Thursday, 22 April 2021

 🇮🇳 *मेरे अपने वतन पर...!!!*

               *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

               मो.न.‌ ९३७०९८४१३८


हे मुझे बहोत नाज़ है, मेरे अपने वतन पर

जहां बुध्द फुले आंबेडकर, जनम लेते है...


यहां गद्दारों ने छिना है, हमारा वों अधिकार

क्रांती के ये लहु सें, इस पर सिंचाई की है

वो दिन जादा दुर नहीं, बसं तुम्हे तो उठना है

अब हमें मुर्दा नही, आदमी बनकर जीना है...


यें तुफ़ानों से लढ़ना, युं ही आसान नहीं

वो लपेट में तो अपनी, कस्ती तोड देता है

युं सवाल तो यहां, उन से टकराने का है

हमे यहां तुटना नही, उठकर खडा होना है...


यहां युध्द से हट कर, बुध्द की बात होती है

संविधान को देख, भीम की याद आती है

वहीं गली गली के कुत्ते, सत्ता पर बैठ जाते है

अब हम चुनौती देकर, उन्हे जगह बताते है...


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