👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, २५ सितंबर २०२२ को झुम पर आयोजित, "लोगों द्वारा धर्म छोडने के कारण...!" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* प्रश्न - १ :
* *हर साल, दुनिया की धार्मिक लोकसंख्या में, कमी आती रहती है. आप की राय में, लोगों के लिए अपने धार्मिक विश्वासों को छोडने का कारण क्या है, जो कभी अपने धर्म की शिक्षाओं के प्रति वफादार थे ?*
* उत्तर : - इस प्रश्न का उत्तर समजने के लिए, मै तथागत के जीवन की एक घटना बताना चाहुंगा. तथागत वेळुग्राम में वर्षावास में ठहरे हुये थे. उस समय तथागत बुध्द का स्वास्थ ठिक नही था. उन्हे वेदना हो रही थी. तब भंते आनंद ने तथागत को कहा कि, *"भगवान, आप जब तक भिक्खु संघ को अंतिम उपदेश नही देते, तब तक आप का परिनिर्वाण ना हो...!"*
उस समय तथागत बुध्द ने भंते आनंद को कहा कि, *"मैने कोई भी बातें गुप्त नही रखी है. अब भिक्खु संघ मेरे पर आश्रित ना हो. मै क्षीण हो चुका हुं. बुढा हो गया हुं. अब तुम्हे खुद का दिप, खुद को बनना है."*
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उपरोक्त आप के प्रश्न का उत्तर उपरोक्त बुध्द ने कहे हुयें पाली भाषा के तिन शब्द में छुपा हुआ है.
*"अत्त दिपो भव |"* (अर्थात : स्वयं का दीप स्वयं बनो.)
और बुध्द कहते है, *"तुम्हे अपने आप को शरण जाना है. दुसरे अन्य को शरण जाना नही है."*
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तथागत का महापरिनिर्वाण का काल निकट था, तब तथागत ने कुशिनारा इस ग्राम में, अपने भिक्खु संघ को अंतिम शब्द कहे थे.
*"अनिच्चा वत संखारा, उप्पादवय धम्मिनो |*
*उप्पज्जित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वुपसमो सुखं ||"*
(अर्थात : भिक्खुओं, मै आप को स्पष्ट बता रहा हुं कि, सभी संस्कार नाशवंत है. आप को अप्रमादी होकर, आप के मुक्ति के लिए प्रयास करना है.)
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बुध्द ने किसी भी व्यक्ति को, अपना उत्तराधिकारी नही बनाया. इस संदर्भ में तथागत कहते है, *"आनंदा, आप को लगेगा कि मेरे परिनिर्वाण के बाद, आप का कोई शास्ता नही रहेगा. यह विचार आप कभी मन में ना लाये. मैने आप को जो धम्म दिया है, विनय का उपदेश दिया है, उसे ही मेरे निर्वाण के बाद, आप शास्ता मानें...!"*
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तथागत कहते है,
*"आप तथागत के समान बने. उस तरह आचरण करे. लोगों पर उदारता दिखाये. कुछ अर्पण करने का अनुकरण करे."*
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अन्य धर्म के संस्थापक एवं बुध्द के विचारों में मुलभुत फरक यह है....!
येशु ने स्वयं को भगवान का दुत / देव का पुत्र माना है.
मुस्लिम धर्म संस्थापक महंमद पैंगबर ने भी, ईश्वर का अंतिम पैंगबर (दुत) माना है.
परंतु तथागत ने स्वयं को भगवान का दुत / देव का पुत्र नही माना.
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धम्मपद में तथागत संदर्भ मे पाली भाषा उल्लेख इस प्रकार है.
*"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*
*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||"*
(अर्थात : कार्य के लिए, आप को ही उद्योग करना है. तथागत का कार्य केवल मार्ग दिखाना है. आप को उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनों से मुक्त होना है.)
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बुध्द के विचार *"बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय |"* इस भाव को दर्शाते है. वे हमे अंधविश्वास, पाखंड से बचने का संदेश देते है. जब व्यक्ति को बुध्द के इस भाव की अनुभुती है, तब वह धर्म मे कहें गये अंधविश्वास, पांखड दुर चला जाता है. उस में प्रज्ञा जागृत होती. यह उत्तम मार्ग का बोध कराता है. अत: प्रज्ञा युक्त व्यक्ति सत्य धर्म का वफादार होता है. पांखडी धर्म का घोर विरोधी...! इसी में आप के प्रश्न का उत्तर दिखाई देगा. कारण भी दिखाई देगा. अगर आप प्रज्ञावान हो तो...!!!
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* प्रश्न - २:
* *धर्म में विश्वास बहाल करने और लोगों को धर्म की ओर मोडने के लिए, धार्मिक नेता क्या भुमिका निभा सकता है ?*
* उत्तर : आप के इस प्रश्न का उत्तर भी, मैने बताये हुयें पहले प्रश्न में ही दिखाई देगा. तथागत का अमुल्य वचन है.
*"अत्त दिपो भव |"* (अर्थात : स्वयं का दिप, स्वयं बनो.)
आप को अपने आप को शरण जाना है. दुसरे अन्य को शरण जाना नही है.
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पाखंडी धर्म या धर्म की पाखंडता यह मनुष्य के प्रज्ञा को, भ्रमित करते रहता है. मनुष्य यह धर्म का मानसिक गुलाम बन जाता है. इस कारणवश मनुष्य पुर्ण रुप से अविवेकी हो जाता है. और सन्मार्ग से वह मनुष्य भटक जाता है. और धार्मिक धर्मांध कट्टरवाद को बढावा मिलता है. वह धर्मांध कट्टरवाद, राष्ट्र की एकात्मता और विकास के लिए घातक है. शांती कायम करने में भी बाधक है. अत: हमे इस तरह के धर्म से दुर रहना चाहिये.
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जो धर्म मनुष्य - मनुष्य में भेद करता है, धार्मिक धर्मांंध उन्माद को बढावा देता है, उसे धर्म नही कहा जा सकता. वह धर्म आंतकवादी मानसिकता का प्रतिरुप है. अत: इस कारणवश, शांती स्थापित करना कठिण हो जाता है. वह धर्म राष्ट्र के विकास में बाधा है. अत: इस विचार के धर्म को हमे त्यागना चाहिये.
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अत: धर्मगुरु भी धर्मांधी ना हो. पाखंडी ना हो. धर्मगुरू ये विवेकशील हो. प्रज्ञावान हो. तब हम अच्छे राष्ट्र का, अच्छे समाज का, अच्छे व्यक्ति का निर्माण कर सकते है. राष्ट्रविकास में ऐसे विवेकी / प्रज्ञावान धर्मगुरू का योगदान बहुत जरुरी है. तब हम अमन, शांती का निर्माण कर सकते है. अन्यथा कभी नही...!
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
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