमती दी गयी. और दीक्षाभुमी ....??? *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल "* तथा उसी की जुडी *" सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब"* इनके संयुक्त तत्वाधान में, मेरे ही (डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य') नेतृत्व में तथा *"प्रा. वंदना जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / शंकरराव ढेंगरे / सुर्यभान शेंडे / ममता वरठे / प्रा. वर्षा चहांदे / डॉ. मनिषा घोष / इंजी. माधवी जांभुलकर / सचिन टेंभुर्णे / डॉ. भारती लांजेवार / प्रा. डॉ. नीता मेश्राम / डॉ. राजेश नंदेश्वर / प्रविण मेश्राम / ममता गाडेकर / अमिता फुलकर / साधना सोनारे / कल्याणी इंदोरकर* इन सहयोगी पदाधिकारी वर्ग समवेत तथा *एड. डॉ. मोहन गवई / एड. संदिप ताटके / एड. एम. बी. पराते / एड. बी. बी.  रायपुरे / एड. हर्षवर्धन मेश्राम*  इन वकिल मान्यवरों के सल्ला मसलत करते हुये, मा. जिल्हाधिकारी, नागपुर / दीक्षाभुमी स्मारक समिती से हमने भेंट की थी.‌ *"तथा हमारे सी.आर.पी.सी. टीम ने पिछले साल दीक्षाभुमी जाकर, वहां सामुहिक 'बुध्द वंदना' ली थी."* इस साल "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (दीक्षाभुमी) स्मारक समिती द्वारा, हमारी इस मांग को ध्यान रखकर *"धम्मचक्र प्रवर्तन दिन"* पर, दीक्षाभूमी के सभी गेट खुले करने का निर्णय लेने से, हम दीक्षाभुमी स्मारक समिती के पदाधिकारी *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई / डॉ. सुधिर फुलझेले / विलास गजघाटे* एवं सभी ट्रस्टींयों का अभिनंदन करते है.  इस के साथ ही शासन / मनपा / दीक्षाभुमी स्मारक समिती द्वारा, उस पावन अवसर पर *"रोशनाई करने / पाणी - सुरक्षा - अन्य उचित व्यवस्था"* करने की मांग करते है. अगर उनकी सहमती रही तो, *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल "* की हमारी टिम भी, स्मारक समिती को, संपुर्ण सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहेगी.

      *" दीक्षाभुमी "* नागपुर के साथ साथ, मुंबई की *"चैत्यभूमी"* भी, यह हमारे भावना का अहम केंद्र है. चैत्यभूमी यह *"दि बुध्दिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (TBSI) की कानूनन संपत्ती है. मीराताई आंबेडकर TBSI के ट्रस्टीशिप का दावा, यह सर्वोच्च न्यायालय में हार चुकीं है. उन्हे अभी नैतिकवाद का पालन करते हुयें, TBSI इस संघटन का प्रयोग नहीं करना चाहियें. नहीं तो, मिराताई आंबेडकर द्वारा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लिखित *"भारतीय संविधान"* वह अपमान होगा. वही दुसरी ओर आज *"The Buddhist Society of India"* इस डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर निर्मित धार्मिक संघटन के, *"कोई भी व्यक्ती, यह संवैधानिक पदाधिकारी नहीं है...! फिर वे मीराताई आंबेडकर हो या / भीमराव आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर / चंद्रबोधी पाटील / हरिश रावलिया / व्हि. एम. मोखले हो...!"* वे सभी के सभी व्यक्ती, यह *"स्वयंघोषित / असंविधानिक - अनैतिक पदाधिकारी"* है...! इन सभी महाशयोंं ने, आंबेडकरी जन - मन के भावनाओं का फायदा उठाकर, विभिन्न ठिकाणों पर TBSI की असंवैधानिक शाखाएं खोलकर, विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन के नाम पर, लाखों रूपयों का चंदा इकठ्ठा किया. और *उन सभी के सभी असंवैधानिक पदाधिकारीयों ने, सन २००९ से, धर्मादाय आयुक्त, मुंबई इस कार्यालय में, कभी हिशोब ही सादर नहीं किया...!* इस कारणवश TBSI की मान्यता खतरेमें है...! यहीं नही, *प.पु.  बाबासाहेब आंबेडकर साहाब ने, मुल TBSI का सोसायटी एक्ट अंतर्गत पंजीकरण कर / और जो बॉय लॉज हमे दिये थे... वह सोसायटी एक्ट से मिला मुल पंजीकरण रद्द कर / बॉय लॉज तक रद्द करते हुये, बि.पि.टी. एक्ट अंतर्गत नया पंजीकरण करते हुये, हर पाच साल में होनेवाली चुनाव प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया....!"* इतनी बडी गद्दारी करनेवाले, झार के शुक्राचार्य कौन है..? यह हमे पता लगाना होगा. मैने *(डॉ. मिलिन्द जीवने)* स्वयं इस संदर्भ मे, *धर्मादाय आयुक्त, मुंबई यहां केस न. १७/२०१९* दाखल की है...!!! और शायद मेरे (डॉ. जीवने) इस केस के कारण, उन सभी स्वयंघोषित पदाधिकारी वर्ग की सदस्यता रद्द हो सकती है. वे जेल मे भी जा सकते है...! अत: हमें बहुत चौकन्ना रहकर, TBSI कें इन सभी स्वयंघोषित पदाधिकारी महामहिमों से, बचना बहुत जरुरी है...! मेरे इस मिशन के मुंबई सफर मे चंद्रपुर के *चरणदास नगराले* / मुंबई के *एल. के. धवन गुरुजी* हमेशा रहे है. वही बुलडाणा के *प्रा. आनंद वानखेडे* / पुना के *सदाशिव कांबले* / नागपुर के *प्रा. डॉ. टी. जी. गेडाम* भी कभी कभी रहे है.

      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित The Buddhist Society of India इस धार्मिक संघटन की मान्यता, हमें यथावश रखकर, डॉ. बाबासाहेब द्वारा प्राप्त *"मुल पंजीकरण* को  यथावत ( Restoration) करना, यह हमारा मुख्य लक्ष है. मै उस दिशा में कानुनी पहल कर रहां हुं. इन सभी स्वयंघोषित पदाधिकारी महाशयोंं का लक्ष, *"मा. उच्च न्यायालय के निगराणी में, मुंबई ट्रेझरी में जमा १३ करोड के राशी"* पर है...! जो भी स्वयंघोषित पदाधिकारी इस TBSI प्रकरण में जुडे है, क्या वे हमें अच्छा *"व्हिजनरी प्लॉन"* बता सकते है...? वे तो बिन-अकल के घोडे है. जो केवल और केवल दौड सकते है. वे हमे *"चिरकालिक धम्म व्हिजन"* नहीं दे सकते. TBSI को आज उन *"धम्म समर्पित विद्वान मान्यवरों की गरज"* है. मैने *"इस लिए भारत के २५ मान्यवरों की सुची,"* बहुत पहले ही मा. धर्मादाय आयुक्त को दे दी. मेरी केस उससे भी जुडी हुयी है. अब यह निर्णय, धर्मादाय आयुक्त इन के हाथों में है...!!!!! हम मा. धर्मादाय आयुक्त इनसे, न्याय की अपेक्षा करते है.


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर

राष्ट्रीय अध्यक्ष

सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

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