Monday, 30 March 2020

Dr Milind Jiwane 'Shakya' filed complaint before the Supreme Court of India in concern with misappropriation of funds of Temples.

*मा. सर्वोच्च न्यायालय, नयी दिल्ली, इनके समक्ष...!*

केस क्र.         /२०२०.      दिनांक २६ मार्च २०२०

अर्जदार : *डॉ. मिलिन्द पंढरीनाथ जीवने*
आयु - ६० वर्ष,  मु.पो. - ५९४, जीवक सोसायटी परिसर, नया नकाशा, स्वस्तिक स्कुल के पास, नागपुर ४४००१७ म.रा. (मोबाईल क्र.  ९३७०९८४१३८)
Email : dr.milindjiwane@gmail.com

गैरअर्जदार : *मा. प्रधान सचिव*, भारत सरकार, नयी दिल्ली

*भारत के सर्व धर्मीय तमाम मंदिर / चर्च / विहार / मस्जीद आदी का राष्ट्रियकरण करते हुये, वहां लोगों द्वारा मिले दान के अतिरिक्त राशी / संपत्ती का राष्ट्र हित तथा जन हित में वापर करने हेतु...!*

महोदय,

    मैं अर्जदार सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत हुं. कई लोगों को उनके अधिकार देने का काम किया है. हमने गरजु तथा गरिबी लोगों को आरोग्य सेवा मिलने हेतू हर साल दीक्षाभूमी नागपुर में, तीन दिन *"मोफत रोग निदान शिबिर"* का आयोजन पिछले २५ - ३० साल से करते आया हुं. तथा महाराष्ट्र सरकार, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने मुझे *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक उत्थान पुरस्कार"* से, २४ मई २०१७ को सन्मानित किया है. तथा विभिन्न विषयों पर - समस्याओं पर लिखाण भी करते रहता हुं.

२. *विश्व के कोरोना व्हायरस प्रकोपता में, भारतीय अर्थव्यवस्था "भरोना व्हायरस" की ओर...!!!* (क्या हमारी भारत सरकार, समस्त मंदिरो का राष्ट्रियकरण करने का निर्णय लेकर, वहां डंब पडी हुयी बेनामी संपत्ती का राष्ट्रहित में प्रयोग करेगी...???) - एक बडा प्रश्न. यह लेख  भी मैने लिखकर, मिडिया में पोष्ट किया है. वही लेख आप को भी पोष्ट करते हुये, सही न्याय की आशा करते है.

       चीन का खतरनाक *"कोरोना व्हायरस - Covid 19,"* समस्त विश्व के लिये शापितसा दिखाई दे रहा है. वही *"जागतिक आर्थिक मंदी"* का फटका अब जोर पकडने लगा है. एक अच्छी खबर यह भी है कि, चीन ने "कोरोना व्हायरस" पर नियंत्रण कर लिया है. चीन में नये कोरोना के रुग्न दिखाई ना देना, ये अच्छी बात है. परंतु युरोप (१,७२,२३८), आशिया (९७,७८३), अमेरिका एवं कॅनडा (३६, ५३४), आखाती देश (२६,६८८), लॅटिन अमेरिका एवं कॅरिबियन (५,१३०), आफ्रिका (१४७९), ओशिआनिआ  (१,४३३) इन देशों के उपरोक्त "कोरोना व्हायरस" पिडितों की संख्या २३ मार्च २०२० तक दिखाई देना, यह बडा ही चिंता का विषय है. वही *"भारत के २३ राज्यों में, कोरोना प्रकोप बाधितों की संख्या ५१९ तक या पार भी बताया जाना,"* यह एक बार संतोषजनक स्थिती कहीं जा सकती है. वही दुसरा सवाल यह भी है कि, *"क्या भारत में सही रूप से, कोरोना बाधितों का पुर्णत: सर्वेक्षण हुआ है...?"* वही भारतीय लोगों का कोरोना व्हायरस से अल्प संख्या में बाधित होना हो, परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये, वह ग्रसितता कदापी अच्छी बात नहीं है. हमारे भारत सरकार ने रविवार दिनांक २२ मार्च को, "जनता कर्फ्यु" का आवाहन किया था. लोगों ने हमारे सरकार के आवाहन को, अच्छा समर्थन भी दिया. वही हमारी कुछ राज्य सरकारों ने भीं, करोना का बढता प्रभाव रोकने हेतु समस्त राज्यों में संचारबंदी (कर्फ्यु) लागु कर रखी है. और सरकार का यह निर्णय स्वागतार्ह भी है. क्यौ कि, हमारी भारतीय भीड, "यह प्यार की भाषा कम समझती है. और दंडो (कानुन) की भाषा जादा...!" परंतु *"भारतीय अर्थव्यवस्था"* के खस्ता बंट्याधार का क्या...???? उस *"खस्ता आर्थिक बंट्याधार की क्षती - पुर्ती"* हमारी सत्ता व्यवस्था, आगे कैसे पुर्ण करेगी...??? यह हमारे देश के लिये एक अहं बडा सवाल है.
     कोरोना व्हायरस प्रकोपता नें समस्त विश्व को, *"आर्थिक महामंदी"* की ओर घसिटने के उपरांत भी, *आस्ट्रेलिया* इस देश ने, १८९ अब्ज आस्ट्रेलियन डॉलर के पॅकेज की घोषणा की है. *ब्रिटन* ने ब्रिटीश‌ वर्करों की ८०% तनखा भार उठाते हुये, प्रति माह २५०० पौंड तनखा देने की घोषणा की है. वही वैट का अगली तिमाही के भुगतान को टालते हुये ३० अरब पौंड का भार, स्वयं वहन किया है. वही छोटी कंपनीच्या बंद के कगार पर खडी होने के कारण, उन छोटी कंपनीयों को बचाने हेतु १०,००० पौंड की नगद मदत करने की बात कही है. *अमेरिका* ने भी उनके नागरिकों को १००० डॉलर देने का प्लॉन बनाया है. *जर्मनी* ने एक अरब युरो का पॅकेज देने की घोषणा की है.‌ *स्पेन* ने भी कर्मचारीयों की सेवा बचाने के लिये, २०० अरब युरो तथा सामाजिक सेवाओं के लिये ६०० मिलियन युरो की घोषणा की है. *कॅनेडा* ने नागरिकों के मदत के लिये, २७ बिलियन डॉलर का पॅकेज की बात कही है. *"वही हमारी भारत सरकार इन‌ पॅकेज घोषणा में बहुत पिछडी दिखाई देना...!"* अत: हमारे सरकार के, इस उदासिन पिछडे भाव को हम क्या कहे...??? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने ऐलान किया कि, *"वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाऐगी, जो ये एक्शन प्लॅन बनायेगी...!"* भारत सरकार ने तो पहले घोषणा की थी कि, भारत में कोरोना व्हायरस का एक भी केस नहीं है. फिर ३० जनवरी २०२० को भारत में, कोरोना व्हायरस का पहिला केस मिला. वही भारतीय विमान सेवा हो या, रेल सेवा हो वहां प्रतिबंधात्मक उपायों की, कोई व्यवस्था ही नहीं की गयी. *"वही कोरोना व्हायरस सैंपल टेस्ट के बारें में, हम क्या कहे...?"* और उस कोरोना प्रकोप ने अपनी ५१९ संख्या भी पार कर डाली...!!! वह कोरोना ग्रसित संख्या अधिकॄत है या नहीं या अधिक भी...! यह एक प्रश्न है.
        भारत यह मंदिरो का देश है. यहां आदमी का कल्याण, यह व्यक्ती कॄतीशीलता पर निर्भर नहीं होता, तो देवभाव आशिर्वाद पर निर्भर होता हैं. परंतु *"कोरोना व्हायरस प्रकोपता"* में, देव - देवियों ने मंदिरों में बंदिस्त होना उचित समझा. प्राचिन देव इतिहास में लिखां गया है कि, कभी किसी प्रकोप के कारण, देव लोग भागा करते थे. इंद्र से लेकर चंद्र देव, कभी किसी प्रकोप के शिकार हुये थे. तो कोई देव लोग, किसी गंभिर बिमारी सें पिडित...! आज कोरोना प्रकोप में, ना संकट मोचन हनुमान सामने आया, ना कोई शनी देव, ना सुर्य देव सामने आया, ना कोई सृष्टी निर्माता (?) महादेव...!!! *"वही हमारे देश के विभिन्न मंदिरो की मासिक कमाई भी देखें."* हक्का - बक्का रह जाओंगे...! तिरुपती बालाजी (१ हजार ३२५ करोड), वैष्णोदेवी (४०० करोड), रामकृष्ण मिशन (२०० करोड), जगन्नाथ पुरी (१६० करोड), शिर्डी साईबाबा (१०० करोड), द्वारकाधीश (५० करोड), सिध्दी विनायक (२७ करोड), वैजनाथ नाम देवगड (४० करोड), अंबाजी गुजरात (४० करोड), त्रावणकोर (३५ करोड), अयोध्या (१४० करोड), काली माता मंदिर कोलकाता (२५० करोड), पद्मनाभन (५ करोड), सालासार बालाजी (३०० करोड), इसके अलावा भारत के छोटे मोटे मंदिरों की *"सालाना आय रू. २८० लाख करोड"* आखीं जाती है. वही *"भारत का सालाना कुल बजेट रू. १५ लाख करोड"* का कहा जाता है. अब सवाल यह है कि, *"मंदिरों के इस करोडों आय का राष्ट्र हित - राष्ट्र विकास में क्या योगदान रहा है...?"* इस का उत्तर है - *झिरो.* यह पैसा एक तरह का *"काला पैसा - Black Money"* ही है. जहां ब्राम्हण पुजारी ऐश किया करते है. इन अवैध पैसों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. *"इधर -  'भारतीय अर्थव्यवस्था' की हालत खस्ताहाल हो रही है. भारत विदेशी बैंको के कर्जं में डुबा है.‌ और उधर देववाद का खुला नंगानाच चल रहा है...!"* वही इस अनैतिक घटना पर, एक ओर संसद मौन है. तो दुसरी ओर न्यायालयों ने, आंखो पर काली पट्टी बांधे रखी है. *"हमारे देश में न्याय कहा है...?"* "मानवतावाद" यहां बाजार में बिकता है. दुसरे अर्थों में, यहां नंगो का राज है...! न्यायाधीश भी मंदिरों में, घुटनों के बल सोया करते है. फिर अन्य राजनेताओं के बारें में हम क्या कहे...? किसी शायर ने, क्या खुब कहा है - *"नंगे को खुदा डरे...!"*
      दोस्तों, हमारा रूपया दिनों दिन बहुत गिरता जा रहा है और डॉलर बडा महंगा...!!! भारत इन कर्जबाजारीपण से उभर सकता है. केवल हम में इच्छाशक्ती, इमानदारी, देशभक्ती आदी भाव जगाने की जरूरी है. भारत के संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कह गये कि, *"भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजूर नहीं. प्रथम हिंदु, बाद में मुसलमान यह भाव भी मुझे मंजूर नहीं. हम सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयता आगे कुछ नहीं. यही मेरी भुमिका है."* (मुंबई, दिनांक १ अप्रेल १९३८). क्या हम भारत के लोग, सच्चे भारतीय बन पायें है...? क्या भारत को, आजादी मिलने के ७० साल बाद, हमने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* स्थापन करने की पहल की है. भारतीय बजेट में "भारत राष्ट्रवाद" जगाने कोई प्रावधान किया है...? कुंभमेला, फालतु मेला आदी कार्यक्रमों पर, करोडों रूपयें बरबाद किये है. हमने हमारे देश का, केवल सामाजिक - धार्मिक वातावरण ही दुषित नही किया, बल्की हमारे शहरों की हवा - पाणी आदी जिवनावश्यक वस्तुओं को भी, दुषित किया है. वही सांसदों को उनके अधिकार और कर्तव्यनिष्ठा समझाते हुयें, डॉ. आंबेडकर कहते हैं - *"संसद में बैठे सभी सदस्यों ने यह ख्याल रखना जरूरी है कि, जनता का हित तथा कल्याण का दायित्व हमारे शिर्ष पर है. अगर हम ने अपना दायित्व निभाने में कसुर किया तो, जनता का इस संसद से विश्वास तुट जाएगा. और उन लोगों में, संसद के प्रती नफरत भाव निर्माण होगा. और इस में मुझे कोई संदेह नही है."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक १९ मे १९५२). डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की उपरोक्त भविष्य वाणी, आज सही साबित हो रही है. संसद यह जनता का *"विश्वास मंदिर" नहीं दिखाई देता. वहां बैठे जादातर सदस्य लोग, ये विधायक कामों पर चर्चा कम, और झगडे जादा करते है."* संसद का अधिवेशन, पैसों की बरबादी का अड्डा, दिखाई देता रहा है. वही जो भी सरकारे आयी है, या आती रही है, उन्होंने कभी, जन कल्याण - देश कल्याण भावों पर, क्वचित ही सही निर्णय लिये है. अत: सभी सरकारों के लिये, डॉ आंबेडकर के यह शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. *"जो सरकार उचित तथा शिघ्रता से सही निर्णय लेकरं, उसका सही अमल ना करे, उसे सरकार कहने का, कोई नैतिक अधिकार नहीं. यही मेरी धारणा है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४).
        भाजपा पुरस्कृत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने *"CAA - Citizenship Amendment Act तथा NRC - National Register of Citizens"* कानुन लाकर, समस्त भारत में वह लागु करने की घोषणा की. वही भारत के विरोधी पक्ष तथा कुछ भाजपा विरहित राज्यों ने, उपरोक्त कानुन अपने राज्यों में लागु कराने का जोरसार विरोध किया है...! वही भारत के बौध्द - मुस्लिम अल्पसंख्याक समाज ने भी, इस कानुन का जोरदार विरोध किया है. उपरोक्त *"नागरिकता कानुन"* के इस द्वंद्व लढाई में, मुझे डॉ.‌ आंबेडकर जी के भारतीय नागरिकता संदर्भ में कहे शब्द याद आ गये. बाबासाहेब कहते हैं, *"सामायिक नागरिकत्व के बिना, सच्चे संघराज्य का निर्माण नहीं हो सकता. और जो राज्यघटना सामायिक नागरिकत्व की व्यवस्था नहीं करती है, तब तक उस राज्यघटना (संविधान) को "संघराज्य का संविधान" कहना सर्वथा अनुचित है...!"* (लंडन, दिनांक १६ सितंबर १९३१) जब हम CAA संदर्भ में आसाम को देखते है, तब १९ लाख लोगों को "डिसेस्टर कैंप" में बंदी बनाये जाना, इसे हम क्या कहे...? वही उन १९ लाख लोगों में, १४ लाख हिंदु लोग होने की बात कहीं गयीं है. दुसरी ओर *जवाहरलाल नेहरू इस कांग्रेसी तत्कालिन प्रधानमंत्री* नें, भारत - पाकिस्तान बंटवारें में *"बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का बंगाल प्रांत से चुनकर आया मतदार संघ"* पाकिस्तान को हवाले कर देना, क्या जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की देशभक्ती थी...? जब की, उस मतदार संघ में ८० % लोग, ये गैर - मुस्लिम थे. क्या उस नीति फैसलें को, नेहरू - कांग्रेस की गद्दारी नहीं कहनी चाहिये..? वहीं जब, उन क्षेत्र के *"चकमा बौध्द,"* जब भारत में त्रिपुरा - आसाम में आ बसे तो, वो अ-भारतीय अर्थात शरणार्थी बन गये. उन चकमा बौध्द - शरणार्थीओं को, भारत सरकार ने मानवीय भाव से, कोई उचित सुविधाएं भी नहीं दी. वही हाल, हमारे तिब्बती शरणार्थी बौद्ध भाईयों का रहा है. उन्हे शहरों से कहीं दुर, जंगलो में बसाया गया. ना रहने के लिये ठिक से घर, ना जाने - आने के लिये ठिक से रास्ते...! आर्थिक सहाय्यता का विषय ही छोड दो...! वही पाकिस्तान से भारत में आयें *"सिंधी शरणार्थी"* को, दिल्ली शहर में तथा भारत के अन्य बडें शहरों में बसाया गया. साथ में, साठ करोड रूपयों की आर्थिक मदत भी दी गयी. जो बाद में, डुबीत खातें की राशी हो गयी. उपर से उन सिंधी भाईयों ने, नकली वस्तुओं का निर्माण कर, भारतीय अर्थव्यवस्था का बंट्याधार किया. *"वही तिब्बती हो या, चकमा बौध्द बांधव हो, उन्होंने अपने वतन से इमानदारी - नैतिकता बनाई रखी. परंतु आज भी वो शरणार्थी बने है."* और पाकिस्तान से भारत में आ बसे सिंधी शरणार्थी लोगों को, *"भारत की नागरिकता"* प्रदान की गयी. वही हम भारत के मुलवासी लोगों को, *"नागरिकता सिध्द करने की बातें,"* अगर विदेशी ब्राम्हण सत्ताधारी करे..? तो वह, अ-सहनीय भाव रहेगा ही. उनका विरोध‌ करना तो, हमारा स्वाभाविक अधिकार है.
       भाजपा पुरस्कृत नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा, *"संसद के दोनो हाऊस"* में पारित प्रस्तुत कानुन का विरोध देखकर, मुझे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी के निम्न कथन बहुत महत्त्वपुर्ण लग रहे है. बाबासाहेब कहते हैं, *"कानुन यह सभी जनता के लिए मान्य हो, ऐसा ही वो माफक एवं सुबोध होना चाहिए. जनता को अपने अधिकार क्या है, यह भाव हर एक नागरिक को समझना बहुत जरूरी है. हर घडी उसे, वकिलों पर निर्भर नहीं होना चाहिए. हमारा कानुन ऐसा हो...!"* (नयी दिल्ली, दिनांक ११ जनवरी १९५०) इसके साथ ही डॉ. आंबेडकर कानुन के संदर्भ में कहते है, *"समाज के दोषों का निर्मुलन हो, यही कानुन बनाने का उद्देश है. परंतु दु:ख की बात यह कि, हमारे समाज के दोषों के निर्मुलन करने हेतु कानुन का उपयोग नहीं किया जाता. इस लिये उनका नाश हुआ है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक - फरवरी १९४८) NRC, CAA, NPR का समस्त भारत से तथा विभिन्न राज्यों के सरकारों द्वारा विरोध होने पर भी, भाजपा सरकार के अडियल भाव को देखकर, उन्हे समझने हेतु डॉ. आंबेडकर का और एक कथन दे रहा हुं. बाबासाहेब कहते हैं, *"अधिकार पर बैठे हुयें लोगों ने, यह ध्यान रखना चाहियें कि, घटना बनाना और राज्य कारभार करने का अधिकार उन्हे जो लोगों द्वारा दिया गया है, वह लोगों के कुछ शर्तों पर होता हैं. सरकार नें अच्छे से अच्छी सत्ता चलाना चाहिए, इन शर्तों पर उन्हे ये अधिकार लिये हैं...!"* (त्रिवेंद्रम, दिनांक १० जुनं १९५०). अब बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के उपरोक्त कथन में, नरेंद्र मोदी एवं उनके सरकार के सभी मंत्रीयों ने आत्मचिंतन करना बहुत जरुरी है. क्या उनकी सरकार *"बहुजन हित के लिये - बहुजन सुख के लिये"* प्रतिबध्द है...???? या विदेशी अल्पसंख्याक ब्राम्हण के हित के लिये - सुख के लिये...!!! अगर ब्राम्हण समुह स्वयं को भारतीय मुल के समझते हो तो, उनके विदेशीपण के, मैं कई ऐतिहासिक और जैविक प्रमाण दे सकता हुं. और ब्राम्हण समुह द्वारा किये गये देश गद्दारी के भी...!!!!
      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कभी भी ब्राम्हण व्यक्ती विशेष का विरोध नहीं किया...! बल्की उन्होने ब्राम्हणी प्रवृत्ती का विरोध किया है. बाबासाहेब कहते हैं, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ - स्वातंत्र, समता एवं बंधुभाव इन तत्वों का अभाव, यह भाव मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थो से ब्राम्हणों ने, सभी क्षेत्रों में कहर कर डाला. और वे उसके जनक भी है. परंतु अब यह अ-भाव केवल ब्राम्हण सिमित ना होकर, इस ब्राम्हणशाही नें सभी समाज में संचार करते हुये, उन वर्गों के आचार - विचारों को भी नियंत्रित किया है. और यह बात निर्विवाद सत्य है."* दुसरी ओर देखें तो, कांग्रेस हो या भाजपा शासित सरकारें, उन सभी पर, गांधीवाद का प्रभाव दिखाई देता है. और वह गांधी भाव, देश के आर्थिक हो या - सामाजिक परिदृश्य में, देश विकास में कभी हितकारी नहीं रहा. इस गांधी भाव संदर्भ में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं, *"गांधीयुग से, देश का विकास चक्र उलटा फिर गया. ढोंगी लोगों का, राजनीति में शिरकाव बढ गया. दो आणे की गांधी टोपी सिर पर डाल दो,और गांधी का दास होना घोषित कर दो तो, वह देश भक्त बन जाता. इस कारण हिंदी राजनीति में, स्वार्थ साधुओं ने गंदगी कर डाली."* (मुंबई, दिनांक २ अप्रेल १९३९) इसके साथ ही, तत्कालिन भारतीय राजनीति में, बढते व्यभीचारीता को देखते हुये बाबासाहेब कहते हैं, *"गांधीवाक्य, यह ब्रम्हवाक्य होते दिखाई देता है. इस गांधी पागलपन से, राजनीति में ढोंगगिरी ने चरम सीमा पार कर डाली. केवल स्वार्थवश कांग्रेस को चार आणे देकरं, व्यभिचार करनेवाले अनेक हरी के लाल पैदा हुये है."* (क-हाड, दिनांक २ जनवरी १९४०) वही भारत आजादी  के बाद, भारतीय राजनीति में व्यभिचार - अनैतिकता आदी को देखकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी इंग्रज शासन के शिस्तबध्दता संदर्भ में लिखते है, *"ब्रिटिश प्रशासन यह राज्य समता तथा न्याय आधारीत था. इस लिए लोगों में, उस शासन प्रती सुरक्षितता महसुस होती रही. परंतु स्वातंत्रता मिलने के बाद, अल्पसंख्याक समाज में, बहुसंख्याक समाज से असुरक्षित भाव महसुस होने लगा."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक .. सितंबर १९५४).
     अभी अभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह सुरेश उर्फ भैय्याजी जोशी इन्होने, *"प्रशासन के निर्णयों का पालन करते हुयें सरकार से समन्वय कर, मदत करने की बात कही है."* कौन सी मदत...??? वैसे कहां जाएं तो, केंद्र में सत्ता उनकी ही है. मिडिया भी उनकी है. नोकरशाही हो या न्याय व्यवस्था सभी उनका है. फिर भी इस तरह का नाटकीय प्रदर्शन क्यौ..? यह समझना बहुत जरूरी है. *"भारतीय खस्ता अर्थव्यवस्था"* पर संघ मौन है. मंदिरों के अर्थव्यवस्था पर भी, ये संघ कुछ नहीं बोलता. *"कोरोना व्हायरस प्रभाव से, लोगों के घर के चुल्हे जल नहीं रहे. फिर भी संघ खामोश है."* समस्त लघु उद्योग बंद है. छोटे कामकरी दो वक्त के रोटी के लिये तडप रहा है. *"फिर भी हमारे सरकार से, किसी पॅकेज की घोषणा नहीं हुयी है."* वही संघ ने इस संदर्भ में, अपने सरकार को कोई आदेश नहीं दिया है. भारत के भ्रष्टाचार पर भी, संघ मौन रहता दिखाई देता है. भारत में शोषण व्यवस्था बनायें रखना चाहता है. और फालतु की बयानबाजीयां जादातर कर जाता है. *"अत: इन सवर्ण अल्पसंख्याक राजनीति को समझना, भारत के मागासवर्ग बहुसख्यांक समाज के लिये बहुत जरूरी हुआ है."* देववाद - धर्मांधवाद को भी समझना आवश्यक है. नहीं तो शोषण नीति की *"आधुनिक पेशवाई,"* भारत के लिये, बडा कलंक बनकर उभर सकती है. अत: समस्त *"मंदिरो की राष्ट्रियकरण की मांग,"* भविष्य की रौद्र पेशवाई खत्म करने हेतु आवश्यक है. वही भारत सरकार को भी, अपनी आर्थिक स्थिती को मजबुत करने के लिये, उस ओर बढना बहुत जरुरी है. नहीं तो, *'भारत की यह आर्थिक महामंदी"* भारत के लिये अशांती का कारण रहेगी...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य,* नागपुर
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
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मा. महोदय,
   यह लेख मैने दिनांक २५ मार्च २०२० को सुबह १२.३५ को व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉगर में पोष्ट कर सरकार से कोरोना पिडितों को मदत मिलने की अपेक्षा की है.

    आज दिनांक २६ मार्च २०२० को भारत सरकार नें १.७० लाख करोड के गरिब लोगों के लिये पॅकेज की घोषणा की है.‌ वैसै कहा जाए तों, यह मदत जादा नहीं है. फिर भी यह पॅकेज घोषित होना, संतोष जनक विषय है.

      वही २१ दिन के लॉक डाऊन में भारतीय अर्थव्यवस्था पुर्णत: गडबडा जानेवाली है. क्यौ कि, समस्त उद्योग, व्यवसाय, रेल - विमान - बस यातायात बंद है. समस्त कार्यालय बंद है. इससे देश की तथा व्यवसाय - उद्योग एवं जन मन की समस्त अर्थव्यवस्था चरमरा जानेवाली है. इस की पुर्तता होना इतना सहज नहीं.

    कोरोना व्हायरस प्रकोप से एक ओर बिमारी सें लोक मर रहे है. वही २१ दिन लॉक डाऊन होने से भुकमरी की स्थिती निर्माण होना यह बडी गंभिर बात है. लोगों को आर्थिक स्थिती गंभिर है.

      वही भारत कें मंदिरों में अनगिनत संपत्ती बेकार पडी है. जिस का उपयोग देश विकास के लिये, समाज हित के लिये आवश्यक है. अत: आप इस संदर्भ उचित आदेश करे, यह विनंती की जाती है.

 *डॉ. मिलिन्द जीवने,*, नागपुर

Tuesday, 24 March 2020

🇮🇳 *विश्व के कोरोना व्हायरस प्रकोपता में, भारतीय अर्थव्यवस्था "भरोना व्हायरस" की ओर...!!!* (क्या हमारी भारत सरकार, समस्त मंदिरो का राष्ट्रियकरण करने का निर्णय लेकर, वहां डंब पडी हुयी बेनामी संपत्ती का राष्ट्रहित में प्रयोग करेगी...???) - एक बडा प्रश्न.
         *  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

       चीन का खतरनाक *"कोरोना व्हायरस - Covid 19,"* समस्त विश्व के लिये शापितसा दिखाई दे रहा है. वही *"जागतिक आर्थिक मंदी"* का फटका अब जोर पकडने लगा है. एक अच्छी खबर यह भी है कि, चीन ने "कोरोना व्हायरस" पर नियंत्रण कर लिया है. चीन में नये कोरोना के रुग्न दिखाई ना देना, ये अच्छी बात है. परंतु युरोप (१,७२,२३८), आशिया (९७,७८३), अमेरिका एवं कॅनडा (३६, ५३४), आखाती देश (२६,६८८), लॅटिन अमेरिका एवं कॅरिबियन (५,१३०), आफ्रिका (१४७९), ओशिआनिआ  (१,४३३) इन देशों के उपरोक्त "कोरोना व्हायरस" पिडितों की संख्या २३ मार्च २०२० तक दिखाई देना, यह बडा ही चिंता का विषय है. वही *"भारत के २३ राज्यों में, कोरोना प्रकोप बाधितों की संख्या ५१९ तक या पार भी बताया जाना,"* यह एक बार संतोषजनक स्थिती कहीं जा सकती है. वही दुसरा सवाल यह भी है कि, *"क्या भारत में सही रूप से, कोरोना बाधितों का पुर्णत: सर्वेक्षण हुआ है...?"* वही भारतीय लोगों का कोरोना व्हायरस से अल्प संख्या में बाधित होना हो, परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये, वह ग्रसितता कदापी अच्छी बात नहीं है. हमारे भारत सरकार ने रविवार दिनांक २२ मार्च को, "जनता कर्फ्यु" का आवाहन किया था. लोगों ने हमारे सरकार के आवाहन को, अच्छा समर्थन भी दिया. वही हमारी कुछ राज्य सरकारों ने भीं, करोना का बढता प्रभाव रोकने हेतु समस्त राज्यों में संचारबंदी (कर्फ्यु) लागु कर रखी है. और सरकार का यह निर्णय स्वागतार्ह भी है. क्यौ कि, हमारी भारतीय भीड, "यह प्यार की भाषा कम समझती है. और दंडो (कानुन) की भाषा जादा...!" परंतु *"भारतीय अर्थव्यवस्था"* के खस्ता बंट्याधार का क्या...???? उस *"खस्ता आर्थिक बंट्याधार की क्षती - पुर्ती"* हमारी सत्ता व्यवस्था, आगे कैसे पुर्ण करेगी...??? यह हमारे देश के लिये एक अहं बडा सवाल है.
     कोरोना व्हायरस प्रकोपता नें समस्त विश्व को, *"आर्थिक महामंदी"* की ओर घसिटने के उपरांत भी, *आस्ट्रेलिया* इस देश ने, १८९ अब्ज आस्ट्रेलियन डॉलर के पॅकेज की घोषणा की है. *ब्रिटन* ने ब्रिटीश‌ वर्करों की ८०% तनखा भार उठाते हुये, प्रति माह २५०० पौंड तनखा देने की घोषणा की है. वही वैट का अगली तिमाही के भुगतान को टालते हुये ३० अरब पौंड का भार, स्वयं वहन किया है. वही छोटी कंपनीच्या बंद के कगार पर खडी होने के कारण, उन छोटी कंपनीयों को बचाने हेतु १०,००० पौंड की नगद मदत करने की बात कही है. *अमेरिका* ने भी उनके नागरिकों को १००० डॉलर देने का प्लॉन बनाया है. *जर्मनी* ने एक अरब युरो का पॅकेज देने की घोषणा की है.‌ *स्पेन* ने भी कर्मचारीयों की सेवा बचाने के लिये, २०० अरब युरो तथा सामाजिक सेवाओं के लिये ६०० मिलियन युरो की घोषणा की है. *कॅनेडा* ने नागरिकों के मदत के लिये, २७ बिलियन डॉलर का पॅकेज की बात कही है. *"वही हमारी भारत सरकार इन‌ पॅकेज घोषणा में बहुत पिछडी दिखाई देना...!"* अत: हमारे सरकार के, इस उदासिन पिछडे भाव को हम क्या कहे...??? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने ऐलान किया कि, *"वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाऐगी, जो ये एक्शन प्लॅन बनायेगी...!"* भारत सरकार ने तो पहले घोषणा की थी कि, भारत में कोरोना व्हायरस का एक भी केस नहीं है. फिर ३० जनवरी २०२० को भारत में, कोरोना व्हायरस का पहिला केस मिला. वही भारतीय विमान सेवा हो या, रेल सेवा हो वहां प्रतिबंधात्मक उपायों की, कोई व्यवस्था ही नहीं की गयी. *"वही कोरोना व्हायरस सैंपल टेस्ट के बारें में, हम क्या कहे...?"* और उस कोरोना प्रकोप ने अपनी ५१९ संख्या भी पार कर डाली...!!! वह कोरोना ग्रसित संख्या अधिकॄत है या नहीं या अधिक भी...! यह एक प्रश्न है.
        भारत यह मंदिरो का देश है. यहां आदमी का कल्याण, यह व्यक्ती कॄतीशीलता पर निर्भर नहीं होता, तो देवभाव आशिर्वाद पर निर्भर होता हैं. परंतु *"कोरोना व्हायरस प्रकोपता"* में, देव - देवियों ने मंदिरों में बंदिस्त होना उचित समझा. प्राचिन देव इतिहास में लिखां गया है कि, कभी किसी प्रकोप के कारण, देव लोग भागा करते थे. इंद्र से लेकर चंद्र देव, कभी किसी प्रकोप के शिकार हुये थे. तो कोई देव लोग, किसी गंभिर बिमारी सें पिडित...! आज कोरोना प्रकोप में, ना संकट मोचन हनुमान सामने आया, ना कोई शनी देव, ना सुर्य देव सामने आया, ना कोई सृष्टी निर्माता (?) महादेव...!!! *"वही हमारे देश के विभिन्न मंदिरो की मासिक कमाई भी देखें."* हक्का - बक्का रह जाओंगे...! तिरुपती बालाजी (१ हजार ३२५ करोड), वैष्णोदेवी (४०० करोड), रामकृष्ण मिशन (२०० करोड), जगन्नाथ पुरी (१६० करोड), शिर्डी साईबाबा (१०० करोड), द्वारकाधीश (५० करोड), सिध्दी विनायक (२७ करोड), वैजनाथ नाम देवगड (४० करोड), अंबाजी गुजरात (४० करोड), त्रावणकोर (३५ करोड), अयोध्या (१४० करोड), काली माता मंदिर कोलकाता (२५० करोड), पद्मनाभन (५ करोड), सालासार बालाजी (३०० करोड), इसके अलावा भारत के छोटे मोटे मंदिरों की *"सालाना आय रू. २८० लाख करोड"* आखीं जाती है. वही *"भारत का सालाना कुल बजेट रू. १५ लाख करोड"* का कहा जाता है. अब सवाल यह है कि, *"मंदिरों के इस करोडों आय का राष्ट्र हित - राष्ट्र विकास में क्या योगदान रहा है...?"* इस का उत्तर है - *झिरो.* यह पैसा एक तरह का *"काला पैसा - Black Money"* ही है. जहां ब्राम्हण पुजारी ऐश किया करते है. इन अवैध पैसों पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. *"इधर -  'भारतीय अर्थव्यवस्था' की हालत खस्ताहाल हो रही है. भारत विदेशी बैंको के कर्जं में डुबा है.‌ और उधर देववाद का खुला नंगानाच चल रहा है...!"* वही इस अनैतिक घटना पर, एक ओर संसद मौन है. तो दुसरी ओर न्यायालयों ने, आंखो पर काली पट्टी बांधे रखी है. *"हमारे देश में न्याय कहा है...?"* "मानवतावाद" यहां बाजार में बिकता है. दुसरे अर्थों में, यहां नंगो का राज है...! न्यायाधीश भी मंदिरों में, घुटनों के बल सोया करते है. फिर अन्य राजनेताओं के बारें में हम क्या कहे...? किसी शायर ने, क्या खुब कहा है - *"नंगे को खुदा डरे...!"*
      दोस्तों, हमारा रूपया दिनों दिन बहुत गिरता जा रहा है और डॉलर बडा महंगा...!!! भारत इन कर्जबाजारीपण से उभर सकता है. केवल हम में इच्छाशक्ती, इमानदारी, देशभक्ती आदी भाव जगाने की जरूरी है. भारत के संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कह गये कि, *"भाषा, प्रांत भेद, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजूर नहीं. प्रथम हिंदु, बाद में मुसलमान यह भाव भी मुझे मंजूर नहीं. हम सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, और भारतीयता आगे कुछ नहीं. यही मेरी भुमिका है."* (मुंबई, दिनांक १ अप्रेल १९३८). क्या हम भारत के लोग, सच्चे भारतीय बन पायें है...? क्या भारत को, आजादी मिलने के ७० साल बाद, हमने *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* स्थापन करने की पहल की है. भारतीय बजेट में "भारत राष्ट्रवाद" जगाने कोई प्रावधान किया है...? कुंभमेला, फालतु मेला आदी कार्यक्रमों पर, करोडों रूपयें बरबाद किये है. हमने हमारे देश का, केवल सामाजिक - धार्मिक वातावरण ही दुषित नही किया, बल्की हमारे शहरों की हवा - पाणी आदी जिवनावश्यक वस्तुओं को भी, दुषित किया है. वही सांसदों को उनके अधिकार और कर्तव्यनिष्ठा समझाते हुयें, डॉ. आंबेडकर कहते हैं - *"संसद में बैठे सभी सदस्यों ने यह ख्याल रखना जरूरी है कि, जनता का हित तथा कल्याण का दायित्व हमारे शिर्ष पर है. अगर हम ने अपना दायित्व निभाने में कसुर किया तो, जनता का इस संसद से विश्वास तुट जाएगा. और उन लोगों में, संसद के प्रती नफरत भाव निर्माण होगा. और इस में मुझे कोई संदेह नही है."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक १९ मे १९५२). डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की उपरोक्त भविष्य वाणी, आज सही साबित हो रही है. संसद यह जनता का *"विश्वास मंदिर" नहीं दिखाई देता. वहां बैठे जादातर सदस्य लोग, ये विधायक कामों पर चर्चा कम, और झगडे जादा करते है."* संसद का अधिवेशन, पैसों की बरबादी का अड्डा, दिखाई देता रहा है. वही जो भी सरकारे आयी है, या आती रही है, उन्होंने कभी, जन कल्याण - देश कल्याण भावों पर, क्वचित ही सही निर्णय लिये है. अत: सभी सरकारों के लिये, डॉ आंबेडकर के यह शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. *"जो सरकार उचित तथा शिघ्रता से सही निर्णय लेकरं, उसका सही अमल ना करे, उसे सरकार कहने का, कोई नैतिक अधिकार नहीं. यही मेरी धारणा है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४).
        भाजपा पुरस्कृत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने *"CAA - Citizenship Amendment Act तथा NRC - National Register of Citizens"* कानुन लाकर, समस्त भारत में वह लागु करने की घोषणा की. वही भारत के विरोधी पक्ष तथा कुछ भाजपा विरहित राज्यों ने, उपरोक्त कानुन अपने राज्यों में लागु कराने का जोरसार विरोध किया है...! वही भारत के बौध्द - मुस्लिम अल्पसंख्याक समाज ने भी, इस कानुन का जोरदार विरोध किया है. उपरोक्त *"नागरिकता कानुन"* के इस द्वंद्व लढाई में, मुझे डॉ.‌ आंबेडकर जी के भारतीय नागरिकता संदर्भ में कहे शब्द याद आ गये. बाबासाहेब कहते हैं, *"सामायिक नागरिकत्व के बिना, सच्चे संघराज्य का निर्माण नहीं हो सकता. और जो राज्यघटना सामायिक नागरिकत्व की व्यवस्था नहीं करती है, तब तक उस राज्यघटना (संविधान) को "संघराज्य का संविधान" कहना सर्वथा अनुचित है...!"* (लंडन, दिनांक १६ सितंबर १९३१) जब हम CAA संदर्भ में आसाम को देखते है, तब १९ लाख लोगों को "डिसेस्टर कैंप" में बंदी बनाये जाना, इसे हम क्या कहे...? वही उन १९ लाख लोगों में, १४ लाख हिंदु लोग होने की बात कहीं गयीं है. दुसरी ओर *जवाहरलाल नेहरू इस कांग्रेसी तत्कालिन प्रधानमंत्री* नें, भारत - पाकिस्तान बंटवारें में *"बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का बंगाल प्रांत से चुनकर आया मतदार संघ"* पाकिस्तान को हवाले कर देना, क्या जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की देशभक्ती थी...? जब की, उस मतदार संघ में ८० % लोग, ये गैर - मुस्लिम थे. क्या उस नीति फैसलें को, नेहरू - कांग्रेस की गद्दारी नहीं कहनी चाहिये..? वहीं जब, उन क्षेत्र के *"चकमा बौध्द,"* जब भारत में त्रिपुरा - आसाम में आ बसे तो, वो अ-भारतीय अर्थात शरणार्थी बन गये. उन चकमा बौध्द - शरणार्थीओं को, भारत सरकार ने मानवीय भाव से, कोई उचित सुविधाएं भी नहीं दी. वही हाल, हमारे तिब्बती शरणार्थी बौद्ध भाईयों का रहा है. उन्हे शहरों से कहीं दुर, जंगलो में बसाया गया. ना रहने के लिये ठिक से घर, ना जाने - आने के लिये ठिक से रास्ते...! आर्थिक सहाय्यता का विषय ही छोड दो...! वही पाकिस्तान से भारत में आयें *"सिंधी शरणार्थी"* को, दिल्ली शहर में तथा भारत के अन्य बडें शहरों में बसाया गया. साथ में, साठ करोड रूपयों की आर्थिक मदत भी दी गयी. जो बाद में, डुबीत खातें की राशी हो गयी. उपर से उन सिंधी भाईयों ने, नकली वस्तुओं का निर्माण कर, भारतीय अर्थव्यवस्था का बंट्याधार किया. *"वही तिब्बती हो या, चकमा बौध्द बांधव हो, उन्होंने अपने वतन से इमानदारी - नैतिकता बनाई रखी. परंतु आज भी वो शरणार्थी बने है."* और पाकिस्तान से भारत में आ बसे सिंधी शरणार्थी लोगों को, *"भारत की नागरिकता"* प्रदान की गयी. वही हम भारत के मुलवासी लोगों को, *"नागरिकता सिध्द करने की बातें,"* अगर विदेशी ब्राम्हण सत्ताधारी करे..? तो वह, अ-सहनीय भाव रहेगा ही. उनका विरोध‌ करना तो, हमारा स्वाभाविक अधिकार है.
       भाजपा पुरस्कृत नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा, *"संसद के दोनो हाऊस"* में पारित प्रस्तुत कानुन का विरोध देखकर, मुझे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी के निम्न कथन बहुत महत्त्वपुर्ण लग रहे है. बाबासाहेब कहते हैं, *"कानुन यह सभी जनता के लिए मान्य हो, ऐसा ही वो माफक एवं सुबोध होना चाहिए. जनता को अपने अधिकार क्या है, यह भाव हर एक नागरिक को समझना बहुत जरूरी है. हर घडी उसे, वकिलों पर निर्भर नहीं होना चाहिए. हमारा कानुन ऐसा हो...!"* (नयी दिल्ली, दिनांक ११ जनवरी १९५०) इसके साथ ही डॉ. आंबेडकर कानुन के संदर्भ में कहते है, *"समाज के दोषों का निर्मुलन हो, यही कानुन बनाने का उद्देश है. परंतु दु:ख की बात यह कि, हमारे समाज के दोषों के निर्मुलन करने हेतु कानुन का उपयोग नहीं किया जाता. इस लिये उनका नाश हुआ है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली, दिनांक - फरवरी १९४८) NRC, CAA, NPR का समस्त भारत से तथा विभिन्न राज्यों के सरकारों द्वारा विरोध होने पर भी, भाजपा सरकार के अडियल भाव को देखकर, उन्हे समझने हेतु डॉ. आंबेडकर का और एक कथन दे रहा हुं. बाबासाहेब कहते हैं, *"अधिकार पर बैठे हुयें लोगों ने, यह धर्मांध रखना चाहियें कि, घटना बनाना और राज्य कारभार करने का अधिकार उन्हे जो लोगों द्वारा दिया गया है, वह लोगों के कुछ शर्तों पर होता हैं. सरकार नें अच्छे से अच्छी सत्ता चलाना चाहिए, इन शर्तों पर उन्हे ये अधिकार लिये हैं...!"* (त्रिवेंद्रम, दिनांक १० जुनं १९५०). अब बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के उपरोक्त कथन में, नरेंद्र मोदी एवं उनके सरकार के सभी मंत्रीयों ने आत्मचिंतन करना बहुत जरुरी है. क्या उनकी सरकार *"बहुजन हित के लिये - बहुजन सुख के लिये"* प्रतिबध्द है...???? या विदेशी अल्पसंख्याक ब्राम्हण के हित के लिये - सुख के लिये...!!! अगर ब्राम्हण समुह स्वयं को भारतीय मुल के समझते हो तो, उनके विदेशीपण के, मैं कई ऐतिहासिक और जैविक प्रमाण दे सकता हुं. और ब्राम्हण समुह द्वारा किये गये देश गद्दारी के भी...!!!!
      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कभी भी ब्राम्हण व्यक्ती विशेष का विरोध नहीं किया...! बल्की उन्होने ब्राम्हणी प्रवृत्ती का विरोध किया है. बाबासाहेब कहते हैं, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ - स्वातंत्र, समता एवं बंधुभाव इन तत्वों का अभाव, यह भाव मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थो से ब्राम्हणों ने, सभी क्षेत्रों में कहर कर डाला. और वे उसके जनक भी है. परंतु अब यह अ-भाव केवल ब्राम्हण सिमित ना होकर, इस ब्राम्हणशाही नें सभी समाज में संचार करते हुये, उन वर्गों के आचार - विचारों को भी नियंत्रित किया है. और यह बात निर्विवाद सत्य है."* दुसरी ओर देखें तो, कांग्रेस हो या भाजपा शासित सरकारें, उन सभी पर, गांधीवाद का प्रभाव दिखाई देता है. और वह गांधी भाव, देश के आर्थिक हो या - सामाजिक परिदृश्य में, देश विकास में कभी हितकारी नहीं रहा. इस गांधी भाव संदर्भ में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं, *"गांधीयुग से, देश का विकास चक्र उलटा फिर गया. ढोंगी लोगों का, राजनीति में शिरकाव बढ गया. दो आणे की गांधी टोपी सिर पर डाल दो,और गांधी का दास होना घोषित कर दो तो, वह देश भक्त बन जाता. इस कारण हिंदी राजनीति में, स्वार्थ साधुओं ने गंदगी कर डाली."* (मुंबई, दिनांक २ अप्रेल १९३९) इसके साथ ही, तत्कालिन भारतीय राजनीति में, बढते व्यभीचारीता को देखते हुये बाबासाहेब कहते हैं, *"गांधीवाक्य, यह ब्रम्हवाक्य होते दिखाई देता है. इस गांधी पागलपन से, राजनीति में ढोंगगिरी ने चरम सीमा पार कर डाली. केवल स्वार्थवश कांग्रेस को चार आणे देकरं, व्यभिचार करनेवाले अनेक हरी के लाल पैदा हुये है."* (क-हाड, दिनांक २ जनवरी १९४०) वही भारत आजादी  के बाद, भारतीय राजनीति में व्यभिचार - अनैतिकता आदी को देखकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी इंग्रज शासन के शिस्तबध्दता संदर्भ में लिखते है, *"ब्रिटिश प्रशासन यह राज्य समता तथा न्याय आधारीत था. इस लिए लोगों में, उस शासन प्रती सुरक्षितता महसुस होती रही. परंतु स्वातंत्रता मिलने के बाद, अल्पसंख्याक समाज में, बहुसंख्याक समाज से असुरक्षित भाव महसुस होने लगा."* (राज्यसभा, नयी दिल्ली, दिनांक .. सितंबर १९५४).
     अभी अभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह सुरेश उर्फ भैय्याजी जोशी इन्होने, *"प्रशासन के निर्णयों का पालन करते हुयें सरकार से समन्वय कर, मदत करने की बात कही है."* कौन सी मदत...??? वैसे कहां जाएं तो, केंद्र में सत्ता उनकी ही है. मिडिया भी उनकी है. नोकरशाही हो या न्याय व्यवस्था सभी उनका है. फिर भी इस तरह का नाटकीय प्रदर्शन क्यौ..? यह समझना बहुत जरूरी है. *"भारतीय खस्ता अर्थव्यवस्था"* पर संघ मौन है. मंदिरों के अर्थव्यवस्था पर भी, ये संघ कुछ नहीं बोलता. *"कोरोना व्हायरस प्रभाव से, लोगों के घर के चुल्हे जल नहीं रहे. फिर भी संघ खामोश है."* समस्त लघु उद्योग बंद है. छोटे कामकरी दो वक्त के रोटी के लिये तडप रहा है. *"फिर भी हमारे सरकार से, किसी पॅकेज की घोषणा नहीं हुयी है."* वही संघ ने इस संदर्भ में, अपने सरकार को कोई आदेश नहीं दिया है. भारत के भ्रष्टाचार पर भी, संघ मौन रहता दिखाई देता है. भारत में शोषण व्यवस्था बनायें रखना चाहता है. और फालतु की बयानबाजीयां जादातर कर जाता है. *"अत: इन सवर्ण अल्पसंख्याक राजनीति को समझना, भारत के मागासवर्ग बहुसख्यांक समाज के लिये बहुत जरूरी हुआ है."* देववाद - धर्मांधवाद को भी समझना आवश्यक है. नहीं तो शोषण नीति की *"आधुनिक पेशवाई,"* भारत के लिये, बडा कलंक बनकर उभर सकती है. अत: समस्त *"मंदिरो की राष्ट्रियकरण की मांग,"* भविष्य की रौद्र पेशवाई खत्म करने हेतु आवश्यक है. वही भारत सरकार को भी, अपनी आर्थिक स्थिती को मजबुत करने के लिये, उस ओर बढना बहुत जरुरी है. नहीं तो, *'भारत की यह आर्थिक महामंदी"* भारत के लिये अशांती का कारण रहेगी...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य,* नागपुर
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

Friday, 20 March 2020

🔹 *रंजनाताई गांगुर्डे इनकी सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (Women Wing) के उत्तर महाराष्ट्र "अध्यक्ष" पद पर नियुक्ती ...!*

    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (C.R.P.C.) - Women Wing की राष्ट्रीय अध्यक्षा - *आयु. वंदना जीवने* इन्होने उत्तर महाराष्ट्र के अध्यक्ष *अविनाश गायकवाड* इनके शिफारस पर, उत्तर महाराष्ट्र राज्य - महिला विंग *"अध्यक्ष"* पद पर, *रंजनाताई गांगुर्डे* इनकी नियुक्ती की है. रंजना जी आंबेडकरी मुव्हमेंट से जुडी है. सदर नियुक्ती की सुचना सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा महिला विंग के पेट्रान *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे दी है.
     उपरोक्त नियुक्ती पर *"सी. आर. पी. सी. के राष्ट्रीय पदाधिकारी गण"* - डॉ. जी. आर. बरुआ (IAS Retd. - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), एन. एम. जाधव (माजी उपजिल्हाधिकारी - राष्ट्रीय सचिव), सुर्यभान शेंडे (राष्ट्रीय सचिव), विजय बौद्ध (संपादक - राष्ट्रिय सचिव), वंदना जीवने (राष्ट्रीय समन्वयक), अमित कुमार पासवान (राष्ट्रीय सहसचिव) तथा *"राष्ट्रीय महिला विंग"* की वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्ष), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), रेणू किशोर (झारखंड - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. डॉ. प्रिती नाईक (राष्ट्रीय महासचिव - मध्य प्रदेश), इंजी. माधवी जांभुलकर (राष्ट्रीय सचिव), बबिता वासे (राष्ट्रीय सचिव), नंदा रामटेके (छत्तीसगड - राष्ट्रीय सचिव) इन्होने अभिनंदन किया है. साथ ही *"सी. पी. सी. के प्रदेश पदाधिकारी"* - प्राचार्य डॉ. टी. जी. गेडाम (अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द बडोले (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), नमो चकमा (अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश), सुब्रमण्या महेश (अध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), दिपक कुमार (अध्यक्ष, बिहार राज्य), पुष्पेंद्र मीना (अध्यक्ष, राजस्थान राज्य), रेणु किशोर (अध्यक्ष, झारखंड प्रदेश), लाल सिंग आनंद (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश) अमित कुमार पासवान (कार्याध्यक्ष, बिहार), रोहिताश मीना (राजस्थान), प्रा. राज अटकोरे (महासचिव, मराठवाडा), अॅड. रविंदरसिंग धोत्रा (गुजरात), संजय टिकार (मध्य प्रदेश),  आंचल श्रीवास्तव (गुजरात), मंटुरादेवी मीना (राजस्थान), चंद्रिका बहन सोलंकी (गुजरात), मुसाफिर (बिहार), अधिर बागडे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ), अविनाश गायकवाड (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), इंजी. स्वप्निल सातवेकर (अध्यक्ष, पश्र्चिम महाराष्ट्र), चरणदास नगराले ( उपाध्यक्ष, विदर्भ), अशोक निमसरकार (उपाध्यक्ष, विदर्भ) आदी पदाधिकारी वर्ग ने भी अभिनंदन किया है.
     इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. के विभिन्न शाखा पदाधिकारी"* - एल. के. धवन (मुंबई), मुकेश शेंडे (चंद्रपूर), गौतमादित्य (औरंगाबाद), प्रा. दशरथ रोडे (बीड), भारत थोरात (औरंगाबाद), प्रा. योगेंद्र नगराले (गोंदिया), संजय बघेले (गोंदिया), डॉ. देवानंद उबाले (जलगाव), अॅड. राजेश परमार (गुजरात), कमलकुमार चव्हाण (गुजरात), हरिदास जीवने (पुसद), मिलिंद आठवले (औरंगाबाद), गौतम जाधव (मुंबई), सुरेश वाघमारे (उत्तर मुंबई), किशोर शेजुल (जालना), मनिष खर्चे (अकोला), संदिप गायकवाड (जालना), अविनाश गायकवाड (उत्तर महाराष्ट्र), सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, अॅड. बी. एम. गायकवाड, विनोद भाई वनकर (गुजरात), धर्मेंद्र गणवीर, सुधिर जावले, हॄदय गोडबोले (भंडारा), महेंद्र मछिडा (गुजरात), प्रियदर्शी सुभुती (गुजरात)  *महिला विंग*  की - अर्चना रामटेके (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र), सुरेखा खंडारे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ), डॉ. भारती लांजेवार (अध्यक्ष, महाराष्ट्र),  संजीवनी आटे (अध्यक्ष, विदर्भ), प्रा. वर्षा चहांदे (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), रंजना गांगुर्डे (उत्तर महाराष्ट्र), ममता गाडेकर, रिता बागडे, मीना उके (महासचिव, महाराष्ट्र), मंगला वनदूधे, प्रिती खोब्रागडे, हिना लांजेवार, वीणा पराते, अपर्णा गाडेकर, वीणा वासनिक, अॅड. निलिमा लाडे आंबेडकर, संध्या रंगारी, अर्चना रामटेके, शीला घागरगुंडे, साधना सोनारे (महासचिव, विदर्भ), कल्पना गोवर्धन, ममता कुंभलवार, प्रिया वनकर, भारती खोब्रागडे, ममता कुंभलवार, सीमा मेश्राम, सरिता बोरकर आदी महिला पदाधिकारी तथा *नागपुर शाखा* के पदाधिकारी नरेश डोंगरे, मिलिन्द गाडेकर, मनिष खंडारे,, रेवाराम वासनिक, प्रकाश बागडे, चंद्रशेखर दुपारे, उत्तम घागरगुंडे, सुरेश रंगारी आदीयों ने सदर नियुक्ती पर उन पदाधिकारी वर्ग का अभिनंदन किया है.

🌹 *स्वप्नात आलेली ती करोना...!*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपूर
           मो.न. ९४७०९८४१३८

कालच्या त्या धकाधकीत
सर्व काही कामे पार पाडल्यानंतर
सहज ऑफिस खुर्चीवर
माझ्या डोळ्यांनी विसावा घेतला
आणि अक्षरशः करोना (व्हायरस)
माझ्या स्वप्नात आली
आणि हळुवारपणे ती मला म्हणाली
चलं मिलिंद, आपण प्रेम करू यां !
तु आज एकटा निवांत दिसतोसं
आणि मी सुध्दा एकटी निवांत आहे.
मी म्हणालो -
अगं, तु आज कशी काय फ्री आहेसं ?
चीन मधुन तु नियंत्रण करीत असतांना
समस्त जगाला पालथं घातलेसं
माझ्या भारताला ही सोडले नाहीसं !
तेव्हा ती म्हणाली -
अरे हो...! तुझं बरोबर आहे
परंतु भारत देशाचं कर्जबाजारी होणे
सोबत जातीव्यवस्था जोपासत असतांना
मला मानवतावाद दिसलेला नव्हता
वाटलं, ही तर छान भुमी आहे
माझ्या व्हायरस लागणीला...!
परंतु काल बुध्दाचं दर्शन झालं
आणि वाटलं आता इथे थांबायला नको
म्हणुन मला निवांत वेळ मिळाली
तुझ्याशी बोलायला - प्रेम करायला
आणि वरून तु डॉक्टर रे
माझी लागण तुला होवू देणार नाही.
तिच्या ह्या प्रेम आवाहनाने
मी हळुच तिला म्हटले -
अगं हो, पण आपलं हे प्रेम
किती घटकांचं असणार आहे?
कारण तु सोडुन जाणार आहेस नां !!!
ती लाजत लाजत म्हणाली -
अरे, तु लिखाण करणारा
माझ्यावर तु काही तरी लिहिशील
ती आठवण मी माझ्या हृदयात कोरीलं
चिरकालं, तुला कधी नां विसरण्याकरीता...!
आणि हळुचं मी माझे डोळे उघडले
आणि बघतो तर काय ?
स्वप्नात आलेली ती करोना
फार दुरवरं निघुन गेलेली होती
कायमचीचं माझ्यापासून...!
ह्या आयुष्यातुन...!
कधी न भेटण्याकरीता...!!!

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Thursday, 19 March 2020

🎓 *निर्भया दोषीयों को फाशी मिली, अब अन्य महिला अत्याचार दोषीयों का क्या..? और अन्य देशद्रोही की चर्चा क्यौं नहीं...???*
        * *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर
   राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
    मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

       नयी दिल्ली में निंदनीय घटना *"निर्भया हत्याकांड"* पर, समुचे भारत में बडी चर्चा होती रही. निश्चय ही, निर्भया प्रकरण शर्मसार रहा है. परंतु उससे भी भयावह प्रकरण - उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, राजस्थान आदी प्रदेशों में, शोषित - पिडित समाज के स्त्रीयों पर - परिवारों पर हुये है. और होते आये है. उन घटनाओं के कई प्रमाणों पर, मैने मिडियां में लेखण किया है. उस निंदनीय घटनाओं के कुछ फोटो, आज भी देखे जा सकते हैं. *'क्या उन पर निर्भया समान चर्चा हुयी...? क्या उन्हे न्याय मिला..?"* और कई सारे प्रश्न भी है. जो आज निर्भया प्रकरण से सामने आये है.
    वही *"ब्राम्हण"* इस शोषक वर्ग का, *"शोषित वर्ग"* द्वारा नाम लेने पर, उन वर्गों को बडा घुस्सा आता है. उन्हे अपमानीत सा लगता है. परंतु उन्होने, उनके पुरखों के देशभक्ती के बडे सबुत देना भी जरूरी है. चाहे वह विषय *"बुध्द काल"* संबंधित हो या, *"छत्रपती शिवाजी महाराज - शाहु महाराज काल"* संबंधित हो. केवल यही नहीं, आज के संदर्भ में भी...!!! नहीं तो, हम उनके गद्दारीं के, शेंकडों संदर्भ दे सकते है. क्या *"भारत का संविधान,"* नयी दिल्ली के जंतर मंतर पर जलाना, *यह बडी देशभक्ती कहनी होगी..???* कहां गयी राष्ट्रपती -  प्रधानमंत्री - विरोध दल - संसद - सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय की कॄतीशिलता...??? भारत को आजादी मिलने में, ७० साल के ऊपर का कालखंड गुजर चुका है. ना अब तक *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"*  बना, ना ही *"संचालनालय"*, ना ही देशभक्ती जगाने हेतु - *"बजेट में कोई प्रावधान...!"* हां, कुंभमेळा, फालतु मेलां आदी कार्यक्रमों पर, करोडों रूपये फुंके गये. देश का केवल सामाजिक - धार्मिक वातावरण ही प्रदुषित नहीं हुआ, बल्की यहां की हवा - पाणी - मोसम भी बहुत प्रदुषित हो चुका है...! नयी दिल्ली से लेकर, भारत के बडें शहरों की यही हालत है.
      संसद हो या, राज्य विधानसभा - विधान परिषद हों...! इन्होने देशविकास - देशभक्ती में, कौन से बडे झेंडे गाडे रखे है..? जनता के करोडो रूपयों की, लुट होती आयी है. और हो रही है.  वही भारत में, महंगाई बढती जा रही है. रूपयों का अवमुल्यन रोकना, इस सत्तावादी कें बस में नहीं रहा...! न्यायालयों में *"न्यायाधीश"* पदों पर, अल्पसंख्याक सवर्ण वर्ग अर्थात *"शोषित वर्ग"* ने, अवैध कब्जा बना रखा है. भारत के बहुसंख्याक मागास समाज को, क्या खाक न्याय मिलेगा...? मिडिया पर भी, उभी वर्ग का अवैध कब्जा बना है. राज सत्ता भी, उन्ही वर्ग के हात में है. नोकरशाही पर भी, अवैध कब्जा बना रखा है. *"इंग्रजो के तलवे चाटनेवाला वर्ग कौन था...?"* क्या यह वास्तविकता, किसी से छुपी है...? यह भाव निश्र्चित ही, देश के गद्दारी - देशद्रोहीता का प्रतिक है. देश की इज्जत, खुले आम बेची जा रही है...! *"उससे तो, वो वेश्या - तवायफ अच्छी है. जो अपने जिस्म की नुमाईश, चार दिवारों कें अंदर करती है. खुले रास्तों पर नहीं."* इन व्यवस्था धारीओं को, वेश्या कहना भी, वेश्या का घोर अपमान होगा. *"वे लोग, वेश्या कहने के भी लायक नही...!!!"* अगर हम समान देशप्रेमी लोगों को, एक बार देश के उच्च स्थानों पर, बिठाकर तो देखों...! भारत का समुचा नकाशा बदल कर रख देंगे...!!! यह हमारा खुला दावा हैं.

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The resolutions passed at 1st All India Ambedkarite Thoughts Women Conference 2020 at Nagpur

🤝 *नागपुर में आयोजित "प्रथम अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार  महिला परिषद २०२०" में, पारित किये गये महत्त्वपुर्ण ठराव...!!!*
     
  ‌ *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* (CRPC - महिला विंग) अंतर्गत रविवार दिनांक ०१ मार्च २०२० को, लष्करीबाग स्थित डॉ.‌ आंबेडकर मिशन में, *"प्रथम अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार महिला परिषद २०२०"* का सफल आयोजन किया गया. सदर परिषद का उदघाटन सामाजिक कार्यकर्त्या *संघमित्रा अशोक गेडाम* इन्होने किया. सदर महिला परिषद की अध्यक्षता नामांकित आंबेडकरी साहित्यिका *प्रा. डॉ. प्रतिभा जाधव निकम* (नासिक) इन्होने तथा सह-अध्यक्षता जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५ की अध्यक्षा तथा CRPC - महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्षा *वंदना मिलिंद जीवने* इन्होने की. महिला परिषद की स्वागताध्यक्षा *डॉ. किरण मेश्राम'* थी. उदघाटन सत्र में *"समता न्याय संगर"* इस स्मारिका का प्रकाशन किया गया. जागतिक बौद्ध परिषद २००६ के अध्यक्ष तथा सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनका पुरे परिषद में मार्गदर्शन मिलता रहा.
      *"भारतीय व्यवस्था में आंबेडकरी महिला नें दलित रहना चाहिए या बौद्ध...!"* - इस विषय पर हुये, प्रथम सत्र की अध्यक्षता पाली एवं बौद्ध विचारविद *प्रा. डॉ. सविता कांबले* इन्होने किया. *सुषमा पाखरे (वर्धा), अस्मिता मेश्राम (भंडारा), ममता वरठे (नागपुर)* इन्होने सत्र में अपने विचार रखे. *"आंबेडकरी भारतीय स्त्री तथा अन्य भारतीय स्त्री इन दो वर्गों का देववाद संदर्भ में वैचारिक संघर्ष...!"* - इस द्वितिय सत्र की अध्यक्षता *प्रा. माधुरी गायधनी दुपटे* इन्होने की. *वंदना भगत, प्रा. वर्षा चहांदे, प्रा. विशाखा ठमके, इंजी.‌ माधवी जांभुलकर* इन्होने अपने विचार रखे. संचालन *डॉ.‌मनिषा घोष* इन्होने किया.
     सदर महिला परिषद के समापन समारोह की अध्यक्षता नामांकित आंबेडकरी साहित्यिका *प्रा. डॉ. प्रतिभा जाधव निकम* (नासिक) तथा सह-अध्यक्षता जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५ की अध्यक्ष तथा CRPC - Women Wing की राष्ट्रीय अध्यक्षा *वंदना मिलिंद जीवने* इन्होने की. प्रमुख अतिथी मुंबई की *आयु.  सुलभा पाटील, विनी मेश्राम* (उद्योजिका, नागपुर) थी. सदर परिषद में *प्रा. विद्या सच्चिदानंद फुलेकर, छाया वानखेडे (नामांकित गायिका), संघमित्रा अशोक गेडाम* इन मान्यवरों को, *"CRPC - रमाई राष्ट्रीय पुरस्कार"* देकर, सन्मानित किया गया. उन मान्यवरों के उपस्थिती में, निम्न ठराव पारित किये गये.
१. हमारे देश का संविधानिक नाम *"इंडिया अर्थात भारत"* है. यह परिषद इस संविधानिक शब्द का प्रयोग ना कर, *"हिंदुस्तान"* इस असंविधानिक शब्द का प्रयोग करनेवाले व्यक्तीयों का, यह परिषद निषेध करती है.
२. *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक की जयंती"* - भारत सरकार द्वारा, राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाए. और उस दिन *राष्ट्रीय छुट्टी* घोषित करने की, यह परिषद मांग करती है.
३. जो कोई जाती समुह, बौद्ध धर्मांतरीत होता है, उन्हे *"उसी जाती समुह का बौद्ध आरक्षण"* मिलना चाहिए. और उस नाम का उल्लेख *"सरकारी शेड्युल"* में सम्मिलित करने की मांग, यह परिषद करती है.
४. पाली इस भाषा का समावेश राज्य / केंद्रिय लोक सेवा आयोग के अनुसुचीं में सम्मिलित करने की मांग, यह परिषद करती है.
५. महाराष्ट्र के नागपुर में *"केंद्रिय बौद्ध पाली विद्यापीठ"* स्थापित करने की मांग, यह परिषद करती है.
६. दुरदर्शन पर *"पाली भाषा"* में स्थानिय तथा प्रादेशिक वॄत्तांत देने की, यह परिषद मांग करती है.
७. दुरदर्शन एवं अन्य किसी भी चॅनलों पर, *हिंदुस्तान"* इस नाम से किसी भी जाहिरात या प्रयोग पर बंदी लाने की, यह परिषद मांग करती है. और उस शब्द का प्रयोग करनेवालों को *"देशद्रोही"* घोषित करने की मांग यह परिषद करती है.
८. *"बुध्दगया कानुन"* में सुधार कर, उस बौद्ध विहार के समस्त ट्रष्टी पद पर, बौद्ध मान्यवरो के नियुक्ती की मांग, यह परिषद करती है.
९. परम पुज्य बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर इनके १४ अप्रेल - जन्म दिन को, *"Day of Equality"* घोषित कर, युनायटेड नेशन को इस संदर्भ में शिफारस करने की, यह परिषद मांग करती है.
१०. भारत में *"बुध्दीस्ट सर्किट"* को क्रियान्वित करने के लिये, बौद्ध एवं आंबेडकरी विचारधारा के मान्यवरों का चयन करने का, यह परिषद मांग करती है.
११. *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर चेअर"* की स्थापना, भारत के सभी विश्वविद्यालयों में करने की मांग, यह परिषद करती है.
१२. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों पर कार्यरत और ऐतिहासिक मुव्हमेंट से जुडे और योगदान देने वाले स्मॄतिशेष सभी मान्यवरों का, यथोचित स्मारक सभी राज्य के मुख्यालयों में स्थापित करने की मांग, यह परिषद करती है.
१३. भारत / महाराष्ट्र सरकार ने आणिबाणी (Emergency) बंद किये लोगों को, जो विशेषत: उच्च वर्ग से संबंध रखते है, उन्हे *"स्वातंत्र सैनिक"* का दर्जा देकर, सरकार द्वारा *"दरमाह मानधन"* दिया जाता है. एक तो वो घोषित मानधन और स्वातंत्र सैनिक का दर्जा रद्द किया जाए. या *"डॉ. आंबेडकर नामांतर आंदोलन में शहिद"* तथा अपने हक्क प्राप्ती के आंदोलन में शहिदों को *"स्वातंत्र सैनिक"* का दर्जा दिया जाए. तथा उन शहिदो के परिवार वालों को *"दरमाह मानधन"* देने की मांग की जाती है.
१४. महाराष्ट्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर पुरस्कार / डॉ बाबासाहेब आंबेडकर उत्थान पुरस्कार"* प्राप्त मान्यवरों को सरकार द्वारा सभी प्रकार की सवलत तथा *"स्वातंत्र सैनिक"* का दर्जा तथा मानधन की यह परिषद मांग करती है.
१५. बालिका भ्रुनहत्या करनेवालों  के लिये कठोर दंड का प्रावधान करने की यह परिषद मांग करती है.
१६. स्त्री - पुरूष समानता प्रवर्धित करने हेतु स्कुल, कॉलेज, शासकीय कार्यालयों में, कॄती निर्धारण कार्यक्रम आयोजित करने की यह परिषद मांग करती है.
१७. समाज में बढ रहे अंधविश्वास को रोकने हेतु तथा उसे फैलानेवाले दोषीयों को दंडित करने हेतु, कानुन में सख्तीं लाने की मांग यह परिषद करती है.
१८. भारतीय महिलाएं आर्थिक दृष्ट्यी से सक्षम बने, इस लिए सरकार नें शहर सें लेटर गावों तक नियमित कॄती कार्यक्रमों के आयोजन की, यह परिषद मांग करती है.
१९. महिलाओं पर होने वाले अन्याय - अत्याचार रोकने हेतु, नियमित *"दक्षता पथक तथा जलद गती न्यायालय"* स्थापित होने की मांग, यह परिषद करती है.
      सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने‌ 'शाक्य'* तथा माजी उपजिल्हाधिकारी *अशोक गेडाम, प्राचार्य डॉ. टी. जी. गेडाम* (महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष) संपुर्ण सत्र में उपस्थित थे. इस समापन परिषद में ठराव का वाचन, *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने किया.  *डॉ. प्रिती नाईक* (महु म.प्र.) इन्होने आभार माना तथा *डॉ. मनिषा घोष* इन्होने कार्यक्रम का सफल संचालन किया. परिषद की सफलता के लिए - *सुर्यभान शेंडे, अधिर बागडे, वंदना जीवने, ममता वरठे, डॉ. किरण मेश्राम, डॉ. मनिषा घोष, प्रा. डॉ. प्रिती नाईक, बबीता वासे, मिलिंद गाडेकर, डॉ. राजेश नंदेश्वर, नरेश डोंगरे, रमेश वरठे, राजु मेश्राम, अनिल गजभिये, वीणा पराते, संजीवनी आटे, सुरेखा खंडारे, इंजी. माधवी जांभुलकर, अपर्णा गाडेकर, ममता गाडेकर, मीना उके, अल्का कोचे, अॅड.‌ निलिमा लाडे, प्रा. वर्षा चहांदे, मंगला वनदुधे, कल्पना गोवर्धन, दिपाली बोदोले, डॉ. भारती लांजेवार, शीला घागरगुंडे, छाया खोब्रागडे, ममता कुंभलवार* आदी पदाधिकारी वर्ग का योगदान रहा. सदर महिला परिषद की सफलता में, भारतीय रेल्वे मंत्रालय के माजी सचिव *इंजी. विजय मेश्राम* (मुंबई) इनका विशेष योगदान रहा.

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Wednesday, 18 March 2020

🇮🇳 *भारत राष्ट्रवादाची पहाट...?*
           *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*, नागपूर
            मो.न. 9370984138

आमच्या ह्या पोलिसांची
वेश्यालय - कुंटणखान्यावर टाकलेली धाड
हा वेश्यालय नायनाटीचा प्रयोग होता
वा मासिक हप्ता वसुल वाढीचा...?
ह्या प्रश्नाच्या अंतरंगात डोकावतांना
सर्वोच्च (सवर्ण...?) न्यायालयाचा
रामजन्मभूमी संदर्भातील आलेला निर्णय
कुठल्या ऐतिहासिक दाखल्यावर (?) म्हणावा
प्राचिन चक्रवर्ती सम्राट अशोकाच्या
काही प्राचीन शिलालेखाचा आधार (?)
रामायण - ह्या काव्याच्या कल्पित कल्पनेला
न्यायालय संदर्भाची ग्राह्यता स्विकारतांना
उद्या न्यायालय निकालांचे संदर्भ
हे आता नक्कीचं बदलणार आहेत, मित्रा...!
न्यायालयाने राम संदर्भात केलेल्या विचाराची
वा सत्ता राजनीतिच्या अनैतिकपणाची
री ओढणा-या संबंधित न्यायाधीशांना
रिटायर्ड नंतर बक्षिसांची खैरात स्वरुपात
राष्ट्रपती - प्रधानमंत्री पुरस्कॄत
आयोग सदस्य - सांसद सदस्य - आणि (?)
असा मिळणारा "अनैतिक पुरस्कार" (?)
आणि प्रामाणिक न्यायालयीन संदर्भ
जोपासणा-या न्यायाधीशाला
जेल कोथडी वा एका न्यायालयातुन दुसरीकडे
बदलीचा मिळणारा "स्वाभिमान पुरस्कार" (?)
हा देशात चाललेला अनैतिक नंगाराज
मित्रा, तुला अजुन कसा दिसलेला नाही...?
आणि ही आणिबाणी सदॄश्य स्थिती असतांना
तु मुडदा मानव बनुन गप्पचं कसा रे...!!!
देशाची अस्मिता *"भारतीय संविधान"*
नवी दिल्लीच्या जंतर मंतर वर जळत असतांना
भारताचे राष्ट्रपती खामोश होते
प्रधानमंत्री कुठे तरी मिटिंगमध्ये व्यस्त होते
सर्वोच्च (सवर्ण ...?) वा उच्च न्यायालय
आपल्या डोळ्यावर पट्टी बांधुन आंधळे होते
विरोधी पक्ष विदेशात झक मारीत होते
पोलिस प्रेक्षक म्हणुन गॅलरीत उभे बघत होते
मिडिया वर्ग बिअर्स वर चियर्स करीत होता
सैन्य - पोलिस गोळ्यांचा आवाज बंद होता
जाहिर तिव्र निषेध - विशाल मोर्चांचे थवे
ह्या देशातुन पुर्णत: हद्दपार झालेले होते
त्या विरोधात स्वत: पुढाकार घेणा-याचीं संख्या
ही फारचं नगण्य झालेली होती
आणि बरे झाले मी त्या नगण्य सदस्यातील
एक प्रत्यक्ष साक्षीदार होतो...!!!
भारत देशाला १५ ऑगस्ट १९४७ ला
खरे स्वातंत्र मिळाले होते की,
इंग्रजांशी केलेला तो एक "सत्ता करार" होता
हा वादाचा विषय असला तरी
२६ जानेवारी १९५० ला प्रजासत्ताक होणे
ही देशातील मोठी सामाजिक न्याय क्रांती होती
परंतु प्रजा - सत्ताक हा भाव जोपासतांना
जन चेतना अभावाची एक चुक होवुन गेली
गोरे इंग्रज गेले आणि काळे इंग्रज सत्ताधीश झाले
गो-या इंग्रजांच्या कायदे राज व्यवस्थेला
भ्रष्टाचार - गद्दारीचे आज काळे सावट आले...!
सम्राट अशोकाची राजमुद्रा वा अशोक चक्र असो
हे दिवसेंदिवस करंसी वरून लहान होत गेले
पोष्ट कार्ड - आंतरदेशीय पत्रातुन हद्दपार झाले
गांधीला अनैतिकपणे मोठे करण्यात आले
स्त्री भोग सत्याचे गांधी - सावरकर प्रयोग आले
हिंदुत्व धर्मांध - देववाद जोपासतांना
बुध्दाच्या शांती - अहिंसा - मानवता भावाचे
येथे पुर्णत: पानिपत करण्यात आले...!!!
आणि तसे बघितले तर
*"भारत राष्ट्रवाद"* चेतना
ही आमच्या देशात कधी रूजलीचं नाही
डॉ.‌आंबेडकरांच्या स्वप्नातील
"भारत जातिविहिन समाज" निर्माण दिशेने
सत्ता राजनीतिचे दोहे कधी फिरकलेचं नाही.
इथे तर अवैध - अनैतिक गद्दारांना
भारत देशभक्तीचा किताब बहाल केला गेला
आणि *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय
वा  संचालनालय"* निर्माण व्हावे !
असे न्याय व्यवस्थेला ही कधी वाटलेले नाही
सत्ता व्यवस्था तर वांझोट्या रंडींची औलादचं !
तिच्याकडुन चांगल्या अपेक्षा कशी करावी ...?
म्हणुन मित्रा,
आता नविन भारत घडवण्यासाठी
आपल्याला एका "मिशन" अंतर्गत
पूढे पूढे चालावे लागणार आहे
कारण *"भारतीय राष्ट्रवादाची पहाट...!"*
हा फार दुरवरचा पल्ला राहाणार आहे ...!!!

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Sunday, 15 March 2020

We are Ajatshatru - Dr. Milind Jiwane 'Shakya'

🎯 *आपण अजातशत्रू आहोत...!!!*
             *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य,'*
              मो.न. ९३७०९८४१३८

अलिकडे आपल्या ह्या देशात
स्वत:ला आंबेडकरी म्हणवण्याची
अविवेकी स्पर्धा चाललेली असुन
अनैतिक डुकरांचा कळप लोंढा
गांधी - मार्क्स - गोळवलकरांना
डॉ. आंबेडकरांच्या जोडीला बसवितांना
आंबेडकरी विचारांच्या पुर्णतेवर
प्रश्न चिन्ह लावत असतांना
सामाजिक - धार्मिक - सांस्कृतिक वातावरण
येथे कां बरे शांत आहे ?
जिवंत विद्रोही समाजाने
असे मुडदे बनुन राहाणे
आणि त्यातचं
मनहर, गणवर, आगलावे, पागलावे, खोबगडे
असा भाव जोपासतांना
आंबेडकर विकण्याची चाललेली स्पर्धा
प्रिये, आता चिंतेचा विषय झालेला आहे...!
मानव मुक्तीच्या आंबेडकरी विचारात
सौंदर्यशास्त्र कुठे आहे?
असा प्रश्न शोध करणा-यांना
कालीदासांच्या लिखाणातील
स्त्री उत्थान भागाचे अनैतिक वर्णन
वा गांधी - सावरकरांचा स्त्री भोग प्रयोग
काय आम्ही सौंदर्यशास्त्र मानावे ?
माणसांचे होणारे शोषण
स्त्रीयांवर होणारा बलात्कार
राज सत्तेत चाललेला अनैतिक भाव
न्याय व्यवस्थेतील अन्यायभागीता
सवर्ण कु-नायकांचा भ्रष्टाचार
ही काय सौंदर्यशास्त्राचे प्रतिके आहेत ?
असा प्रश्न ह्या आंबेडकरी म्हणवणा-यांनी
शोषक व्यवस्थेला कां केला नाही...?
*"बुध्द साहित्य सौंदर्यशास्त्र"*
हा नीति विषय कां मांडलेला नाही ?
प्रिये, हे सर्व चालत असतांना
तुझ्या कुशीतील मिळणा-या आनंदात
अजुन किती काळ रममान व्हायला हवे !
हे आता तरी तु सांगशील कां...?
आंबेडकरी विचारांच्या संविधानात
"भारतीय संविधान साहित्य"
असा अलग छेद करणारे हिजडे असो
वा 'दलित साहित्य"
ह्याची जोपासणा करणारे भडवे असो
*"गोगावाद"* (गोळवलकर - गांधी) चरणात
अक्षरश: ती लिन होत असतांना
स्वत:च्या घरातील इज्जत
ही गोगावाद दिवाणखान्यात असण्यावर
ह्या मौनव्रत धारण करणा-यांनी
आम्हाला आंबेडकर शिकवु नये !
प्रिये, आता तु सोबतीला चलं
भविष्यात डॉ. आंबेडकरांच्या स्वप्नांतील
जातिविहिन भारतीय समाज निर्माण करतांना
आपल्याला 'मिशन' घेवुन जायचे आहे
वैदिक अर्थशास्त्र - मार्क्स अर्थशास्त्र
ह्यांचा उदो उदो करणा-यांना
*"बुध्द अर्थशास्त्र"* शिकवायचे आहे
प्रिये, अगं तुला समजुन घ्यायचे आहे
बुध्द भारत सुवर्ण इतिहासातील
आपण *"अजातशत्रू"*  आहोत...!!!

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Saturday, 14 March 2020

✍️ *आंबेडकरवादी (?) साहित्य संमेलनाच्या आयोजनात गोगावादी (गोळवलकर - गांधी) राजकिय नटांचा खडा जंगी तमाशा...???*
        * *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपूर
* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

        *"जागतिक आंबेडकरवादी (?) साहित्य महामंडळ"* (सरकारी महामंडळ अजिबात नव्हे !) अशा ह्या खाजगी-मय जागतिक (?) स्तरावरील मंडळींच्या कंपुने *"द्वितिय अखिल भारतीय आंबेडकरवादी (?) साहित्य सम्मेलनाचे"* आयोजन नागपुरला दिनांक ११ - १२ एप्रिल २०२० ला केल्यामुळे आणि त्या कंपुची स्वत:च्या पायावर सदर साहित्य सम्मेलन घेण्याची आर्थिक दॄष्ट्या कुवत नसल्याने, त्यांनी *"विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान"* नावाच्या कुणा तरी संघटनेला सोबतीला घेवुन *"आंबेडकरवादी (?) साहित्याची"* दुकानदारी जाहिर केली. त्या प्रतिष्ठानाचा सर्वेसर्वा कोण आहे...? हा पुन्हा प्रश्न आहे. सदर परिषदेचे स्वागताध्यक्ष पदावर - नागपूर किर्तीमान महामानव (?) *डॉ. गिरिश गांधी* (ज्यांनी "आंबेडकरी समाजातील आपली मुलगी त्यांच्या गांधी परिवारात सुन म्हणुन गेलेली असतांना, तिला *धेडी, तेरी औकात कैसे हुयी हमारे घर घुसने की...!* असे म्हणुन तिला सामानासह बाहेर हाकलले. आणि तिला उध्वस्त केले.) ह्यांची निवड केल्यामुळे *"तसेच आमच्या ह्या आंबेडकरी समाजात विद्वान मान्यवर मंडळी वा साहित्यिकाची फारचं वाणवा आहे, असा दाखविण्याचा प्रताप आयोजकांनी केल्यामुळे...!"* मी त्या विरोधात  *"आंबेडकरवादी (?) साहित्य संमेलनाच्या गांधी लोटांगणात आंबेडकरी विचारवाद्यांची अ-नैतिक अपात्रता....???"* हा लेख विभिन्न मिडिया वर पोस्ट केला. तसेच सदर आयोजक कंपुत असलेला निर्लज्जपणा / बेशरमपणा हा चव्हाट्यावर आणला. तरी सुध्दा सदर परिषदेचे स्वागताध्यक्ष - नीतिमान (?) *डॉ. गिरिश गांधी* नावाच्या महामानवाला (?) स्वागताध्यक्ष ह्या पदावरुन दुर न करता *प्रा. डॉ. भाऊ लोखंडे* ह्यांची निर्लज्जपणे सम्मेलनाचे अध्यक्ष म्हणुन नाव घोषित केले. *तसेही आमचे डॉ. भाऊ लोखंडे अशा पदाची आतुरतेने वाट बघत असतात...! मग त्यामध्ये नैतिकता असो वा नसो...???* असो, आता आपण ह्या आंबेडकरी साहित्य सम्मेलनाच्या दुस-या भागाकडे वळु यां !
     जागतिक महा(?)मंडळाच्या आयोजकांनी प्रायोजित केलेल्या *"आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलनाचे"* उटघाटक म्हणून आमचे मित्र महाराष्ट्राचे उर्जा मंत्री आणि नागपुरचे पालकमंत्री *डॉ. नितिन राऊत* ह्यांना निमंत्रित केलेले असुन, प्रमुख अतिथी म्हणुन केंद्रिय मंत्री *मा. नितिन गडकरी* तसेच महाराष्ट्राचे गॄहमंत्री *मा. अनिल देशमुख*, महाराष्ट्र राज्याचे पशुसंवर्धन मंत्री *मा. सुनिल केदार*, महाराष्ट्राचे समाज कल्याण मंत्री *मा. धनंजय मुंडे* ह्यांना बोलाविले असल्याची माहिती सदर आयोजक मंडळीनी काल पत्रकार परिषदेत दिली. *आणि सदर हेव्हीवेट मंत्री महाशयांनी ह्या सम्मेलनात हजेरी लावण्याला हिरवी झेंडी दिली काय...?* हा प्रश्न तसा बघावा तर गुलदस्त्यात असणारा म्हणावा लागेल...!!! *"कारण जागतिक करोना व्हायरस प्रकोप."* आणि देशभर करोना व्हायरस वर नियंत्रण मिळविण्यासाठी विविध कार्यक्रमावर / सम्मेलनावर / गर्दी जमविण्यावर बंदी आणल्याची घोषणा शासन स्तरावरुन झाली आहे. तसेच सिनेमागृहे / नाट्यगृहे / तरण तलाव बंद ठेवण्याचा निर्णय मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ह्यांनी जाहिर केला आहे. परंतु / कदाचित ही *"सुपर मंत्री"* एखादा नव अविष्कारीत *"हनुमान चालिसा"* (?)  वाचुन मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ह्यांना *"करोना प्रतिबंधात्मक उपायाची"* नागपुरी अविष्कार भेट देण्याचा हा प्रयोग करीत असतील...! कारण *"देववादात"* अशा बाबी होण्याची शक्यता नाकारता येत नाही. तसेही नागपुरातील *"दोन नितीन > नीति + न > नीति = Morality , न = नाही > नैतिकता नसणे "* (नितिन गडकरी आणि नितीन राऊत) ही शक्तीशाली राजकीय नेता आहेत. आणि अन्य मंत्री मंडळी सुध्दा...! तेव्हा त्यांच्या नावाचा गैर-वापर करुन आम्हा आंबेडकरी मंडळींना दाबण्याचा प्रयोग *डॉ. गिरीश गांधी आणि आयोजक कंपु"* करीत असतील, ती त्यांची मुर्खता म्हणावी लागेल...! कारण *डॉ. गिरिश गांधी आणि आयोजक कंपु ही माझ्याकरिता पाळण्यातील बाळ आहेत."*
     आता आंबेडकरी (?) साहित्य सम्मेलन आयोजकाच्या तिस-या भागावर चर्चा करू या...! जर *"अखिल भारतीय आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन"* उदघाटनाला राजकिय मंत्री मंडळींनाचं बोलवायचे प्रयोजन होते तर ह्या सम्मेलनाला *"आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन"* असे नाव देण्याचा आपला अट्टाहास कां...??? त्या सम्मेलनाचे नाव *"अखिल भारतीय आंबेडकरवादी (?) राजकीय सम्मेलन"* असे दिले असते तर आणि त्या सम्मेलनात कोणत्याही राजकीय नेत्यांना / मंत्र्यांना / आणि गिरीश गांधी ह्यांनाही बोलावले असते तर कदाचित त्याला आमचा विरोध करण्याचे कारण नसते. कारण डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर हे राष्ट्रीय महापुरुष आहेत. ते केवळ आमच्या आंबेडकरी समाजा सिमित नाहीत..! परंतु *"आंबेडकरवादी / आंबेडकरी साहित्य"* हा विषय भाव अलग आहे. उपस्थित राजकीय मंडळींचे आंबेडकरी साहित्याशी काय देणे - घेणे आहे. *"तुम्ही सत्तेच्या अनैतिक बाजारात तुम्हाला प्रिय असलेल्या भागांना विका...! आम्ही काही बोलणार नाही. परंतु आंबेडकरी...!!! ह्या शब्द भावाला विकणे कदापीही सहन केले जाणार नाही...!!!"*
       आंबेडकरी सांस्कृतिक - सामाजिक - साहित्यिक क्षेत्रामध्ये जातीयवाद जोपासणा-या नागपूर किर्तीमान (?) *डॉ. गिरिश गांधी* ह्यांचा धुसघुस हा आंबेडकरी चळवळीला घातक ठरणारा आहे. भाजप नेते डॉ. गिरीश गांधी ह्यांनी कांग्रेस प्रणित डॉ. नितिन राऊत ह्यांना सोबत घेवुन आंबेडकरी चळवळीतील जेष्ठ मान्यवर आणि साहित्यिक  *डॉ. भाऊ लोखंडे / डॉ. यशवंत मनोहर* ह्यांचा जन्म दिवस गोगावाद (गोळवलकर - गांधी) अर्थ भागातुन साजरा करणे, हा *"आंबेडकरी अर्थनीतिचा"* कलंकीत दिवस होता. माजी सनदी अधिकारी आणि भारतीय संविधानावर भाष्य करणारे *इ. झेड. खोब्रागडे* ह्यांनी सुद्धा गोगावादी अर्थ नीतिचा स-आधार घेवून परिषदेचे केलेले आयोजन हे आंबेडकरी अर्थवादी / उद्योगवादीं ह्यांच्याकरीता शरमेचा विषय आहे. तसेच *इ. झेड. खोब्रागडे* ह्यांनी विधानसभा २०१४ च्या निवडणुकीत भाजपा तर्फे *नितिन गडकरी* ह्यांच्या वाड्यावर जावुन *"उमरेड मतदार संघातुन"* तिकिट मागणे आणि वाड्यावरून मटणाचा ताव मारून येणे ही सुध्दा आंबेडकरी चळवळीकरीता चिंतेचा भाग आहे‌. इतकेच नाही तर डॉ. गिरिश गांधी प्रणित एक लाख रकमेच्या *'डॉ. आंबेडकर पुरस्कार"* मिळण्याकरिता आंबेडकरी (?) म्हणविणाऱ्या मान्यवरांनी शरणागत होणे, ही आंबेडकरी चळवळीकरीता विचार करणारा विषय म्हणावा लागेल. डॉ. गिरिश गांधी द्वारा आयोजित सम्मेलनात *डॉ. भालचंद्र मुणगेकर / डॉ. नरेंद्र जाधव / प्रा. डॉ. भाऊ लोखंडे / प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर / प्रा. प्रकाश खरात / इ. झेड. खोब्रागडे* ह्या मान्यवर मंडळीनी हजेरी लावणे ह्याला काय म्हणावे. ही मंडळी बौद्ध धर्म प्रचारक नाहीत. आणि बौध्द धर्म प्रचारक हा धम्म प्रसार - प्रचार करण्यासाठी कुठे ही जावु शकतो.  बौध्द प्रचारक हा मुक्त रूपाने धम्माचे कार्य करण्यास स्वतंत्र आहे. कारण डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ह्यांच्या स्वप्नातील *"बौध्दमय भारत"* आपल्याला घडवायचा आहे.
       शेवटी आपणास एकचं सांगावयचे आहे की, "आंबेडकरी (?) साहित्य सम्मेलन" आयोजकांनी मंत्र्यांना कार्यक्रमात अतिथी बोलावले, म्हणुन ते फार शक्तीशाली झाले ह्या भ्रमात त्यांनी राहु नये. मंत्री असो वा राजकीय नेते ही औत घटका असलेली मंडळी आहे. *"अति तेथे माती"* ह्या उक्तीप्रमाणे त्यांना त्यांची जागा ही जनता दाखवुन देते. इकडे *डॉ. नितिन गडकरी* हे ABVP मध्ये कार्यरत असताना आणि *डॉ. श्रीकांत जिचकार* हे NSUI चे नेते होते. तर आम्ही मंडळी  *"विद्यार्थी संसद"* ह्या नावाने नागपूर विद्यापीठात निवडणुका लढवित होता. तेव्हाचे आमचे मित्र *अशोक मेंढे* ह्यांना ABVP ने "विद्यार्थी संघाच्या अध्यक्षपदाची" उम्मेदवारी दिलेली नव्हती. तर इकडे *मुकुल वासनिक* आमची मदत मागायला आल्यानंतर त्याला NSUI कडुन "विद्यार्थी संघाच्या सचिव" पदावर निवडुन आणणारे आम्ही त्या काळचे विद्यार्थी नेते होतो. त्यावेळी कांग्रेस - भाजपा असा आज दिसणारा भाव नव्हता. *डॉ. नितिन राऊत* हे नाव तेव्हा चर्चेत नव्हते. नंतर राजकारणात आले. त्यावेळी नागपूर विद्यापीठात आमचा एक दरारा होता. *प्रा. रणजीत मेश्राम* हे तेव्हा दैनिक लोकमत मध्ये आमच्या बातमीचे रकामेच्या रकामे लिहायचे. रणजीत मेश्राम हे पत्रकारीतेत एक फार मोठे नाव होते. त्यांनतर *स्मॄतिशेष सिध्दार्थ सोनटक्के, स. सो. खंडाळकर, प्रभाकर दुपारे, भुपेंद्र गणवीर* ही मित्रमंडळी लोकमतमध्ये जुळली. नंतर दैनिक जनवाद सुरू झाला. तिथे पत्रकार *मिलिन्द फुलझेले* आमच्या बातम्या विशेष रूपाने छापत होते. आम्ही विद्यार्थी मंडळी ती भयाण आग होतो. ह्याची साक्ष ती आमची आंबेडकरी बाण्याचे पत्रकार मंडळी देतील...! शेवटी सांगायचे असे की, *"आंबेडकरी (?) साहित्य संमेलनात मंत्री येणार असल्याचा रोब आम्हाला दाखविता कामा नये."* ती मान्यवर नेते मंडळी आमच्या नावाने सुपरिचित आहेत. आपण फक्त *"अखिल भारतीय आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन"* आयोजन करतांना *"आंबेडकरी नैतिकता - एकनिष्ठता - प्रामाणिकता"* जोपासावी. ऐवढेचं सांगणे आहे...!

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Thursday, 12 March 2020

‌✍️ *आंबेडकरवादी (?) साहित्य संमेलनाच्या गांधी लोटांगणात आंबेडकरी विचारवाद्यांची अ-नैतिक अपात्रता...???*
      *  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपूर
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

      नुकतेच नागपुरच्या दैनिक वर्तमानपत्रातुन, एक अफलातून बातमी वाचायला मिळाली की, दिनांक ११ - १२ एप्रिल २०२० ला नागपुरात, *"द्वितिय  अखिल भारतीय आंबेडकरवादी (?) साहित्य सम्मेलन"* होणार असुन, सदर नियोजित सम्मेलनाच्या स्वागताध्यक्ष पदावर वनराई फाऊंडेशन चे *"विश्वस्त"* (?) *डॉ. गिरिश गांधी* ह्या नागपूर किर्तीमान महामानवाची (?) निवड *"जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य महामंडळ"* ह्यांनी केली आहे. महत्त्वाचे म्हणजे आयोजक असलेल्या सदर जागतिक स्तरावरील (?) *"खाजगी (सरकारी नव्हे) महामंडळाची"* एकट्याने "आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन" घेण्याची कुवत नसल्याने, त्यांनी *"विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान"* ह्या कुणा तरी संघटनेला आपल्या सोबतीला घेतलेले आहे. आणि *"ह्या विदर्भ गौरव प्रतिष्ठानाचा सर्वेसर्वा कोण आहे...?"* हा पुन्हा नव्याने प्रश्न हा आलाचं...? सदर बातमी वाचतांना आमच्या ह्या तथाकथित आंबेडकरी (?) आयोजका संदर्भात काय म्हणावे...? हा फार मोठा प्रश्न पडला. *कारण बेशरमपणा जोपासण्याची एक हद्द ही असायलाचं हवी, असे मनोमन वाटायला लागले !* आणि मग त्यावर चिंतन - मनन करायला लागल्यानंतर, माझ्या लेखणीने ह्यावर काही तरी लिहावे, असा मला आवाज दिला..!
       मध्यंतरी दोन तिन वर्षापुर्वी हिचं मंडळी आयोजक असलेल्या, आणि ह्या तथाकथित खाजगी (सरकारी मंडळ नव्हे...!) *"जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य महामंडळांच्या"* पदाधिकारी घोषित वर्गाने, *"प्रथम जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन"* नागपुरात घेण्याची घोषणा केलेली होती.‌ त्या जागतिक सम्मेलनाच्या स्वागताध्यक्ष पदावर, *डॉ. गिरिश गांधी* ह्या नागपूर किर्तीमान महामानवाची (?) निवड करण्यात आलेली होती. तर अध्यक्ष पदावर दलित (आंबेडकरी (?)) साहित्यिक *डॉ. यशवंत मनोहर* ह्यांची निवड जाहीर करण्यात आलेली होती. मी त्या संदर्भात लेख लिहुन सदर *"प्रथम जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलनाला"* विरोध केलेला होता. त्याचे कारण असे होते की, डॉ. गिरिश गांधी ह्या महामानवाने (?) आंबेडकरी समाजातील एका मुलीचे त्याच्या कुटुंबात सुन (?) म्हणुन घुसल्याने.. *धेडी, तेरी औकात कैसे हुयी हमारे घर घुसने की...?"* असे बोलुन तिला सामानासह घराबाहेर काढले. आणि आंबेडकरी समाजातील त्या मुलीचे आयुष्य उध्वस्त केले. दुसरे असे की, व्होकार्ट हॉस्पिटल बिल्डिंगच्या सरकारी जागेमधील  "महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा समिती" संदर्भात मा. उच्च न्यायालयाने ताशेरे तिखट ताशेरे ओढलेले असुन, अशा *"नितिमान मान्यवरांची"* (?) निवड ही आयोजक मंडळी करीत आहेत. *काय आमची आंबेडकरी साहित्यिक ह्या पदाच्या लायक नाहीत काय...?* हा माझा तेव्हा प्रश्न होता.  सदर माझ्या लेखाने आंबेडकरी साहित्य क्षेत्रात फार खळबळ माजलेली होती आणि नागपुरला होणारे सदर "जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलन" हे रद्द करावे लागले. आणि नंतर ते सम्मेलन आयोजकांनी बॅंकांक, थायलंड येथे घेतले. आमच्या त्या आयोजकांनी पुनश्च तीच ती *"री ओढत"* आणि *"द्वितिय अखिल भारतीय आंबेडकरवादी साहित्य सम्मेलनाचे"* नागपुरात आयोजन करून, *"डॉ. गिरीश गांधी"* अशा महामानवाची (?) सदर सम्मेलनाच्या "स्वागताध्यक्ष" पदावर निवड केलेली आहे. आणि असा बेशरमपणा जोपासत नागपुरच्या दैनिक वर्तमानपत्रात ही बातमी सुध्दा छापलेली आहे. *"काय आमच्या आंबेडकरी / बौद्ध समाजात 'स्वागताध्यक्ष' पदाकरिता योग्य असे पात्रताधारक मान्यवर मंडळी / साहित्यिक नाहीत...?"* असा त्या आमच्या विद्वत आयोजकांचा संदेश तर नाही नां...!!!! *हाच प्रश्न माझा आमच्या तमाम आंबेडकरी / बौद्ध समाजातील मान्यवर मंडळी आणि साहित्यिकांना आहे, जी अशी बाह्य अनैतिक घुसखोरी सहन करतात...!* आता बघु या...! आमचा आंबेडकरी / बौध्द समाज हा खरोखर जिवंत आहे की मुडदा...???

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Wednesday, 11 March 2020

Er. Vijay Meshram, Dr. Rajabhau Tanksale, Ashok Gedam, Dr. Sacchidanand Fulekar felicitated by CRPC Awards.

🌹 *इंजी. विजय मेश्राम, डॉ. राजाभाऊ टांकसाळे, अशोक गेडाम, सच्चिदानंद फुलेकर इन्हे सी. आर. पी. सी. सन्मान...!*

       सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (C. R. P. C.) - महिला विंग) की ओर से, एक दिवसीय *"प्रथम अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार महिला परिषद २०२०"* का आयोजन, रविवार दिनांक १ मार्च २०२० को बडे सफलतापुर्वक संपन्न हुआ. उसके बाद ८ मार्च २०२० को, नागपुर के सिव्हिल लाइन्स स्थित *"सातपुडा रेल्वे क्लब"* में, सेलद्वारा *"सी. आर. पी. सी. गेट टु गेदर तथा जागतिक महिला दिन"* कार्यक्रम का सेल की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्षा *वंदना मिलिन्द जीवने* इनकी अध्यक्षता में सफलतापुर्वक आयोजन हुआ. उस *"जागतिक महिला दिन"* पर, नागपुर में कार्यरत विविध संघटन की मान्यवर महिला पदाधिकारी *प्रा. डॉ. शरयु तायवाडे (ओबीसी संघटना), प्रा. विजया मारोतकर (ओबीसी साहित्यिका), प्रा. संध्या राजुरकर (पत्रकार / ओबीसी संघटना), प्रा. सरोज आगलावे (१९४२ महिला परिषद), संघमित्रा अशोक गेडाम (मैत्रीणी नागपुर), सुनिता जिचकार (जिजाऊ ब्रिगेड), वॄंदा विकास ठाकरे (ओबीसी संघटना), सुजाता लोखंडे (परिवर्तन विचार मंच), प्रा. सरोज डांगे (सम्यक संघ), कल्पना मानकर (ओबीसी संघटना), आयु. वाघमारे मॅडम* आदी मान्यवर उपस्थित थे. वही अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार महिला परिषद में *प्रा. डॉ. प्रतिभा जाधव निकम (नासिक), वंदना मिलिन्द जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्ष, सी. आर. पी. सी.), संघमित्रा अशोक गेडाम, सुलभा पाटील (मुंबई), विनी मेश्राम (उद्योजिका), प्रा. डॉ. सविता कांबळे (पाली एवं बौद्ध अभ्यासक), सुषमा पाखरे (वर्धा), अस्मिता मेश्राम (भंडारा), प्रा. माधुरी गायधनी (ओबीसी संघटना), प्रा. वर्षा चहांदे, वंदना भगत (महिला अॅक्टीव्हिस्ट), प्रा. विशाखा ठमके (कन्हान)* इन मान्यवरों ने शिरकत की. वही इस महिला परिषद के सफलता हेतु *डॉ. किरण मेश्राम, ममता वरठे, डॉ. मनिषा घोष, बबीता वासे, इंजी. माधवी जांभुळकर, मीना उके, डॉ. भारती लांजेवार, सुरेखा खंडारे, ममता गाडेकर, अॅड. निलिमा लाडे, साधना सोनारे, संजीवनी आटे, वीणा पराते, मंगला वनदुधे, कल्पना गोवर्धन, अल्का कोचे, छाया खोब्रागडे* आदी महिला पदाधिकारी वर्ग का योगदान रहा.
      सदर परिषद एवं जागतिक महिला दिन सफलतापुर्वक करने में, भारतीय रेल्वे मंत्रालय के माजी सचिव *इंजी. विजय मेश्राम* इनका बडा योगदान रहा. इसके साथ ही माजी उपजिल्हाधिकारी *अशोक गेडाम,* सेंट पॉल ज्युनिअर कॉलेज के डायरेक्टर *डॉ. राजाभाऊ टांकसाळे,* डॉ. आंबेडकर लॉ कॉलेज के डायरेक्टर *डॉ. सच्चिदानंद फुलेकर* एवं महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग के माजी सदस्य *इंजी. जी. डी. जांभुलकर* इनका सहयोग रहा. वही इन सभी कार्यक्रम के प्लॅनर एवं सी. आर. पी. सी. महिला विंग के पेट्रान तथा सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनका भी बडा योगदान रहा. अत: सेल के महिला विंग की ओर से *इंजी. विजय मेश्राम, अशोक गेडाम, डॉ.राजाभाऊ टांकसाले, सच्चिदानंद फुलेकर* इनका मेमेंटो और बुके देकर सन्मान किया गया. सदर परिषद हेतु सेल के प्रमुख विंग के पदाधिकारी *सुर्यभान शेंडे, प्रा. डॉ. टी. जी. गेडाम, अधिर बागडे, डॉ. राजेश नंदेश्वर, नरेश डोंगरे, रमेश वरठे, अनिल गजभिये, राहुल वासे* आदी पदाधिकारी कार्यरत थे.






Monday, 9 March 2020

World Women Day celebrated under leadership of Mrs. Vandana Milind Jiwane at Nagpur

🏃‍♀️ *जागतिक महिला दिन सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल द्वारा धुमधाम से संपन्न...!*

     सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (महिला विंग) द्वारा, *"जागतिक महिला दिन"* सिव्हिल लाइन्स नागपुर के *"सातपुडा रेल्वे क्लब"* में, सेल के महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्षा *वंदना मिलिन्द जीवने* इनकी अध्यक्षता में बडे धुमधाम से मनाया गया. उस अवसर पर "प्रमुख अतिथी" के रूप में, नागपुर में कार्यरत विभिन्न महिला संघटना की मान्यवर महिलाएं, *प्रा. डॉ. शरयु तायवाडे (ओ. बी. सी संघटना), प्रा. विजया मारोतकर‌ (ओबीसी साहित्यिका), प्रा. सरोज आगलावे (१९४२ महिला परिषद), संघमित्रा अशोक गेडाम (मैत्रीणी नागपुर), प्रा. संध्या राजुरकर (पत्रकार / ओ. बी. सी. संघटना), सुनिता जिचकार (जिजाऊ ब्रिगेड), वॄंदा विकास ठाकरे (ओ. बी. सी. संघटना), सुजाता लोखंडे  (परिवर्तन विचार मंच), प्रा. सरोज डांगे (सम्यक संघ), कल्पना मानकर (ओ.बी.सी संघटन), आयु. वाघमारे* प्रमुखता से उपस्थित थी. उस अवसर पर, कार्यक्रम का प्रास्ताविक सी. आर. पी. सी. की राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने किया. भारतीय रेल्वे मंत्रालय के माजी सचिव *इंजी. विजय मेश्राम* (IRSS) इनका सत्कार, ममेंटो ओर बुके देकर किया गया. एवं *"जागतिक महिला दिन - सन्मान चिन्ह"* यह *"अल्का विजय मेश्राम* इनको प्रदान किया गया. कुछ कारणवश अल्का जी मुंबई से नागपुर नहीं आने के कारण, उनके ओर से वह सन्मान चिन्ह इंजी. विजय मेश्राम साहेब इन्होने स्विकार किया. कार्यक्रम का संचालन, सेल की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा *ममता वरठे* इन्होने किया, तो आभार *इंजी. माधवी जांभुळकर* इन्होने किया.
      जागतिक महिला दिन कार्यक्रम में सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य', माजी उपजिल्हाधिकारी अशोक गेडाम, प्रा. डॉ. टी.‌ जी. गेडाम, प्रा. डॉ. प्रदिप आगलावे, डॉ. सिध्दार्थ कांबले, आवाज टी. व्ही. के अमन कांबले* आदी मान्यवर उपस्थित थे. सदर महिला दिन के सफलता हेतु *डॉ. मनिषा घोष, डॉ. किरण मेश्राम, ममता वरठे, बबीता वासे, इंजी. माधवी जांभुळकर, डॉ. भारती लांजेवार, सुरेखा खंडारे, संजीवनी आटे,  ममता गाडेकर, साधना सोनारे, मंगला वनदुधे, कल्पना गोवर्धन* आदी महिला विंग के पदाधिकारी तथा प्रमुख विंग के *नरेश डोंगरे, रमेश वरठे, मिलिंद गाडेकर, राहुल वासे, मनिष खंडारे, राजु मेश्राम (कोराडी)* आदी पदाधिकारी उपस्थित थे.













Mrs. Alka Vijay Meshram felicitated by Civil Rights Protection Cell on World Women Day.

💐 *अल्का विजय मेश्राम को जागतिक महिला दिन पर सी. आर. पी. सी. जागतिक महिला दिन सन्मान चिन्ह प्रदान...!*

       सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (CRPC - महिला विंग) की ओर से, ८ मार्च - जागतिक महिला दिन यह नागपुर के सिव्हिल लाइन्स स्थित *"सातपुडा रेल्वे क्लब"* में, सी. आर.पी. सी. की राष्ट्रीय अध्यक्षा *वंदना मिलिन्द जीवने* इनकी अध्यक्षता में संपन्न हुआ. उस अवसर पर "प्रमुख अतिथी" के रूप में, नागपुर शहर की बहुत से संघटन की महिला पदाधिकारी - *प्रा. डॉ. शरयु तायवाडे, प्रा. सरोज आगलावे, संघमित्रा अशोक गेडाम, प्रा. संध्या राजुरकर, सुनिता जिचकार, वॄंदा विकास ठाकरे, सुजाता लोखंडे, प्रा. सरोज डांगे, कल्पना मानकर, आयु. वाघमारे* आदी उपस्थित थी. उनके हाथों मुंबई की सामाजिक कार्यकर्त्या *अल्का विजय मेश्राम"* इनको *"जागतिक महिला दिन - सन्मान चिन्ह"* प्रदान कर गौरवोन्वित किया गया. कुछ कारणवश अल्का जी मुंबई से नागपुर न आने के कारण, वह सन्मान चिन्ह इंजी. विजय मेश्राम इन्होने स्विकार किया. कार्यक्रम का प्रास्ताविक *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने किया. संचालन *ममता वरठे* इन्होने किया तो आभार *इंजी. भारती लांजेवार* इन्होने किया. कार्यक्रम का हॉल खचाखच भरा था.










Saturday, 7 March 2020

Film actor Firdos (Brother of Boman Irani) felicitated by Civil Rights Protection Cell

💐 *फिल्म अभिनेता फिरदोस (३ इडियट्स फेम - अभिनेता बोमन इराणी का भाई) का सत्कार सिव्हिल राईट्स द्वारा संपन्न...!*

     सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल शाखा - प्रमुख विंग आणि महिला विंग इनके संयुक्त से, बानाई सभागृह, उर्वेला कॉलोनी, वर्धा रोड, नागपुर द्वारा, शनिवार दिनांक ७ मार्च २०२० को को दोपहर ३.०० बजे, *"३ इडियट्स फेम बोमन इराणी का छोटा भाई - फिरदोस"* का सत्कार आयोजित किया गया. फिरदोस ने *"फरारी की सवारी, केम तो नमकिन, मिशन मंगल, अंधाधुंद, नौका"* आदी नामांकित फिल्म में अभिनय किया. सदर सत्कार कार्यक्रम की अध्यक्षता, भारतीय रेल मंत्रालय कें माजी सचिव *इंजी. विजय मेश्राम* (IRSS) इन्होने की. प्रमुख अतिथी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* तथा माजी उपजिल्हाधिकारी *अशोक गेडाम साहेब* थे. प्रास्ताविक सेल के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष *प्राचार्य डॉ. टी. जी. गेडाम* इन्होने किया. संचालन *डॉ. मनिषा घोष* इन्होने एवं आभार *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने माना. कार्यक्रम की सफलता हेतु, *ममता वरठे, बबिता वासे, डॉ. भारती लांजेवार, रमेश वरठे* आदी पदाधिकारीयोंं का योगदान रहा.