Thursday, 8 July 2021

 🎓 *सर्वोच्च न्यायालय के जगन्नाथ पुरी रथयात्रा निर्णय से लेकर भारत सरकार द्वारा नीतियों की नैतिकता एवं न्यायिक दायित्वता का एक आलेख...!*

* *डॉ. मिलिन्द जीवने ''शाक्य'*, नागपुर १७

*  मो.न. ९३७०९८४१३८/९२२५२२६९२२

* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल


    तत्कालिन प्रधानमन्त्री *इंदिरा गांधीं* ने, भारत के तत्कालिन राष्ट्रपती फक्रुद्दीन अली अहमद के एक आदेश द्वारा, *"भारतीय संविधान" की धारा ३५२* अंतर्गत, भारत की अंतर्गत व्यवस्था पुरी तरह चरमरा जाने का कारण देकर, दिनांक २५ जुन १९७५ को *"भारत में आपात काल"* (Emergency) की दु:खद घोषणा की गयी थी.‌ और वह आपात काल २१ माह तक रहा, अर्थात २१ मार्च १९७७ को वह समाप्ती की घोषणा की गयी. उस काल का वर्णन करते हुये कुछ मान्यवरों ने, भारतीय राजनैतिक इतिहास का *"भयाण दडपशाही काला कालखंड"* भी कहा गया. वही स्वतंत्र (?) भारत (भारत - अंग्रेजो की बीच करारपत्र आधार) के हिंदुत्व धारावादी (भारतीय नही) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के *"कोरोना संक्रमण आपात काल"* (Covid - 19 Emergency) को, हमे कौन से दृष्टिकोण से देखना चाहिये ...? इस प्रश्न पर, हम सभी भारतीय को सोचना होगा. या नरेन्द्र मोदी द्वारा पुरस्कृत, आज कल चल रही *"भयाण कोरोना इमरजंसी,"* भी भारतीय संविधान के किस धारा अंतर्गत है ? यह भी महत्वपुर्ण प्रश्न है. क्यौं कि, *"कोविड १९ व्हायरस* या कोरोना संक्रमण पर, आज भी *"बहुत विवाद"* चल रहा है. कोविड १९ (?) के मृतकों का, पोष्टमार्टन ना होने से *"हुमन बोडी स्मगलिंग* की घटनाएं, अकसर सामने आते दिखाई देती है. भारत की अर्थव्यवस्था पुर्णत: चरमरा गयी है.‌..! *"लोकशाही तंत्र* का पुर्णत: बंट्याधार होने से, *"पुंजीवादी व्यवस्था"* की जड़े, बहुत मजबुत होते हमें दिखाई दे रही है. अर्थात मानव को गुलामी की ओर ढकलने का, नया आधुनिक तरीका...!!!

     भारत के *"सर्वोच्च न्यायालय"* स्वरूप भी, पुर्णत: *" सवर्ण न्यायालय"* के समान दिखाई देता है. न्यायालय कोलोजीयम के कारण ही, वह व्यवस्था पिढी दर पिढी चलते आ रही है.‌ नहीं तो, वहां बैठे उच्च / सर्वोच्च न्यायालय के महानुभाव, *"क्लार्क"* इस पद कें ही नहीं, वे चपराशी की भी स्पर्धा परिक्षा पास करेंगें, यह भी बडा संदेह है...! यही स्थितियाँ अर्थात *"मां गर्भ मेरिट,* भारत के विविध राज्यों कें नामनिर्देशित, *"राज्यपाल"* संदर्भ में भी लागु हो सकता है. अभी अभी नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा *"नवनियुक्त आठ राज्यपाल"* महोदयों का मेरिट हो, या इसके पहले भी नियुक्त हुये राज्यपाल हो...!!! नहीं तो, *"हम समान व्यक्तियों"* को, उस सर्वोच्च पदों पर एक बार बिठाकर तो देखों, *"हम भारत"* की तस्वीर पुर्णत: बदल देंगे...!!!

      अभी अभी मा. सर्वोच्च न्यायालय ने ओरिसा राज्य में *"कोरोना संक्रमण के कारण, 'जगन्नाथ पुरी' की रथयात्रा को छोडकर, किसी भी 'अन्य रथयात्रा' को निकालने की अनुमती देने से मनाई की है. और हम इस संदर्भ मे, हम कोई रिस्क भी उठा नहीं सकते...!"* यह भी बातें सर्वोच्च न्यायालय ने, अपने ६ जुलै २०२१ के अपने निर्णय में कहीं है. इसके पहले भी कोरोना तिव्र संक्रमण काल में, अयोध्या में राम मुर्ती प्रतिष्ठापना कार्यक्रम तथा जगन्नाथ रथयात्रा कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उपस्थिती में हुआ है. वही *"धम्मचक्र प्रवर्तन दिन २०२०"* को, दीक्षाभूमी नागपुर में, लाखों की तादाद में समस्त भारत एवं विदेशों से बौध्द बांधव, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्हे अभिवादन करने आते है. परंतु उस दिन *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* पर, दीक्षाभूमी के समस्त गेट बंद कर दिये थे. बौध्द समुदायों को वंदना करने की भी अनुमती नही थी. फिर भी *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल "* की टीम मेरे (डॉ. मिलिन्द जीवने) नेतृत्व में *प्रा. वंदना जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / प्रा.‌ वर्षा चहांदे* आदी सहयोगी पदाधिकारीयों के साथ, दीक्षाभूमी जाकर हमने वंदना ली. यही नहीं, मा. उच्च न्यायालय, नागपूर बेंच में *डॉ. मिलिन्द जीवने विरुध्द दीक्षाभूमी स्मारक समिति - Writ Petition No. (ST) 9691/2020* दायर की थी.‌ परंतु न्यायमूर्ति आर. के. देशपांडे / पुष्पा गणेडीवाला इनके खंडपीठ ने, सर्वोच्च न्यायालय जगन्नाथ पुरी रथयात्रा सायटेशन को दरकिनार कर, *"Respondent No. 1 (Deekshabhoomi) is a public Trust. We fail to understand as to how the petitioner can invoke the writ jurisdiction of this court seeking direction as above."* यह कहकर सदर याचिका डिसमिस की. अब सवाल है कि, रामजन्मभूमी अयोध्या / जगन्नाथपुरी क्या यह ट्रस्ट नही है.‌..? अगर है तो, फिर दीक्षाभुमी संदर्भ में यह न्याय क्यौं...? सदर याचिका में, *कोरोना संक्रमण को भी आवाहन दिया गया है.‌* उसी संदर्भ में दुसरी याचिका WP No. 4159/2020 आज भी उच्च न्यायालय में प्रलंबीत है. डॉ. मिलिन्द जीवने की और से *एड. मोहन गवई / एड.‌संदिप ताटके* पैरवी कर रहे है.  

      ऐसे ही दुसरी केस मा. उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ में, *"भारतीय संविधान यह साहित्य नही है. अत: संविधान साहित्य सम्मेलन लेना, यह भारतीय संविधान की गरिमा को कम करना है. भारतीय संविधान यह लिगल डाकुमेंट्स है...!"* इस संदर्भ मे डाली गयी थी. *डॉ. मिलिन्द जीवने विरुध्द संविधान फाऊंडेशन नागपुर Writ Petition No. 3940/2019* इस याचिका में, न्यायमूर्ति आर. के. देशपांडे / विनय जोशी इनके खंडपीठ ने, *"सदर संविधान साहित्य सम्मेलन लेनेसे याचिकाकर्ता के मुलभुत अधिकारों का कोई हनन नहीं होता...!"* इस आधार पर, मेरी वह याचिका डिसमिस की गयी. डॉ. मिलिन्द जीवने की ओर से *एड. बी.बी. रायपुरे / एड. चेतन बैरवा* ( सर्वोच्च न्यायालय के वकिल) ने पैरवी की थी. उस जजमेंट में, सदर विद्वान न्यायाधीश महोदयों ने, *"भारत का संविधान, यह साहित्य है या नहीं"* इस संदर्भ में थोडासा भी जिक्र नहीं है. क्या मैने वह याचिका, अपने मुलभुत अधिकारों के हनन के लिए डाली थी...! वह मेरी याचिका तो, *"भारतीय संविधान की, गरिमा एवं रक्षा के लिए डाली गयी थी."* उपरोक्त दो मेरे याचिका का, यहां संदर्भ देने का कारण यह है कि, *"भारत के न्यायालयों मे बैठे महामहिमों की नियुक्ती, यह मेरिट के आधार पर होनी चाहिये."* नही तो, वरिष्ठ न्यायालय में बैठे हुये *"अ-मेरिट महामहिम,* ऐसे ही भेदभावपुर्ण और अ-मेरिट निर्णय देते रहेंगे. और भारत देश की गरिमा भी, मिट्टी में मिला देंगे. इसलिये सर्वोच्च न्यायालय हो या उच्च न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीशों के लिए, भारतीय संघ लोकसेवा आयोग *(UPSC)* के समान, *"स्पर्धा परिक्षा"* होना बहुत जरुरी है. नही तो चपराशी समान स्पर्धा परिक्षा में भी, पास न होनेवाले लोग *"न्यायाधीश / राज्यपाल"* बनते हो तो, भारत की अधोगती को कोई नहीं रोक सकता...! दुसरे अर्थ में *"ना-लायकों का राज...!"* और ऐसे ही ना-लायक लोग, भारत में *"राज्यपाल"* बनते हो तो, *"अंधेर नगरी चौपट राजा...!"* यह कहावत यथार्थ होगी. आज नरेंद्र मोदी सरकार में, *"बगैर IAS पास"* पुंजीवादी लोग *"मंत्रालय सचिव"* पद पर विराजीत है. तो सोचों, भारत की आर्थिक / सामाजिक / शैक्षिक / प्रशासनिक पॉलिसी क्या होगी...? यह सोचकर ही मन सुन्न हो जाता है.

       अभी अभी *आदिवासी / वंचित समुदायों* के हक दिलवाने वाले / उनके उत्थान के लिए, स्कुल - टेक्निकल प्रशिक्षण केंद्र खोलनेवाले / कभी कभी चर्च प्रशासन से भी आदिवासी कल्याण के लिए संघर्ष करनेवाले, आदिवासी मसिहा *फादर स्टॅंन स्वामी* की, न्यायालय की हिरासत में, उम्र के ८४ साल में, गंभिर बिमारी मे बेडपर भी जंजीरो मे जखडे हालातों में, मुंबई की प्रायव्हेट हास्पिटल में मृत्यु हुयी. उनके मृत्यु का समाचार सुनकर, मेरा मन सुन्न हो गया.‌ उनपर *"दहशतवादी"* होने का आरोप लगा था. उन्होने मा. सर्वोच्च न्यायालय तक, वे दहशतवादी नही होने की गुहार लगाई. परंतु उन्हे सभी न्यायालयों ने, बेल देने से मनाई की. अगर फादर स्वामी को बेल मिली होती तो, शायद वे और कुछ साल जीवित होते. उनके इस तरह की मृत्यु होने पर, समस्त विश्व से मानवीधिकार संघटनाएं आवाज उठा रही है. वही दुसरी ओर *"रिपब्लीकन टीव्ही"* के सीईओ *अर्णव गोस्वामी* को, *"सुसाईड"* करवाने का आरोपी होनेपर भी, उसे सर्वोच्च न्यायालय से बेल की राहत मिली. यही नहीं, मा. सर्वोच्च न्यायालय में उनकी अर्जीपर, सुनवाई में तवज्जो दी गयी. क्यौ कि, *अर्णव गोस्वामी यह सवर्ण जाती से जुडा घटक है. उपर से पक्का मिडिया व्यापारी.‌* परंतु फादर स्वामी तो, सामाजिक बांधिलकी से जुडे हुये थे. उनका अचानक जाना, भले ही सरकार / न्यायालय के लिए अहम ना हो, लेकिन हम सभी के लिए, वह बहुत दु:खद आघात है.

     महाराष्ट्र राज्य की राजनीति संदर्भ मे कहा जाएं तो, आज कल *"मराठा तथा ओबीसी आरक्षण"* प्रकरण, यह बहुत जोरोंशोरों पर है.‌ मराठा आरक्षण यह पिछले ८ - १० सालों का परिपाक है. इसके पहले तो *"मराठा लॉबी "* कहे या, *"शुगर लॉबी"* कहे या, *"महाराष्ट्र सत्ता शासन लॉबी "* कहें, वे मराठा‌ लॉबी स्वयं को *"सवर्ण जाती"* समझा करते थे. और महाराष्ट्र राजनीति के *" सर्वोच्च कर्णधार."* जब वे महाराष्ट्र में सत्ता में थे, तब उन्हे "मागास आरक्षण" की, कभी याद भी नही आयी. क्यौं की तब, सत्ता का मद चढा था. महाराष्ट्र में *"अल्पसंख्यक ब्राम्हण"* को, क्या महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना संभव है...? बिलकुल नही. परंतु मुरली मनोहर जोशी / देवेंद्र फडणवीस समान ब्राम्हण लोग, महाराष्ट्र मे मुख्यमंत्री पद पर बैठ गये. *"ओबीसी आरक्षण* भी उनके कार्यकाल में, क्यौं नही बढाया गया. महाराष्ट्र में मराठा सत्ता राज में, *"अनुसुचित जाती / जमाती /ओबीसी का आरक्षण"* तथा *"प्रमोशन में आरक्षण,"* जादातर मात्रा में भरने की कृतीशीलता, क्यौं नही अपनायी गयी. उनके कार्यकाल में अनुसुचित जाती पर, अत्याचार / बलात्कार करनेवाला समुदाय कौन था...? डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के पुतलो‌ं की, जादातर मात्रा में विटंबना करनेवाला, वह समुदाय कौण था...??? ओबीसी की राष्ट्रीय जनगणना करने का ठराव, उनके कार्यकाल में, क्यौं नही लिया गया...? *"वही कुणबी समुदाय यह कांग्रेस का, तथा तेली समुदाय यह भाजपा का,"* इस महाराष्ट्र के जाती समीकरण को, हम किस संदर्भ में ले...? *"महाराष्ट्र में भाजपा हो या कांग्रेस को,"* जमिनदोस्त करने की, आप के पास राजनीतिक फार्मूला या ब्लु प्रिंट की दिशा में, क्या पहल करने का है...? अगर यह *जाती समिकरण"* महाराष्ट्र में सफल होता हो तो, फिर उत्तर प्रदेश / बिहार / गुजरात / पंजाब / राजस्थान / बंगाल की राजनीति भी, अलग करवट ले सकती है. वही बात मा. सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय के *"जजों के नियुक्ती"* मे, UPSC समकक्ष *"स्पर्धा परिक्षा"* लेना तथा मागास आरक्षण लागु करने की पहल की ओर देखना जरुरी है. डिफेंस से लेकर सभी प्रायव्हेट सेक्टर में, मागास आरक्षण को तवज्जो देना / *खेत हो या उद्दोग हो या, मंदिरों का राष्ट्रीयकरण करना, आदी की ओर बढना, यह बहुत ही जरूरी है."* साथ ही देववाद / धर्मांधवाद को तिलांजली देना, एक क्रांतीकारी निर्णय हो सकता है. तभी हमारे लिए, *"ब्राम्हणी व्यवस्था"* का विध्वंस करना, यह बहुत दुर नही है...!!! यह सवाल तो, हमारे ईच्छा शक्ती का है. पिडित मानसिकता से दुर रहने का भी है....!!!


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1 comment:

  1. Dear Sir, Can you please share the contact details of Dr Rupatai Kulkarni?
    Regards,
    Hemant Adarkar
    hemant@adarkar.com

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