🌹 *इन सुंदर - मोहक फुलों के सत्कार में, अपनापण और प्रेम का बडा सुगंध भी होना चाहिये...!* - डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'
सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष तथा सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब / सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग के संस्थापक तथा पेट्रान *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' सर* का जन्म दिन गुरुवार दिनांक १८ अगस्त २०२२ को, नागपुर मुख्यालय के "सीआरपीसी क्लब हाऊस" में संपन्न हुआ. *शंकरराव ढेंगरे* इन्होने अध्यक्षता की. उस अवसर पर *एड. एम. बी. पराते /सुर्यभान शेंडे / प्रा. डॉ. टी. जी. गेडाम / वंदना जीवने / आनंद सहारे / आर्की. विजय बागडे* प्रमुख अतिथी थे. अपने जन्मदिन के अवसर पर, सत्कार को उत्तर देते हुये सीआरपीसी के राष्ट्रिय नेता / नामचिन बुध्द - आंबेडकरी रचनाकार / कवि / लेखक / विचारविद / भाष्यकार *डॉ. मिलिन्द जीवने* भावुक होकर कह गये कि, *"इन विभिन्न फुलों के सत्कार से, मन तो मोह भर लेता है. परंतु इन सुंदर - मोहक फुलों के सत्कार में, अपनापण तथा प्रेम का बडा सुंगध भी होना चाहिये. सत्कार का यह फुल, अपने घर की शोभा बननी चाहिये. घर के एक किनारे में, उसकी एक अच्छी जगह भी हो. अगर यह सुंदर - कोमल फुल, दुसरे ही दिन फेंक दिये जाते हो तो, आदमी की धोकादारी - स्वार्थता - झुटी बातें - वादें - कमीनेपण की फितरत, इन फुलों में कभी नही होती. बस, वो तो केवल निष्पाप होते है. इन फुलों में संगित भी वास करता है. बस, वो सुननेवाला चाहिये. मन की एकाग्रता चाहिये. मन का सच्चा प्यार चाहिये. इस लिये मै कभी अपने बगिचों के फुलों को, कभी तोडता ही नही हुं. अगर उन फुलों को किसी ने तोडा तो, मै बरदास्त भी कर नही पाता. मै रोज सुबह जमीन पर गिरनेवाले फुल ही, तथागत को रोज अर्पण करता हु. यह मेरी रोज नित्य की आदत है. इतना ही नहीं, मै इन फुलों से / निसर्ग से बहुत प्यार करता हुं. मेरे अंतर्मन की / लिखाण की / विचारों की प्रेरणा वही तो है. आदमी से किया हुआ सच्चा (?) प्यार, कब अपना हवा का रुख बदल जाएगा, यह हम बता नहीं सकते. आदमी की ये चंचलता / स्वार्थ ही, वह आदमी को कब डुबा दे, यह कोई भी नही जानता. आदमी को विश्वास का, सबसे बडा दगाबाज प्राणी कहना होगा. आदमी पर, पुरा भरोसा भी, कभी नही करना चाहियें. क्यौ कि, मिठेपण में भी जहर भरा हुआ होता है."*
आगे डॉ. जीवने सर इन्होने कहा कि, "हमारे अपने सीआरपीसी मिशन मे वैर रखना नही है. हम सभी को मिलकर काम करना है. बुध्द भी तो यही कहते है. *" न हि वेरानी सम्मन्तिध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (अर्थात - वैर से वैर शांत नही होता. अवैर से वैर शांत होता है. यही संसार का नियम है. यही सनातन धर्म है.) हमारे हाथो से जाने - अंजाने मे अकुशल कर्म होते है या होते आये है. शायद पाप कर्म भी हुये हो. बुध्द ने इस संदर्भ में जो कहा है, वह हमे अमल में लाने की कोशीश करना जरुरी है. बुध्द कहते है - *"इथ तप्पति पेच्च तप्पति, पापकारी उभयत्थ तप्पति | पापं मे कतंति तप्पति, भियो तप्पति दुग्गतिङ्गतो ||"* (अर्थात - पापी व्यक्ती इस लोक और परलोक दोनो जगह सन्ताप करता है. मैने पाप किया, ऐसा सोचकर संतप्त होता है. उसके परिणाम से दुर्गती को प्राप्त होकर अधिक दु:खी होता है.) *"मधुवा मञ्ञति बालो याव पापं न पच्चति | अत्तनो' व अवेक्खेच्च कतानि अकतानि च ||"* (अर्थात - जब तक पाप का फल नही मिलता, तब तक अज्ञ व्यक्ती पाप को मधु के समान मिठा समजता है. किंतु जब उसका फल मिलता है, तब दु:ख को प्राप्त होता है.)"
"हमे अच्छे लोगों को जोडना है. तोडना नही है. बुध्द भी अच्छे लोगों की मित्रता करने की बात कहते है. *" न चे पापके मित्ते न भजे पुरिसाध मे | भजेथ मित्थे कल्याणे भजेथ पुरिसुत्त मे ||"* (अर्थात - बुरे मित्र का साथ न करे. न अधम पुरूषों का सेवन करे. अच्छे मित्र की संगती करे. उत्तम पुरुषों की संगती करे.) हमे बडे लोगों का आदर करना है. अनादर / अपमान न करे. बुध्द इस संदर्भ में कहते है. *"अभिवादनसीलिस्स निच्चं बध्दापचयिनो | चत्तारो धम्मा वङ्गन्ति आयु वण्णो सुखं बलं ||"* (अर्थात - जो व्यक्ती बडों का आदर करता है. अभिवादनशील है. उसको आयु, वर्ण, सुख और बल की वृध्दी मिलती है.) हम अकसर दुसरों का दोष देखा करते है. परंतु वो स्वयं क्या है ? उसका मुल्यमापन नही करते. इस पर भी बुध्द कहते है- *"न परेसं विलोमानि न परेसं कलाकतं | अत्तनो' व अवेक्खच्च कतान्ति अकतानि च ||"* (अर्थात - न दुसरों का दोष देखें. ना दुसरों के कृत्याकृत्य को. व्यक्ती को चाहिये कि वह अपने कृत्य - अकृत्य का अवलोकन करे.) हमे अपने चित्त को / मन को स्थिर रखना है. और यह बहुत कठिण कार्य है. इस के परिणाम संदर्भ में बुध्द कहते है - *"अनवठ्ठितचित्तस्स सधम्मं अविजानतो | परिप्लवपसादस्स पञ्ञा न परिपुरांत ||"* (अर्थात - जिस का चित्त स्थिर नही है, जिस का चित्त प्रसन्न नही है, वह व्यक्ती कभी प्रज्ञावान नही हो सकता.)
हमे बुध्द का *"कार्य कारण भाव"* इस तत्व को समझना बहुत जरुरी है. हर कार्य के पिछे कोई ना कोई कारण होता है. अत: हमे उस स्विकार करना होगा. हर आदमी की सुंदरता देखने का माध्यम आरसा है. अत: हमे आरसे में केवल *"चेहरे की सुंदरता"* को नही देखना है. बल्की *" मन की सुंदरता"* को भी देखना बहुत जरुरी है. हमारे मन में बहुत मल / दोष भरा होता है. वह दोष दुर करना भी जरुरी है. उस कारणवश आदमी बहुत सारी गलतीयां कर जाता है. वह हेकेखोर बन जाता है. अत: हमे बुध्द के *"मध्यम मार्ग"* की बढना होगा. नहीं तो वो दिन दुर नही कि, हमे अपने गलतीयों पर / हेकेखोरी पर पछताना पडे. क्यौ कि, गुजरे हुये दिन कभी वापस नही आतें. अत: हमे कुशल कर्म की ओर बढने की जरुरत है. वह कुशल कर्म हमे नाम - शौकत दे जाते है. अकुशल कर्म नही. कार्यक्रम के सफलता के लिए *इंजी. माधवी जांभुलकर / डॉ. राजेश नंदेश्वर / साधना सोनारे / अधिर बागडे / सरदार कर्नलसिंग दिगवा / गंगाधर खापेकर / अमिता फुलकर / निलिमा कुत्तरमारे / लक्ष्मण खापेकर / अशोक भिवगडे* आदी पदाधिकारी वर्ग ने सहभाग लिया. डॉ. जीवने सर इनका स्वागत *डॉ. प्रमोद चिंचखेडे* तथा सभी पदाधिकारी वर्ग ने किया. कार्यक्रम का संचालन *प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे* इन्होने किया. प्रास्ताविक *डॉ. मनिषा घोष* इन्होने किया. आभार *डॉ. भारती लांजेवार* इन्होने किया. कार्यक्रम मे बहुत अच्छी कार्यकर्ता वर्ग की उपस्थिति थी.
स्नेहांकित -
*डॉ. किरण मेश्राम*
राष्ट्रिय महासचिव, सीआरपीसी
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सीआरपीसी वुमन विंग
राष्ट्रिय कार्याध्यक्षा, सीआरपीसी वुमन क्लब
राष्ट्रिय सल्लागार, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
राष्ट्रिय सल्लागार, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
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