👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, ५ सितंबर २०२१ को, झुम पर आयोजित "शास्त्रों में वृक्षों के बारे में" इस विषय पर आंतरराष्ट्रिय परिसंवाद कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछे दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* अन्य पँनालिस्ट : *पादरी एथन क्रुज* - ईसाई धर्म
* *अमृत पाल सिंंग* - सिख धर्म
* प्रश्न - १ : *क्या आप के शास्त्रो में, दिव्य वृक्षों का कोई अभिलेख है ? यदी हां, तो कृपया वृक्षों के बारें में बतायें ...?*
* * हां, हमारे बुध्द धर्म में दिव्य ऐसे वृक्ष का अभिलेख, *"बोधीवृक्ष "* इस नाम से वर्णीत है. इ.सा. पुर्व ५३१ में, तथागत गौतम बुध्द को बोधगया (बिहार) में स्थित, पिपल के वृक्ष के निचे बोध (ज्ञान) प्राप्त हुआ था. बोधि का अर्थ होता है *"ज्ञान".* और जिस वृक्ष के निचे बोधि प्राप्त हुयी थी, उस वृक्ष को *"बोधिवृक्ष"* कहते है. सदर दिव्य वृक्ष का इतिहास भी बडा रोचक है.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक बुध्द धर्म के प्रती बहुत ही श्रध्दाभाव रखते थे. उसकी वैश्य पत्नी / *महाराणी तिष्यरक्षीता*, वह बुध्द धर्म का विरोधी होने के कारण, जब उस राणी ने, सम्राट अशोक प्रदेश के बाहर जाने का अवसर देखकर, सदर बोधिवृक्ष को कटवाया था. परंतु वह बोधीवृक्ष नष्ट नही हो पाया. कुछ वर्ष बाद, उसी जगह नया अंकुर फुटकर, बोधीवृक्ष का पुनर्जन्म हुआ. वह दुसरे पिढी का वृक्ष ८०० सालो तक जिवित रहा. परंतु उसके पहले महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने, अपने *पुत्र महिंद्र और पुत्री संघमित्रा* को, ई.सा. पु्व २५३ में उस बोधिवृक्ष की टहनी लेकर, श्रीलंका भेजा था. वह बोधीवृक्ष श्रीलंका शहर के *अनुराधापुर* में लगाया गया.
दुसरी बार बंगाल के *राजा शशांक* ने, उस बोधिवृक्ष को जड सहीत काटने का प्रयास किया और वहां आग भी लगाई. परंतु वह बोधीवृक्ष नष्ट नही हो पाया. वहां से फिर अंकुर फुटकर बोधिवृक्ष उगा था. जो तिसरी पिढी का बोधीवृह १२५० साल तक जिवित रहा. तिसरी बार सन १८७६ में, प्राकृतिक आपदा से वह बोधीवृक्ष नष्ट हो गया. परंतु अंग्रेज़ी शासन *लार्ड कनिंगहॅम* ने, सन १८८० श्रीलंका के अनुराधापुर से, सदर बोधीवृक्ष की टहनी मंगवाकर बोधीवृक्ष को स्थापित किया. जो बोधिसत्व आज बुध्दगया में दिखाई देता है, वह चवथे पिढी का बोधीवृक्ष है.
*"दीक्षाभूमी नागपूर"* स्थित बोधीवृक्ष का मुल भी, श्रीलंका के अनुराधापुर से जुडा हुआ है. *मई १९६८* में, अधिकारिक तौर पर, श्रीलंका सरकार से अनुरोध कर, *भदंत आनंद कौशल्यायन / भदंत डॉ. हम्पोलो रतनसारा / भदंत आनंद मंगल* इन्होने, वहां से बोधीवृक्ष के तिन पौंधे लाकर, दीक्षाभूमी पर एक ही जगह लगाया. वर्तमान में दीक्षाभूमी नागपुर स्थित बोधीवृक्ष, यह तिन पौधों का एक अखंड संयोग है. और देश - विदेश से आनेवाले बौध्द अनुयायी, उन तिनो जगह भेट देकर, बोधीवृक्ष को श्रध्दाभाव से अभिवादन करते है.
* *बुध्दगया (भारत) / दीक्षाभूमी नागपुर (भारत) / अनुराधापुर ( श्रीलंका)* इन तिनो जगह स्थित बोधीवृक्ष के फोटो, आप देख सकते है.
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* प्रश्न - २ : *वर्तमान समय में उन दिव्य वृक्षों और अनुयायी कें बिच क्या संबध है...?*
* * बोधिवृक्ष से बौध्द समुदायों का, बहुत भावनिक संबध रहा है. वह श्रध्दा से जुडा विषय है. अंधश्रदा वहा कदापिही नही. हमारी श्रध्दा यह पुर्णत: प्रज्ञायुक्त श्रध्दा है. श्रध्दा संदर्भ में बुध्द साहित्य में, बहुत सी गाथाएं है. मै यहां केवल एक पाली गाथा का उल्लेख करुंगा.
"सध्दा वित्तं पुरिसस्स सेट्ठं |"
*(अर्थात : श्रध्दा यह लोकों (संसार) में आदमियों का श्रेष्ठ धन है...!)*
बुध्द को पिपल के वृक्ष ने निचे बोधी (ज्ञान) प्राप्त हुयी. इस लिए उस वृक्ष को *"बोधीवृक्ष"* कहते है. भारत में बुध्दगया स्थित "बोधिवृक्ष" के मुल वृक्ष का पौंधा अनुराधापुर (श्रीलंका) लगाया गया. कालांतर में अनुराधापुर से फिर भारत में, *बुध्दगया* में पुनर्स्थापित किया गया. तथा *दीक्षाभूमी नागपूर* में भी, उसे लगाया गया. इस लिए उन तिनों जगह को, ऐतिहासिक महत्व प्राप्त हुआ है. देश विदेश के लोग उन स्थानोंपर भेट देकर, अभिवादन करते है. मुझे भी उन तिनो जगह भेट देने का अवसर मिला है.
१. नागपुर में रहने के कारण, *"दीक्षाभूमी नागपुर"* स्थित बोधीवृक्ष को हमेशा ही भेट देकर अभिवादन करता रहा हुं. कोरीया की नामांकित मान्यवर *मदर पार्क चुंग सु* इन्होने, मेरे निमंत्रण पर नागपुर को भेट दी थी. यही नही दीक्षाभूमी पर *भदंत आनंद कौशल्यायन* इनका बोधीवृक्ष लगाने का, बहुत बडा योगदान रहा. और मेरी उनसे जिवित काल में, अकसर भेट होती रहती थी. आप वह फोटो देख सकते है.
२. इसके साथ *श्रीलंका के अनुराधापुर* जाने का भी अवसर मिला है. श्रीलंका सरकार द्वारा अनुराधापुर मे आयोजित *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद "* का मुझे निमंत्रण था. तब मुझे श्रीलंका स्थित बोधीवृक्ष को भेट देने का अवसर प्राप्त हुया. आप वह भी फोटो देख सकते है.
३. *भारत के बुध्दगया* स्थित बोधीवृक्ष को भी मुझे अभिवादन करने का अवसर मिला था. आप बुध्दगया स्थित बोधीवृक्ष की फोटो देख सकते है.
४. इसके साथ ही *थायलंड के अयुथ्या* को मैने भेट दिया था. वहां तो *बोधिवृक्ष* के जड से बुध्द का शिर्ष बाहर आया दिखाई देता है. आप वह फोटो भी देख सकते है.
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
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