➰ *ब्राम्हण विदेशी है यह सत्य जानकर क्या उन्हे भारत के बाहर निकाला जा सकता है ?*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हमारी राजनीति ने सत्ता प्राप्ति के लिये, धर्म का सहारा लिया. और मुसलमान - हिंदु आदि विवादों को जन्म दिया. केवल जन्म ही नहीं दिया तो, बल्की धर्म द्वेष, हिंसा को फैलाने का काम किया है. बहिष्कृत समाज भी यही राजनीति का शिकार रहा है. *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इनके बोल बहुत कुछ संदेश दे रहे है. डॉ आंबेडकर कहते हैं कि, *"इस देश के राजकिय पटल पर, बहिष्कृत समाज को समानता का सार्वभौम स्थान सुरक्षित कर लेना, बहुत ही आवश्यक है. अगर हम इस तरह सुरक्षित स्थान प्राप्त न कर लिया तो, हम दोबारा पुनश्च उसी दासता और गुलामगिरी की घने अंधकार में चले जाऐंगे."* (दिल्ली २३ अगस्त १९४२) आज बहिष्कृत समाज हो या, अल्पसंख्याक समाज भी हो, कुछ धर्मांध शक्ति द्वारा वे पिडित होते रहे है. राजनीति में धर्मांधी राजकीय दल सफल तो हो जाते हैं, परंतु धर्म द्वेष में मानव - मानव के बीच खाई बढती जा रही है. हमे *"भारतीय राष्ट्रवाद"* शिकाया ना जाकर, *"धर्मांध राष्ट्रवाद"* शिकाया जा रहा है. परंतु हमें यह भी समझना जरुरी है कि, भारत में *"रोजगार समस्या"* के कारण, भारतीय मुल लोग विदेशों में स्थायिक हुये है. अगर उन पर भी यह *"धर्मांधी खतरा"* मंडराया तो, हम क्या करेंगे ? *"अमेरिका"* इस देश का उदाहरण ताजा है. कही ना कहींं यह कु-राजनीति हमें, गुलामी की ओर ढकेल रही है. *"प्रजातंत्र"* यह नाम का रह गया है. *"पुंजीवाद तंत्र"* अब भारत में सत्तासिन है. पुंजीवादी देश *"अमेरिका"* भी, आगे जाकर भारत के लिये ड्रॅगन बन जाऐगा. चायना *"ड्रॅगन"* भी खडा है. इस संदर्भ में मुझे *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनके शब्द याद आ गये कि, *"आज देश की सभी संपत्ती पांढरपेशा वर्ग ने दबा ली है. उस संपत्ती पर उनका ऐष-आराम चल रहा है. परंतु गरिबों को पेट भर खाने को अनाज नहीं है. और पहनने को वस्त्र नहीं है."* (सोलापूर, १ जनवरी १९३८) आज भारत की *"आर्थिक स्थिती"* क्या है ? *"१० किलो मोफत अनाज"* पर, भारत का गरिब वर्ग जीवन यापन कर रहा है. *"भारत के ७० - ७५% जनता"* का यह हाल है. और हम *"जी.डी.पी."* (सकल उत्पाद दर) की बात करते है. *"रोजगार"* देना तो संभव नहीं है. गरिबों को मोफत अनाज देकरं, हम उन्हे केवल *"आलसी"* ही बना रहे है. सत्ता प्राप्ती के लिये *"लाडली बहन"* समान योजना चला रहे है. भारत सत्ता की यह *"मोफत योजना अर्थ नीति,"* भविष्य का *"गुलाम भारत"* संदेश बयान कर रही है, *"मुसलमान"* को पाकिस्तान जाओ ! अगर रहना हो तो *"गुलाम"* बनो, यह सत्ता नीति घातक है. *"ख्रिश्चन"* भी इस नीति से अछूते नहीं है. यह हमें समझना होगा. *"ब्राह्मण वर्ग विदेशी है"* यह भी चर्चा होती रहती है. हमारा *"भारत का संविधान"* हमें, समानता का संदेश देता है. फिर यह *"असमानता"* की डफली क्यौं ? *"ब्राह्मण विदेशी है"* संदर्भीत कुछ किताबे लिखी गयी है.
*मनुस्मृती* इस ब्राह्मण ग्रंथ का श्लोक २४ ही लो / *बाल गंगाधर तिलक* इनकी किताब "वैदिक आर्यों का इतिहास / भारत वर्ष का इतिहास" / *मोहनदास करमचंद गांधी* इनका २७ दिसंबर १९२४ का कांग्रेस अधिवेशन का भाषण / *पंडित जवाहरलाल नेहरू* इनका पुत्री इंदिरा को लिखे पत्र / *लाला लजपतराय* इनकी पुस्तक "भारत वर्ष का इतिहास" / *पंडित श्याम बिहारी मिश्रा + सुखदेव बिहारी मिश्रा* की पुस्तक "भारत वर्ष का इतिहास भाग १ / *जनार्दन भट* इनका "माधुरी" अंक का लेख / *पंडित गंगाप्रसाद* की पुस्तक " जातिभेद" / *नागेंद्रनाथ बसु* इनकी लिखीत पुस्तक "भारतीय लिपितत्व" / *रमेशचंद्र दत्त* इनकी लिखी पुस्तक "प्राचिन भारत वर्ष की सभ्यता" / *आचार्य महावीर द्विवेदी* इनकी पुस्तक "हिंदी भाषा की उत्पत्ति" / *बाबु श्यामसुंदर* इनकी पुस्तक "हिंदी भाषा का विकास" / *पंडित लक्ष्मी नारायण गर्दे* इनकी पुस्तक "हिंदुत्व" / *पंडित जगन्नाथ पांचोली* इनकी लिखी पुस्तक "आर्यो का आदिम निवास" / *राय बहादुर चिंतामणी विनायक वैद्य* इनकी लिखित पुस्तक "महाभारत मिमांसा" / *काका कालेलकर* इनकी पुस्तक "पिछडा वर्ग रिपोर्ट" / *पा. वा. काणे* इनकी पुस्तक "धर्मशास्त्र का इतिहास" / *धर्मानंद कोसंबी* इनकी लिखी पुस्तक "प्राचिन भारत की संस्कृति और सभ्यता" / *राहुल सांस्कृत्यायन* (केदारनाथ पांडे) इनकी पुस्तक "व्होल्गा टु गंगा" / *प्रताप जोशी* इनकी पुस्तक "ग्रीक ओरीजिन्स ऑफ कोकणस्थ चित्पावन" / *वि. वा. राजवाडे* इनकी पुस्तक "ब्राह्मण विदेशी है" / *स्वामी दयानंद सरस्वती* इनका मासिक "सत्यप्रकाश" / *टाईम्स ऑफ इंडिया* का २००१ का डी.एन.ए. रिपोर्ट / *ऋग्वेद* का भी संदर्भ ले सकते हैं. कुछ विद्वान *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनकी पुस्तक "Revolution and counter revolution in Ancient India" इनका संदर्भ देकर, *"आर्यन थेयरी"* अलग रुप से सादर करते है. हमें यह समझना बहुत जरुरी है कि, बाबासाहेब के इस पुस्तक में ४१ प्रकरण निहित थे. परंतु बाबासाहेब लिखित सदर पुस्तक में, केवल १३ प्रकरण संदर्भ है. बाबासाहेब वह पुस्तक कुछ कारणवश (१९५१ - ५६) पुर्ण नहीं कर पाये. *"वेदांत दर्शन"* साथी उस पुस्तक का संदर्भ देते है. इस विषय पर, हम फिर कभी चर्चा करेंंगे.
अमेरिका के वाशिंग्टन विश्वविद्यालय के *प्रा. माईकल बामशाह* द्वारा संशोधित *"भारत की आनुवंशिक विविधता का अध्ययन"* तथा कोलकत्ता स्थित "भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण" के *वडलामुडी राघवेंद्र राव* एवं अन्य मान्यवरों के संशोधन पर चर्चा करने के पहले, कुछ भारतीय विचारवंतो ने, *"ब्राह्मण वर्ग"* किस देश से भारत में आया है, इस पर चर्चा करते है. *बाल गंगाधर तिलक* के अनुसार *उत्तरी धृव* (आर्केटिक प्रदेश) / *स्वामी दयानंद सरस्वती* इनके मतानुसार *तिब्बत* से / *मॅक्समुलर* इनके मतानुसार *मध्य एशिया* से / तो कोई मान्यवर *युरोपियन* से / तो कई जगह *सेंट्रल एशिया, साईबेरीया, मंगोलिया, ट्रान्स कोकेशिया, स्कैंडने, इराण* से बताते है. ज्यादा तर मान्यवर *"मध्य एशिया* से बताते है. वैदिक / ब्राह्मण ग्रंथ इतिहास यह *"ग्रामिण भारत"* का संदर्भ बयाण करता है. परंतु प्राचिन भारत की *"सिंधु घाटी सभ्यता"* (इ. पु. ३३०० - १९००) यह *"नगरीय सभ्यता"* दिखाई देती है. सिंधु घाटी सभ्यता में मिले अवशेष, *पहिला बुध्द - ताण्हणकर बुद्ध* का बोध कराता है. जैसे - स्तुप और समिप तरणताल / चक्राकार स्तुप / स्वस्तिक चिन्ह / ध्यानस्थ राजा / बैठा सिंह मुद्रा / वृषभ (बैल). पहिला बुद्ध परंपरा यह २८ वे *शाक्यमुनी बुध्द* (इ. पु. ६ वी शती) तक दिखाई देती है. *सिंधु घाटी सभ्यता* की लिपि अभी तक पढी या समझी नहीं गयी. शाक्यमुनी बुध्द काल की लिपी - *"ब्राम्ही लिपी"* (धम्म लिपी) तथा बोली भाषा *"पाली"* / चक्रवर्ती सम्राट (इ. पु. तिसरी शती) *अशोक शिलालेख* - ब्राम्ही धम्म लिपी यह पढी और समझी गयी है. सम्राट अशोक के दरबार का युनानी इतिहासकार *मेगास्थनिज* इसका ग्रंथ *"इंडिका"* तथा इ. पु. पहिला शती का इतिहासकार *एरियन* इनका भी ग्रंथ *"इंडिका"* में *"वर्णव्यवस्था"* का उल्लेख नहीं है. तब *"वंश व्यवस्था"* का सत्ता व्यवस्था रही है. जैसे की - शाक्य वंश / कोलिय वंश / मौर्य वंश / हरयक वंश / कुषाण वंश आदि. सम्राट अशोक इनके शिलालेख में *"चाणाक्य ब्राह्मण- कौटिल्य अर्थशास्त्र"* का उल्लेख दिखाई नहीं देता. अर्थात कौटिल्य - चाणाक्य यह काल्पनिक पात्र है. वैसे ही *"कालिदास"* इनका जन्म - मृत्यु संदर्भ भी दिखाई नहीं देता. अत: कालिदास भी काल्पनिक पात्र माना जा सकता है. इसवी १० वी शती का फारशी इतिहासकार *अलबरुनी* इनकी लिखीत पुस्तक *"जय भारत संहिता"* में, *"महाभारत / वेद"* इन ग्रंथो का उल्लेख दिखाई नहीं देता.
ब्राह्मण वर्ग में प्रमुख पाये जानेवाले हेप्लोग्रुप है - R1a1 / J2 / L / H. अमेरिका के सिएटल स्थित "वाशिग्टन विश्वविद्यालय" के *प्रा. माईकल बामशाह* इनके, *"भारत की आनुवंशिक विविधता अध्ययन"* की बहुत चर्चा होती है. तथा कोलकाता के "भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण" के *वडलामुडी राघवेंद्र राव* और उनके टीम के संशोधन निष्कर्ष, *"ब्राम्हण"* के विदेशी होने का प्रमाण देते है. उनके टीम ने भारत के २४ जनजातीय से लिये गये, *"माइटोकॉंड्रियल DNA"* के २७०८ नमुनोंओं का संशोधन किया है. शोधकर्ताओं ने *"माइटोकॉंड्रियल जीनोम"* में उत्परिवर्तन के एक विशेष समुह की तलाश की. जीसे *"M2 हैप्लोग्रुप"* कहा जाता है. अफ्रिका से प्राचिन भारत में ६५००० आने वाले *"पहिले मानव"* का संदर्भ भी बयाण कर जाता है. भारत में *"पांच लाख वर्ष"* पुर्व के मानव - *"नर्मदा मानव"* का शोध, भुवैज्ञानिक *अरुण सोनकिया* इन्होने मध्य प्रदेश मे लगाया है. वह पाच लाख वर्ष की *"मानव की मुल खोपडी"* मुझे देखने तथा हाथ में पकडने का अवसर मिला. आज वह मुलं खोपडी कोलकाता म्युझियम में रखी है. और नागपुर भुवैज्ञानिक म्युझियम में, उस खोपडी का *"डमी मॉडेल"* रखा है. इस विषय पर सविस्तर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. ब्राह्मण DNA में R1a1 हेप्लोग्रुप से, "*अनुसुचित जाती / जनजाति वर्ग"* का संबंध जोडा जाता है. Journal of Human Genetics Japan द्वारा ९ जनवरी २००९ में प्रकाशित रिपोर्ट में, *"62TY क्रोमोझोम"* (गुणसूत्र) ब्राह्मण वर्ग की जांच की गयी. उपरोक्त रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि, *"ब्राह्मण विदेशी है."* परंतु आश्चर्यजनक अवलोकन यह भी निकाला गया कि, ब्राह्मणों के R1a1 हेप्लोग्रुप यह अनुसुचित जाती / जमाति समुह के संस्थापक वंश (पैतृक रुप से) में, अपनी उपस्थिती का संकेत दिया है. अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि, ब्राह्मण विदेश से भारत आने के बाद, उनका संबंध भारतीय लोगों से बना है. परंतु *"ब्राह्मण विदेश से भारत कब आये ? किस देश से आये ? "* इस विषय पर विचारविदों में मतभेद है. *शाक्यमुनी बुध्द* (इ. पु. षटवी शती) से *"इसवी पहिली शति"* का कालखंड बौध्द सम्राटों का कालखंड था. इ. पु. ५७ का *"विक्रम सवंत कॅलेंडर"* तथा इसवी ७८ - पहिली शती का *"शक सवंत कॅलेंडर"* यह बौध्द कॅलेंडर होने का प्रमाण देते है. *"खगोलशास्त्र"* के रचयीता *फल्गुदेव* यह शाक्यमुनी बुध्द बतायें जाते है. सम्राट अशोक इन्होने खगोलीय संशोधन कराने का, संदर्भ दिखाई देता है. *"उदयगिरी"* का १२ दिशा दर्शानेवाला स्तंभ उसका प्रमाण है. बौध्द भिक्खुओं को *"उपोसथ"* पालन करने का वह प्रमुख आधार था.
इसवी पहिली शती (इसवी ७२) में *"चौथी बौध्द सांगिती"* यह जम्मु कश्मिर के *"कुंडलवन"* में, अध्यक्ष - *वसुमित्र* / उपाध्यक्ष - *अश्वघोष* / संरक्षक - *सम्राट कुषाण* इनकी उपस्थिती में हुयी थी. सदर चवथी संगिंती का परिणाम *"हिनयान / महायान संप्रदाय"* उदय रहा है. हिनयान संप्रदाय ने *"पाली भाषा"* को अपनी बोली भाषा मानी. वही *"महायान संप्रदाय"* इन्होने पाली भाषा में संस्कार कर *"हिब्रू संस्कृत भाषा"* (लिपी ब्राह्मी) का निर्माण किया. आज की संस्कृत भाषा यह *"क्लासिकल संस्कृत"* है. और लिपी यह *"देवनागरी"* है. देवनागरी का *"पहिला प्रारुप इसवी ११००"* में तथा उसका *"प्रयोग / प्रारंभ इसवी १७९६"* में किया गया. इसवी पाचवी शती मेंं महायान ने *"वज्रयान संप्रदाय"* को / इसवी आठवी शती मे वज्रयान ने *"तंत्रयान संप्रदाय"* को जन्म दिया. इसवी ८५० में *शंकर* नाम के व्यक्ति का जन्म होता है. उसे *"प्रच्छन्न बौध्द"* भी कहा जाता है. *वज्रयान / तंत्रयान* ने नववी - दसवी शती में, *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* को जन्म देते है. शंकर नाम का व्यक्ति स्वयं को *"आदि शंकराचार्य"* घोषित कर, **चार पीठों का निर्माण"* दसवी - ग्यारहवी शती में करता है. और महायान बौध्द संप्रदाय के *"बुद्ध विहारों पर अधिपत्य"* करता है. *"बुध्द धर्म की अवनती"* का कालखंड यह दिखाई देता है. इसवी ६२२ में *"मोहम्मद पैगंबर"* के नाम *"हिजरी सवंत कॅलेंडर"* की निव रची जाती है. अर्थात सातवी - आठवी शती के बाद *"मोगल काल"* शुरु होता है. दसवी - ग्यारहवी शती में, फारसी इतिहासकार *अलबरुनी* भारत आता है. अलबरुनी का ग्रंथ *"जय भारत संहिता"* में, *"महाभारत / वेद"* आदी ग्रंथ का उल्लेख दिखाई नहीं देता. *"कागज का शोध"* यह चायना में *"दसवी शती"* में लगता है. और बौध्द साहित्य यह *"शिलालेख / ताम्रपट / ताडपत्र"* पर दिखाई देते है. जब कि *"रामायण/ महाभारत / वेद / उपनिषद / मनुस्मृती"* इनका लिखाण कागद पर है. *"गांधार मुर्ती कला"* यह बौध्द काल के इ. पु. पहिली शती तथा *"मथुरा मुर्ती कला"* यह इसवी दुसरी शती का हमें अहसास दिलाती है. हमे यह सभी कालखंड समझना बहुत जरुरी है.
*बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्होने वैदिक / ब्राह्मण / हिंदु धर्म संदर्भ में श्रीलंका (सिलोन) दिये भाषण में कहा कि, *"भारत का धर्म हमेशा का हिंदु धर्म था, यह विचार मुझे मान्य नहीं है. हिंदु धर्म तो, सबसे अंत में विचारों की उत्क्रांती होते हुये उदय में आया. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद भारत में तिन बार धार्मिक परिवर्तन हुआ है. वैदिक धर्म का रूपांतर ब्राह्मण धर्म में, और ब्राम्हण धर्म का रूपांतर हिंदु धर्म में हुआ है."* (कोलंबो ६ जुन १९५०) वैदिक धर्म का प्रारंभ *"नववी - दसवी शती"* में दिखाई देता है. बाद में दुसरी अवस्था *"ब्राह्मण धर्म"* रहा है. तिसरी अवस्था *"हिंदु धर्म"* यह १८ वी शती में. अर्थात १८१६ में *राजा राममोहन रॉय* द्वारा हिंदुझम शब्द कहा गया है. सन १८९४ में *चंद्रनाथ बसु* इन्होने भी हिंदुत्व शब्द का प्रयोग किया. सन १९१५ में *मदन मोहन मालवीय* इन्होने "अखिल भारतीय हिंदू महासभा" इसका गठण किया. सन १९२५ में *डॉ केशव हेडगेवार* इन्होने "RSS" इस हिंदु संघटन की स्थापना की. सन १९३७ - ४५ तक *विनायक दामोदर सावरकर* इन्होने *"जहाल हिंदुत्व"* का बिजारोपण किया. वही *"मोगल साम्राज्य "* का भारत मे कालखंड भी *"अप्रेल १५२६ से सितंबर १८५७"* तक रहा है. इसी कालखंड में भारतीय आवाम को, *"मुस्लिम"* ही शासको द्वारा *"हिंदु"* (फारसी शब्द) यह गाली दी गयी है. हिंदु > हिनदु > हिन + दु > हिन = चोर, काला, निच ... दु = प्रजा, लोक > *"हिंदु = निच लोक, चोर"*... यह गाली दी गयी है नां ? क्या वह मुस्लिमों का बदला है ? सन १८५७ में *"इस्ट इंडिया कंपनी"* (ब्रिटीश राज) का आना / १८५७ के विद्रोह के बाद १८५८ में *"ब्रिटीश क्राउन"* के अधिन भारत गुलाम रहा था. सन १९४७ को भारत आझाद हुआ. मुगलो ने करिबन ३२५ साल / अंग्रेजो २०० साल तक, भारत पर शासन किया. सन १९११ में अनुसुचित जाती / जमाति वर्ग यह *"गैर हिंदु"* वर्ग थे. सन १९३१ की जनगणना में सुची (Shedule) द्वारा जाती / जमाती का सुची बनायी गयी थी. सन १९३५ में "अनुसुचित जाती अध्यादेश" अन्वये अंग्रेजो द्वारा सुविधाएं प्रदान की गयी. सन १९५० में सदर आदेश में सुधार कर *"आरक्षण की व्यवस्था"* दी गयी थी. अंग्रेज शासन में *"ब्राह्मण धर्म"* यह अल्पसंख्याक (३ - ४ %) होने के कारण ही, ब्राह्मण वर्ग यह *"हिंदु धर्मीय"* हो गया. *"हिंदु"* यह धर्म है या नहीं ? यह भी विवाद है. *"सनातन धर्म"* यह बुध्द धर्म से जुडा शब्द है. *"धम्म पद"* में ही सनातन यह शब्द है. *"न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (धम्मपद, यमक वग्गो ५) (अर्थात - वैर से वैर कभी शांत नहीं होता, अवैध से वैर शांत होता है. यही संसार का नियम है. यही सनातन धर्म है.) ब्राह्मण वर्ग ने बुध्द का केवल *"सनातन"* शब्द ही नहीं चुराया. बहुत कुछ चुराया है. *"धम्मपद"* का आधार लेकरं *"भगवत गीता"* की रचना की गयी. आझादी के बाद सत्ता की मलाई, ब्राह्मण वर्ग खा रहा है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के विशाल - विकास - *"अखंड भारत"* में, *"अफगाणिस्तान / पाकिस्तान / म्यानमार /नेपाल / श्रीलंका / बांगला देश"* यह तमाम देश अखंड भारत के हिस्सा थे. बाद में *"बुद्ध धर्म"* के साथ साथ, विविध धर्म का अधिवास होना, यह भारत का प्राचीन इतिहास है. तो फिर *"मुसलमान"* यह विदेशी कैसे है ? यह भी तो प्रश्न है. सवाल तो अब ब्राह्मण वर्ग द्वारा, *"सत्ता पर आसिन"* क्यौं है ? यह नहीं है. सवाल तो *"भारत की धर्मांध सत्ता नीति"* (हिंदु - मुस्लिम विभाजन) का है. भारत की *"न्याय व्यवस्था "* मजबुती का है. भारत की *"डुबती अर्थ नीति"* का है. *"पुंजीवाद गुलामी"* का है. *"मंदिर अर्थ नीति"* का है. *"सरकारी कंपनीयों"* के खाजगीकरण का है.*"जातिगत जनगणना"* एवं उचित मात्रा में प्रतिनिधित्व का है. *"भारत प्रजातंत्र "* खतरे का है. *"विकास भारत"* बनाने का है. *"भारत देशभक्ती"* का भी है. *"भारत राष्ट्रवाद"* का भी है. *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* बनाने का भी है. *"ब्राह्मण वर्ग"* को भारत देश से, भगाने का भी नहीं है. हम सभी तो अब *"भारतीय"* है !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक ४ अप्रेल २०२५
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