*मा. सर्वोच्च न्यायालय, नयी दिल्ली, इनके समक्ष...!*
केस क्र. /२०२०. दिनांक २६ मार्च २०२०
अर्जदार : *डॉ. मिलिन्द पंढरीनाथ जीवने*
आयु - ६० वर्ष, मु.पो. - ५९४, जीवक सोसायटी परिसर, नया नकाशा, स्वस्तिक स्कुल के पास, नागपुर ४४००१७ म.रा. (मोबाईल क्र. ९३७०९८४१३८)
Email : dr.milindjiwane@gmail.com
गैरअर्जदार : *मा. प्रधान सचिव*, भारत सरकार, नयी दिल्ली
*भारत के सर्व धर्मीय तमाम मंदिर / चर्च / विहार / मस्जीद आदी का राष्ट्रियकरण करते हुये, वहां लोगों द्वारा मिले दान के अतिरिक्त राशी / संपत्ती का राष्ट्र हित तथा जन हित में वापर करने हेतु...!*
महोदय,
मैं अर्जदार सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत हुं. कई लोगों को उनके अधिकार देने का काम किया है. हमने गरजु तथा गरिबी लोगों को आरोग्य सेवा मिलने हेतू हर साल दीक्षाभूमी नागपुर में, तीन दिन *"मोफत रोग निदान शिबिर"* का आयोजन पिछले २५ - ३० साल से करते आया हुं. तथा महाराष्ट्र सरकार, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने मुझे *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक उत्थान पुरस्कार"* से, २४ मई २०१७ को सन्मानित किया है. तथा विभिन्न विषयों पर - समस्याओं पर लिखाण भी करते रहता हुं.
२. *विश्व के कोरोना व्हायरस प्रकोपता में, भारतीय अर्थव्यवस्था "भरोना व्हायरस" की ओर...!!!* (क्या हमारी भारत सरकार, समस्त मंदिरो का राष्ट्रियकरण करने का निर्णय लेकर, वहां डंब पडी हुयी बेनामी संपत्ती का राष्ट्रहित में प्रयोग करेगी...???) - एक बडा प्रश्न. यह लेख भी मैने लिखकर, मिडिया में पोष्ट किया है. वही लेख आप को भी पोष्ट करते हुये, सही न्याय की आशा करते है.
चीन का खतरनाक *"कोरोना व्हायरस - Covid 19,"* समस्त विश्व के लिये शापितसा दिखाई दे रहा है. वही *"जागतिक आर्थिक मंदी"* का फटका अब जोर पकडने लगा है. एक अच्छी खबर यह भी है कि, चीन ने "कोरोना व्हायरस" पर नियंत्रण कर लिया है. चीन में नये कोरोना के रुग्न दिखाई ना देना, ये अच्छी बात है. परंतु युरोप (१,७२,२३८), आशिया (९७,७८३), अमेरिका एवं कॅनडा (३६, ५३४), आखाती देश (२६,६८८), लॅटिन अमेरिका एवं कॅरिबियन (५,१३०), आफ्रिका (१४७९), ओशिआनिआ (१,४३३) इन देशों के उपरोक्त "कोरोना व्हायरस" पिडितों की संख्या २३ मार्च २०२० तक दिखाई देना, यह बडा ही चिंता का विषय है. वही *"भारत के २३ राज्यों में, कोरोना प्रकोप बाधितों की संख्या ५१९ तक या पार भी बताया जाना,"* यह एक बार संतोषजनक स्थिती कहीं जा सकती है. वही दुसरा सवाल यह भी है कि, *"क्या भारत में सही रूप से, कोरोना बाधितों का पुर्णत: सर्वेक्षण हुआ है...?"* वही भारतीय लोगों का कोरोना व्हायरस से अल्प संख्या में बाधित होना हो, परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये, वह ग्रसितता कदापी अच्छी बात नहीं है. हमारे भारत सरकार ने रविवार दिनांक २२ मार्च को, "जनता कर्फ्यु" का आवाहन किया था. लोगों ने हमारे सरकार के आवाहन को, अच्छा समर्थन भी दिया. वही हमारी कुछ राज्य सरकारों ने भीं, करोना का बढता प्रभाव रोकने हेतु समस्त राज्यों में संचारबंदी (कर्फ्यु) लागु कर रखी है. और सरकार का यह निर्णय स्वागतार्ह भी है. क्यौ कि, हमारी भारतीय भीड, "यह प्यार की भाषा कम समझती है. और दंडो (कानुन) की भाषा जादा...!" परंतु *"भारतीय अर्थव्यवस्था"* के खस्ता बंट्याधार का क्या...???? उस *"खस्ता आर्थिक बंट्याधार की क्षती - पुर्ती"* हमारी सत्ता व्यवस्था, आगे कैसे पुर्ण करेगी...??? यह हमारे देश के लिये एक अहं बडा सवाल है.
कोरोना व्हायरस प्रकोपता नें समस्त विश्व को, *"आर्थिक महामंदी"* की ओर घसिटने के उपरांत भी, *आस्ट्रेलिया* इस देश ने, १८९ अब्ज आस्ट्रेलियन डॉलर के पॅकेज की घोषणा की है. *ब्रिटन* ने ब्रिटीश वर्करों की ८०% तनखा भार उठाते हुये, प्रति माह २५०० पौंड तनखा देने की घोषणा की है. वही वैट का अगली तिमाही के भुगतान को टालते हुये ३० अरब पौंड का भार, स्वयं वहन किया है. वही छोटी कंपनीच्या बंद के कगार पर खडी होने के कारण, उन छोटी कंपनीयों को बचाने हेतु १०,००० पौंड की नगद मदत करने की बात कही है. *अमेरिका* ने भी उनके नागरिकों को १००० डॉलर देने का प्लॉन बनाया है. *जर्मनी* ने एक अरब युरो का पॅकेज देने की घोषणा की है. *स्पेन* ने भी कर्मचारीयों की सेवा बचाने के लिये, २०० अरब युरो तथा सामाजिक सेवाओं के लिये ६०० मिलियन युरो की घोषणा की है. *कॅनेडा* ने नागरिकों के मदत के लिये, २७ बिलियन डॉलर का पॅकेज की बात कही है. *"वही हमारी भारत सरकार इन पॅकेज घोषणा में बहुत पिछडी दिखाई देना...!"* अत: हमारे सरकार के, इस उदासिन पिछडे भाव को हम क्या कहे...??? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने ऐलान किया कि, *"वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाऐगी, जो ये एक्शन प्लॅन बनायेगी...!"* भारत सरकार ने तो पहले घोषणा की थी कि, भारत में कोरोना व्हायरस का एक भी केस नहीं है. फिर ३० जनवरी २०२० को भारत में, कोरोना व्हायरस का पहिला केस मिला. वही भारतीय विमान सेवा हो या, रेल सेवा हो वहां प्रतिबंधात्मक उपायों की, कोई व्यवस्था ही नहीं की गयी. *"वही कोरोना व्हायरस सैंपल टेस्ट के बारें में, हम क्या कहे...?"* और उस कोरोना प्रकोप ने अपनी ५१९ संख्या भी पार कर डाली...!!! वह कोरोना ग्रसित संख्या अधिकॄत है या नहीं या अधिक भी...! यह एक प्रश्न है.
भारत यह मंदिरो का देश है. यहां आदमी का कल्याण, यह व्यक्ती कॄतीशीलता पर निर्भर नहीं होता, तो देवभाव आशिर्वाद पर निर्भर होता हैं. परंतु *"कोरोना व्हायरस प्रकोपता"* में, देव - देवियों ने मंदिरों में बंदिस्त होना उचित समझा. प्राचिन देव इतिहास में लिखां गया है कि, कभी किसी प्रकोप के कारण, देव लोग भागा करते थे. इंद्र से लेकर चंद्र देव, कभी किसी प्रकोप के शिकार हुये थे. तो कोई देव लोग, किसी गंभिर बिमारी सें पिडित...! आज कोरोना प्रकोप में, ना संकट मोचन हनुमान सामने आया, ना कोई शनी देव, ना सुर्य देव सामने आया, ना कोई सृष्टी निर्माता (?) महादेव...!!! *"वही हमारे देश के विभिन्न मंदिरो की मासिक कमाई भी देखें."* हक्का - बक्का रह जाओंगे...! तिरुपती बालाजी (१ हजार ३२५ करोड), वैष्णोदेवी (४०० करोड), रामकृष्ण मिशन (२०० करोड), जगन्नाथ पुरी (१६० करोड), शिर्डी साईबाबा (१०० करोड), द्वारकाधीश (५० करोड), सिध्दी विनायक (२७ करोड), वैजनाथ नाम देवगड (४० करोड), अंबाजी गुजरात (४० करोड), त्रावणकोर (३५ करोड), अयोध्या (१४० करोड), काली माता मंदिर कोलकाता (२५० करोड), पद्मनाभन (५ करोड), सालासार बालाजी (३०० करोड), इसके अलावा भारत के छोटे मोटे मंदिरों की *"सालाना आय रू. २८० लाख करोड"* आखीं जाती है. वही *"भारत का सालाना कुल बजेट रू. १५ लाख करोड"* का कहा जाता है. अब सवाल यह है कि, *"मंदिरों के इस करोडों आय का राष्ट्र हित - राष्ट्र विकास में क्या योगदान रहा है...?"* इस का उत्तर है - *झिरो.* यह पैसा एक तरह का *"काला पैसा - Black Money"* ही है. जहां ब्राम्हण पुजारी ऐश किया करते है. इन अवैध पैसों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. *"इधर - 'भारतीय अर्थव्यवस्था' की हालत खस्ताहाल हो रही है. भारत विदेशी बैंको के कर्जं में डुबा है. और उधर देववाद का खुला नंगानाच चल रहा है...!"* वही इस अनैतिक घटना पर, एक ओर संसद मौन है. तो दुसरी ओर न्यायालयों ने, आंखो पर काली पट्टी बांधे रखी है. *"हमारे देश में न्याय कहा है...?"* "मानवतावाद" यहां बाजार में बिकता है. दुसरे अर्थों में, यहां नंगो का राज है...! न्यायाधीश भी मंदिरों में, घुटनों के बल सोया करते है. फिर अन्य राजनेताओं के बारें में हम क्या कहे...? किसी शायर ने, क्या खुब कहा है - *"नंगे को खुदा डरे...!"*
दोस्तों, हमारा रूपया दिनों दिन बहुत गिरता जा रहा है और डॉलर बडा महंगा...!!! भारत इन कर्जबाजारीपण से उभर सकता है. केवल हम में इच्छाशक्ती, इमानदारी, देशभक्ती आदी भाव जगाने की जरूरी है. भारत के संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कह गये कि, *"भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजूर नहीं. प्रथम हिंदु, बाद में मुसलमान यह भाव भी मुझे मंजूर नहीं. हम सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयता आगे कुछ नहीं. यही मेरी भुमिका है."* (मुंबई, दिनांक १ अप्रेल १९३८). क्या हम भारत के लोग, सच्चे भारतीय बन पायें है...? क्या भारत को, आजादी मिलने के ७० साल बाद, हमने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* स्थापन करने की पहल की है. भारतीय बजेट में "भारत राष्ट्रवाद" जगाने कोई प्रावधान किया है...? कुंभमेला, फालतु मेला आदी कार्यक्रमों पर, करोडों रूपयें बरबाद किये है. हमने हमारे देश का, केवल सामाजिक - धार्मिक वातावरण ही दुषित नही किया, बल्की हमारे शहरों की हवा - पाणी आदी जिवनावश्यक वस्तुओं को भी, दुषित किया है. वही सांसदों को उनके अधिकार और कर्तव्यनिष्ठा समझाते हुयें, डॉ. आंबेडकर कहते हैं - *"संसद में बैठे सभी सदस्यों ने यह ख्याल रखना जरूरी है कि, जनता का हित तथा कल्याण का दायित्व हमारे शिर्ष पर है. अगर हम ने अपना दायित्व निभाने में कसुर किया तो, जनता का इस संसद से विश्वास तुट जाएगा. और उन लोगों में, संसद के प्रती नफरत भाव निर्माण होगा. और इस में मुझे कोई संदेह नही है."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक १९ मे १९५२). डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की उपरोक्त भविष्य वाणी, आज सही साबित हो रही है. संसद यह जनता का *"विश्वास मंदिर" नहीं दिखाई देता. वहां बैठे जादातर सदस्य लोग, ये विधायक कामों पर चर्चा कम, और झगडे जादा करते है."* संसद का अधिवेशन, पैसों की बरबादी का अड्डा, दिखाई देता रहा है. वही जो भी सरकारे आयी है, या आती रही है, उन्होंने कभी, जन कल्याण - देश कल्याण भावों पर, क्वचित ही सही निर्णय लिये है. अत: सभी सरकारों के लिये, डॉ आंबेडकर के यह शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. *"जो सरकार उचित तथा शिघ्रता से सही निर्णय लेकरं, उसका सही अमल ना करे, उसे सरकार कहने का, कोई नैतिक अधिकार नहीं. यही मेरी धारणा है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४).
भाजपा पुरस्कृत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने *"CAA - Citizenship Amendment Act तथा NRC - National Register of Citizens"* कानुन लाकर, समस्त भारत में वह लागु करने की घोषणा की. वही भारत के विरोधी पक्ष तथा कुछ भाजपा विरहित राज्यों ने, उपरोक्त कानुन अपने राज्यों में लागु कराने का जोरसार विरोध किया है...! वही भारत के बौध्द - मुस्लिम अल्पसंख्याक समाज ने भी, इस कानुन का जोरदार विरोध किया है. उपरोक्त *"नागरिकता कानुन"* के इस द्वंद्व लढाई में, मुझे डॉ. आंबेडकर जी के भारतीय नागरिकता संदर्भ में कहे शब्द याद आ गये. बाबासाहेब कहते हैं, *"सामायिक नागरिकत्व के बिना, सच्चे संघराज्य का निर्माण नहीं हो सकता. और जो राज्यघटना सामायिक नागरिकत्व की व्यवस्था नहीं करती है, तब तक उस राज्यघटना (संविधान) को "संघराज्य का संविधान" कहना सर्वथा अनुचित है...!"* (लंडन, दिनांक १६ सितंबर १९३१) जब हम CAA संदर्भ में आसाम को देखते है, तब १९ लाख लोगों को "डिसेस्टर कैंप" में बंदी बनाये जाना, इसे हम क्या कहे...? वही उन १९ लाख लोगों में, १४ लाख हिंदु लोग होने की बात कहीं गयीं है. दुसरी ओर *जवाहरलाल नेहरू इस कांग्रेसी तत्कालिन प्रधानमंत्री* नें, भारत - पाकिस्तान बंटवारें में *"बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का बंगाल प्रांत से चुनकर आया मतदार संघ"* पाकिस्तान को हवाले कर देना, क्या जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की देशभक्ती थी...? जब की, उस मतदार संघ में ८० % लोग, ये गैर - मुस्लिम थे. क्या उस नीति फैसलें को, नेहरू - कांग्रेस की गद्दारी नहीं कहनी चाहिये..? वहीं जब, उन क्षेत्र के *"चकमा बौध्द,"* जब भारत में त्रिपुरा - आसाम में आ बसे तो, वो अ-भारतीय अर्थात शरणार्थी बन गये. उन चकमा बौध्द - शरणार्थीओं को, भारत सरकार ने मानवीय भाव से, कोई उचित सुविधाएं भी नहीं दी. वही हाल, हमारे तिब्बती शरणार्थी बौद्ध भाईयों का रहा है. उन्हे शहरों से कहीं दुर, जंगलो में बसाया गया. ना रहने के लिये ठिक से घर, ना जाने - आने के लिये ठिक से रास्ते...! आर्थिक सहाय्यता का विषय ही छोड दो...! वही पाकिस्तान से भारत में आयें *"सिंधी शरणार्थी"* को, दिल्ली शहर में तथा भारत के अन्य बडें शहरों में बसाया गया. साथ में, साठ करोड रूपयों की आर्थिक मदत भी दी गयी. जो बाद में, डुबीत खातें की राशी हो गयी. उपर से उन सिंधी भाईयों ने, नकली वस्तुओं का निर्माण कर, भारतीय अर्थव्यवस्था का बंट्याधार किया. *"वही तिब्बती हो या, चकमा बौध्द बांधव हो, उन्होंने अपने वतन से इमानदारी - नैतिकता बनाई रखी. परंतु आज भी वो शरणार्थी बने है."* और पाकिस्तान से भारत में आ बसे सिंधी शरणार्थी लोगों को, *"भारत की नागरिकता"* प्रदान की गयी. वही हम भारत के मुलवासी लोगों को, *"नागरिकता सिध्द करने की बातें,"* अगर विदेशी ब्राम्हण सत्ताधारी करे..? तो वह, अ-सहनीय भाव रहेगा ही. उनका विरोध करना तो, हमारा स्वाभाविक अधिकार है.
भाजपा पुरस्कृत नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा, *"संसद के दोनो हाऊस"* में पारित प्रस्तुत कानुन का विरोध देखकर, मुझे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी के निम्न कथन बहुत महत्त्वपुर्ण लग रहे है. बाबासाहेब कहते हैं, *"कानुन यह सभी जनता के लिए मान्य हो, ऐसा ही वो माफक एवं सुबोध होना चाहिए. जनता को अपने अधिकार क्या है, यह भाव हर एक नागरिक को समझना बहुत जरूरी है. हर घडी उसे, वकिलों पर निर्भर नहीं होना चाहिए. हमारा कानुन ऐसा हो...!"* (नयी दिल्ली, दिनांक ११ जनवरी १९५०) इसके साथ ही डॉ. आंबेडकर कानुन के संदर्भ में कहते है, *"समाज के दोषों का निर्मुलन हो, यही कानुन बनाने का उद्देश है. परंतु दु:ख की बात यह कि, हमारे समाज के दोषों के निर्मुलन करने हेतु कानुन का उपयोग नहीं किया जाता. इस लिये उनका नाश हुआ है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक - फरवरी १९४८) NRC, CAA, NPR का समस्त भारत से तथा विभिन्न राज्यों के सरकारों द्वारा विरोध होने पर भी, भाजपा सरकार के अडियल भाव को देखकर, उन्हे समझने हेतु डॉ. आंबेडकर का और एक कथन दे रहा हुं. बाबासाहेब कहते हैं, *"अधिकार पर बैठे हुयें लोगों ने, यह ध्यान रखना चाहियें कि, घटना बनाना और राज्य कारभार करने का अधिकार उन्हे जो लोगों द्वारा दिया गया है, वह लोगों के कुछ शर्तों पर होता हैं. सरकार नें अच्छे से अच्छी सत्ता चलाना चाहिए, इन शर्तों पर उन्हे ये अधिकार लिये हैं...!"* (त्रिवेंद्रम, दिनांक १० जुनं १९५०). अब बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के उपरोक्त कथन में, नरेंद्र मोदी एवं उनके सरकार के सभी मंत्रीयों ने आत्मचिंतन करना बहुत जरुरी है. क्या उनकी सरकार *"बहुजन हित के लिये - बहुजन सुख के लिये"* प्रतिबध्द है...???? या विदेशी अल्पसंख्याक ब्राम्हण के हित के लिये - सुख के लिये...!!! अगर ब्राम्हण समुह स्वयं को भारतीय मुल के समझते हो तो, उनके विदेशीपण के, मैं कई ऐतिहासिक और जैविक प्रमाण दे सकता हुं. और ब्राम्हण समुह द्वारा किये गये देश गद्दारी के भी...!!!!
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कभी भी ब्राम्हण व्यक्ती विशेष का विरोध नहीं किया...! बल्की उन्होने ब्राम्हणी प्रवृत्ती का विरोध किया है. बाबासाहेब कहते हैं, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ - स्वातंत्र, समता एवं बंधुभाव इन तत्वों का अभाव, यह भाव मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थो से ब्राम्हणों ने, सभी क्षेत्रों में कहर कर डाला. और वे उसके जनक भी है. परंतु अब यह अ-भाव केवल ब्राम्हण सिमित ना होकर, इस ब्राम्हणशाही नें सभी समाज में संचार करते हुये, उन वर्गों के आचार - विचारों को भी नियंत्रित किया है. और यह बात निर्विवाद सत्य है."* दुसरी ओर देखें तो, कांग्रेस हो या भाजपा शासित सरकारें, उन सभी पर, गांधीवाद का प्रभाव दिखाई देता है. और वह गांधी भाव, देश के आर्थिक हो या - सामाजिक परिदृश्य में, देश विकास में कभी हितकारी नहीं रहा. इस गांधी भाव संदर्भ में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं, *"गांधीयुग से, देश का विकास चक्र उलटा फिर गया. ढोंगी लोगों का, राजनीति में शिरकाव बढ गया. दो आणे की गांधी टोपी सिर पर डाल दो,और गांधी का दास होना घोषित कर दो तो, वह देश भक्त बन जाता. इस कारण हिंदी राजनीति में, स्वार्थ साधुओं ने गंदगी कर डाली."* (मुंबई, दिनांक २ अप्रेल १९३९) इसके साथ ही, तत्कालिन भारतीय राजनीति में, बढते व्यभीचारीता को देखते हुये बाबासाहेब कहते हैं, *"गांधीवाक्य, यह ब्रम्हवाक्य होते दिखाई देता है. इस गांधी पागलपन से, राजनीति में ढोंगगिरी ने चरम सीमा पार कर डाली. केवल स्वार्थवश कांग्रेस को चार आणे देकरं, व्यभिचार करनेवाले अनेक हरी के लाल पैदा हुये है."* (क-हाड, दिनांक २ जनवरी १९४०) वही भारत आजादी के बाद, भारतीय राजनीति में व्यभिचार - अनैतिकता आदी को देखकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी इंग्रज शासन के शिस्तबध्दता संदर्भ में लिखते है, *"ब्रिटिश प्रशासन यह राज्य समता तथा न्याय आधारीत था. इस लिए लोगों में, उस शासन प्रती सुरक्षितता महसुस होती रही. परंतु स्वातंत्रता मिलने के बाद, अल्पसंख्याक समाज में, बहुसंख्याक समाज से असुरक्षित भाव महसुस होने लगा."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक .. सितंबर १९५४).
अभी अभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह सुरेश उर्फ भैय्याजी जोशी इन्होने, *"प्रशासन के निर्णयों का पालन करते हुयें सरकार से समन्वय कर, मदत करने की बात कही है."* कौन सी मदत...??? वैसे कहां जाएं तो, केंद्र में सत्ता उनकी ही है. मिडिया भी उनकी है. नोकरशाही हो या न्याय व्यवस्था सभी उनका है. फिर भी इस तरह का नाटकीय प्रदर्शन क्यौ..? यह समझना बहुत जरूरी है. *"भारतीय खस्ता अर्थव्यवस्था"* पर संघ मौन है. मंदिरों के अर्थव्यवस्था पर भी, ये संघ कुछ नहीं बोलता. *"कोरोना व्हायरस प्रभाव से, लोगों के घर के चुल्हे जल नहीं रहे. फिर भी संघ खामोश है."* समस्त लघु उद्योग बंद है. छोटे कामकरी दो वक्त के रोटी के लिये तडप रहा है. *"फिर भी हमारे सरकार से, किसी पॅकेज की घोषणा नहीं हुयी है."* वही संघ ने इस संदर्भ में, अपने सरकार को कोई आदेश नहीं दिया है. भारत के भ्रष्टाचार पर भी, संघ मौन रहता दिखाई देता है. भारत में शोषण व्यवस्था बनायें रखना चाहता है. और फालतु की बयानबाजीयां जादातर कर जाता है. *"अत: इन सवर्ण अल्पसंख्याक राजनीति को समझना, भारत के मागासवर्ग बहुसख्यांक समाज के लिये बहुत जरूरी हुआ है."* देववाद - धर्मांधवाद को भी समझना आवश्यक है. नहीं तो शोषण नीति की *"आधुनिक पेशवाई,"* भारत के लिये, बडा कलंक बनकर उभर सकती है. अत: समस्त *"मंदिरो की राष्ट्रियकरण की मांग,"* भविष्य की रौद्र पेशवाई खत्म करने हेतु आवश्यक है. वही भारत सरकार को भी, अपनी आर्थिक स्थिती को मजबुत करने के लिये, उस ओर बढना बहुत जरुरी है. नहीं तो, *'भारत की यह आर्थिक महामंदी"* भारत के लिये अशांती का कारण रहेगी...!!!
* * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य,* नागपुर
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
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मा. महोदय,
यह लेख मैने दिनांक २५ मार्च २०२० को सुबह १२.३५ को व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉगर में पोष्ट कर सरकार से कोरोना पिडितों को मदत मिलने की अपेक्षा की है.
आज दिनांक २६ मार्च २०२० को भारत सरकार नें १.७० लाख करोड के गरिब लोगों के लिये पॅकेज की घोषणा की है. वैसै कहा जाए तों, यह मदत जादा नहीं है. फिर भी यह पॅकेज घोषित होना, संतोष जनक विषय है.
वही २१ दिन के लॉक डाऊन में भारतीय अर्थव्यवस्था पुर्णत: गडबडा जानेवाली है. क्यौ कि, समस्त उद्योग, व्यवसाय, रेल - विमान - बस यातायात बंद है. समस्त कार्यालय बंद है. इससे देश की तथा व्यवसाय - उद्योग एवं जन मन की समस्त अर्थव्यवस्था चरमरा जानेवाली है. इस की पुर्तता होना इतना सहज नहीं.
कोरोना व्हायरस प्रकोप से एक ओर बिमारी सें लोक मर रहे है. वही २१ दिन लॉक डाऊन होने से भुकमरी की स्थिती निर्माण होना यह बडी गंभिर बात है. लोगों को आर्थिक स्थिती गंभिर है.
वही भारत कें मंदिरों में अनगिनत संपत्ती बेकार पडी है. जिस का उपयोग देश विकास के लिये, समाज हित के लिये आवश्यक है. अत: आप इस संदर्भ उचित आदेश करे, यह विनंती की जाती है.
*डॉ. मिलिन्द जीवने,*, नागपुर
केस क्र. /२०२०. दिनांक २६ मार्च २०२०
अर्जदार : *डॉ. मिलिन्द पंढरीनाथ जीवने*
आयु - ६० वर्ष, मु.पो. - ५९४, जीवक सोसायटी परिसर, नया नकाशा, स्वस्तिक स्कुल के पास, नागपुर ४४००१७ म.रा. (मोबाईल क्र. ९३७०९८४१३८)
Email : dr.milindjiwane@gmail.com
गैरअर्जदार : *मा. प्रधान सचिव*, भारत सरकार, नयी दिल्ली
*भारत के सर्व धर्मीय तमाम मंदिर / चर्च / विहार / मस्जीद आदी का राष्ट्रियकरण करते हुये, वहां लोगों द्वारा मिले दान के अतिरिक्त राशी / संपत्ती का राष्ट्र हित तथा जन हित में वापर करने हेतु...!*
महोदय,
मैं अर्जदार सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत हुं. कई लोगों को उनके अधिकार देने का काम किया है. हमने गरजु तथा गरिबी लोगों को आरोग्य सेवा मिलने हेतू हर साल दीक्षाभूमी नागपुर में, तीन दिन *"मोफत रोग निदान शिबिर"* का आयोजन पिछले २५ - ३० साल से करते आया हुं. तथा महाराष्ट्र सरकार, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने मुझे *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक उत्थान पुरस्कार"* से, २४ मई २०१७ को सन्मानित किया है. तथा विभिन्न विषयों पर - समस्याओं पर लिखाण भी करते रहता हुं.
२. *विश्व के कोरोना व्हायरस प्रकोपता में, भारतीय अर्थव्यवस्था "भरोना व्हायरस" की ओर...!!!* (क्या हमारी भारत सरकार, समस्त मंदिरो का राष्ट्रियकरण करने का निर्णय लेकर, वहां डंब पडी हुयी बेनामी संपत्ती का राष्ट्रहित में प्रयोग करेगी...???) - एक बडा प्रश्न. यह लेख भी मैने लिखकर, मिडिया में पोष्ट किया है. वही लेख आप को भी पोष्ट करते हुये, सही न्याय की आशा करते है.
चीन का खतरनाक *"कोरोना व्हायरस - Covid 19,"* समस्त विश्व के लिये शापितसा दिखाई दे रहा है. वही *"जागतिक आर्थिक मंदी"* का फटका अब जोर पकडने लगा है. एक अच्छी खबर यह भी है कि, चीन ने "कोरोना व्हायरस" पर नियंत्रण कर लिया है. चीन में नये कोरोना के रुग्न दिखाई ना देना, ये अच्छी बात है. परंतु युरोप (१,७२,२३८), आशिया (९७,७८३), अमेरिका एवं कॅनडा (३६, ५३४), आखाती देश (२६,६८८), लॅटिन अमेरिका एवं कॅरिबियन (५,१३०), आफ्रिका (१४७९), ओशिआनिआ (१,४३३) इन देशों के उपरोक्त "कोरोना व्हायरस" पिडितों की संख्या २३ मार्च २०२० तक दिखाई देना, यह बडा ही चिंता का विषय है. वही *"भारत के २३ राज्यों में, कोरोना प्रकोप बाधितों की संख्या ५१९ तक या पार भी बताया जाना,"* यह एक बार संतोषजनक स्थिती कहीं जा सकती है. वही दुसरा सवाल यह भी है कि, *"क्या भारत में सही रूप से, कोरोना बाधितों का पुर्णत: सर्वेक्षण हुआ है...?"* वही भारतीय लोगों का कोरोना व्हायरस से अल्प संख्या में बाधित होना हो, परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये, वह ग्रसितता कदापी अच्छी बात नहीं है. हमारे भारत सरकार ने रविवार दिनांक २२ मार्च को, "जनता कर्फ्यु" का आवाहन किया था. लोगों ने हमारे सरकार के आवाहन को, अच्छा समर्थन भी दिया. वही हमारी कुछ राज्य सरकारों ने भीं, करोना का बढता प्रभाव रोकने हेतु समस्त राज्यों में संचारबंदी (कर्फ्यु) लागु कर रखी है. और सरकार का यह निर्णय स्वागतार्ह भी है. क्यौ कि, हमारी भारतीय भीड, "यह प्यार की भाषा कम समझती है. और दंडो (कानुन) की भाषा जादा...!" परंतु *"भारतीय अर्थव्यवस्था"* के खस्ता बंट्याधार का क्या...???? उस *"खस्ता आर्थिक बंट्याधार की क्षती - पुर्ती"* हमारी सत्ता व्यवस्था, आगे कैसे पुर्ण करेगी...??? यह हमारे देश के लिये एक अहं बडा सवाल है.
कोरोना व्हायरस प्रकोपता नें समस्त विश्व को, *"आर्थिक महामंदी"* की ओर घसिटने के उपरांत भी, *आस्ट्रेलिया* इस देश ने, १८९ अब्ज आस्ट्रेलियन डॉलर के पॅकेज की घोषणा की है. *ब्रिटन* ने ब्रिटीश वर्करों की ८०% तनखा भार उठाते हुये, प्रति माह २५०० पौंड तनखा देने की घोषणा की है. वही वैट का अगली तिमाही के भुगतान को टालते हुये ३० अरब पौंड का भार, स्वयं वहन किया है. वही छोटी कंपनीच्या बंद के कगार पर खडी होने के कारण, उन छोटी कंपनीयों को बचाने हेतु १०,००० पौंड की नगद मदत करने की बात कही है. *अमेरिका* ने भी उनके नागरिकों को १००० डॉलर देने का प्लॉन बनाया है. *जर्मनी* ने एक अरब युरो का पॅकेज देने की घोषणा की है. *स्पेन* ने भी कर्मचारीयों की सेवा बचाने के लिये, २०० अरब युरो तथा सामाजिक सेवाओं के लिये ६०० मिलियन युरो की घोषणा की है. *कॅनेडा* ने नागरिकों के मदत के लिये, २७ बिलियन डॉलर का पॅकेज की बात कही है. *"वही हमारी भारत सरकार इन पॅकेज घोषणा में बहुत पिछडी दिखाई देना...!"* अत: हमारे सरकार के, इस उदासिन पिछडे भाव को हम क्या कहे...??? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने ऐलान किया कि, *"वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाऐगी, जो ये एक्शन प्लॅन बनायेगी...!"* भारत सरकार ने तो पहले घोषणा की थी कि, भारत में कोरोना व्हायरस का एक भी केस नहीं है. फिर ३० जनवरी २०२० को भारत में, कोरोना व्हायरस का पहिला केस मिला. वही भारतीय विमान सेवा हो या, रेल सेवा हो वहां प्रतिबंधात्मक उपायों की, कोई व्यवस्था ही नहीं की गयी. *"वही कोरोना व्हायरस सैंपल टेस्ट के बारें में, हम क्या कहे...?"* और उस कोरोना प्रकोप ने अपनी ५१९ संख्या भी पार कर डाली...!!! वह कोरोना ग्रसित संख्या अधिकॄत है या नहीं या अधिक भी...! यह एक प्रश्न है.
भारत यह मंदिरो का देश है. यहां आदमी का कल्याण, यह व्यक्ती कॄतीशीलता पर निर्भर नहीं होता, तो देवभाव आशिर्वाद पर निर्भर होता हैं. परंतु *"कोरोना व्हायरस प्रकोपता"* में, देव - देवियों ने मंदिरों में बंदिस्त होना उचित समझा. प्राचिन देव इतिहास में लिखां गया है कि, कभी किसी प्रकोप के कारण, देव लोग भागा करते थे. इंद्र से लेकर चंद्र देव, कभी किसी प्रकोप के शिकार हुये थे. तो कोई देव लोग, किसी गंभिर बिमारी सें पिडित...! आज कोरोना प्रकोप में, ना संकट मोचन हनुमान सामने आया, ना कोई शनी देव, ना सुर्य देव सामने आया, ना कोई सृष्टी निर्माता (?) महादेव...!!! *"वही हमारे देश के विभिन्न मंदिरो की मासिक कमाई भी देखें."* हक्का - बक्का रह जाओंगे...! तिरुपती बालाजी (१ हजार ३२५ करोड), वैष्णोदेवी (४०० करोड), रामकृष्ण मिशन (२०० करोड), जगन्नाथ पुरी (१६० करोड), शिर्डी साईबाबा (१०० करोड), द्वारकाधीश (५० करोड), सिध्दी विनायक (२७ करोड), वैजनाथ नाम देवगड (४० करोड), अंबाजी गुजरात (४० करोड), त्रावणकोर (३५ करोड), अयोध्या (१४० करोड), काली माता मंदिर कोलकाता (२५० करोड), पद्मनाभन (५ करोड), सालासार बालाजी (३०० करोड), इसके अलावा भारत के छोटे मोटे मंदिरों की *"सालाना आय रू. २८० लाख करोड"* आखीं जाती है. वही *"भारत का सालाना कुल बजेट रू. १५ लाख करोड"* का कहा जाता है. अब सवाल यह है कि, *"मंदिरों के इस करोडों आय का राष्ट्र हित - राष्ट्र विकास में क्या योगदान रहा है...?"* इस का उत्तर है - *झिरो.* यह पैसा एक तरह का *"काला पैसा - Black Money"* ही है. जहां ब्राम्हण पुजारी ऐश किया करते है. इन अवैध पैसों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. *"इधर - 'भारतीय अर्थव्यवस्था' की हालत खस्ताहाल हो रही है. भारत विदेशी बैंको के कर्जं में डुबा है. और उधर देववाद का खुला नंगानाच चल रहा है...!"* वही इस अनैतिक घटना पर, एक ओर संसद मौन है. तो दुसरी ओर न्यायालयों ने, आंखो पर काली पट्टी बांधे रखी है. *"हमारे देश में न्याय कहा है...?"* "मानवतावाद" यहां बाजार में बिकता है. दुसरे अर्थों में, यहां नंगो का राज है...! न्यायाधीश भी मंदिरों में, घुटनों के बल सोया करते है. फिर अन्य राजनेताओं के बारें में हम क्या कहे...? किसी शायर ने, क्या खुब कहा है - *"नंगे को खुदा डरे...!"*
दोस्तों, हमारा रूपया दिनों दिन बहुत गिरता जा रहा है और डॉलर बडा महंगा...!!! भारत इन कर्जबाजारीपण से उभर सकता है. केवल हम में इच्छाशक्ती, इमानदारी, देशभक्ती आदी भाव जगाने की जरूरी है. भारत के संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कह गये कि, *"भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजूर नहीं. प्रथम हिंदु, बाद में मुसलमान यह भाव भी मुझे मंजूर नहीं. हम सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयता आगे कुछ नहीं. यही मेरी भुमिका है."* (मुंबई, दिनांक १ अप्रेल १९३८). क्या हम भारत के लोग, सच्चे भारतीय बन पायें है...? क्या भारत को, आजादी मिलने के ७० साल बाद, हमने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* स्थापन करने की पहल की है. भारतीय बजेट में "भारत राष्ट्रवाद" जगाने कोई प्रावधान किया है...? कुंभमेला, फालतु मेला आदी कार्यक्रमों पर, करोडों रूपयें बरबाद किये है. हमने हमारे देश का, केवल सामाजिक - धार्मिक वातावरण ही दुषित नही किया, बल्की हमारे शहरों की हवा - पाणी आदी जिवनावश्यक वस्तुओं को भी, दुषित किया है. वही सांसदों को उनके अधिकार और कर्तव्यनिष्ठा समझाते हुयें, डॉ. आंबेडकर कहते हैं - *"संसद में बैठे सभी सदस्यों ने यह ख्याल रखना जरूरी है कि, जनता का हित तथा कल्याण का दायित्व हमारे शिर्ष पर है. अगर हम ने अपना दायित्व निभाने में कसुर किया तो, जनता का इस संसद से विश्वास तुट जाएगा. और उन लोगों में, संसद के प्रती नफरत भाव निर्माण होगा. और इस में मुझे कोई संदेह नही है."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक १९ मे १९५२). डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की उपरोक्त भविष्य वाणी, आज सही साबित हो रही है. संसद यह जनता का *"विश्वास मंदिर" नहीं दिखाई देता. वहां बैठे जादातर सदस्य लोग, ये विधायक कामों पर चर्चा कम, और झगडे जादा करते है."* संसद का अधिवेशन, पैसों की बरबादी का अड्डा, दिखाई देता रहा है. वही जो भी सरकारे आयी है, या आती रही है, उन्होंने कभी, जन कल्याण - देश कल्याण भावों पर, क्वचित ही सही निर्णय लिये है. अत: सभी सरकारों के लिये, डॉ आंबेडकर के यह शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. *"जो सरकार उचित तथा शिघ्रता से सही निर्णय लेकरं, उसका सही अमल ना करे, उसे सरकार कहने का, कोई नैतिक अधिकार नहीं. यही मेरी धारणा है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४).
भाजपा पुरस्कृत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने *"CAA - Citizenship Amendment Act तथा NRC - National Register of Citizens"* कानुन लाकर, समस्त भारत में वह लागु करने की घोषणा की. वही भारत के विरोधी पक्ष तथा कुछ भाजपा विरहित राज्यों ने, उपरोक्त कानुन अपने राज्यों में लागु कराने का जोरसार विरोध किया है...! वही भारत के बौध्द - मुस्लिम अल्पसंख्याक समाज ने भी, इस कानुन का जोरदार विरोध किया है. उपरोक्त *"नागरिकता कानुन"* के इस द्वंद्व लढाई में, मुझे डॉ. आंबेडकर जी के भारतीय नागरिकता संदर्भ में कहे शब्द याद आ गये. बाबासाहेब कहते हैं, *"सामायिक नागरिकत्व के बिना, सच्चे संघराज्य का निर्माण नहीं हो सकता. और जो राज्यघटना सामायिक नागरिकत्व की व्यवस्था नहीं करती है, तब तक उस राज्यघटना (संविधान) को "संघराज्य का संविधान" कहना सर्वथा अनुचित है...!"* (लंडन, दिनांक १६ सितंबर १९३१) जब हम CAA संदर्भ में आसाम को देखते है, तब १९ लाख लोगों को "डिसेस्टर कैंप" में बंदी बनाये जाना, इसे हम क्या कहे...? वही उन १९ लाख लोगों में, १४ लाख हिंदु लोग होने की बात कहीं गयीं है. दुसरी ओर *जवाहरलाल नेहरू इस कांग्रेसी तत्कालिन प्रधानमंत्री* नें, भारत - पाकिस्तान बंटवारें में *"बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का बंगाल प्रांत से चुनकर आया मतदार संघ"* पाकिस्तान को हवाले कर देना, क्या जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की देशभक्ती थी...? जब की, उस मतदार संघ में ८० % लोग, ये गैर - मुस्लिम थे. क्या उस नीति फैसलें को, नेहरू - कांग्रेस की गद्दारी नहीं कहनी चाहिये..? वहीं जब, उन क्षेत्र के *"चकमा बौध्द,"* जब भारत में त्रिपुरा - आसाम में आ बसे तो, वो अ-भारतीय अर्थात शरणार्थी बन गये. उन चकमा बौध्द - शरणार्थीओं को, भारत सरकार ने मानवीय भाव से, कोई उचित सुविधाएं भी नहीं दी. वही हाल, हमारे तिब्बती शरणार्थी बौद्ध भाईयों का रहा है. उन्हे शहरों से कहीं दुर, जंगलो में बसाया गया. ना रहने के लिये ठिक से घर, ना जाने - आने के लिये ठिक से रास्ते...! आर्थिक सहाय्यता का विषय ही छोड दो...! वही पाकिस्तान से भारत में आयें *"सिंधी शरणार्थी"* को, दिल्ली शहर में तथा भारत के अन्य बडें शहरों में बसाया गया. साथ में, साठ करोड रूपयों की आर्थिक मदत भी दी गयी. जो बाद में, डुबीत खातें की राशी हो गयी. उपर से उन सिंधी भाईयों ने, नकली वस्तुओं का निर्माण कर, भारतीय अर्थव्यवस्था का बंट्याधार किया. *"वही तिब्बती हो या, चकमा बौध्द बांधव हो, उन्होंने अपने वतन से इमानदारी - नैतिकता बनाई रखी. परंतु आज भी वो शरणार्थी बने है."* और पाकिस्तान से भारत में आ बसे सिंधी शरणार्थी लोगों को, *"भारत की नागरिकता"* प्रदान की गयी. वही हम भारत के मुलवासी लोगों को, *"नागरिकता सिध्द करने की बातें,"* अगर विदेशी ब्राम्हण सत्ताधारी करे..? तो वह, अ-सहनीय भाव रहेगा ही. उनका विरोध करना तो, हमारा स्वाभाविक अधिकार है.
भाजपा पुरस्कृत नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा, *"संसद के दोनो हाऊस"* में पारित प्रस्तुत कानुन का विरोध देखकर, मुझे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी के निम्न कथन बहुत महत्त्वपुर्ण लग रहे है. बाबासाहेब कहते हैं, *"कानुन यह सभी जनता के लिए मान्य हो, ऐसा ही वो माफक एवं सुबोध होना चाहिए. जनता को अपने अधिकार क्या है, यह भाव हर एक नागरिक को समझना बहुत जरूरी है. हर घडी उसे, वकिलों पर निर्भर नहीं होना चाहिए. हमारा कानुन ऐसा हो...!"* (नयी दिल्ली, दिनांक ११ जनवरी १९५०) इसके साथ ही डॉ. आंबेडकर कानुन के संदर्भ में कहते है, *"समाज के दोषों का निर्मुलन हो, यही कानुन बनाने का उद्देश है. परंतु दु:ख की बात यह कि, हमारे समाज के दोषों के निर्मुलन करने हेतु कानुन का उपयोग नहीं किया जाता. इस लिये उनका नाश हुआ है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक - फरवरी १९४८) NRC, CAA, NPR का समस्त भारत से तथा विभिन्न राज्यों के सरकारों द्वारा विरोध होने पर भी, भाजपा सरकार के अडियल भाव को देखकर, उन्हे समझने हेतु डॉ. आंबेडकर का और एक कथन दे रहा हुं. बाबासाहेब कहते हैं, *"अधिकार पर बैठे हुयें लोगों ने, यह ध्यान रखना चाहियें कि, घटना बनाना और राज्य कारभार करने का अधिकार उन्हे जो लोगों द्वारा दिया गया है, वह लोगों के कुछ शर्तों पर होता हैं. सरकार नें अच्छे से अच्छी सत्ता चलाना चाहिए, इन शर्तों पर उन्हे ये अधिकार लिये हैं...!"* (त्रिवेंद्रम, दिनांक १० जुनं १९५०). अब बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के उपरोक्त कथन में, नरेंद्र मोदी एवं उनके सरकार के सभी मंत्रीयों ने आत्मचिंतन करना बहुत जरुरी है. क्या उनकी सरकार *"बहुजन हित के लिये - बहुजन सुख के लिये"* प्रतिबध्द है...???? या विदेशी अल्पसंख्याक ब्राम्हण के हित के लिये - सुख के लिये...!!! अगर ब्राम्हण समुह स्वयं को भारतीय मुल के समझते हो तो, उनके विदेशीपण के, मैं कई ऐतिहासिक और जैविक प्रमाण दे सकता हुं. और ब्राम्हण समुह द्वारा किये गये देश गद्दारी के भी...!!!!
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कभी भी ब्राम्हण व्यक्ती विशेष का विरोध नहीं किया...! बल्की उन्होने ब्राम्हणी प्रवृत्ती का विरोध किया है. बाबासाहेब कहते हैं, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ - स्वातंत्र, समता एवं बंधुभाव इन तत्वों का अभाव, यह भाव मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थो से ब्राम्हणों ने, सभी क्षेत्रों में कहर कर डाला. और वे उसके जनक भी है. परंतु अब यह अ-भाव केवल ब्राम्हण सिमित ना होकर, इस ब्राम्हणशाही नें सभी समाज में संचार करते हुये, उन वर्गों के आचार - विचारों को भी नियंत्रित किया है. और यह बात निर्विवाद सत्य है."* दुसरी ओर देखें तो, कांग्रेस हो या भाजपा शासित सरकारें, उन सभी पर, गांधीवाद का प्रभाव दिखाई देता है. और वह गांधी भाव, देश के आर्थिक हो या - सामाजिक परिदृश्य में, देश विकास में कभी हितकारी नहीं रहा. इस गांधी भाव संदर्भ में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं, *"गांधीयुग से, देश का विकास चक्र उलटा फिर गया. ढोंगी लोगों का, राजनीति में शिरकाव बढ गया. दो आणे की गांधी टोपी सिर पर डाल दो,और गांधी का दास होना घोषित कर दो तो, वह देश भक्त बन जाता. इस कारण हिंदी राजनीति में, स्वार्थ साधुओं ने गंदगी कर डाली."* (मुंबई, दिनांक २ अप्रेल १९३९) इसके साथ ही, तत्कालिन भारतीय राजनीति में, बढते व्यभीचारीता को देखते हुये बाबासाहेब कहते हैं, *"गांधीवाक्य, यह ब्रम्हवाक्य होते दिखाई देता है. इस गांधी पागलपन से, राजनीति में ढोंगगिरी ने चरम सीमा पार कर डाली. केवल स्वार्थवश कांग्रेस को चार आणे देकरं, व्यभिचार करनेवाले अनेक हरी के लाल पैदा हुये है."* (क-हाड, दिनांक २ जनवरी १९४०) वही भारत आजादी के बाद, भारतीय राजनीति में व्यभिचार - अनैतिकता आदी को देखकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी इंग्रज शासन के शिस्तबध्दता संदर्भ में लिखते है, *"ब्रिटिश प्रशासन यह राज्य समता तथा न्याय आधारीत था. इस लिए लोगों में, उस शासन प्रती सुरक्षितता महसुस होती रही. परंतु स्वातंत्रता मिलने के बाद, अल्पसंख्याक समाज में, बहुसंख्याक समाज से असुरक्षित भाव महसुस होने लगा."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक .. सितंबर १९५४).
अभी अभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह सुरेश उर्फ भैय्याजी जोशी इन्होने, *"प्रशासन के निर्णयों का पालन करते हुयें सरकार से समन्वय कर, मदत करने की बात कही है."* कौन सी मदत...??? वैसे कहां जाएं तो, केंद्र में सत्ता उनकी ही है. मिडिया भी उनकी है. नोकरशाही हो या न्याय व्यवस्था सभी उनका है. फिर भी इस तरह का नाटकीय प्रदर्शन क्यौ..? यह समझना बहुत जरूरी है. *"भारतीय खस्ता अर्थव्यवस्था"* पर संघ मौन है. मंदिरों के अर्थव्यवस्था पर भी, ये संघ कुछ नहीं बोलता. *"कोरोना व्हायरस प्रभाव से, लोगों के घर के चुल्हे जल नहीं रहे. फिर भी संघ खामोश है."* समस्त लघु उद्योग बंद है. छोटे कामकरी दो वक्त के रोटी के लिये तडप रहा है. *"फिर भी हमारे सरकार से, किसी पॅकेज की घोषणा नहीं हुयी है."* वही संघ ने इस संदर्भ में, अपने सरकार को कोई आदेश नहीं दिया है. भारत के भ्रष्टाचार पर भी, संघ मौन रहता दिखाई देता है. भारत में शोषण व्यवस्था बनायें रखना चाहता है. और फालतु की बयानबाजीयां जादातर कर जाता है. *"अत: इन सवर्ण अल्पसंख्याक राजनीति को समझना, भारत के मागासवर्ग बहुसख्यांक समाज के लिये बहुत जरूरी हुआ है."* देववाद - धर्मांधवाद को भी समझना आवश्यक है. नहीं तो शोषण नीति की *"आधुनिक पेशवाई,"* भारत के लिये, बडा कलंक बनकर उभर सकती है. अत: समस्त *"मंदिरो की राष्ट्रियकरण की मांग,"* भविष्य की रौद्र पेशवाई खत्म करने हेतु आवश्यक है. वही भारत सरकार को भी, अपनी आर्थिक स्थिती को मजबुत करने के लिये, उस ओर बढना बहुत जरुरी है. नहीं तो, *'भारत की यह आर्थिक महामंदी"* भारत के लिये अशांती का कारण रहेगी...!!!
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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य,* नागपुर
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
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मा. महोदय,
यह लेख मैने दिनांक २५ मार्च २०२० को सुबह १२.३५ को व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉगर में पोष्ट कर सरकार से कोरोना पिडितों को मदत मिलने की अपेक्षा की है.
आज दिनांक २६ मार्च २०२० को भारत सरकार नें १.७० लाख करोड के गरिब लोगों के लिये पॅकेज की घोषणा की है. वैसै कहा जाए तों, यह मदत जादा नहीं है. फिर भी यह पॅकेज घोषित होना, संतोष जनक विषय है.
वही २१ दिन के लॉक डाऊन में भारतीय अर्थव्यवस्था पुर्णत: गडबडा जानेवाली है. क्यौ कि, समस्त उद्योग, व्यवसाय, रेल - विमान - बस यातायात बंद है. समस्त कार्यालय बंद है. इससे देश की तथा व्यवसाय - उद्योग एवं जन मन की समस्त अर्थव्यवस्था चरमरा जानेवाली है. इस की पुर्तता होना इतना सहज नहीं.
कोरोना व्हायरस प्रकोप से एक ओर बिमारी सें लोक मर रहे है. वही २१ दिन लॉक डाऊन होने से भुकमरी की स्थिती निर्माण होना यह बडी गंभिर बात है. लोगों को आर्थिक स्थिती गंभिर है.
वही भारत कें मंदिरों में अनगिनत संपत्ती बेकार पडी है. जिस का उपयोग देश विकास के लिये, समाज हित के लिये आवश्यक है. अत: आप इस संदर्भ उचित आदेश करे, यह विनंती की जाती है.
*डॉ. मिलिन्द जीवने,*, नागपुर