Wednesday, 12 September 2018

⛳ *सवर्ण का भारत बंद से लेकर जागतिक हिंदु काँग्रेस शिकागो तक ...!!!*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य, नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

       भारत के इतिहास में ६ सितंबर २०१८ को, *"सवर्ण वर्ग का भारत बंद"*, वह भी "अनुसुचित जाती / जमाती प्रतिबंधक कानुन" के विरोध में, अत: वो दिन, 'काला दिन' के रुप में हमेशा याद किया जाएगा. अर्थात *"भारत के शोषित वर्ग पर, दडपशाही करने हेतु, आजाद छुट मिलने के अनैतिक माँगो"* के प्रतिक रूप मे भी ...! वैसे कहा जाए तो, यह शोषित वर्ग भी एक जमाने में, सत्ताधारी वर्ग ही था. मौर्य वंश का अंतिम सम्राट ब्रहदत्त की धोके से हत्या कर, ब्राम्हणी व्यवस्था के  पुष्यमित्र ने, ब्राम्हण्यवाद की निव रखी. और आगे जाकर इन हारे हुयें समुह पर, "गुलामी राज" शुरु हो गया. महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपती शाहु महाराज, बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी के *"समता प्राप्ती आंदोलन"* ने, विषमतावादी ब्राम्हण्यशाही की जडे़ हिला दी. *"एक ओर तो, इन शोषित सत्ताधारी समुह को, उनका गुलाम बनाने का कुटिल षडयंत्र चलते रहा ! वही दुसरी ओर, भारत देश को गुलामी के दलदल में ढकलने की कु-नीति भी ..!"* बाद में, भारत के "आजादी का आंदोलन" भी, बाल गंगाधर तिलक काल तक, वह केवल ब्राम्हण्यवाद का आंदोलन रहा. वो कभी भी "जन आंदोलन" बना ही नही ! वही बँरी. मोहनदास गांधी का भारतीय राजनिती में शिरकाव होना, और काँग्रेस का वह आंदोलन जन - जन तक जाना, यह काँग्रेस के बहुत अच्छे दिन की शुरूवात थी. वही दुसरे ओर सुभाषचंद्र बोस का मोहनदास गांधी भक्तीवाद में, विलिन ना होना, यह बगावत भी काँग्रेसी नेता जवाहरलाल नेहरू और अन्य काँग्रेसीओं को ना-गुजरी लगी. काँग्रेस के इन दो फाड में, सुभाषचंद्र बोस की जीत, गांधी - नेहरू कभी भी पचा नही पायें...! वही बंगाल हो या पंजाब प्रांत के जहाल क्रांतीकारी भी, मोहनदास गांधी के नेतृत्व को स्विकार करने के पक्ष में ना होना भी, जो गांधी के लिए एक बडी हार थी. पंरतु काँग्रेसी नेताओं का एक गट ब्रिटिश के विरोध में 'आजादी आंदोलन' करता था, वही दुसरा एक गट, अंदरुनी ब्रिटिशों की चाटुकतागिरी करने सें, "भारत की आजादी", वह वास्तविकता ना होकर, महज केवल एक धुसर सपना बनी थी. *"वही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का भारतीय राजनिती में आना...! और अनुसुचित जाती के अधिकार आंदोलन मे, इंग्लंड हुये गोलमेज परिषद मे, एक बडी सफलता पाना. यह काँग्रेस दल के लिए, होश उडने का बडा कारण था...!"* आगे जाकर उस "गांधी - आंबेडकर संघर्ष" ने, अनुसुचित जाती वर्ग के अधिकार प्राप्ती के लिए *"पुना करार"* का होना, यह इतिहास इतना सहज नही है...!!!
     *"भारत को आजादी मोहनदास गांधी के अहिंसा से मिली"* यह काँग्रेसी सत्ता धारा का षद्म प्रचार, वही *"रण के बिना आजादी किसे मिली"* (रणाविना स्वातंत्र कुणा मिळाले) यह संघ प्रणित हिंदु महासभा के विनायक दा. सावरकर का कथन ...!!! क्या हम इस द्वंद्व विचारधारा के केंद्र बिंदु को तलाश सकते है ? भारत के आजादी में, क्रांतीकारीओं के रक्तक्रांती को, हम क्या कहे ? वही सुभाषचंद्र बोस के *"आजाद हिंद सेना"* के जवानों के योगदान को, युं ही भुल जाना चाहिये ? यह भी प्रश्न है...! भारत को आजादी मिलने में, *"द्वितिय महायुध्द"* का होना, एकमात्र कारण रहा है. क्यौं कि, ब्रिटिशो़ की खस्ता आर्थिक हालत यह, भारत की सत्ता व्यवस्था चलाने के लायक नही रही थी. *"अमेरिका - रशिया की कुटिल युध्द नीतिओं ने, आगे जाकर तिब्बत को चीन के अधिपत्त में किया. वही संयुक्त भारत को, "भारत - पाकिस्तान" इस दो फाड में विभक्त किया !"* द्वितिय महायुध्द में जब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ब्रिटिश के पक्ष में खडे रहे, तब यही काँग्रेस थी कि, बाबासाहेब को गद्दार कहने लगी. मोहनदास गांधी हो या काँग्रेस ने कभी भी द्वितिय महायुध्द का परिणाम, समझा ही नही था. इधर अमेरिका जपान के झारशाही का बदला लेने के लिए, जर्मनी के हिटलर को मदत करने की एक नौटंकी कर रहा था. वही दुसरी ओर, वह चीन को तिब्बत में, अपना सेना अड्डा बनाने के प्रेरीत कर रहा था. साथ ही रशिया की दादागिरी, कम करना भी अमेरिका का एक मकसद था. *"अगर द्वितिय महायुध्द में, जर्मनी के हिटलर - जापान के झार का वर्चस्व रहा होता, तो भारत मे हिटलर - झार का अधिपत्त होना लाजमी था...!"* यही कारण था कि, बाबासाहेब आंबेडकर ने ब्रिटिश के पक्ष मे खडे रहना उचित समजा. बाद में काँग्रेस भी द्वितिय महायुध्द में ब्रिटिश के पक्ष मे खडी हो गयी. इस तरह काँग्रेस दल में बिन अकल लोगों की कमी नही थी. और *महत्व का विषय यह कि, भारत देश के अहं मोड पर संघवाद कभी भी हमे नजर नही आया !* जब देश के आजादी के सर सेनापती के चयन का विषय आया, तब काँग्रेस ने मोहनदास गांधी को हिरो बना दिया. पर "सत्तावाद का विषय आने पर, मोहनदास गांधी को दही पर से, मख्खी को फेंकते है, वैसे ही फेंक भी दिया गया." वही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इस का पुरा श्रेय सुभाषचंद्र बोस को देते है. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"सुभाषचंद्र बोस ही केवल आजादी मिलने के लिए कारण रहे है. हिंदी जवानों के बल पर, ब्रिटिश सरकार आश्रीत थी. बोस ने उसी ही बल पर, आघात करने के कारण, भारतीय सेना में असंतोष फैला था. आजाद हिंद सेना स्थापने के कारण, ब्रिटिशों को भारत से पलायन करना पडा !"* (मुंबई २३ दिसंबर १९५१)
     भारतीय इतिहास में पहिली बार, *सवर्ण द्वारा किये गये, "भारत बंद" के अनैतिक आंदोलन का औचित्य ?* तथा उस अ-कारणवश, भारत के अर्थव्यवस्था के जो हानी हुयी है, उसे क्या कहे ? वही बहुजन उत्थान का मॉडेल "मंडल कमीशन" को, तत्कालीन प्रधानमंत्री व्ही. पी. सिंग ने लागु करने पर, सवर्ण का राजकीय दल भाजपा ने, व्ही. पी. सरकार गिराकर, *"कमंडल आंदोलन"* खडा करने का, एक दु-साहस भी हम ने देखा है. जब कि, *" हमारे भारतीय प्राचिन इतिहास में, वो वर्ग कभी नायक रहा ही नही. बल्की उस वर्ग को हमेशा, खलनायक की भुमिका अदा करते देखा गया ...!"* आज के संदर्भ में सवर्ण की युवा पिढी भी, भारत विकास के प्रती उतनी सजग कभी नही दिखाई देती ...!!! जितनी वह देववाद  - धर्मांधवाद के प्रती है. वही *"संघवाद भी उस विचारो से कभी अछुता नही रहा ...!"* तो संघवादी किस आधार पर "भारत विकासवाद" की तुंती बजाते है ...? इस प्रश्न पर सुक्ष्म भाव का चिंतन, उन्हीने ही करना उचित होगा ...!!!
      शिकागो, अमेरिका में *"द्वितिय जागतिक हिंदु परिषद २०१८"* का आयोजन सवर्ण द्वारा किया गया. वही अमेरिका में बसे, *"भारत के ही अनिवासीओं के एक गुट ने, उस परिषद का तिव्र विरोध कर, भारतीय राजनिती, धर्मनीती को पुरा नंगा कर डाला...!"* भारत के सवर्ण वर्ग की इज्जत अब भी शेष बची है ...! यह उन वर्ग का कथन हो तो, उन समुह ने तो चुल्लुभर पाणी में डुब मरना चाहिये ..! और अपने आज तक के अनैतिक आचरणों सें, बाज आना चाहिये. वही हिंदु (?) नही, तो सवर्णवादी एक गट के मुखीया, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के सरसेनापती डॉ. मोहन भागवत कहना *"झुटवाद"* की एक मिसाल है. डॉ. भागवत कहते है, *"हिंदुओ़ पर वर्चस्व निर्माण करना, हमारा उद्देश नही है. यहाँ आक्रमकता नही है. एक समाज के रूप में, समस्त हिंदुओं ने इकठ्ठा आना बहुत जरूरी है. तथा मानव जातीओं के कल्याण के लिए, हमे प्रयत्नशील रहना होगा."* आगे जाकर डॉ. भागवत कहते है, *"हिंदु धर्मीय लोग अपने मुल सिध्दांत का, पालन करना भुल गये है. आध्यत्मकता भी भुल गये है. इस लिए हजारों वर्षों से उन पर, अन्याय होते आया है. अत: उस विरोध में आवाज उठाकर, हमे एकजुट से लढना होगा. हिंदु समाज एकसंघ होना जरूरी है. तभी हम समाज का उत्थान कर सकते है. संपूर्ण विश्व को एकछत्र में जोडने के लिए, हमे अपने ही मुल्यों का जतन करना होगा. अंहकार का भी त्याग करना होगा. हिंदु धर्म प्राचिन है. इसके साथ ही वह आधुनिक विचारों को आत्मसात करनेवाला भी है. जंगल में शेर अगर अकेला हो तो, जंगली कुत्ते उसे मार डालते है. अत: विश्व को सर्वोत्तम बनाने के लिए, हमे इकठ्ठा आना जरुरी है ...!"*
     हमारे भारत के उपराष्ट्रपती एम. व्यंकय्या नायडु ने भी उस परिषद मे हिस्सा लिया. और वे कह गये कि, *"हिंदु यह शब्द अस्पृश्य एवं असहिष्णू होने की बातें कुछ विरोधी करते है. अत: हिंदु समाज की मुल्य एवं संकल्पना का संदेश हम ने सर्व दुर तक ले जाना होगा ...!"* अत: उपरोक्त दोनों ही महामहिमों के अ-विचार सुनकर, उनके बौध्दीक स्तर पर मुझे दया आयी. और उन के मेरीट परीक्षण की बातें, तो बहुत दुर की बात रही ! उन के दिये गये भाषण पर, मै डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचार को क्वोट करना चाहुंगा. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"भारत का प्राचिन धर्म यह हिंदु था, यह विचार मुझे मंजुर नही. हिंदु धर्म तो, सब से अंत आयी, विचारों की उत्क्रांती है. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद, भारत मे तिन बार धार्मिक परिवर्तन हुआ है. वैदिक धर्म का रूपांतर ब्राम्हणी धर्म मे हुआ. और ब्राम्हण धर्म का रूपांतर, हिंदु धर्म में हुआ ...!"* (कोलोंबो, दिनांक ६ जुन १९५०) वही वेदों के अस्तित्व संदर्भ मे भी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते है, *"वेदों को प्रमाण मानना, यह ब्राहणों ने बाद मे लाया हुआ विचार है. इस का प्रमाण तो "आश्वलायन ग्रह्य सुत्र" मे मिलता है. उस समय ब्राम्हण लोग, वेदों को प्रमाण नही मानते थे. सामाजिक मुल्यों का का निर्माण होने क पुर्व, जनता पंचायत का निर्णय ग्राह्य समजती थी. उस समय वेदो का स्थान चवथे या पाचवे नंबर पर था ...!"* (नयी दिल्ली, दिनांंक १७ मार्च १९४५ )
        हिंदुओं के अध:पतन पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते है, *"हिंदु, राष्ट्र की अवनती एवं अध:पतन हिंदुओं के स्विकार्य, चातुर्वण्य के कारण हुआ है. चातुर्वण्य की प्रथा सुरू होकर, आज बहुत ही कालखंड पार कर चुका है. वही उस प्रथा की जडे़ हिंदु संस्कृती में, बहुत अंदर तक जा चुकी है. इस के दुष्परिणाम भारत को भोगने पडे है ...!"* (नासिक, दिनांंक १२ फरवरी १९३८) वही स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी "हिंदु" इस शब्द का विरोध किया था. हिंदु यह नामांतरण मोगल शासकों की देण कही जाती है. हिंदु यह शब्द दो अक्षरी ना होकर, तीन अक्षर से बना है. *"हिंदु > हिनदु > हिन + दु > हिन = चोर - काले मुहँवाला, दु = प्रजा > अर्थात - हिंदु = चोर लोक > निच लोक ...!!!"* अत: संघवादी डॉ. मोहन भागवत हो या, उपराष्ट्रपती एम. व्यंकय्या नायडु हो, उन के भाषणों पर, तथ्यात्मक उत्तर यह बाबासाहेब आंबेडकर जी के बयान में छिपे होने से, मुझे अलग से अपने विचार लिखने की आवश्यकता नही है. और समजदारों को इशारा ही काफी होता है.
       शिकागो के "विश्व हिंदु काँग्रेस" के कारण, जो भेदवर्ग नीति भारत के अंदर छिपी थी, उस का जाहिर कु-प्रदर्शन, समस्त विश्व देख रहा है. और हिंदु धर्म - ब्राम्हणी धर्म की स्वयं ही वाहवा करने से हिंदु धर्म, सर्वश्रेष्ठ धर्म नही हो जाता. विश्व मे केवल नेपाल देश ही, हिंदु राष्ट्र था. परंतु *"नेपाल देश ने भी संविधानिक रूप मे, "हिंदु राष्ट्रवाद" को तिलांजली दे दी है."* भारत कभी हिंदु राष्ट्र रहा ही नही. *"युनो नें विश्व का सर्वोत्तम धर्म - बौध्द धर्म को माना है !"* महत्व की बात यह कि, बौध्द धर्म का उगम स्थान, भारत ही रहा है. परंतु भारत से ही बौध्द धर्म नामशेष करने का घ्रुणित कार्य, ब्राम्हणी व्यवस्था ने किया है. आज भारत यह राजकीय, सामाजिक, आर्थिक, वा धार्मिक परिक्षेत्र में संघर्ष कर रहा है. भारत आज "अंतर्गत युध्द एवं बाह्यगत युध्द" से जुझता नजर आ रहा है. अत: *"जातिविहिन समाज व्यवस्था"* का निर्माण ही, वही देववाद - धर्मवाद को तिलांजली देना यह तो, काल की बडी गरज है. जो बौध्द धर्म के पुनर्स्थापना से ही संभव है. वही कार्यपालिका हो या, न्यायपालिका हो या, कायदामंडल हो या, नोकरशाही हो, आदी सभी क्षेत्रों में, ब्राम्हण्यवाद ने जो अपना अधिपत्त जमाया है, उस क्षेत्र को सभी जाती विशेष के लिए छोडना, यह काल की माँग है. रिपब्लिकन एक दल गट के बिन अकल गधा, रामदास आठवले 'दलित' महाशय कभी वो "दलित" शब्द की वकालत कर जाता है. तो कभी सवर्ण को २५ ℅ आर्थिक आरक्षण की बातें ...! *"क्या भारतीय संविधान ने आरक्षण यह विषय "गरिबी हटावो" के रूप मे लिया है ?"* इस तरह के बिन अकल लोगों की, खोगिर भरती भाजपा हो या, काँग्रेस दल हो, दोनो ही जगह दिखाई देती है. यही मानसिकता ही हमारे भारत देश की एक बडी शोकांतिका है...!!!
      अंत मे, भारत में व्यक्ती विशेष का परिचय, यह जाती - धर्म विशेष के आधार पर होता है. ना कि, "भारतीय राष्ट्रवाद" पर ...!!! अत: बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का यह विचार, समस्त भारतीयो़ के लिए एक संदेश है. डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"भाषा, प्रांतवाद, संस्कृती आदी भेदनिती मुझे कदापी मंजुर नही. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु वा मुसलमान यह विचार भी मुझे स्विकार्य नही. सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय और भारतीयता के आगे कुछ नही. यही मेरा विचार है ...!"*

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

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